काव्य श्रृंखला :
सांध्य दीप भाग-3
-डॉ. अशोक आकाश
काव्य श्रृंखला : सांध्य दीप भाग-3
सांध्य दीप भाग-3
/10/
मात पिता गुरु विप्र जनों का,
जिसके मन गूंजे सम्मान |
मातृभूमि पर प्रेम हो जिसको,
वह करता जीवन बलिदान ||
उन्हें सफलता मिलती ही है,
जिनके शीश आशीष कवच |
शील घर्मधुरी होते वो जो,
इन्हें बिठाये नयन पलक ||
बालक मन जो हुआ अधीर |
साहस दे करता बलवीर ||
फूलों से खुशबू चुनचुन,
निष्प्राण में भरता चेतन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
/11/
सहज भाव ही सांध्यदीप,
देते जीवन मूर्ति आकार |
अंतस रख दृढ़ उच्चाकांक्षा,
स्वर्णिम स्वपन करे साकार ||
पल में शीतल कर हूंकारे ,
मन के अंतर्द्वंद को |
पूरा करके ही दम भरता,
भावों के अनुबंध को ||
गूंजे मन गगन एक ही लगन |
स्वर्ग तक चलो भूलकर थकन ||
सुख बांटो खुशहाल बनाओ,
थके हारे कुचले जन को |
अंधकार में भटते हैं जो ,
कर उज्जवल उनके तम को ||
/12/
आतंकित करने वालों का,
क्या कोई मजहब होता है |
डर फैलाना खौफ मचाना ,
जिनका मकसद होता है ||
इंसानों की बस्ती में जो ,
हैवानों का काम करें |
नारी को लज्जित कर देता,
मजहब को बदनाम करें ||
आती क्या बारूद से शांति |
है शक्तिपुंज मौन क्रॉति ||
नयनों में राम बसा कर देखो ,
कभी ह्रदय में रहिमन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
/13/
साहस का श्रृंगार सजाये ,
कठिन राह जो चल जाते |
धीरज धर हंसों का जोड़ा,
सागर पार उतर आते ||
आलस क्रोध लोभ मद तज,
जग हित खुशहाली गढ़ जाते |
दृढ़ता से ज्यों बढ़े कदम,
सुदृढ़ दीवारें ढह जाते ||
करती दुनिया उनको नमन |
महका दे जो पुण्य चमन ||
मुखरित हो आगे बढ़ जाओ ,
नव दीपक अभिनंदन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
/14/
काम आये ना पहाड़ों धन,
जब आये बुढ़ापा थर थर तन |
धन पर धन जोड़े लोभी ,
मन से मन जोड़े निर्मल मन ||
जो सुख बॉटे वही सुखी,
बांधे मुट्ठी वो है निर्धन |
उनको मिलता सुख सागर,
दुखियों को दे जो सुख के क्षण ||
सद्कर्मों से अवकाश नहीं |
हो जाये भले उपहास कहीं ||
रण करने पापी जन से,
उकसाया करते जन जन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
/15/
रात रात प्रियतम मधु चुन चुन,
सिंधु स्वप्न संवर लाते |
प्रातः दिनकर पट खुलते झट,
पावन दृश्य निखर आते |
पात पात सुचि ओस लड़ी,
दिख पड़ती नयन जिधर जाते |
डाल डाल खग कलरव कर,
अंबर निर्विघन बिहर गाते ||
द्रुतगति बीते मास बरस |
जीवन संध्या संधान सरस ||
सांध्यदीप उत्सुक करता,
नित नवल सृष्टि सुख सिरजन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
-डाॅॅ. अशोक आकाश
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अद्भुत सृजन गुरुदेव