मेरी साहित्यिक पगडंडियॉ-डॉ. अशोक आकाश

शिखर की ओर मेरी साहित्यिक पगडंडियॉ-डॉ. अशोक आकाश
शिखर की ओर मेरी साहित्यिक पगडंडियॉ-डॉ. अशोक आकाश

जब भी अपनी जिंदगी के पन्ने पलट कर देखता हूं ,लगता है मेरी जिंदगी यादों की पुस्तक बन गई है | जैसे जैसे उम्र कटती जाती है, हिचकोले खाती जीवन की नैया स्वर्णिम तट की ओर बढ़ती दिखती है | मन में धैर्य समाहित कर सफलता के शिखर को अग्रसर होता जब भी पीछे पलटकर देखता हूँ, बीती जीवन की यादों की कसक मन को विचलित कर देती है तो कभी सुखद अनुभूतियों से भर जाता हूं | घर बैठे खाते रहने से कुबेर का खजाना भी रिक्त हो जाता है और छोटा छोटा काम करने से छोटा आदमी भी एक दिन बड़ा हो जाता है | हाथ बांधे किनारे बैठे रहने से सागर के खजाने नही मिला करते, अगर अनमोल रत्न निकालना है तो सागर में उतरकर उसके तल की गहराई तक जाना होगा, पहचान कर एक एक रत्न अपने आंचल में समेटना होगा, तभी हमें जीवन में सफलता के शीर्ष मुकाम की प्राप्ति होती है |

मैंने अपने साहित्यिक जीवन का सफर कक्षा ग्यारहवीं से प्रारंभ किया था | परिवार जनों के सहयोग और मित्रों के सहारे हर सीढ़ी पर सफलता मिली और मैने वैसा मेहनत भी किया | समय बदलता रहा बहनों की शादी हुई भैया सत्यप्रकाश साहू की शादी हुई परिवार में नये सदस्य भाभी तृप्ति साहू आयी भतीजी भतीजा आये परिवार बढ़ते रहे | मित्र मंडली भी बदलते रहे, बचपन के मित्र छूटे तो कालेज के मित्रों का अप्रतिम प्रेम मिला, कालेज के मित्र छूटे तो साहित्यकार मित्रों का साथ मिला हृदयतल की गहराई तक उतर जाने वाले इन मित्रों के सहयोग से मैंने साहित्य का दामन थामा और कई महत्वपूर्ण काव्यसंग्रह, प्रलंब काव्य, लेख, कहानी, संस्मरण, जीवनी, यात्रावृत्तांत का लेखन किया | दो हजार से अधिक काव्यमंचों में सफलतम् प्रस्तुति दी | वक्त और नदिया की वही धारा हम दोबारा नही छू सकते | वक्त और जल की धारा जिसे हमने आज छू लिया, वही धारा उसी वक्त पल भर में छिटककर हमसे दूर चली जाती है इसलिये वक्त की हर धारा का भरपूर उपयोग करें | आज मैं अपनी उम्र की चादर खींचकर उन कमबख़्त दोस्तों को देखने का प्रयास कर रहा हूं, जो समय की धारा में बहकर दूर छिटक गये हैं | मेरी हैसियत वसीयत नहीं सदा मेरी खैरियत पूछने वाले दोस्त आज भी मेरे जीने का संबल है | ऐसे दोस्त जिनसे बने रिश्ते तबीयत मस्त कर देते हैं सच्चे दोस्तरुपी धन मेरे पास रहा, मेरे लिये यह गर्व की बात रही | दोस्त ऐसे हकीम होते हैं जो सिर्फ अल्फाज से ईलाज कर देते है | ये दोस्त जीवन आसान कर देते हैं, ये हमें कभी बूढ़ा नही होने देते, कभी गिरने नही देते, बल्कि गिरते मित्र को बाहों में उठा लेते हैं,उन पर दुश्मन द्वारा किये जाने वाले आघात रोक लेते हैं | ऐसे दोस्तों की पूंजी मैने अपने जीवन में कमाई, इस पर मुझे गर्व है |

मेरे घर में मुझे हमेशा साहित्यिक पृष्ठभूमि का वातावरण मिला, सावन महीने में बाबूजी नित्य संध्या रामचरित मानस का पाठ करते, साथ में हम सभी चिरोबोरो गाते मां को रामचरित मानस, बीजक रमैनी कंठस्थ थी, मां बताती थी कि नानाजी डेली डायरी लिखते थे | मुझे भी डेली डायरी लिखने का शौक हुआ, लेकिन उस समय डायरी लेने तक के पैसे नहीं होते थे | बात शुरू हो रही है सन् 1985 से जब मैं ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ता था | मेरे कक्षा शिक्षक थे श्रीअमृत दास दास जी गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाने अकिंचन छात्रावास चलाते, समाज सेवा में बालोद शहर मे अग्रणी भूमिका निर्वहन करते थे | वो हमेशा हिंदी में लिखे इतिहास की छ्त्तीसगढ़ी में रोचक व्याख्या करते | हर बच्चों से हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनो में बात करते | डोंगरे सरजी भी हिंदी की व्याख्या छत्तीसगढ़ी में करके समझाते | वो मेरे परिवार से परिचित थे | दास सरजी मुझे हमेशा दाऊ और भूतपूर्व मालगुजार के नाती कहकर पुकारते, मुझे बड़ी झिझक होती, मैं हमेशा सोचता दास सर मुझे चिढ़ा रहे हैं या सम्मान दे रहे हैं | उस समय हमारे घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी | खेती ही आजीविका का मुख्य आधार था, सिंचाई गोंदली जलाशय पर निर्भर था | पर्याप्त पानी होता तभी फसल हो पाती, नहीं तो सूखकर मर जाती | यह सिलसिला कभी कभी दो तीन साल लगातार हो जाता, तब तो बड़े बड़े मालदार किसानों का भी गुजर मुश्किल हो जाता | मजदूर कमाने खाने कहीं और निकल जाते लेकिन हम जैसे परिवार को कैसे भी अपनी मिट्टी में ही अपने गांव में ही जिंदगी गुजारना होता | जहॉ तक मुझे जानकारी है हमारी 23 एकड़ की खेती से मात्र जीवन का गुजारा होता | नौकर मजदूर को देने के बाद सिर्फ इतना बचता कि– *मैं भी भूखा ना रहूं , साधू ना भूखा जाय |* कभी सूखा पड़ जाता तो कभी बाढ़ बहा ले जाती | स्कूल के महीने के 4 रुपया 80 पैसे प्रति महीना का फीस भी पटाना मुश्किल होता | अंचल का जाना पहचाना परिवार होने के कारण मान सम्मान और प्रतिष्ठा बनाये रखने का संघर्ष भी कुछ कम नही था |

हर आदमी अपनी जिंदगी में कुछ न कुछ नया करने की सोचता है, मुझे भी कुछ नया करने की तीव्र ललक होती, प्राथमिक शिक्षा जन्मग्राम कोहंगाटोला में ग्रहण किया, शिवराम साहू, घासीराम दीपक मयाराम पटेल, मरई गुरूजी ने मेरी प्राथमिक नींव मजबूत किया | माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने ग्राम से पॉच किलोमीटर दूर पाररास पैदल पढ़ने जाता, साथ में बहुत सारे बच्चे रहते लेकिन मैं उन सबसे अलग रहता क्योंकि वे शैतानियॉ करते, गाली गलौज करते, सफाई से नहीं रहते, उनकी पढ़ाई में रुचि कम रहती इसलिये मेरा उनसे कोई तालमेल नहीं रहता दिलीप कुमार देवॉगन से मेरा मन मिल ही जाता, स्कूल जाने से पहले अगर मैं पहले निकलता तो मैं उनके घर चला जाता, अगर वो पहले निकलते तो वो हमारे घर के सामने चौंक में मेरा इंतजार करता फिर हम साथ में स्कूल जाते | वह भी किसान परिवार से था, कुछ साल पहले उसके पापा की मृत्यु हो गई थी | मजबूत देहयष्टि का दिलीप हमेशा मुझसे हंसते हुए खुलकर मिलता, उसकी आत्मीयता मेरे अंतस तक उतर जाती | हम दोनो में से किसी को भी पैसा मिलता चना चटपटी ही खाते | *मेरी मॉ हमेशा मुझे गहन हिदायत के साथ स्कूल के लिये विदा करती – गाड़ी मोटर देखके रेंगना बेटा,डेरी साइड रेंगना अउ अपने रद्दा में आना,अपने रद्दा में जाना, काकरो संग झगरा मत करना, गुरूजी के बात मानना |* यह मॉ के रोज कहे जान वाले वाक्य थे | मैं हमेशा इसका पालन करता कोई भी सहपाठी मुझसे कभी भी अभद्रता नही करते थे , क्योंकि उन्हे मालूम था, यह कभी झगड़ता नहीं | मैं मॉ को प्रणाम करके रोज स्कूल जाता | कभी भी घर में या स्कूल में मेरी शिकायत नहीं हुई, न व्यवहार के बारे में, न पढ़ाई के बारे में | मेरा छात्र जीवन आदर्शतम् रहा | पाररास में भी मेरे बहुत सारे अच्छे मित्र बने संतोष कौशिक शंकर साहू , देवेन्द्र साहू, महेश यादव, टीकाराम ठाकुर, राजकुमार गौतम, नीलामणी साहू, नसीम अली, महेश ठाकुर लक्ष्मीकांत धारगावे आदि | मिडिल स्कूल पाररास में पढ़ते मुझे चित्रकारी का भी शौक रहा, पलक झपकते किसी की कापी पुस्तक या किसी दीवार पर चाक या पेंसिल से सुंदर चित्र बना देता,मेरी यह बड़ी कमजोरी थी जिसके कारण कभी कभी डॉट खानी पड़ी | यहॉ शिक्षक लखन नाथ योगी, डड़सेना सर, वर्मा सर और बी.आर देशमुख सर सभी से मेरी गहन आत्मीयता रही, उनसे परिवार के सदस्य जैसा प्यार मुझे हमेशा मिला, लेकिन बी.आर. देशमुख सर से कालांतर में मैं एक मित्र की तरह हो गया, वो मेरे पथ प्रदर्शक के रूप में हमेशा साथ रहे | आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैने कला संकाय चयन कर पढ़ाई जारी रखा | दिलीप आठवी में फेल हो गया तब भी पाररास तक मैं उसके साथ रहता फिर पाररास से बालोद अकेले ही पढ़ने जाता | पढ़ाई के लिये मैंने कोई बड़ा लक्ष्य नही रखा था | हालांकि कोई पूछते क्या बनोगे तो बचपन से कह देता डॉक्टर बनूंगा और अपनी माँ बाबूजी का ईलाज करूंगा |

नवमी कक्षा पढ़ते मैं अपने घर की दूध बिक्री का हिसाब रखना प्रारंभ कर दिया, साथ ही घर में होने वाले अतिरिक्त दूध मैं स्कूल जाते राजपूत हाटल में छोड़ जाता और वापसी में डिब्बा ले आता इसतरह मैंने अपने घर की आर्थिक मजबूती में थोड़ा हाथ बटाना प्रारंभ कर दिया था |

वर्ष 1984 अप्रेल महीना में बड़ी दीदी चन्द्रप्रभा की शादी हुई तो जमीन बेचना पड़ा | पैतृक जमीन बेचने की पीड़ा मैने बाबूजी की आँखों में देखा था लेकिन बड़ी विवशता भी थी | डेली डायरी लिखने की मेरी इच्छा दिनोंदिन बलवती होते जा रही थी | 1985 की जनवरी या फरवरी में हमारे गॉव में मंडई का आयोजन हुआ, मुझे 50 पैसे मिला था खर्च करने | मैने 50 पैसे की छोटी डायरी ले ली लेकिन डायरी लिखूं कैसे समझ ही नही आ रहा था, डायरी मैने सम्हाल कर रख ली | बीती 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री पद पर रहते इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी, इसलिये 1985 का वर्ष इसी शोक में व्यतीत हो रहा था | राजीव गांधी प्रधान मंत्री बने थे, उनके नेतृत्व में 21 वीं सदी उज्जवल भविष्य का नारा देश में जोर शोर से लगाये जा रहे थे | श्वेत क्रांति, हरित क्रांति और तकनीकि क्रांति का सूत्रपात हो चुका था | कम्प्यूटर, रोबोट 21 वीं सदी के यंत्र के रूप में बताये जा रहे थे | युवाओं को स्वरोजगार एवं उद्योगों के माध्यम से आत्मनिर्भर जीवन जीने की प्रेरणा दी जा रही थी, नारी शक्ति में जागृति हेतु संविधान में विशिष्ट बदलाव की तैयारी की जा रही थी | वृद्धावस्था, विधवा, परित्यक्ता निराश्रित महिलाओं को पेंशन देने की योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा था | खेल शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार के नये द्वार खुल रहे थे | युवाओं को 21 के बजाय 18 वर्ष की उम्र में मतदान का अधिकार देने संबंधी विधेयक उच्च सदन में लाये जा चुके थे | सभी युवा पूरे जोश के साथ 21वीं सदी में बुलंद हौसलों के साथ प्रवेश करने आतुर थे | ऐसे में पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की प्रथम पुण्य तिथि 31अक्टूबर 1985 को पूरे देश में वृहद शोक दिवस के रूप में मनाया गया | उस दिन पूरे देश में शोक की गहन वेदना जन जन में विद्यमान रही | राष्ट्र ने विश्वनेत्री प्रियदर्शिनी इंदिरा गांधी को खोया था, उसके ही पहरेदारों ने उसकी जघन्यतम् हत्या कर दी थी | मेरा मन भी शोक की गहन वेदना में पूरे दिन डूबा हुआ था | टीवी अखबारों और चौंक चौराहों में बैनर पाम्पलेट के माध्यम से इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि पर उसकी जीवनयात्रा और उसके अंतिम भाषण को प्रमुखता से छापकर लोगों के बीच इंदिरा गांधी की भारत माता के प्रति असीम श्रद्धा को प्रदर्शित किया जा रहा था — *जब तक मेरे खून का एक एक कतरा रहेगा, मैं भारत माता की सेवा करती रहूंगी |* यह वाक्य पूरे देश में इंदिरा गांधी की राष्ट्र के प्रति श्रद्धा और आस्था के प्रस्फूटित शब्द बन गये थे | आतंकवाद की बलिवेदी पर भारत माता ने एक और बड़ी कुर्बानी दी थी | विश्व के निर्गुट एवं मित्र राष्ट्र इस शोक संतप्त समय में मजबूती से भारत देश के साथ खड़ा था | भारत महामारी, प्राकृतिक आपदा, भूख, गरीबी, बेरोजगारी आतंकवादी गतिविधियों की बड़ी चुनौतियों से जूझ रहा था | भारत के अंदर बाहरी अलगाववादी ताकतो की मौजूदगी से देश में एक और विभाजन का दर्द मन को भेद रहा था | ऐसे समय में मेरे मन में देश के अंदर हो रहे संकट की घड़ी में उथल पुथल मची हुई थी, और मैंने पहली कलम श्रीमती इंदिरा गांधी को समर्पित करती चला दी | 31 अक्टूबर 1985 को 50 पैसे की डायरी में लिखी मेरी यह पंक्ति थी….

ईमानदार रहिथे तहूहा मौका देख के टापदेथे |
पोसवा कुकुर हा जइसे मालिक ला चाबदेथे ||

जब मैने इसे लिखा मुझे इसकी गहराई का अंदाज नहीं था, जब इसे मां भैया और मित्रों को सुनाया तो सभी ने इसे आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया | इंदिरा गांधी के हत्यारे सुरक्षा गार्ड पर केन्द्रित आगे की पंक्ति इस तरह थी —

का मिलगे रे बइहा इंदिरा ला मारके |
भारत माता के छाती ला ओदारके |
जेनहर अच्छा काम करिस, तौनेला बदनाम करिस |
सीधा सादा मैनखे के जीना हराम करिस ||
रो डरिस लइका घरबुंदिया उझारके |
का मिलगे रे भैया इंदिरा ला मारके….

मिलके सब्बो कौरव अउ जयद्रथ के सेना |
जरासंध के फैले हे देश भर डेना ||
दुरपति कस भारत माता के गोदी उझारके ……
का मिलगे रे बइहा इंदिरा ला मारके ……

उक्त कविता लेखन से मिली सराहना से मैं नित नयी कविता लेखन के लिये उत्साहित हुआ, विभिन्न सुअवसरों पर काव्यपाठ, आलेख पाठ, महापुरुषों की जीवनी एवं भाषण से मैंने हाई स्कूल के सभी छात्रों एवं गुरूजनों के बीच अपना सम्मानजनक स्थान बना लिया था | डेली डायरी लेखन से मेरी गद्य विधा परिपुष्ट हुई तो कविता गीत लेखन से मैं कवि के रूप में पहचाना जाने लगा | पुरानी मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर जब मैं शासकीय महाविद्यालय बालोद की दहलीज पर कदम रखा, मेरे कई दोस्त जो कालेज में पढ़ रहे थे, मेरा स्वागत एवं परिचय कविवर के रूप में किया, मुझे सुखद् अनुभूति हुई | हमारा कालेज हाई स्कूल से सौ मीटर की दूरी पर था, इससे मेरा वहॉ आना जाना लगा रहता था इससे हमारे अगले बैच के छात्र मुझसे परिचित भी थे | कालेज का नया भवन बनने तक वहीं हमारा पढ़ना निश्चित था | नये नये कालेज के तीसरे बेच के रूप में मैने बी.ए.प्रथम में प्रवेश लिया था | साथ में पढ़ रहे नये छात्र छात्रा मुझे कवि जानकर कविता सुनने उत्सुक थे | वे मुझे राेज कोई न कोई विषय दे देते, जिसपर मैं कविता लिख कर दे देता | इसी तरह कई मित्र शायरी लिखने कहते तो कोई अपनी प्रेमिका के लिये प्रेम पत्र लिखने कहते | मैं अपनी लोकप्रियता से बहुत खुश रहा करता और रोज उत्साह से भरकर कालेज जाता | ये सच है अगर मैं बालोद कालेज में महाविद्यालयीन शिक्षा ग्रहण नही करता जो शायद मेरी साहित्यिक प्रतिभा का इतना विकास नही हो पाता | भागवत पटेल, दीननारायण पटेल, मुकेश साहू , अभय नोन्हारे, कोमल सिंह ठाकुर, कोमल सिन्हा, महेन्द्र जांगडे़, चाणक्य यादव उमेश साहू, राजेन्द्र कुमार ठाकुर, जुनैद कुरैशी, धनेन्द्र साहू, मोह.अकील अहमद हन्फी, किशोर श्रीवास्तव, अनिल यादव जैसे मित्रों की लम्बी श्रृंखला थी |

कुछ समय बाद मैने महसूस किया, मेरा उपयोग सिर्फ प्रेम पत्र लेखन के लिये ही किया जा रहा है तो मैने इससे किनारा कर लिया | मेरी पहचान लव लेटर ब्वाय के रूप में हो चुकी थी | मैं अपने इस पहचान से अपमानित महसूस कर रहा था और कैसे भी अपने आपको इस अपमान से मुक्त होने की छटपटाहट में हमेशा बेचैन रहने लगा, कुछ दिन के लिए काव्य लेखन सब छूट गया | एक दिन मेरे क्लास की एक लड़की ने मुझे बताया जिस लड़की को देने तुमने किसी लड़के को लेटर लिखकर दिये हो उसे कोई दूसरा लड़का भी चाहता हैं, क्या उसके लिये भी तुम उससे अच्छा लेटर लिखकर दे सकते हो ? मैं इससे अपने अपराध की भयावहता महसूस कर लिया | मैं लगातार कई दिन तक कालेज नहीं गया | घर में मेरा एक एक पल एक युग की तरह व्यतीत हो रहा था |

इस बीच कालेज में चुनाव की गतिविधियॉ चल पड़ी, कालेज चुनाव लड़ने के उत्सुक छात्र छात्रा मिलने आते रहे | मैं हतोत्साहित था लेकिन उन मित्रों के कारण मुझमें फिर से उत्साह की संचार हो गया और मैं फिर से कालेज जाने लगा लेकिन किसी को न तो कविता सुनाता और न ही किसी के आग्रह पर कोई कविता का पत्र लिखता मेरे अंदर थोड़ी सी वैचारिक परिपुष्टता आ चुकी थी |

इस बीच एक नवनियुत्त मनोनित पदाधिकारी ने मुझसे अपनी किसी प्रेमिका के लिये प्रेमपत्र लिखने की मांग की, मैने साफ मना कर दिया | वह जब तब आकर मुझे परेशान करने लगा, कई तरह से मैने उसे टाला लेकिन वो मान ही नही रहा था, एकदम पागलों जैसी हरकत करने लगता, परेशान होकर अंत में मैने हॉ कर दी | उसने मुझे उस लड़की का नाम बताया, वह मेरे साथ पहली बेंच में बैठती थी, बहुत सुंदर थी | मैने एक दो दिन दोनो की गतिविधियों को ताड़ा और यह जानकर कि दोनो में कुछ न कुछ है, जल्दबाजी में अलग अलग रंग वाले स्याही के पेन से किसी और को दिये पुराने प्रेम पत्र की हूबहू नकल लिखकर उस नवनियुक्त पदाधिकारी को दे दी | पढ़कर वह इतना खुश हुआ कि मेरे दोनो पॉव छू लिये और सौ रुपये की कड़कडाती नोट मेरे हाथों में थमा दी, उस समय सौ रुपये का नोट बहुत बड़ी राशि थी, मैं हक्का बक्का रह गया | मैने सौ रुपये की नोट सम्हाल के रख ली | मुझे पहली बार अपने इस हुनर पर गर्व हो रहा था | मैने किसी से पता किया तो पता चला वह किसी व्यवसायी का बेटा है | कुछ दिन बाद वह लड़की वेटिंग रूम में अपनी एक और सहेली के साथ मेरे पास आई, और एक अन्य लेटर दिखाकर बोली यह लिखावट आपकी है, मैने झिझककर हॉ कहा, और जिसे अलग अलग रंग की स्याही से लिखकर उसी के लिये दिया था, दिखाकर बोली और यह – इस बार मैं परिस्थिति और संकट भॉप चुका था सिर्फ हॉ में सर हिलाया | स्वीकृति पाकर उसने डॉटते हुए मुझसे कहा — जब तू लिखकर देता है तब उसे अपनी हेंडराइटिंग में देने नहीं बोल सकता था | और पलक झपकते पलटकर दोनो चली गई | मुझे लगा उफनती नदिया अब शांत हो चुकी है और मैं अपनी साइकल उठा सीधा घर आ गया | अब तो मैंने गॉव की गलियों में भी निकलना बंद कर दिया | मेरे मन में अपराधबोध की भावना गहरे तक पैठ कर गई थी | मैंने लिखना पढ़ना सब छोड़ दिया मेरी पूरी दुनिया बिखर चुकी थी |

सप्ताह गुजर गये घर में सभी कालेज नहीं जाने का कारण पूछते मैं पढ़ाई नही होने का बहाना करके खेती बाड़ी के काम में अपने आपको लगातार व्यस्त रखने लगा | एक दिन सुबह कालेज का चपरासी शंकर रामटेके जो कि पास ही गॉव तरौद का निवासी था, मेरे घर आया, मेरी गैरमौजूदगी में उसने बता दी कि मैं कालेज नहीं आ रहा हूं और प्रिंसपल सर ने बुलाया है | खेत में ही मेरी बहन गुड़िया, सुमति और तामेश्वरी मुझे बुलाने चली गई | मैं तुरंत कालेज पहुंच गया, उस समय डां. तेजराम दिल्लीवार प्रभारी प्राचार्य के साथ राष्ट्रीय सेवा योजना प्रभारी थे उन्होने मेरी कविता सुनी थी | वे सुप्रसिद्ध साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के प्रिय शिष्य में से एक थे | वे हमारे अंचल के वरिष्ठ साहित्यकार थे उस समय उनकी कहानी पं. बंगाल के हाई स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल थी | मेरे जीवन का पहला बड़ा कार्यक्रम का आमंत्रण देते जो उन्होने कहा वह मेरे लिये ब्रह्मवाक्य था — “अब साहित्य के पथ में जीवन में कभी पीछे मत मुड़ना, आगे बस आगे बढ़ते जाना, तुम्हे साहित्य के आकाश की ऊंचाई छूनी है | मैंने गुरूवर डॉ. तेजराम दिल्लीवार जी के उक्त वाक्य से आकाश शब्द उठा लिया और कहा सर मैं आज से अपने नाम के साथ आकाश लिखूंगा और उनका चरण स्पर्श किया | तबसे मैने अपना नाम अशोक कुमार साहू आकाश लिखना प्रारंभ कर दिया | उसी दिन सर ने मुझे एक सरप्राइस गिफ्ट देते कहा मैंने तुम्हारा नाम अंतरमहाविद्यालयीन काव्य पाठ स्पर्धा के लिये भेज दिया है तुम्हे रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर जाना है, अपनी तैयारी कर लो | पहली बार रायपुर जाने का सुअवसर मिला | बालोद महाविद्यालय से मेरे सहभागी साथी रहे भूभास्कर यादव जो अब जिला सत्र न्यायधीश है, उसने काव्य लेखन बंद कर दिया है लेकिन उसके इस ओहदे से मुझे बड़ा गर्व होता है |

शासकीय महाविद्यालय बालोद मेरे छात्र जीवन का बड़ा साहित्यिक मंच रहा | स्नेह सम्मेलन महापुरुषों की जन्मतिथि पुण्यतिथि एवं अन्य विशेष अवसर पर मैं हमेशा कविता, भाषण, वाद-विवाद में भाग लेता रहा इससे मेरी प्रतिभा में निरंतर निखार आया | राष्ट्रीय सेवा योजना की यादगार शिविर पारागॉव दिसंबर 1987 मेरी जिंदगी का पहला कवि सम्मेलन रहा जिसमें डॉ.तेजराम दिल्लीवार के मुख्य आतिथ्य में हमने काव्य पाठ किया | इसीतरह अंतर्महाविद्यालयीन राष्ट्रीय सेवा योजना शिविर अम्बागढ़ चौकी हम सभी मित्रों के लिये अविस्मरणीय है | तब से लेकर आज तक लगभग हर मंच में मुख्य कवि के रूप में मेरी उपस्थिति रहती है |

कालेज जीवन के मेरे मित्रों में शरद विभूते विशेष उल्लेखनीय है उनसे मेरी मुलाकात बी.ए. द्वितीय वर्ष में हुई जिन्होने मुझे हर घड़ी अपना महत्वपूर्ण सहयोग दिया | शरद विभूते की मॉ सुधा विभूते, पापा वसंत नारायण विभूते, भाई बहन सबका मुझे आज भी वही संबल मिलता है इसी तरह सरोज यादव उनकी मॉ ललिता यादव एवं पूरे परिवार का मुझे घर जैसा प्रेम मिलता है | हौसला बुलंद करने वाली सहपाठियों में कांता साहू, सुषमा दुबे, कृष्णा आहुजा, सुभाषिनी ठाकुर, कुंती आर्य, सुषमा पांडे, लता ठाकुर, विमला श्रीवास्तव, दमयंती साहू, हर्षिता योगी की भी बड़ी भूमिका मेरे जिन्दगी में रही है | मेरे साथ जितने भी मित्र पढ़े हैं सभी ने मेरा हौसला बुलंद किया मैं सभी मित्रों के प्रति अनंत आभार व्यक्त करता हू्ं | इसके अतिरिक्त न्यू गोल्डन क्लब नयापारा बालोद के साथियों दिनेश यादव, सुरेश यादव, दिलिप जैन, अश्विनी पटेल, परस पटेल, ज्ञानेश्वर राजपूत, शिव शर्मा , पालेश्वर नाथ योगी शिव साहू आदि के साथ क्रिकेट क्लब से जुड़कर गॉव गॉव क्रिकेट मैच खेलने जाते यह भी मेरी जिंदगी का बड़ा अनुभव रहा, मैं न्यू गोल्डन क्लब के सदस्य मित्रों के प्रति अनंत आभारी रहूंगा |

बी. ए. उत्तीर्ण करने के पश्चात तीन साल बेरोजगार रहा, किराना स्टोर्स संचालित करते 1996 में छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति बालोद का गठन हुआ, डॉ. तेजराम दिल्लीवार अध्यक्ष बने मुझे सचिव बनाया गया , सरजी के निर्देश से मैने अशोक आकाश लिखना प्रारंभ किया | इसी साल 22 अप्रेल को मेरी शादी हुई डॉ. तेजराम दिल्लीवार की अध्यक्षता में कविसम्मेलन हुआ भगवती चरण यदु बागी के संचालन में भूभास्कर यादव, प्रभाकर यादव, विसंभर यादव मरहा और गजपति साहू ने काव्यपाठ किया |

कुछ बरस बाद मित्रों को आयुर्वेदाचार्य की डिग्री ले चिकित्सकीय पेशा अपनाते देख मैने नया विषय विविध चिकित्सा पद्धति चयनकर बी.ए.एम.एस. ( ए.एम.) की डिग्री ले कर चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में कदम रखकर साहित्य सेवा जारी रखा | साहित्य के साथ समाज सेवा के क्षेत्र में अपनी मौजूदगी से जनमानस में लोकप्रियता के नये मुकाम बनाये, रक्तदान दाता ग्रूप बनाकर रक्तदान हेतु लोगों को प्रेरित किया, खुद भी सत्रह बार रक्तदान कर मरीजों की जान बचाने सहयोग किया | देहदान हेतु लोगों को प्रपत्र भरवाया, सुखदेव सोनकली पाररास का देहदान खुदादाद डुंगा आयुर्वेदिक चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर को भिजवाया |

साहित्य, पत्रकारिता, चिकित्सा एवं समाजसेवा के क्षेत्र में मुझे सम्मानजनक पद पर सेवा देने का सुअवसर मिला जिसमें पत्रकारिता के क्षेत्र में श्रमजीवी पत्रकार संघ जिला दुर्ग सहसचिव, छ्त्तीसगढ़ केशरी ब्यूरो चीफ के रूप में कार्य | अंते तंते साप्ताहिक कालम लेखन से समसामयिक घटनाक्रम पर तीक्ष्ण व्यंग्य प्रहार | अनहद सहित मधुर साहित्य परिषद् की तीन साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन | साहू संचयिका की दो अंक का सहसम्पादक के रूप में कार्य, किसान आंदोलन में सक्रिय भूमिका, श्रमिक समस्याओं को देखते शंकर गुहा नियोगी एवं स्व.हरि ठाकुर के साथ श्रमिक आंदोलनों में सक्रिय भूमिका का निर्वहन | छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण संघर्ष समिति में प्रांतीय पदाधिकारी संगठन सचिव के पद पर कार्य | युवा शक्ति इंकलाब मंच अध्यक्ष 1996, प्रगतिशील युवा विचार मंच अध्यक्ष 1999, छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति बालोद सचिव 1996, आकांक्षा युवा मंच अध्यक्ष 2000, तांदुला साहित्य मंच अध्यक्ष 2001, निजी चिकित्सक संघ तहसील बालोद अध्यक्ष के रूप में तीन बार मनोनित, निजी चिकित्सक संघ जिला बालोद महासचिव के रूप में उल्लेखनीय कार्य जहॉ चिकित्सक साथी डॉ. वाई. के. सरवानी, ए. के. रावटे, अभिषेक योगी आदि मित्रों के साथ मधुर साहित्य परिषद् के मित्र बुटूराम पूर्णे, ओमप्रकाश देवांगन, बीरेन्द्र कुमार साहू, देवनारायण नगरिहा, देव जोशी गुलाब, विरेन्द्र अजनबी आदि मित्रों के साथ साहित्य सेवा करते मेरा जीवन पूर्णतः साहित्य को समर्पित है |

लेखक
अशोक आकाश
ग्राम कोहंगाटोला
पो ज.सॉकरा
तह. जिला बालोद छ. ग.
पिन कोड 491226
मोबाइल नंबर 9755889199
Email id ashokakash1967@gmail.com

Loading

2 thoughts on “मेरी साहित्यिक पगडंडियॉ-डॉ. अशोक आकाश

  1. हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय चौहान जी क#

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *