सांध्य दीप भाग-25
-डॉ. अशोक आकाश
सांध्य दीप भाग-25
सांध्य दीप भाग-25
/111/
यह वो दीपक है जो जलता,
लड़कर भी तूफानों से |
असफल कर देता चालों को,
आगे बढ़ शैतानों के ||
सागर का द्रुत लहर थाम दे,
नक्षत्रों का कहर थाम दे |
नित रत रहता शॉति सुरक्षा,
नस-नस भीनी जहर थाम दे ||
पुण्यहीन जो शून्य कर्म |
सद्भाव भरे वही धन्य धर्म ||
मन कुंज करे सुख सिंधु भरे,
अरविंद करे दुख के क्षण को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
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/112/
खुद जल-जल दहके औरों पर,
शीतल जल बरसाता |
जहर पान कर शैतानों पर,
दिव्य कहर बरपाता ||
दूसरों के घर आग लगाये,
खुद ही जल मर जाता |
जो भी जैसा कर्म करेगा,
वह वैसा फल पाता ||
जैसा पेड़ लगायें खास |
वैसा फल मिले दृढ़ विश्वास ||
सुंदर फूलों की कलियों से,
महका दो हर गुलशन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
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/113/
पानी की कीमत तब होती,
जब दम घुटती प्यास लगे |
कदर जिंदगी की तब होती,
उखड़ी-उखड़ी सॉस लगे ||
सारे सुख संशाधन जब तक,
तब सब अपने खास लगे |
बढ़ जाती कीमत रिश्तों की,
जब उनमें विश्वास जगे ||
जल जीवन की थामो डोर |
जल संचय हो जग में होड़ ||
उलझन सुलझा जन समझा दो,
जग जल जीवन दर्शन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
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/114/
कल की क्या चिंता है साथी,
चिंतन में रह मतवाला |
निज शुचिता का चिंतन कर लो,
है क्या कल होने वाला ||
कल जो भी होगा देखेंगे,
दुनिया को दिखलायेंगे |
शौर्य पराक्रम अनुशासन से,
जीवन फर्ज निभायेंगे ||
राहगीर हो साथ अगर |
तय हो जाता मंजिल का सफर ||
क्रॉतिदीप बन जग रौशन करे,
पोषित शोषित जीवन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
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/ 115/
अपनों पर आघात करे,
विश्वास किसी का तोड़े |
भंगी भोगी दंभी लोभी,
है किसको जो छोड़े ||
अपने परिजन मित्रों के पथ,
छिप अटकाता रोड़े |
उनको समय स्वयं दे देता,
बॉध के अनगिन कोड़े ||
गैरों को रुला जो खुश होता |
अपनों के लिये अंकुश बोता ||
छिप छिप कर आघात करे,
जख्मी कर देता जन मन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
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-डॉ. अशोक आकाश
शेष भाग अगले अंक में
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