श्लेष चन्द्राकर की कुण्डलियांँ
श्लेष चन्द्राकर
श्लेष चन्द्राकर की कुण्डलियाँ
1. सँवरें फिर पर्यावरण-
सँवरें फिर पर्यावरण, करिए ऐसा काज।
देना इसपर ध्यान है, बहुत जरूरी आज।।
बहुत जरूरी आज, प्रदूषण मुक्त कराना।
आसपास परिवेश, हमें हैं स्वच्छ बनाना।।
महकें फिर से बाग, दिखें खग तितली भँवरें।
कोशिश हो भरपूर, पुनः वसुंधरा सँवरें।।
2.बचाना होगा पानी-
पानी कम होने लगा, देखो चारों ओर।
जल संरक्षण पर बहुत, देना होगा जोर।।
देना होगा जोर, करे कैसे भरपाई।
कारण इसका ढ़ूँढ, समस्या यह क्यों आई।।
कहे श्लेष कर जोड़, करो मत अब मनमानी।
बूँद-बूँद बहुमूल्य, बचाना होगा पानी।।
3. काटो मत तुम पेड़ –
काटो मत तुम पेड़ अब, ये हैं अपने मीत।
इनके साये के तले, जीवन करो व्यतीत।।
जीवन करो व्यतीत, हवाऐं शीतल लेकर।
पेड़ों का अहसान, चुकाओं पानी देकर।।
मानों मेरी बात, स्वस्थ नित पौधे बाँटो।
बोलों सबसे मीत, लगाओ पेड़ न काटो।।
4. अपनी भूल सुधार –
पछतायेगा एक दिन, अपनी भूल सुधार।
कर ले अच्छा काम तू, पर्यावरण सँवार।।
पर्यावरण सँवार, बचाकर कटते वन को।
नीर बचाने हेतु, सजग कर तू सब जन को।।
यहाँ प्रदूषण और, अगर अब फैलायेगा।
होगा महाविनाश, मनुज तू पछतायेगा।।
5. करें अब साफ-सफाई –
साफ-सफाई पर हमें, देना होगा ध्यान।
निर्मलता से देश की, जग में हो पहचान।।
जग में हो पहचान, बनायें ऐसा भारत।
स्वस्थ स्वच्छ हो देश, लिखेगा नई इबारत।।
रखें स्वच्छ परिवेश, तभी देश की भलाई।
मिलजुलकर सब लोग, करें अब साफ-सफाई।।
कुण्डलियाकार – श्लेष चन्द्राकर,
पता:- खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.- 27,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़) पिन – 493445,
मो.नं. 9926744445
जी-मेल – shleshshlesh@gmail.com
प्रदूषण पर कविता-‘प्रदूषण-श्लेष चंद्राकर’
मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार संपादक महोदय जी