शव उत्सव-देवेंद्र धर दीवान

शव उत्सव

-देवेंद्र धर दीवान

शव उत्सव-देवेंद्र धर दीवान
शव उत्सव-देवेंद्र धर दीवान

उत्सव कुदरत का दावत है। उत्साह पूर्वक प्रसन्न रहने के लिए उत्सव मनाया जाता है । जल थल जीवी पशु-पक्षी तथा वनस्पति उत्सव का आखेट करते दिखते हैं । मानव जगत में उत्सव का भंडार है उत्सव भोग नहीं है अपितु आदान-प्रदान करने की प्रक्रिया है जिससे परस्पर आनंदानुभूति का संबंध होवे । इस समय उत्सव को आडंबर तथा दंभ का रूप दे दिया गया है । प्रदर्शनकारी जलसा प्राय: सहिष्णुता का हनन करता है । कभी-कभी यह पर्व हिंसा में बदल जाता है । वैसे भी दिखावटी उत्सव नीरस व फीका रहता है ।

मैं देख रहा हूं कि मैं मर गया हूं । मेरी मृत्यु उत्सव बहुत दुखदाई है । मेरे अमूल्य शरीर को प्राण त्याग दिया है । मेरी अमिट आत्मा देह से पृथक होकर इस दुखद पर्व को दृष्टिपात कर रहा है । आत्मा अनश्वर तथा इंद्रिय विहीन मात्र प्रतीक है । यह परमात्मा का अविच्छिन्न अंश है । हवा पानी तथा अग्नि से प्रभावित है । मेरी मौत ने बहुतों को झकझोर दिया है क्योंकि मेरा जीवन काल बहुतों के लिए उपयोगी था । मैं आडंबर जगत का प्रिय व्यक्ति था । मेरी परमार्थ परायणता में स्वार्थ सिद्धि का कलात्मक गुण था । मेरी मृत्यु शैया से लेकर आसपास काफी लोग एकत्रित हो गए थे इस करुण क्रंदन बेला में कोई विलाप कर रहा था कुछ लोग प्रलाप कर रहे थे यह सारे सुर-तान मिलकर एक विचित्र अलाप का रंग दे रहा था।

मेरी मां शोकाक्रांत थी । मां के हृदय से कोख का संधी रहता है । इसी संधि को विच्‍छेद कर मैंने जन्म लिया था । इसलिए मां अपनी संतान को अपना ही अंग मानती है । शायद कालांतर में संतान पृथ्‍काव का रूप ले लेता है । मां भारती की धारा में मानव जन्म नहीं लेता बल्कि मानवता जन्म लेती है।

मृत्यु उत्सव की भीड़ बेलगाम थी स्थानीय एवं क्षेत्रीय लोकप्रिय समाहित है । राजनेता, धर्माचार्य, साहित्यकार, पत्रकार, साहूकार, कर्जदार, अनजान-अपरिचित तमाशा बिन तथा फालतूफंड इत्यादि लोग समागत थे । इस तरह मेरे अनुमान से बेहतर भीड़ थी । मेरी आत्मा इस महान पर्व पर गौरवान्वित हो रहा था । कुछ समय बाद मेरा उपयोग हिना काया जलकर नष्ट होने वाला है । इसमें पुष्पमाला तथा गुच्‍छ लादे गए । जीते जी ऐसा सम्मान नसीब नहीं हुआ था । विभिन्न नियमों एवं नीतियों से शव पूजन पश्चात मेरी अंतिम यात्रा शव धाम की ओर रामोच्‍चारण के साथ गमन किया आत्मा अभीज्ञानी हैं वह सजिव व्यक्ति के आंतरिक भाव के अपने प्रभु प्रदत्त चैतन्‍य शक्ति से ज्ञात कर लेता है कि किस व्यक्ति के मन में ऐसी भावनाएं प्रवाहित हो रही हैं।

राजनेताओं को मेरी मृत्यु से राहत पूर्ण खुशी थी क्योंकि मैं उभय पक्ष (पक्ष-विपक्ष) में दावेदारी का मजबूत विकल्प था। मैं कूटनीति व चुनावी रणनीति का चतुर बाजीगर था। समय-समय पर मैं उनको युक्तियुक्त मशविरा दिया करता था । उनको लाभ भी दे होता था। यह महोदय हमारी साहित्यकार जी हैं जो आदतन महाचोर हैं, साहित्य चोरी का व्यवसाय के बदौलत इन्हें राष्ट्रीय अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत करके ऊंचे ओहदे में स्थापित किया गया है । हमेशा सत्ता पक्ष के निवेदक रहने के कारण इनको कभी परेशानी नहीं हुआ है । पत्रकार पत्रकारिता से ज्यादा चाटुकारिता की आदी है । कैमरा से तस्वीर कैद कर रहे हैं, अखबार में प्रकाशन हेतु महिमामंडित लेख स्थल के लिए तथ्य संकलन में व्यस्त हैं । आचार्य जी इस भीड़ में अपनी महत्ता को सर्वोपरि करने की यत्‍न में जुटे हैं। धर्माचार्य पूज्य एवं उपयोगी होते हैं इस भाव का सार संभाल रहे हैं। दान-दक्षिणा के लिए उनका गणितीय बुद्धि तीव्र है मृत क्रिया कर्म की लंबी सूची तैयार करके आए हैं । अपने अशुद्ध मन को गंगाजल से बार बार आचमन कर शुद्ध कर रहे हैं । साहूकार सुखचैन बहुत दुखी हैं क्योंकि मैंने उनसे सूद पर रोकड़ा कर्ज ले रखा था । मेरे परिजन उसके मनोभाव को पढ़ रहे थे और लोगों को काम चलाऊ उधारी में रख दिया था खुशी से गदगद थे वे तो मान कर चल रहे थे कि मैंने अपना पूर्व जन्म का उधारी चुकता किया है । फालतू फोकटचंद को ऐसे सुअवसर में अनायास काम मिल जाता है । इनकी व्यस्तता से बनता हुआ काम बिगड़ा था, घर परिवार के लोग हाथ जोड़कर इन्हें शांत रहने की अपील कर रहे थे । अनजान अपरिचित मेहमान आग्रह दुराग्रह की परवाह किए बिना इस महोत्सव का रसास्वादन कर रहे थे । इन तमाम भावना प्रधान प्राणियों का गवाह मेरी आत्मा थी।

पार्थिव शरीर चिता स्थल पर पहुंच गया । यह शरीर पंचतत्व की पूंजी है जिसे हम अपना समझते हैं । हमारे जीवन के अथ से इति तक परमात्मा का धरोहर है । मजहब का फरमान है ये बंदे तो खुदा का अमानत है इसे खयानत मत करना वरना मालिक के दरबार में सब का हिसाब करना होगा । शव दाह का रचना किया गया अंत्येष्टि संस्कार धर्म विधान तथा रीति नीति अनुसार संपन्न हुआ । इस प्राणी देह तथा अग्नि का संबंध स्थापित करने के लिए अगन्याधान किया गया। दहकता हुआ पावक शरीर को पावन कर लिया मेरी काया भस्‍मिभूत हो गया । भास्कर देव अपने तपते हुए धूप का विस्तार किया हुआ था । मृतक कर्म की अंतिम श्रद्धांजलि की बेला थी । वक्ता प्रफुल्लित थे । भाषण प्रेरणा है या मादक द्रव्य? वाणी और भाषा बहुत सुकठित लगते हैं । श्रोता भ्रम तथा सत्य के भंवर जाल में फंसा रहता है । राजनेताजी श्रद्धावनत होकर आर्द ग्रीवा स्वर से दिवंगत आत्मा की निष्पादित जीवन के संपादित कार्यों का प्रशंसा करते हैं। संबोधन समाप्त होते ही चाटुकार स्‍वभावगत करतल ध्वनि करते हैं, जिसकी नेताजी को अपेक्षा थी । तब मेरे भ्राता साग्रह शोक पूर्वक बोले इस दुखद घड़ी में ताली बजाना पीड़ादाई है कृपया ओम शांति का जाप करें । नेताजी का उठा हुआ सिर झुक गया । मेरे भ्राता की निवेदन का अनुमोदन की । तत्पश्चात नेताजी अन्य जगह शोक मिलन के लिए प्रस्थान किए । उसके पीछे बहुत लोग चले गए आचार्य तथा साहूकार डटे रहे । चीता में चिरागंध (त्वचा गंध) महक रहा था शमशान खाली हो गया था जीवित व्यक्ति अपने गंतव्य की ओर पलायन हो रहे थे मेरे देहयष्टि के जले हुए अस्थि धधक रहा था । मेरी आत्मा अब तनावमुक्त हो गया है । मेरे समक्ष विशालकाय ‘काल’ दावानल की तरह अविचल रूप से कायम है मैंने उनसे पूछा आप कौन हैं?

काल- मैं समय तुम्हारी गर्भाधान से अब तक साथ हूं । चंद पल के बाद मेरी विदाई है । मेरा उपयोग कर लो । मैंने उनसे ब्रह्मांड दर्शन का अनुरोध किया । उन्होंने कुछ क्षण में अपने अपरिमित वेग से समस्त धाम का यात्रा कराया । आत्मा इंद्रियों से परे चैतन्यता का समग्र सागर है । मुझे काल का मर्म समझ में आ गया । लेकिन इसके व्याख्या की जिज्ञासा हुई । मैंने काल से अभ्यर्थना पूर्वक काल महत्त्व वर्णन हेतु निवेदन किया।

काल – मैं सगुण-निर्गुण, साकार-निराकार, कामना-वासना से मुक्त स्थिर तत्व हूँ । भौतिक जगत के प्राणियों का मुझ से बड़ा कोई सगा संबंधी नहीं है । सबका साथ छूट जाता है लेकिन मैं साये (प्रतिबिंब) की तरह निरंतर साथ में रहता हूं । मेरी विद्यापीठ की कक्षाएं लगातार गतिमान है । इस पाठशाला के शिक्षक तथा शिष्य स्वयं तुम हो बशर्ते मुझे साक्षी करना होगा । मैं समय तुम्हारे पिछलग्गू नहीं हूं इसलिए तुम्हारे आगे-पीछे नहीं चलता । काल का अतीत भावी तथा अब नहीं होता । बल्कि यह समय तीनों कालखंड बनकर मेरे समानुपाती पथ गामी है । मैं अचलेश्वर हूं, तुम नाशवान हो । इसलिए क्षण-पल पहर, आयु, अवस्था, स्थिति-परिस्थिति तुम्हारे लिए हैं । मैं गुण-दोष, मान-अपमान पाप पुण्य से ऊपर हूं । तुमने मेरे विद्यालय में मनोयोग से पढ़ाई कर लिए होते तो यह बातें मुझे ज्ञात नहीं कराना पड़ता । इतना कह कर काल अपने प्राकाट्य आभासको विसर्जन कर दिया।

मैंने (आत्मा) अपने देहिक योनि में निर्वहन किए जीवन का हिसाब किया । आत्मा का पश्चाताप अति पीड़ादायक होता है, यहां कोई संवेदना देने वाला नहीं था न ही सांत्वना के लिए । मात्र एक ही संबंलथा वह परम आत्मा का स्वामी है । फिर आत्मा परम शक्ति का सेवन किया, परम शांति के लिए पुकारा, हे ज्ञान अतीत के जनक महर्षी, राजर्षी, देवर्षी, वेदर्षी तथा ब्रह्मर्षी के प्रणेता इस पृथ्वी का अंत कहां है?

अचानक धड़ाम की गर्जन ध्‍वनि से मेरे इस दिव्यस्‍वप्‍न की तंद्रा को भंग कर दिया । मैं बिस्तर से जाग गया । देखता हूं कि बिल्ली ने मेरे देवालय से लाए प्रसादी मोदक मिष्ठान को बिखेर दी है । मैं क्रोधवेश से घनीभूत होकर अपने चरण पादुका से बिल्ली के पार्श्‍वभाग पर प्रहार किया । बिल्ली भागकर कोने में छिप कर बैठ गई । मैं बिखरे हुए नैवेद्य को खाने लगा। आघात वेदना से मर्माहत भाषा हिन बिल्‍ली के आंखों से भाव प्रकट हो रहा था- प्रकृति ने इस धरती पर सभी प्राणियों को जीवन और भोजन का हिस्सा विभाजित किया है लेकिन मनुष्यों के नैतिक कर्तव्य के साथ मौलिक कर्तव्य भी मर गया है सिर्फ अधिकार अधिकार का अतिक्रमण है। धत्त!

देवेन्‍द्र धर दीवान
नवागढ़
9827190854

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