काव्य श्रृंखला :
सांध्य दीप भाग-7
-डॉ. अशोक आकाश
काव्य श्रृंखला : सांध्य दीप भाग-7
सांध्य दीप भाग-7
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बीते दिनों की याद सताती,
तब मन बोझिल हो उठता |
क्षणिक प्रेम की बातें कर ,
दुख के पल ओझल हो उठता ||
राग द्वेष से परे अतीत में ,
खोये करता स्मृति दान |
विनयशील परिजन गर्वोन्नत ,
प्रेम पुलक करते गुणगान ||
अंकूरित यौवन के बीज |
सिंहावलोकित दृढ़ नत शीश ||
चल पड़ता अबोध निबल,
रुग्णों के पथ अवलोकन को |
अंधकार में भटके हैं जो ,
कर उज्ज्वल उनके तम को ||
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किसलय बनकर मुस्काते,
जीवन की महक दिला जाते |
दूर भगा जग गहन अंधेरा,
नित प्रेरित पथ दिखलाते ||
हो जाते कर्तव्य विमुख वो ,
टकराव से जो डर जाते |
कर लेते झटपट पग पीछे,
पथराव से जो डर जाते ||
जो रहता नित सतगामी |
उनका रहता जग अनुगामी ||
सांध्यदीप धरती से करता,
निर्देशित तारागण को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
/31/
कभी कभी मस्त हुआ ,
गाते गुनगुन – गुनगुन गाना |
बच्चे पीठ पे चढ़ कहते,
झट घोड़ा मेरा बन जाना ||
खोये अतीत में दे जाता ,
स्वर्णिम जीवन नजराना |
बुनते जा जगहित सपने नित,
परहित हर ताना-बाना ||
छू लेते जो इनके चरण |
होता भवभय पीर हरन ||
सांध्यदीप पुलकित कर दे,
चिंता संताप ग्रसित मन को |
अंधकार में भटके हैं जो
कर उज्जवल उनके तम को ||
/32/
गहन नेह धारों में फँस क्यूं,
उलझ रहे संसार में |
त्वरित काट चलते बन साथी,
जीव जलधि अंगार में ||
स्मृतियों का रखे पुलिंदा,
पीड़ामय जिसका जीवन |
उनको देते सीख आज से,
मुक्त जियो छोड़ो क्रंदन ||
युग द्वारे करता नर्तन |
जग लोलुप पाने दर्शन ||
सांध्यदीप उज्ज्वल कर देता,
क्रंदित व्यथित मलिन मन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्ज्वल उनके तम को |
-डाॅॅ. अशोक आकाश
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