सांध्य दीप भाग-27
-डॉ. अशोक आकाश
सांध्य दीप भाग-27
सांध्य दीप भाग-27
(121)
पड़े हुए हर लौहयंत्र,
औजारों पे जंग लग जाता |
ठहरा हुआ सरित पावन जल,
स्वयं प्रदूषित हो जाता ||
चिंतनहीनता से मन हारे,
लगनहीन तन थक जाता |
मन मॉजे तन चुस्त रखे,
वह कठिन चढ़ाई चढ़ जाता ||
संकल्प ही मंजिल पहुंचाता |
विकल्प राह से भटकाता ||
खेत सँवारो कीट संहारो,
झाड़ो बीजों के घुन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
***
(122)
मननशील मन-मंथन डूबे,
रत्न चतुर्दश पाता |
हलाहल लक्ष्मी ऐरावत,
चन्द्र अमिय बरसाता ||
मन ही सागर मन ही मथनी,
दानव देव कहाता |
दृढ़ संकल्पित पुण्य कर्म से,
खुद का बनो विधाता ||
मन रवि किरण मन ही हिरण |
मन से शॉति मन से ही रण ||
अनुशासित जीवनचर्या से
मज्जनकर मन-कंचन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
***
(123)
शॉति से शीतलता झलके,
शॉति ही जीवन की राह |
शॉति से अपनालो दुनिया,
शॉत रहो जो सुख की चाह ||
पूर्ण शॉति जग-मंगलकारी,
जीवन भरदे उजियारा |
मधुवन हो जाता मन-पतझर,
शॉतिहीन उर अंधियारा ||
शॉत बहादो अमिय बयार |
शीतलता छाये संसार ||
परम शॉति है वो कस्तूरी,
ढूंढ रहा मृग वन-वन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
***
(124)
करे अशोक आकाश निवेदन ,
वृद्धजनों का हो सम्मान |
त्याग वंदनीय पुज्यकर्म से,
पाया हमने जीवनप्राण ||
पुण्य कल्पतरु कामधेनु मृदु ,
पारस दृढ़ शुचि अनुभव खान |
मान रहे यह ध्यान रखो नित,
तुझमें बसती इनकी जान ||
अवसान काल अपनापन दे |
सेवा सत्कार समर्पण से ||
तुझपर कर विश्वास सौप दी,
अपना उच्च सिंहासन जो |
अंधकार में भटके ना कोई,
कर उज्ज्वल सबके मन को ||
***
(125)
रहे प्रकाशित सांध्यदीप नित,
द्रुतगति फैले जग सम्मान |
गौरवगाथा कर्म कीर्ति-ध्वज,
फहरे दे अनगिन पैगाम ||
धर्मपताका निज कर शोभित,
अधरों पे नित्य सहज मुस्कान |
आज विश्व यह नवल रतन ले,
तरुण मदन मोहन मृदुगान ||
प्रियजन ले यह स्मृतिदान |
कर लेना इसका सम्मान ||
बनो भगीरथ सद्कीरत रत,
सतत नवल सुख सिरजन को |
अंधकार में भटके ना कोई ,
कर उज्ज्वल सबके मन को ||
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इति सांध्यदीप सम्पूर्णम्
-डॉ. अशोक आकाश
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