सरसी छंद विधान और प्रयोग
-रमेश चौहान
सरसी छंद विधान और प्रयोग
सरसी छंद का परिचय
सरसी छंद एक बहुत ही लोकप्रिय छंद है। जहां भोजपुरी भाषाई क्षेत्र में सरसी छंद में होली गीत गाए जाते हैं वहीं छत्तीसगढ़ के राउत समुदाय द्वारा इसे एक लोक नृत्य लोकगीत के रूप में राउत दोहा के रूप में प्रयोग किया जाता है । इस प्रकार यह सरसी छंद लोक छंद के रूप में भी प्रचलित है ।
सरसी छंद का विधान
सरसी छंद चार चरणों का एक विषम मात्रिक छंद होता है । सरसी छंद में चार चरण और 2 पद होते हैं । इसके विषम चरणों में 16-16 मात्राएं और सम चरणों में 11-11 मात्राएं होती हैं । इस प्रकार सरसी छंद में 27 मात्राओं की 2 पद होते हैं । सरसी छंद का विषम चरण ठीक चौपाई जैसे 16 मात्रा की होती है और यह पूर्णरूपेण चौपाई के नियमों के अनुरूप होती है ।वहीं इसका सम चरण दोहा के सम चरण के अनुरूप होती है, दोहा के समय चरण जैसे ठीक 11 मात्रा और अंत में गुरु लघु ।
- सरसी छंद में चार चरण और दो पद होते हैं । अर्थात दो पंक्ति होती है और प्रत्येक पंक्ति में एक-एक विराम होता है ।
- सरसी छंद के विषम चरण में 16-16 मात्राएं होती हैं, इस चरण का अंत अनिवार्य रूप से गुरू लघु से नहीं होना चाहिए ।
- सरसी छंद के सम चरण में 11-11 मात्राएं होती हैं, इस चरण का अंत अनिवार्य रूप से गुरू लघु से होना चाहिए ।
- इसके विषम चरण में चौपाई के एवं सम चरण में दोहा के सम चरण का नियम लागू होता है ।
सरसी छंद की परिभाषा सरसी छंद में
चार चरण दो पद में होते, सोलह-ग्यारह भार ।
लोकछंद सरसी है प्रचलित, जन-मन का उपहार ।।
विषम चरण हो चौपाई जैसे, सम हो दोहा बंद ।
सोलह-ग्यारह मात्रा भार में, होते सरसी छंद ।।
होली गीत कहीं पर गाते, गाकर सरसी छंद ।
राउत दोहा नाम कहीं पर, लोक नृत्य का कंद ।।
सरसी छंद का प्रयोग-
1. सरसी छंद होली गीत के रूप में-
चुनावी होली
जोगी रा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा वाह खिलाड़ी वाह.
खेल वोट का अजब निराला, दिखाये कई रंग ।
ताली दे-दे जनता हँसती, खेल देख बेढंग ।।
जोगी रा सरा ररर रा, ओजोगी रा सरा ररर रा
जिनके माथे हैं घोटाले, कहते रहते चोर ।
सत्ता हाथ से जाती जब-जब, पीड़ा दे घनघोर ।।
जोगी रा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
अंधभक्त जो युगों-युगों से, जाने इक परिवार ।
अंधभक्त का ताना देते, उनके अजब विचार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
बरसाती मेढक दिखते जैसे, दिखती है वह नार ।
आज चुनावी गोता खाने, चले गंग मजधार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
मंदिर मस्जिद माथा टेके, दिखे छद्म निरपेक्ष।
दादा को बिसरे बैठे, नाना के सापेक्ष ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
दूध पड़े जो मक्खी जैसे, फेक रखे खुद बाप ।
साथ बुआ के निकल पड़े हैं, करने सत्ता जाप ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
इक में माँ इक में मौसी, दिखती ममता प्यार ।
कोई कुत्ता यहाँ न भौके, कहती वह ललकार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
मफलर वाले बाबा अब तो, दिखा रहे हैं प्यार ।
जिससे लड़ कर सत्ता पाये, अब उस पर बेजार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
पाक राग में राग मिलाये, खड़ा किये जो प्रश्न ।
एक खाट पर मिलकर बैठे, मना रहे हैं जश्न ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
नाम चायवाला था जिनका, है अब चौकीदार ।
उनके सर निज धनुष चढ़ाये, उस पर करने वार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
2. सरसी छंद राउत दोहा के रूप में-
हो——–रे—-
गौरी के तो गणराज भये(हे य)
(अरे्रे्रे) अंजनी के हनुमान (हो, हे… य)
कालिका के तो भैरव भये (हे… )
हो…….ये
कोशिल्या के राम हो (हे… य)
आरा्रा्रा्रा्रा्रा्रा
दारु मंद के नशा लगे ले (हे… य)
मनखे मर मर जाय (हे… य)
जइसे सुख्खा रुखवा डारा,
लुकी पाय बर जाय (हे… य)
हो्ये …ह….
बात बात मा झगड़ा बाढ़य (हे… य)
(अरे् )पानी मा बाढ़े धान (हे… य)
तेल फूल मा लइका बाढ़े,
खिनवा मा बाढ़े कान (हे… य)
हो…….ओ..ओ
नान-नान तैं देखत संगी (हे… य)
झन कह ओला छोट (हे… य)
मिरचा दिखथे भले नानकुन,
देथे अब्बड़ चोट ।।(रे अररारारा)
आरा्..रा्रा्रा्रा्रा्रा
लालच अइसन हे बड़े बला (हे… य)
जेन परे पछताय रे (हे… य)
फसके मछरी हा फांदा मा,
जाने अपन गवाय रे (अररारारा)
3. सरसी छंद के कुछ अन्य उदाहरण
1. कानूनी अधिकार नहीं
है बच्चों का लालन-पालन, कानूनी कर्तव्य ।
पर कानूनी अधिकार नही, देना निज मंतव्य ।।
पाल-पोष कर मैं बड़ा करूं, हूँ बच्चों का बाप ।
मेरे मन का वह कुछ न करे, है कानूनी श्राप ।।
जन्म पूर्व ही बच्चों का मैं, देखा था जो स्वप्न ।
नैतिकता पर कानून बड़ा, रखा इसे अस्वप्न ।।
दशरथ के संकेत समझ तब, राम गये वनवास ।
अगर आज दशरथ होते जग, रहते कारावास ।।
2. नया दौर नया जमाना
नया जमाना नया दौर है, जिसका मूल विज्ञान।
परंपरा को तौल रहा है, नया दौर का ज्ञान ।
यंत्र-तंत्र में जीवन सिमटा, जिसका नाम विकास ।
सोशल मीडिया से जुड़ा अब, जीवन का विश्वास ।
एक अकेले होकर भी अब, रहते जग के साथ ।
शब्दों से अब शब्द मिले हैं, मिले न चाहे हाथ ।
पर्व दिवस हो चाहे कुछ भी, सोशल से ही काम ।
सुख-दुख का सच्चा साथी, यंत्र नयनाभिराम ।
मोबाइल हाथों का गहना, टेबलेट से प्यार ।
कंप्यूटर अरु लैपटॉप ही, अब घर का श्रृंगार ।
3. राष्ट्र धर्म ही धर्म बड़ा है
राष्ट्र धर्म ही धर्म बड़ा है, राष्ट्रप्रेम ही प्रेम ।
राष्ट्र हेतु ही चिंतन करना, हो जनता का नेम ।
राष्ट्र हेतु केवल मरना ही, नहीं है देश भक्ति ।
राष्ट्रहित जीवन जीने को, चाहिए बड़ी शक्ति ।
कर्तव्यों से बड़ा नहीं है, अधिकारों की बात ।
कर्तव्यों में सना हुआ है, मानवीय सौगात ।
अधिकारों का अतिक्रमण भी, कर जाता अधिकार ।
पर कर्तव्य तो बांट रहा है , सहिष्णुता का प्यार ।
राष्ट्रवाद पर एतराज क्यों, और क्यों राजनीति ।
राष्ट्रवाद ही राष्ट्र धर्म है, लोकतंत्र की नीति ।।
राष्ट्रवाद ही एक कसौटी, होवे जब इस देश ।
नहीं रहेंगे भ्रष्टाचारी, मिट जाएंगे क्लेश ।।
-रमेश चौहान
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