Sliding Message
Surta – 2018 से हिंदी और छत्तीसगढ़ी काव्य की अटूट धारा।

एक महात्‍मा साहित्‍यकार-श्री कृष्‍णकुमार भट्ट ‘पथिक’

एक महात्‍मा साहित्‍यकार-श्री कृष्‍णकुमार भट्ट ‘पथिक’

उद्गार-

श्री कृष्‍ण कुमार भट्ट ‘पथिक’

सिद्धांतों का मूर्ति बनाना और  सिद्धांतों को जीवित करना दो अलग-अलग बातें होती हैं ।  सिद्धांतों का कथन करने वाले सैकड़ों होते हैं किन्तु सिद्धांत को अपना जीवन बना लेने वाले सैकड़ों में कुछ एक ही होते हैं ।  ऐसे ही कुछ लोगों में शीर्षस्थ हैं श्री कृष्ण कुमार भट्ट ‘पथिक‘ । ‘भट्ट सर‘ के नाम से छत्तीसगढ़ के रचनाधर्मिर्यो के मध्य उनकी लोकप्रियता उनके जीवंतता, कर्मठता एवं आदर्शता के कारण ही है । जीवंतता, कर्मठता एवं आदर्शता के नींव पर एक साहित्यकार के रूप में अपना महल खड़ा करने वाले श्री भट्ट सर के ‘व्यक्तित्व एवं कृतित्व‘ पर चिंतन करने में मैं अपने आप को असमर्थ पाता हूॅ ।  किन्तु उनके साहित्य के प्रति समर्पण के झोकों से मेरा हृदय आह्लादित है । मैं केवल अपने हृदयस्पंदन को शब्द रूप देने का प्रयास कर रहा हूॅ ।

महात्‍मा साहित्‍यकार कहने का आधार-

बहुधा रचनाकार केवल रचनाओं का सृजन करना ही अपना कर्म मानते हैं । किन्तु रचनाओं के मूल्यों एवं समसमायिकता पर चिंतन करने से ही बात बनती है ।  सृजन के लिये पृष्ठभूमि तैयार करना, नवोदित रचनाकारों को अवसर उपलब्ध कराना । उनके रचनाओं का यथेष्ठ मूल्यांकन कर उचित मार्गदर्शन करना साहित्य सेवा नही तो और क्या है ?  साहित्यकार का कलमकार होना अथवा रचनाओं का सृजन करना साहित्यकार के केवल संकुचित अर्थ को ही स्पष्ट कर सकता है । किन्तु एक सच्चा साहित्यकार तो वही कहलायेगा जो आजीवन साहित्य संवर्धन एवं पल्लवन के लिये प्रयासरत हों ।

ऐसे उद्यमी सद्प्रयासी ‘श्री कृष्ण कुमार भट्ट ही हैं । राग द्वेष से रहित निःस्वार्थ अपने ही संसाधनों से वरिष्ठ एवं कनिष्ठ रचनाकारों का समान रूप से सहयोगी होने पर आपको ‘महात्मा साहित्यकार‘ कहूँ तो कोई अतिशियोक्ति नही होगी । अपने जीवन के सातवे दशक में भी साहित्यिक आयोजनाेें का निमंत्रण सायकिल से घूम-घूम कर अकेले केवल एक ‘महात्मा साहित्यकार‘ ही वितरित कर सकता है । जहां अनेक स्थानों पर अपनी उच्चश्रृंखलता, स्वार्थपरकता के कारण अनेक साहित्य समिति निर्मित कर एक-दूसरे को नीचे दिखाने का प्रयास करते रहते हैं ।  ऐसे में एक ही स्थान के कई-कई साहित्यक मंच को उनमें से किसी एक के बेनर तले सभी साहित्यकार को केवल एक ‘महात्मा साहित्यकार‘ ही एकत्रित कर सकता है ।

सादगी में सादगी भट्ट सर-

महात्मा का परिचय उनकी सादगी एवं कर्मठता से प्राप्त होता है ।  एक छोटे से कमरे में अस्त-व्यस्त समान, एक टूटी कुर्सी, एक पुराना टेबल पंखा और सबके बीच साहित्यिक पुस्तकों से घिरे, एक सादे कागज पर इनके मूल्य अंकित करते कोई भी, कभी भी मुंगेली में भट्ट सर को देख सकते हैं । जिनका परिवार बिलासपुर में हो, जो केवल साहित्य सेवा के लिये मुंगेली में एक कमरा किराये पर ले रखें हों । एक भूतपूर्व प्राचार्य जमीन में बैठकर अकेले साहित्य साधना में निमग्न हों, महात्मा होने का ही परिचायक है ।

भट्ट सर की जीवन यात्रा-

जीवन परिचय-

भट्ट सर का जन्म 18 जून 1946 को श्री जगत राम भट्ट के यहां गोड़पारा बिलासपुर में हुआ । आपने हिन्दी एवं अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त की है ।  आप एक शिक्षक के रूप में विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं में अपनी सेवा प्रदान की है ।  आप हिन्दी व्याख्याता के रूप में में 1987-89 के मध्य शा.उ.मा.वि. नवागढ़ में मुझे कक्षा 9वीं-10वीं में अध्यापन कराया है । आप प्राचार्य के रूप में मुंगेली में सेवा देते हुये सेवानिवृत्त हुये ।  यद्यपि आपका जन्म भूमि बिलासपुर है तथापि आपने कर्मभूमि के रूप में मुंगेली को ही वरियता देते आ रहे हैं ।

साहित्यिक यात्रा-

shri-krishanakumar-bhatta-pathik भट्ट सर अपने विद्यार्थी जीवन से ही 1967-68 में लेखन कार्य का श्रीगणेश किया और 1972 में शासकीय शिक्षा महाविद्यालय की वार्षिक पत्रिका का संपादन किया ।  आपके प्रकाशित कृति ‘शहर का गाड़ीवान‘ (काव्य संग्रह), ‘युग मेला‘ (काव्य संग्रह) आपके सृजनात्मक क्षमता को प्रकट करने में समर्थ रहा ।  ‘इतिहास की साहित्य पगडंड़ियों पर‘ समीक्षा ग्रंथ से समीक्षा के पगडंड़ियों पर चलना प्रारंभ कर दिये । ‘चेहरे के आसपास‘ (कहानी संग्रह) का संपादन कर आपने समीक्षक एवं संपादक के रूप में अपना स्वयं का परिचय साहित्यकारों से कराया । आकाशवाणी रायपुर से फाग पर ‘नाचे नंद को कन्हैया‘ वार्ता का प्रसारण हुआ है तथा आकाशवाणी बिलासपुर से आपका साक्षात्कार प्रसारित हुआ है ।

साहित्यिक आयोजकों के आयोजक-

कवि सम्मेलनों के तामझाम से दूर आप प्रादेशिक, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय साहित्य शोध संगोष्ठियों में आनंदित रहे ।  इस स्तर पर रहते हुये भी स्थानीय स्तर पर साहित्य संगोष्ठियों का आयोजन कराना आपके साहित्य के प्रति समर्पण को ही निरूपित करता है । आपके सद्प्रयास से बिलासपुर मुंगेली, लोरमी, नवागढ़ जैसे कई स्थानों में साहित्य संगोष्ठि का आयोजन एकाधिक बार किया गया है ।

नव साहित्‍यकारों के संरक्षक-

‘हमर कथरी के ऊपर अकास‘-राघवेन्द्र लाल जायसवाल, ‘काला सा आदमी‘-डॉ राजेश कुमार मानस, ‘उम्र भर की तलाश‘-सतीष पांडे, ‘मरजाद‘-नंदराम यादव निषांत, ‘घनानंद के काव्य का मनोवैज्ञानिक अध्ययन‘-डॉ हरिराम निर्मलकर, ‘सुरता‘ एवं ‘ऑखी रहिके अंधरा‘-रमेशकुमार सिंह चौहान जैसे अनेक कृतियों पर भूमिका एवं अनुशंसा प्रदान करना आपके साहित्यिक पठन-पाठन अभिरूचि के साथ-साथ आपके सहज उपलब्धता का मूर्त रूप है ।  आपके इसी सहजता का कृपा पात्र मेरे जैसे कई साहित्यकार हैं ।

उपनाम ‘पथिक’ की सार्थकता-

‘भट्ट सर‘ shri-krishanakumar-bhatta-pathik का व्यक्तित्व हम सभी साहित्कारों, रचनाधर्मीयों एवं साहित्य प्रेमियों के लिये अनुकरणीय धरोहर है ।  अपने व्यक्तिगत समस्याओं से परे केवल साहित्य चिंतन एवं साहित्य संवाद ही आपका व्यक्तित्व है ।  आप हर छोटे-बडे साहित्यिक आयोजनों की सूचना हम जैसे साहित्यकारों को समय पूर्व देते रहते हैं। हाल ही में कुछ माह पूर्व आप दुर्घटना में चोटिल होकर चलने में असमर्थ होने के बाद भी साहित्य सेवा करते रहे और राजभाषा के प्रांतीय सम्मेलन, बेमेतरा में मुंगेली जिला समन्वयक का दायित्व का सफलता पूर्वक निर्वहन किये हैं ।

आप अपने उपनाम ‘पथिक‘ के अनुरूप साहित्य पथ पर अनवरत चल रहे हैं । अपने साहित्यिक यात्रा में रास्ते में पतित साहित्यकारों को संबल प्रदान करते हुये हमराही किये हैं ।  आपका प्रत्येक साहित्यिक कृत आपको ‘महात्मा साहित्यकार‘ ही निरूपित करता है । 

विराट व्यक्तित्व को शब्‍दों में बांधने का दुःसाहस-

आपके इस विराट कार्य को मैं कुछ शब्दों में पिरोने का दुःसाहस कर रहा हूॅ-

बढ़ता रहता ‘पथिक‘ डगर पर, होकर पथ का धूल ।
चलते रहना श्वेद भूल कर, सच्चे राही का मूल ।।

साहित्य पथ का राही वह तो, चलना जिसका काम ।
दीन-हीन का सच्चा साथी, भट्ट ‘पथिक‘ है नाम ।।

साहित्य साधक और उपासक, जिसका परिचय एक ।
समरसता का जो भागीरथ, साहित्य सर्जक नेक ।।

वरिष्ठ-कनिष्ठ का अंतर तज, जो रहते हैं साथ ।
कर्म डगर भी जिनका गाता, साहित्य सेवा गाथ ।।

साहित्य सेवा जीवन जिसका, साहित्य जिसका कर्म ।
‘पथिक‘ महात्मा साहित्य जग का, कहे कर्म का मर्म ।।

-रमशे चौहान

मृत्यु

यह आलेख मैंने पूज्य गुरुदेव श्री कृष्ण कुमार भट्ट के जीवन काल में ही लिखा और प्रकाशित किया था । किन्तु गत दिवस 8 जून 2023 को भट्ट सर हम सबको छोड़कर चले है । मैं ऐसे महात्मका साहित्यकार को कोटि-कोटि नमन करते हुये, इसी आलेख को संस्मरण के रूप में सहेजते हुये अपनी विनम्र श्रद्वांजली समर्पित करता हूँ ।


-रमशे चौहान

2 responses to “एक महात्‍मा साहित्‍यकार-श्री कृष्‍णकुमार भट्ट ‘पथिक’”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अगर आपको ”सुरता:साहित्य की धरोहर” का काम पसंद आ रहा है तो हमें सपोर्ट करें,
आपका सहयोग हमारी रचनात्मकता को नया आयाम देगा।

☕ Support via BMC 📲 UPI से सपोर्ट

AMURT CRAFT

AmurtCraft, we celebrate the beauty of diverse art forms. Explore our exquisite range of embroidery and cloth art, where traditional techniques meet contemporary designs. Discover the intricate details of our engraving art and the precision of our laser cutting art, each showcasing a blend of skill and imagination.