संगति का प्रभाव रामचरित मानस के आधार पर

संगति का प्रभाव रामचरित मानस के आधार पर

-रमेश चौहान

संगति का प्रभाव

संगति का प्रभाव
संगति का प्रभाव

संगति का प्रभाव-

मनुष्‍य में मनुष्‍यता का प्रादुर्भाव संगति से ही होता है जिसे संस्‍कार कहते हैं । बच्‍चा सबसे पहले परिवार के संगत में रहता है इसलिये परिवार के परिवेश और संस्‍कार का बच्‍चों पर अमिट प्रभाव पड़ता है । इसलिये सभी लोग कहते हैं कि बच्‍चों को धन दो या न दो संस्‍कार अवश्‍य दीजिये ।

संगति क्‍या है ?

मनुष्‍य एक सामाजिक प्राणी है । मनुष्‍य का जीवन समाज में उत्‍पन्‍न होता है और समाज मे ही विलुप्‍त हो जाता है । प्रत्‍येक मनुष्‍य अपने जीवन में जड़ और चेतन के संपर्क में होता है । इन्‍हीं जड़ चेतन के संपर्क में सतत रहने के कारण मनुष्‍य पर इसका प्रभाव निश्चित रूप से ही पड़ता है । ‘मनुष्‍यों का जड़ चेतन के साथ संल्गनता, संलिप्‍ता और उनके प्रभाव से प्रभावित होना संगति कहलाता है ।’ जड हमारे चारों के ओर के अचल, निर्जीव  वस्‍तु  है जैसे प्रकृति प्रदत्‍त  नदि-नाले, पर्वत-पहाड़ आदि या मानव निर्मित मोबाइल, लेपटॉप, टी.वी. आदि आते हैंं वहीं चेतन के अंतर्गत जीवित प्राणी आते हैं । किन्‍तु वैचारिक परिवर्तन केवल मनुष्‍य ही कर सकते हैं इसलिये मनुष्‍य को चेतन स्‍वीकार किया गया बाकी प्राणी पेड़-पौधे, पशु-पक्षी आदि को जड़ रूप में ही माना गया ।

जड़ चेतन गुण दोष मय-

रामचरित मानस में गोस्‍वामी तुलसीदासजी लिखते हैं कि-

जड़ चेतन गुण दोष मय, बिस्व किन्ह करतार ।
संत हंस गुण गहहिं पय, परिहरि बारि विकार ।।

सृष्टिकर्ता ने सृष्टि में जड़ चेतन को गुण और अवगुण युक्‍त  रचा है । गोस्‍वामीजी कहते हैं इस गुण-दोष मय जड़ चेतन से उसी प्रकार गुण को ग्रहण करना चाहिये जैसे हंस जलयुक्‍त दूध से केवल दूध को ग्रहण करता है । गुण और दोष में दोष को पृथ्‍क करते हुये केवल गुण को ग्रहण करने वालों को ही गोस्‍वामीजी संत की संज्ञा देते हैं ।

कुसंग क्‍या है ?

बुराई का संग करना कुसंग है । अर्थात बुरे व्‍यक्ति या बुरी वस्‍तु के संपर्क में रहना । बुराई क्‍या है ? इस पर चिंतन करना आवश्‍यक है समग्र रूप में जिस कार्य से सृष्टि की हानि हो उसे बुराई कहा जाता है । आजकल इसके लिये अमानवीय शब्‍द अधिक प्रचलन में है । इस प्रचलित शब्‍द का अर्थ केवल इतना ही है कि जिस कर्म या कार्य से किसी भी मनुष्‍य को नुकसान हो वह बुराई है । जो व्‍यक्ति या जो वस्‍तु मनुष्‍य का अहित करता हो उनकी संगति करना ही कुसंग है । 

सुसंग क्‍या है ?

निश्चित रूप से यह कुसंग का विलोम है । अच्‍छे का संग करना सुसंग है । अच्‍छे व्‍यक्ति या अच्‍छी वस्‍तु के संपर्क में रहना सुसंग है । अच्‍छाई क्‍या है ? अच्‍छाई एक कर्म है जिसके किये जाने से सृष्टि का लाभ होता है, सृष्टि संरक्षित और संवर्धित होता है । प्रचलित भाषा में मानवता का संरक्षण और संवर्धन करना ही अच्‍छाई है । अच्‍छे कर्म करने वाले लोग ही अच्‍छे हैं और इनकी संगति करना ही सुसंग है ।

संगति का प्रभाव -संग से हानि और सुसंग से लाभ होता है-

चाहे आप सनातन धर्म के ग्रन्‍थ वेद पुराण देखे या किसी भी धर्म के धार्मिक ग्रन्‍थ या हिन्‍दी साहित्‍य के कोई भी कृति देखें सभी स्‍थानों पर आपको कुसंग और सुसंग का प्रभाव प्रतिपादित किया हुआ मिल जायेगा यही कारण है जन-जन यह जानते और मानते हैं कि कुसंग से हानि और सुसंग से लाभ होता है । गोस्‍वामी तुलसीदास जी कुसंग और सुसंग के प्रभाव को बहुत ही प्रभावोत्‍पादक उदाहरण से स्‍पष्‍ट करते हैं कि किस प्रकार कुसंग से हान‍ि और सुसंग से लाभ होता है-

हानि कुसंग सुसंगति लाहू । लोकहुं बेद बिदित सब काहू
गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा । कीचहिं मिलइ नीच जल संगा
साधु असाधु सदन सुक सारी । सुमिरही राम देहिं गन गारी
धूम कुसंगति कारिख होई । लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई
सोइ जल अनल अनिल संघाता । होइ जलद जग जीवन दाता

गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा । कीचहिं मिलइ नीच जल संगा-

तुलसीदास धूल की संगति का उदाहरण देते हुये कहते हैं कि धूल वही है किन्‍तु संगति के प्रभाव से उसका महत्‍व अलग-अलग हो जाता है । जब धूल वायु के संपर्क में आता है तो वायु के साथ मिलकर आकाश में उड़ने लगता है किन्‍तु जब वही धूल जल की संगति करता है किचड़ बन कर पैरों तले रौंदे जाते हैं ।

धूम कुसंगति कारिख होई । लिखिअ पुरान मंजु मसि सोई-

धुँआ की संगति को परख कर देखिये वहीं धुँआ कुसंगति के प्रभाव से धूल-धूसरित होकर कालिख बन अपमानित होता है तो वही धुँआ सत्‍संगति के प्रभाव से स्‍याही बन पावन ग्रंथों में अंकित होकर सम्‍मानित होता है । वहीं धुऑं जल अग्नि और वायु के संपर्क में आकर मेघ बना जाता है और यही मेघ दुनिया के जीवनदाता कहलाता है ।

सोइ जल अनल अनिल संघाता । होइ जलद जग जीवन दाता

कुजोग और सुजोग-

बुरे और बुराई से संपर्क होना कुजोग होता है जबकि अच्‍छे और अच्‍छाई से संपर्क होना सुजोग कहलाता है । बुरे के प्रभाव से व्‍यक्ति क्‍या वस्‍तु भी बुरे हो जाते है वहीं अच्‍छाई के संपर्क में रहने पर अच्‍छे हो जाते हैं । इसी बात को गोस्‍वामी तुलसीदासजी कुछ इस प्रकार कहते हैं-

ग्रह भेषज जल पवन पट, पाइ कुजोग सुजोग ।
होहिं कुबस्‍तु सुबस्‍तु जग लखहिं सुलच्‍छन लोग ।।

अर्थ-

ग्रह, औषधि, जल, वायु और वस्‍त्र संगति के कारण भले और बुरे हो जाते हैं । ज्‍योतिशशास्‍त्र के अनुसार कुछ ग्रह शुभ और कुछ ग्रह अशुभ होते हैं किन्‍तु द्वादश भाव में विचरण करते हुये किसी स्‍थान शुभ परिणाम देते हैं तो किसी स्‍थान पर अशुभ परिणाम देते हैं ।  आयाुर्वेद के औषधि के लिये पथ्‍य-अपथ्‍य निर्धारित हैं । पथ्‍य पर औषधि अच्‍छे परिणाम देते हैं जबकि अपथ्‍य से बुरे परिणाम हो सकते हैं ।  वायु सुंगंध के संपर्क में होने पर सुवासित और दुर्गंध के संपर्क में होने सडांध फैलाता है । इसी प्रकार शालिनता के संपर्क में वस्‍त्र पूज्‍य हो जाते हैं जबकि अश्लिलता के संपर्क से तिरस्‍कृत होते हैं ।

संपर्को का प्रभाव का वैज्ञानिक अभिमत-

हमारे चारों ओर पाई जाने वाली वस्‍तु को विज्ञान की भाषा मेें पर्यावरण कहते हैं । वैज्ञानिक रूप से यह अभिप्रमाणित है कि पर्यावरण का हम पर शतप्रतिशत प्रभाव पड़ता है । वैज्ञानिक रूप से जब यह प्रमाणित है कि निर्जीव वस्‍तुओं का भी हम पर प्रभाव पड़ता है तो क्या सजीव प्राणियों एवं मनुष्‍यों का प्रभाव हम पर नहीं पड़ेगा । निश्चित रूप से सक्रिय-निष्‍क्रिय , जड़-चेतन, जीवित-मृत सबका प्रभाव हम पर पड़ता है । पर्यावरण के प्रभाव से जिस प्रकार हम शारीरिक रूप से स्‍वस्‍थ-अस्‍वस्‍थ हो सकते हैं तो उसी प्रकार चेतैन्‍य मनुष्‍य के संपर्क में होने पर हम मानसिक रूप से स्‍वस्‍थ-अस्‍वस्‍थ हो सकते हैं । 

अपनी संगति का पहचान करना आवश्‍यक है-

जब यह निर्वाद रूप से प्रमाणित ही है कि संगति का प्रभाव होता है । अच्‍छी संगति का अच्‍छा परिणाम और बुरी संगति का बुरा परिणाम । इस स्थिति में हर व्‍यक्ति को अपने संपर्को का मूल्‍यांकन करना चाहिये कि आप किसके साथ संगति कर सकते हैं । अपनी संगति का पहचान करना आवश्‍यक है । संगति केवल दोस्‍तों से ही नहीं होता अपने परिवार के लोगों पड़ोसियों या अन्‍य व्‍यक्तियों जिसके साथ आपका ऊठना-बैठना बोल-चाल होता है सभी आपके संगति के दायरे में आते हैं । आप जिसके संगत में रहते हैं अर्थात आपका अधिकांश समय जिन लोगों के साथ गुजरता है उन लोगों का मूल्‍यांकन करें कि ये बुरे हैं या भले । यदि ये बुरे हो तों तत्‍काल इनकी संगति छोड़ देनी चाहिये ।

परिवार से अधिक दोस्‍तों को महत्‍व देना किशोरावस्‍था की भूल –

किशोरा अवस्‍था व्‍यक्ति की वह अवस्‍था होती है जब वह अपने परिवार के अतिरिक्‍त किसी अन्‍य से आत्‍मीय संबंध स्‍थापित करता है । इस समय अधिकांश बच्‍चे अपने परिवार से अधिक अपने हमउम्र दोस्‍तों को अधिक महत्‍व देने लगते हैं । अपने व्‍यक्तिगत फैसलों में परिवार से अधिक अपने मित्रमंडली के सलाह और सुझाव को महत्‍व देने लगते हैं । यह आवश्‍यक नहीं कि इस मित्रमंडली का सुझाव सही ही हो । इस मित्र मंडली के पास अनुभव की नितांत कमी होती है । ये लोग को केवल जो फैशन ट्रेन कर रहा होता है उसी के अनुरूप सोचते हैं, उसे ही सही मानते हैं । जबकि बच्‍चों को चाहिये कि अपने मित्रों के सुझाओं का अनुभवी व्‍यक्तियों, परिवार के लोगों से मूल्‍यांकन करायें । वर्तमान समय में अधिकांश किशोर ये समझने लगे हैं उनके परिवार के लोग मार्डन नहीं हैं और हम मार्डन है ऐसे में परिवार वाले हमें क्‍या सलाह दे सकते हैं । इसी का परिणाम देखने को मिल रहे हैं ये बच्‍चे गलत रास्‍तें में पड़ जाते हैं, इनमें नशाखोरी का व्‍यसन जागृत हो जाता है । सुंगत का पहचान अनुभव से ही किया जा सकता है ।

-रमेश चौहान

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