विश्व मे आज के दौर में अनेक भाषायें प्रचलन में है जिसमें अंग्रेजी भाषा संपर्क भाषा के रूप में अधिकांश भूभागों में प्रयोग में है ।
यह तो सर्वविदित है कि भाषा ही संवाद का एक सशक्त माध्यम है, यह भाषा ही है जिसके कारण मानव संवाद स्थापित करते हुए मूल्य सृजित करता है, मूल्य को चिरस्थाई रखने का प्रयास करता है और युद्ध करने की क्रिया में भी लिप्त रहकर नष्ट करने से लेकर भांति भांति तरीकों से भाषा को स्थापित करते रहता है ।
आज तकनीकी का जमाना है, एक भाषा को दूसरी भाषा में अनुवाद करना कठिन नहीं रह गया है; पहले द्विभाषिए दो विपरीत भाषाओं के बीच संवाद सहायक की भूमिका में रहते थे, उनकी जरूरत आज भी प्रत्यक्ष face to face संवाद क्रिया पर पड़ती रहती है । बहुभाषा है तो द्विभाषिए रहेंगें ही विशेषकर जब तीसरी संपर्क भाषा को कोई एक व्यक्ति /पक्ष नहीं जानता है ।
अब थोड़ा प्राचीन रामायण काल की ओर चलते हैं । भगवान राम का वनवास हुआ, चित्रकूट में लगभग 11बर्ष 7 महीने रहे, तत्पशचात दंडकारण्य, पंचवटी में पर्णकुटी में रहे; सूपर्णखा का आगमन, श्री लक्ष्मण से उसका संवाद होता है । लंकापति रावण सीता हरण के लिए वहीं आता है, उसका भी भिक्षा मांगने की क्रिया द्वारा देवी सीता से संवाद होता है, पुन: राम लक्ष्मण का शबरी आश्रम जाना ,शबरी द्वारा उन्हें ऋषिमुख पर्वत जाने की सलाह देना, ऐसा तो संवाद द्वारा ही संभव था जिसके लिए भाषा /बोली आवश्यक थी परंतु किस भाषा में? कोई द्विभासिया नहीं था; एक उत्तर भारत के भाषा /बोली क्षेत्र से थे तो दूसरे दक्षिण भारत भाषा क्षेत्र से. संवाद माध्यम की भाषा क्या रही होगी? हनुमान जी और विभीषण द्विभाषिए के रूप मे अपनी अपनी भूमिका निभाये होगें किंतु यह तो बाद की स्थिति में हुआ था.जटायू राम संवाद, राम शबरी संवाद, सूपर्णनखा द्वारा राम-लक्षमण से संवाद,युद्ध करने के पूर्व खर दूषण का श्री राम से संवाद आदि घटना क्रम में कौन सी भाषा प्रयोग की गयी होगी! Non-verbal/gestural (अशाब्संदिक/हावभाव) संवाद माध्यम तत्काल भाव व्यक्त कर सकते हैं किंतू मूल्य नहीं, इसके लिये तो भाषा ही चाहिए ।
ऐसी स्थिति में उस काल में संस्कृत ही संपर्क भाषा lingua franca रही होगी तभी तो संपूर्ण घटना वर्णन आदि कवि वाल्मीकि जी ने संस्कृत में किया था जिसे कालांतर में अन्य कवियों/मनीषियों ने अपने समय की प्रयुक्त भाषा में किया है और भविष्य में भी करते रहेंगे!
उपरोक्त मेरे निजी विचार हैं…..
डॉ अर्जुन दूबे