बहुत याद आयेंगे मुकुंद कौशल
संस्मरण मुकुंद कौशल का
-अजय अमृतांशु
संस्मरण मुकुंद कौशल का
“कवि सम्मेलन का मंच केवल हास-परिहास के लिए नहीं होता है कवि संदेश देता है समाज को और चोट करता है बुराइयों पर। कवि का काम देश और समाज को दिशा देने का होता है..।
कुछ इस तरह के उद्गार मुकुंद कौशल जी अपने कवि सम्मेलन के मंचों से अक्सर दिया करते थे। विनोदी स्वभाव के श्री मुकुंद कौशल अपनी व्यंग्य रचनाओं में बड़ी बड़ी बात कह जाते थे।
मुकुंद कौशल साहित्य जगत में किसी परिचय के मोहताज नहीं है, बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी कौशल जी एक गीतकार,चिन्तक, विचारक, कवि औऱ गज़लकार के रूप में जाने जाते हैं। जब भी कवि सम्मेलन के मंच पर वे जाते श्रोताओं का अपार स्नेह उन्हें मिलता था।
बात तकरीबन 20 वर्ष पुरानी होगी तब भाटापारा लोकोत्सव में कवि सम्मेलन का कार्यक्रम आयोजित था । रात के लगभग 10 बज चुके थे और श्रोताओं को कवि सम्मेलन का बेसब्री से इंतजार था। इस कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए मुकुंद कौशल जी आए हुए थे। भाटापारा में वे अपने भांजे रमेश श्रीमाली जी के यहाँ ठहरे हुए थे । लोकोत्सव के पदाधिकारियों ने मुकुंद कौशल जी को स्टेज तक लाने का जिम्मा मुझे सौंपा। मैं खुशी से मुकुंद जी को लेने रवाना हो गया खुशी इस बात की थी कि मुकुल कौशल जी से रूबरू मेरी यह पहली मुलाकात थी, हालांकि कवि सम्मेलन में उन्हें मैं इससे पहले भी कई बार सुन चुका था। थोड़ी सी घबराहट इस बात की थी कि मैं अपनी बाइक लेकर उन्हें लाने गया था, वे हैवीवेट और मेरा वेट उनसे लगभग आधा । मुझे डर इस बात का था कि उन्हें लाते वक्त मेरी बाइक कहीं अनबैलेंस न हो जाए। मैंने दरवाजे का कॉलबेल बटन दबाया। अंदर से कोट और टाई में कैस हुए दमदार व्यक्तित्व के हेवी वेट पर्सन निकले और कहा – चलो मैं तैयार हूँ। उनको देखते ही मैंने अपने मन की बात उनसे कह दी – मैं आपको लेने तो आ गया हूँ लेकिन आपको बाइक में बिठाकर ले जाने में मुझे डर लग रहा है कि ये कहीं अनबैलेंस ना हो जाए । मुकुंद जी मुस्कुराते हुए बोले बोले – अरे तुम्हारी बाइक में बैठने से जब मुझे डर नहीं लग रहा है तो तुम क्यों डरते हो चलो चलते हैं। आखिरकार उन्हें अपनी बाइक पर बिठाकर मंच तक लाया । प्रारंभिक संचालन करते हुए मैंने उनकी पर्सनालिटी पर चार लाइन रखते हुए कवि सम्मेलन का संचालन करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया। माइक संभालते ही कौशल जी बोले अभी-अभी एक दुबला पतला आदमी माइक पर आकर मेरे बारे में बहुत कुछ कह गया क्योंकि आदमी दुबला पतला है और रात के 10 बज चुके हैं और रात को दुबले पतले आदमी को छेड़ना उचित नहीं होता …. उनका बस इतना कहना था कि दर्शक दीर्घा तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।
उनके साथ कई बार मंच साझा करने का सौभाग्य मुझे मिला। कवि सम्मेलन के मंचों में अपने चुटीले व्यंग्यों से वे बड़ी-बड़ी बात कह जाते थे और श्रोताओं की वाहवाही लूट लेते थे। दूसरों पर व्यंग करके हंसाना अलग बात है लेकिन कौशल जी स्वयं पर व्यंग्य करके भी लोगों को हंसाते थे । एक कवि सम्मेलन में जब उन्होंने कहा- वजन करने की मशीन में मैं चढ़ा,मशीन में सिक्का डाला। मशीन से टिकट निकला उसमें लिखा था कृपया क्षमता से ज्यादा वजन न रखा करें। बस क्या था श्रोता लोटपोट हो गये।
कवि सम्मेलनों में हिस्सा लेने वे भाटापारा कई बार आये। जब भी कोई आयोजन होता तो कवियों की खातिरदारी का जिम्मा मुझे दिया जाता था । उनसे जुड़ी एक मजेदार वाकया मुझे अब भी याद है – चाय नाश्ते के लिए कुछ कवियों के साथ मुकुंद कौशल जी को लेकर मैं पलटन हॉटल गया । हॉटल में बड़ा भी बन रहा था। मुकुंद जी की पैनी नजर कड़ाही पर उफनते हुए बड़े पर पड़ी । बड़ा बनता हुआ देख उन्होंने तपाक से दो लाइने कह दी- “देखो अजय बड़ा बनना आसान है, लेकिन बड़ा बनाना बहुत मुश्किल है ” बस फिर क्या था हम सभी ठहाकों के साथ वाह करने लगे।
कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए एक बार जब वे भाटापारा आए हुए थे रेस्ट हाउस में बैठकर कुछ साहित्यकारों के साथ चर्चा कर रहे थे उसी समय उनकी नई किताब “मोर गजल के उड़त परेवा” प्रकाशित हुई थी लेकिन उसका विमोचन नहीं हुआ था। अपनी किताब दिखाते हुए उन्होंने मुझे एक प्रति भेंट की मैंने उनसे कहा दादा अभी तो इस किताब का विमोचन भी नहीं हुआ है मैं आपसे विमोचन के बाद ले लूंगा । तब उन्होंने कहा अरे विमोचन की मारो गोली वह होते रहेगा तुम इत्मीनान से इस किताब को पढ़ो । विमोचन से पहले अपनी किताब मुझे देना मेरे लिए निश्चित रूप से मेरे लिये गर्व का विषय था । आज जब वे हमारे बीच नहीं है तो ये सारी बातें याद आती हैं।
एक जमाना था जब 70 अस्सी के दशक में आकाशवाणी में छत्तीसगढ़ी गीतों का क्रेज था,तब लोगों में छत्तीसगढ़ी गीतों के प्रति दीवानगी हुआ करती थी और वे अपना कामकाज छोड़कर छत्तीसगढ़ी गीतों को सुना करते थे। उस वक्त-
धर ले कुदारी ग किसान ,चल डीपरा ल खन के डबरा पाट डबों रे…
बैरी-बैरी मन मितान होंगे रे हमर देश मा बिहान होगे रे …
मोर भाखा सँग दया मया के सुग्घर हवै मिलाप रे..
ये बिधाता गा मोर कइसे बचाबो परान …
तैंहा आ जाबे मैना,उड़त उड़त तैंह आ जाबे….
महर–महर महकत हे, भारत के बाग……
बचपन में ऐसे कालजयी गीतों को सुनना एक सुखद एहसास था। तब यह तो पता नहीं था कि इनके गीतकार कौन है लेकिन ये सारे गीत सीधे दिल में समा जाती थी ।
लगभग 15 दिन पहले ही मुकुंद कौशल जी से मेरी बात हुई थी । तब वे बिल्कुल स्वस्थ थे और बहुत अच्छे ढंग से उनसे मेरी बातचीत हुई। वे भाटापारा अपने भांजे के यहां आया करते थे,बातचीत के दौरान मैंने उनसे निवेदन किया था कि इस बार वे जब भी भाटापारा आए तो मुझे दर्शन लाभ जरूर देंगे। तब उन्होंने कहा कि मैं भाटापारा आऊँ और अजय अमृतांशु को न बताऊँ यह कैसे हो सकता है..? जब भी आऊँगा जरूर फोन करूँगा। लेकिन नियति के आगे हम सभी नतमस्तक हैं। मुझे नहीं मालूम था कि उनसे मेरी यह अंतिम बातचीत होगी…। छत्तीसगढ़ी भाषा के जाने माने गीतकार, कवि एवं ग़ज़लकार मुकुंद कौशल जी का यूं अकस्मात चले जाना स्तब्ध कर गया। उनका जाना निश्चित रूप से साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।
-अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
बहुआयामी गीत यात्रा के लोकप्रिय कवि-‘मुकुंद कौशल’