शिव तांडव स्‍तोत्र हिन्‍दी में

शिव तांडव स्‍तोत्र हिन्‍दी (पंचचामर छंद) में

-रमेश चाैहान

शिव तांडव स्‍तोत्र हिन्‍दी (पंचचामर छंद) में

रावण विरचित शिव तांडव जगत विख्‍यात है, जिसे भक्‍त श्रद्धा, विश्‍वास और उमंग से गाते हैं । यह मूल स्‍तोत्र संस्‍कृत भाषा एवं शास्त्रीय छंद पंचचामर छंद में लिखी गई है, इस स्‍तोत्र का इसी पांचचामर छंद में हिन्‍दी काव्‍यानुवाद किया गया है, इस कारण इस अनुदित रचना को मूल स्‍तोत्र की ही भांति पढ़ा एवं गाया जा सकता है ।

प्रवाह मान गंग है जटा अरण्य रूद्र के,
विशालकाय वक्र व्याल नील कंठ हार है ।
डमड्ड नाद छेड़ वाद्य रुद्र रौद्र नाचते,
सचेत सार सॉंब हे! तुझे हमार भार है ।।1।।

जटा कटाह खेल-खेल क्षिप्र वेग घूमती,
तरंग जाह्नवी चलायमान शीर्ष शोभते ।
ललाट लालिमा प्रदीप्त भाल बाल चन्‍द्र हैं,
महेश पाद में सदा पवित्र प्रीत हो मुझे ।। 2।।

गिरीश नंदनी विलास से दिगंत दीप्त जो
उमा प्रदीप्ति को विलोक जो सदा निमग्न है ।
कृपा कटाक्ष भक्‍त के कठोर क्‍लेश मेटते,
स्वरूप चीर हीन रुद्र का हिया उमंग दे ।।3।।

जटा भुजंग पीत दीप्त माथ रत्‍न की प्रभा,
दिशा स्वरूप नार के भरे सुहाग चिन्‍ह है ।
मतंग चर्म चीर जो लपेट अंग दीव्‍य है,
वही महेश चित्‍त में अपूर्व मोद दे मुझे ।।4।।

सुरेश आदि देव मुण्‍ड़ के कतार दृश्‍य जो,
महेश पाद चूमते ललाट के पराग से ।
भुजंगराज शोभते जटा व शीर्ष चन्‍द्र है,
वही दयालु देव संपदा मुझे अपार दे ।।5।।

ललाट नेत्र खोल कामदेव भस्‍म जो किए
जिसे पखार पाद देवराज पूजते सदा ।
सुधांशु की कला किरीट काल भाल शोभते,
वही जटा कलाप युक्‍त रूद्र धान्‍य दे मुझे ।।6।।

कराल भाल होम कुण्‍ड तीक्ष्‍ण आग नेत्र में,
हवी किए त्रिनेत्र ने प्रचण्‍ड़ कामदेव को ।
गिरीश नंदनी कुचाग्र चित्रकार एक जो,
उसी त्रिनेत्र देव में लगाव प्रीत हो मुझे ।।7।।

नवीन मेघ वृंद से घिरी हुई कुहू निशा,
गठे हुए शिरोधरा भरे अमोघ कालिमा ।
नदीश्‍वरी जटा धरे मतंग चर्म धारते,
कलानिधान सृष्टि भार धारका मुझे धरे ।।8।।
(कठिन शब्‍द-हू-अमावस्‍या, शिरोधरा-गला, नदीश्‍वरी-गंगा, मतंग-हाथी, धारका-धारण करने वाला)

खिले हुए सरोज नील वृंद नीलमा प्रभा,
शिरोधरा प्रदेश व्‍याप्‍त दृश्‍य वो ललाम है ।
मनोज बाणदैत्‍य अंधका विनाश जो किए,
उसे भजूँ अनाथ मैं करे सनाथ जो मुझे ।।9।।
(बाणदैत्‍य-बाणासुर, अंधका-अंधकासुर)

कदम्ब मंजरी पराग दिव्य मंगला उमा
अलिंद रूद्र आप है रसाल रूप पान को ।
किए विनाश दक्ष यज्ञ दक्ष मुण्‍ड काट के,
अनंग जो किए मनोज को भजूँ उसे सदा ।।10।।

भुजंग क्षिप्र वेग घूम घूम गर्जना करे
कराल भाल आग दाह फैलते दिगंत में ।
मृदंग मंद मंद धीर बोल बोलते जभी
प्रचंड नाच जो करे उसे भजूँ सदा सदा।।11।।

शिला कठोर या मुलायमी विचित्र सेज में,
डरावना भुजंग या अमूल्य रत्न हार में ।
नरेश रंक मित्र शत्रु भेदभाव छोड़ के
समान भाव जो रखे उसे भजूँ सदा सदा ।।12।।

नदीश्‍वरी निकुंज में निवास मैं करूं कदा,
दुबुद्धि त्‍याग क्षुब्‍ध नेत्र अश्रु धार मैं धरे ।
समेट चित्‍त रूद्र रूप हाथ जोड़ माथ में,
शिवेति मंत्र जाप जाप मैं सुखी बनूँ कदा ।।13।।

महेश नागरी कपर्दिनी शिरोरु पुष्प से,
पराग अंश जो झरे सुधा समान दिव्‍य है ।
अबाध कांति अंग के झरे महेश भव्‍य है,
वही शिवा महेश सृष्टिकार मोद दे मुझे ।।14।
(नागरी- चतुर स्‍त्री, कपर्दिनी-माता पार्वती)

कराल पाप नाशका शुभत्‍व दायका प्रभा,
विवाह गीत बोल अष्‍ट सिद्धि मूर्तिमान ज्‍यों ।
समस्‍त लोक काल में निनाद गूँजता रहे,
महेश रूद्र स्‍तोत्र मंत्रराज जीतता रहे ।।15।।

पुनीत श्रेष्‍ठ रूद्र स्‍तोत्र है यही महेश का,
मनुष्‍य जो इसे पढ़े सदैव प्रेम भाव से ।
विशुद्ध चित्‍त हो वही महेश भक्ति को गहे ,
कटे सभी कराल मोह पाश रूद्र ध्‍यान से ।।16।।

प्रदोष काल अर्चना महेश का करें जभी,
महेश रूद्र स्‍तोत्र को पढ़े पुनीत भाव से ।
महेश अर्चना यही पुनीत स्‍तोत्र जो पढ़े ,
उसे मिले विभूति धन्‍य धान्‍य भक्ति रूद्र का ।17।।

-रमेश चौहान

Loading

2 thoughts on “शिव तांडव स्‍तोत्र हिन्‍दी में

  1. अद्भुत, अद्वितीय, अप्रतिम, आनंददायक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *