काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-6-डॉ. अशोक आकाश

गतांक से आगे

काव्‍य श्रृंखला :

सांध्‍य दीप भाग-6

-डॉ. अशोक आकाश

काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-6

काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-6-डॉ. अशोक आकाश
काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-6 डॉ. अशोक आकाश

सांध्‍य दीप भाग-6

/25/

नित्य व्यवस्थित जीवन झंझा,
सुवासित कर लो यौवन |
दिवाकर सम ओज लुटाओ,
मधुमास कर लो जीवन ||

कर्म कीर्ति ध्वज उच्च शिखर तक,
ले जाता सद्करमी को |
और क्षणिक दुष्कर्म जीवन का,
बिखेर देता द्विज धर्मी को ||

नीच कर्म पर आए शर्म |
उच्च कर्म हो जीवन धर्म ||

धन्य धर्म वही पुण्य कर्म से,
जीते जीवन के रण को |
अंधकार में भटके हैं जो ,
कर उज्जवल उनके तम को ||

/26/

बुझा रखे जो आशदीप ,
उसका जीवन डोले मझधार |
हटा रखे जो परहित से मन ,
वह सड़ता नश्वर संसार ||

उसका हित ना हुआ कभी ,
जो दूजों का हित हनन करें |
खुद भी खाई में गिर पड़ता ,
जो दुख देता दमन करें ||

उनका जीवन सुख सावन |
जिनके इरादे दृढ़ पावन ||

सांध्यदीप मन सिंधु करे ,,
क्षण सज्जन कर दे दुर्जन को |
अंधकार में भटके हैं जो ,
कर उज्जवल उनके तम को ||

/27/

दिव्य पुरुष जिस राह से गुजरे,
आलोकित हो जाता है |
और नजर जिनसे भी मुकरे ,
अवलोपित हो जाता है ||

कीट पतंगे जब भी इनसे ,
साहस कर टकराते हैं |
सुकोमल अंग भंग हो जाता,
तितर-बितर जल जाते हैं ||

चलो इन के पदचिन्ह अगर |
होना है अजर होना है अमर ||

विश्वास दिला जग हित करता,
खुश कर देता अनमन मन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||

/28/

कैसा भी हो दुखमय जीवन,
होना नही हताश कभी |
अप्रतिमाभा से मिट जाता ,
जीवन के संत्रास सभी ||

देखना एक दिन ढह जाएगा,
बढ़ा हुआ सैलाब सभी |
कुल उद्धारक सा तन जाना,
बन जाना प्रहलाद कभी ||

सांध्यदीप अस्ताचल छोर |
चलता ही रहता नित भोर ||

खुद जल-जल जग तमस मिटाता,
आलोकित करता जन को |
अंधकार में भटके हैं जो ,
कर उज्जवल उनके तम को ||

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-डाॅॅ. अशोक आकाश

शेष अगले भाग में

कवि के अन्‍य काव्‍य श्रृंखला- किन्‍नर व्‍यथा

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