छत्‍तीसगढ़ के तिज तिहार भाग-6: श्राद्ध पर्व पितर पाख -रमेश चौहान

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छत्‍तीसगढ़ के तिज तिहार भाग-6: श्राद्ध पर्व पितर पाख

-रमेश चौहान

छत्‍तीसगढ़ के तिज तिहार भाग-6: श्राद्ध पर्व पितर पाख -रमेश चौहान
छत्‍तीसगढ़ के तिज तिहार भाग-6: श्राद्ध पर्व पितर पाख -रमेश चौहान

श्राद्ध पर्व पितर पाख

पुरखा मन के सुरता-

जब कोनो अपन ए दुनिया ल छोड़ के चले जाथे त ओखर सुरता आबे करथे । ओखर संग बिताय गे बेरा, ओखर मया, ओखर काम अउ कईठन बात । सुरता तो ओही आथे न जेखर संग जीये हन समय बिताय हन लेकिन जेन ल हम जानबे नई करन ओ कइसे सुरता आही । फेर बहुत झन अइसे होथे जेन ल भले हम नई जानन फेर ओ हर हमर बर अप्रत्‍यक्ष ढंग ले बहुत कुछ करे रहिथे । ऐही कारण हे हमन साल भर कई-कई महापुरूष के जयंती अउ पुण्‍यतिथि मनाथन अउ ओखर द्वारा हमर प्रति, समाज के प्रति करे काम के सुरता करथन । ऐही प्रकार हम अपन धार्मिक मान्‍यता अउ आस्‍था ले अपन पूर्वज मन ल सुरता करत पितर पाख मनाथन ।

श्राद्ध पर्व पितरा पाख-

भारतीय संस्‍कृति म अपन मृतक पूर्वज जेला जानथन के नई जानन उन्‍खर प्रति अपन श्रद्धा व्‍यक्‍त करे प्रथा हे, येही प्रथा ल पितर पाख कहे जाथे ।

भारतीय सोलह संस्‍कार-

भारतीय संस्‍कृति अउ परम्‍परा बहुत गहन हे । हमर परम्‍परा म 16 संस्‍कार के परम्‍परा हे । पहिली संस्‍कार गर्भाधरण संस्‍कार होथे, अउ आखरी संस्‍कार अंतिम संस्‍कार होथे । पहिली संस्‍कार म जीव के न देह होवय न जीवन । पहिली संस्‍कार म बनईया देह म सुग्‍घर आत्‍मा आवय कहिके कामना करे जाथे । अंतिम संस्‍कार म देह तो होथे फेर देह म जीवन नई होवय । जीवन के आधार जीव या आत्‍मा हर आय देह ह नहीं । पहिली अउ अंतिम संस्‍कार के बीच 14 संस्‍कार म जीव अउ जीवन दूनों होथे । पहिली अउ अंतिम संस्‍कार ए बात ल पुष्‍ट करथे के जीवन के आधार तत्‍व आत्‍मा के अस्तित्‍व देह के पहली घला रहिस अउ देह के बाद घला होथे । जउन देह हमर पूर्वज रहिस ओ हर नश्‍वर होए के कारण नष्‍ट होगे फेर ओ देह म जउन आत्‍मा रहिस ओ हर अनश्‍वर होए के कारण आज घलो कहूं न कहूं हवय जरूर । ऐही आत्‍मा मन ल सुरता करे के तिहार आए पितर पाख ।

अपन पूर्वज ल याद करे के प्रथा भारत के छोड़ अउ कई जगह हे-

अपन पूर्वज मन के सुरता करे के प्रथा केवल भारते भर म हे अइसे नई हे, न हिन्‍दू घर्मभर म हे अइसे घला नई हे । ए अलग बात हे ऐला मनाए के रीति-रिवाज ढंग म अंतर हे फेर मूल बात पूर्वज मन ल सुरता करके कुछ न कुछ क्रिया तो करेच जाथे । जइसे ईसाई धर्म के अनुसार ‘ऑल सोल्‍स डे’ (all soul’s day) मनाए के परम्‍परा हे, मैक्सिको म 10 नवम्‍बर के अपन पूर्वज मन ल सुरता करे जाथे । चीनी संस्‍कृति म घला पूर्वज मन ल सुरता करे के परम्‍परा हवय ।

पितर पाख कब मनाए जाथे-

जइसे के नाम ले पता चलत हे ऐला एक-दू दिन नहीं पूरा एक पाख मने 15 दिन तक मनाए जाथे । पितर पाख कुवार महिना के अंधियारी पाख भर एकम ले अम्‍मावस तक मनाए जाथे ।

काबर मनाए जाथे-

पितर पाख मनाए के पाछू कईठन धारण अउ मान्‍यता दिखथे । एक मान्‍यता के अनुसार मृत आत्‍मा अपन जीवन काल म जउन भी काम करे हे ओ ह दू भाग म बठ जाथे एक पुण्‍य कर्म अउ दूसर पाप कर्म । देह के मरे के बाद आत्‍मा बिना देह के होथे अउ ओहर अपन कर्मफल ल भोगथे कर्म नई कर सकय चाहे वो पुण्‍यफल होवय के पाप फल । लेकिन धर्म शास्‍त्र के अनुसार ओ जीव के वंशज द्वारा ओखर निमित्‍त कर्म करे जा सकत हे । वंशज अच्‍छा कर्म करही त ओ जीव ल आनंद मिलही ओखर पाप कर्म के भोग कुछ कम होही । ऐही मान्‍यता के आधार म भागीरथी अपन पूर्वजमन के उद्धार बर कठोर तपस्‍या करके भगवती गंगा ल धरातल म लाथे । ऐही कारण अपन पूर्वज के आत्‍मा के शांति बर तर्पण करे जाथे ।

पितर पाख मनाए के परम्‍परा-

श्राद्ध तिथि तय करे के परम्‍परा-

परम्‍परा के अनुसार हमर पूर्वज हिन्‍दी महिना के जेन तिथि के देह त्‍याग करे होथे ओही तिथि म ओखर प्रति श्राद्ध अउ तर्पण करे जाथे । जइसे कोनो जीव हिन्‍दी के बारो महिना के कोनो महिना के पंचमी तिथि के देह त्‍याग करें हें त ओखर निमित्‍त पितर पाख के पंचमी के श्राद्ध अउ तर्पण करे जाथे । हमर पूर्वज के सूची अतका लंबा हे के कोनो ल ठीक-ठाक पता नई हे । 15 तिथि के हर तिथि म पक्‍का कोनो न को देह त्‍यागे होंही । ऐही पाए के पूरा 15 दिन तक श्राद्ध अउ तर्पण करे जाथे जेखर ले ज्ञात अउ अज्ञात सबो पूर्वज मन के श्राद्ध अउ तर्पण हो जए । ज्ञात पूर्वज के श्राद्ध के दिन ओखर रूचि के भोजन बनाए जाथे ओखर निमित्‍त गरीब मन ल भोजन कराए जाथे ।

ओरवाती लिपे के परम्‍परा-

छत्‍तीसगढ़ सहित देश के कई राज्‍य म पितर पाख म अपन घर के छानही या छत के नीचे ओतके लंबाई के जगह ल गोबर पानी म लीप के चाउर पिसान ले चउक पूरे जाथे फेर ओखर ऊपर कोहड़ा, रखिया, तुमा, चिरईया या जउन फूल मिल जाथे ओला छिजे जाथे । ए सब पितर जेन ले पितृ देवता कहे जाथे के स्‍वागत बर करे जाथे । ऐला छानही के नीच्र बनाए के दूसर अउ कारण ए हे पितृ देवता कउवा के रूप म आथे जउन छानही के परवा ऊपर बइठथे त ओतवारी के नीचे म चउक बनाए जाथे ।

तर्पण अउ भोग लगाए के परम्‍परा-

रोज नदिया या तरिया म जाके तर्पण करे जाथे । अपन देवता कुरिया म रोज पितर मन के निमित्‍त उरिद बरा अउ चाउर चीला के भोग लगाए जाथे । आखरी दिन खीर-पुड़ी के भोग लगाए जाथे ।

श्राद्ध करईया बर नियम-

पितर पाख म जउन श्राद्ध करथे मने जउन पानी देथे ओमन नशा पानी ले दूरिहा रहिथे, मांसाहर नई करय अउ अपन दाढ़ी-मेछा नई बनावय ।

श्राद्ध, तर्पण आय का?

पुरखा मन बर श्रद्धा पूर्वक करे जाने वाले मुक्ति कर्म ल श्राद्ध कहे जाथे अउ येखर क्रिया ल तर्पण कहे जाथे । तर्पण एक प्राचीन पम्‍परा आय जेमा मृत आत्‍मा के वंशज जीवित परिजन उन्‍खर बर करथें । ए क्रिया म नदी या तालाब के पानी म खड़ा होके या नदिया-तरिया के पार म बइठ के अपन हाथ म तीली-जवा लेके, पानी भर के, आप तृप्‍त होवव अइसे तीन बार बोल के पसर के पानी ल नदिया-तरिया गिरा दे जाथे ।

पितर पाख के महत्‍व-

वैदिक मान्‍यता के अनुसार पूर्वज मन के द्वारा करे गे काम के परिणाम अवईया पीढ़ी ऊपर पड़थे । अशुभ या बुरा प्रभाव ल पितृदोष कहे जाथे । पितृदोष के वंशज मन ल मानसिक या शारीरिक कष्‍ट हो सकत हे । श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करे ले ए कष्‍ट के निवारण हो सकत हे । श्राद्ध कर्म ले ब्रह्मा, रूद्र, इंद्र, अश्विनीकुमार, सूर्य, अग्नि, अष्‍टवसु आदि देवता मन के संगे-संग भूत-परेत मन घला तृप्‍त हाेथे । ये सबो तृप्‍त होके, श्राद्ध करईया ल आयु, पुत्र, धन-धान्‍य,यश-कीर्ति आदि के आर्शीवाद देथें ।

पितर पाख के व्‍यवहारिक पक्ष-

जब घर के नान्‍हे-नान्‍हे लइका मन अपन दाई-ददा ल अपन दाई-ददा के सुरता पूजा-पाठ करत देखथे त उन लइका मन के मन अपन दाई-ददा के प्रति श्रद्धा होथे । ए श्रद्धा ह परिवार के खुशी बर बड़ काम के होथे एखर परिवार म सुख-शांति रहिथे ।

श्राद्ध पर्व पितर पाख दोहावली-

पितर पाख मा देवता, पुरखा बन आय ।
कोनो दाई अउ ददा, कोनो बबा कहाय ।।

श्रद्धा अउ विश्वास मा, होवय नही सवाल ।
अपन अपन आस्था हवय, काबर करे बवाल ।।

हरियर हरियर पेड़ मा, पानी नई पिलोय ।
मरे झाड़ मा तैं अभे, हउला भरे रिकोय ।।

बारे न दिया रात मा, दिन म करे अंजोर ।
बइहा पूरा देख के, तउरे ल सिखे घोर ।।

अपने पहिली प्यार ला, भूलय ना संसार ।
तोरे दाई के मया, आवय पहिली प्यार ।।

रंग रंग के हे मया, एक रंग झन देख ।
सात रंग अउ सात सुर, दुनिया रखे समेख ।।

नारी के नारी मनन, समझे कहां सुभाव ।
सास बहु मन गोठ मा, कर डारे हे घाव ।।

दाई के ओ बेटवा, बाई के सिंदूर ।
जेन रंग ला वो धरे, रंगे हाथ जरूर ।।

नारी ले परिवार हे, नारी ले घर-द्वार ।
चाहे ओ हर जोर लय, चाहे रखय उजार ।।

सास ससुर दाई ददा, बनके करे दुलार ।
बहू घला बेटी असन, करय उन्हला प्यार ।।

बने रहय विश्वास हा, आस्था रहय सजोर ।
श्रद्धा के ये श्राद्ध हा, दया करय पुरजोर ।।

-रमेश चौहान

आघू भाग

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