काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-8-डॉ. अशोक आकाश

गतांक से आगे

काव्‍य श्रृंखला :

सांध्‍य दीप भाग-8

-डॉ. अशोक आकाश

काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-8

काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-8-डॉ. अशोक आकाश
काव्‍य श्रृंखला : सांध्‍य दीप भाग-8 डॉ. अशोक आकाश

सांध्‍य दीप भाग-8

 *// 33 //*

निर्मल मन की भावुकता जब,
सर चढ़कर बोले साथी |
सच कहता हूं ताप से इसके,
उच्च शिखर डोलेे साथी ||

धरा उठा आकाश झुका,
नित नवल भेद खोले साथी |
नर्तन कर रिपु मर्दन कर,
मन कलुश दाह धो ले साथी ||

महिमामंडित युग थाती |
गरिमामय दीपक बाती ||

सांध्यदीप है युग दर्पण,
देखो मुखड़ा छूकर मन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
***

   *// 34 //*

अवघट को पनघट कर देता,
दुख परबत घट घट जाता |
मरघट को सुख धाम बना,
हर सॉस सरस शुचि कर जाता ||

मन के कोने को घुन खाता,
फिर भी हँस हँस इतराता |
झुकता नही पराभव से रवि,
पर वैभव पर इठलाता ||

सुघड़ कल्पना की उड़ान |
गहरा अर्थवान सम्मान ||

सांध्यदीप संस्कार परिधि में,
गुंजरित करता चेतन को,
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
***

   *// 35 /*

जीवन में जो कुछ भी मिलता,
आत्मसात करें लेते हैं |
बुजूर्ग जन अनुभव क्षण तत्क्षण ,
दामन में भर लेते हैं |

जो कोई सम्मुख आ जाये,
मोती सी खुलती बातें |
इतिहास के पन्ने पलट गये,
झट बीत गई मधुरिम रातें ||

पाते आत्म निरूपित ताज |
हो पूरी मंजिल की तलाश ||
सांध्यदीप नव युग गरिमा,
जग हित समझे जड़ चेतन को,
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को |
***

      *// 36 //*

नन्हा दीपक जब जल उठता,
करता नित लकलक – लकलक |
दूर दिव्यतम पहुंची किरणें,
शीश नवाता सब नत नत ||

पूर्ण रोशनी के आते तक,
नही बुझेगा यह दीपक |
इन्हें देख झट डर हर जाती,
निशा गहन अंधेरी तक ||

चाहे शक्ति भले हो क्षीण |
पर अनुभव में प्रबल प्रवीण ||

सार्थक करता सांध्यदीप,
युवा जन मानसिक मंथन को |
अंधकार में भटके हैं जो,
कर उज्जवल उनके तम को ||
“”””””””””

-डाॅॅ. अशोक आकाश

शेष अगले भाग में

कवि के अन्‍य काव्‍य श्रृंखला- किन्‍नर व्‍यथा

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