
श्रीराम: हमारे आदर्श क्यों?
श्रीराम भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष माने जाते हैं। मर्यादा का पालन करने के कारण उन्हें “मर्यादा पुरुषोत्तम” की उपाधि मिली। उनके जीवन और आचरण में समाज के लिए प्रेरणा के अनेकों पहलू विद्यमान हैं। इस लेख में सामाजिक दृष्टिकोण से यह समझने का प्रयास किया गया है कि क्यों श्रीराम आज भी हमारे आदर्श हैं।
एक पत्नी व्रत: आदर्श गृहस्थ जीवन
श्रीराम ने बहुपत्नी प्रथा के स्थान पर एक पत्नी व्रत का आदर्श स्थापित किया। जहां उनके पिता दशरथ की तीन पत्नियां थीं और उनके पूर्वज रघु की सैकड़ों रानियां थीं, वहीं श्रीराम ने एकपत्नीत्व की परंपरा की शुरुआत की। उनके भाइयों—भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न ने भी इसी आदर्श का पालन किया। उन्होंने विवाह को केवल सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि संस्कारयुक्त पवित्र बंधन माना।
श्रीराम ने हर परिस्थिति में अपनी पत्नी सीता के साथ रहने का व्रत निभाया। वनवास के दौरान भी उन्होंने उन्हें अपने साथ रखा। यह दिखाता है कि दांपत्य जीवन में सहयोग और समर्पण कितना महत्वपूर्ण है। सीता के हरण के बाद भी श्रीराम ने उन्हें भुलाया नहीं और न ही दूसरा विवाह किया। उनका यह आचरण आज भी आदर्श पति का प्रतीक है।
योगी के समान जीवन
वनवास के दौरान श्रीराम और सीता ने तेरह वर्षों तक योगियों की भांति संयमित जीवन व्यतीत किया। इस दौरान उनकी कोई संतान नहीं हुई। गृहस्थ जीवन में भी श्रीराम ने संतुलन और विवेक का परिचय दिया। उनके भाइयों ने भी राजकाज संभालते हुए योगी जैसा जीवन जिया। भरत और शत्रुघ्न ने साधुव्रत का पालन किया, जबकि लक्ष्मण जी ने श्रीराम के साथ कठिन परिस्थितियों में भी सहचर्य निभाया।
राजधर्म और प्रजा के प्रति समर्पण
श्रीराम ने यह सिद्ध किया कि जैसा राजा होता है, वैसी ही उसकी प्रजा बनती है। चौदह वर्षों तक उनकी प्रजा ने उनके लौटने की प्रतीक्षा की और इस दौरान संयमित जीवन व्यतीत किया। इस अवधि में जनसंख्या स्थिर रही और राज्य का कोष भी समृद्ध होता गया। यह दिखाता है कि आदर्श नेतृत्व समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।
सीता त्याग की वास्तविकता
कई ग्रंथों में सीता त्याग का उल्लेख मिलता है। परंतु यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता कि जिस पत्नी के लिए उन्होंने रावण पर विजय प्राप्त की, उसका वे त्याग कर सकते थे। यदि किसी परिस्थिति में ऐसा हुआ भी हो, तो यह उनका व्यक्तिगत त्याग था, न कि कायरता। उन्होंने कभी पुनर्विवाह नहीं किया, जो उनके चरित्र की दृढ़ता और मर्यादा का प्रमाण है।
निष्कर्ष
श्रीराम का जीवन आदर्श आचरण, समर्पण और नेतृत्व का प्रतीक है। वे केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि नैतिकता और मर्यादा के आदर्श हैं। उनके जीवन के और पहलुओं पर विचार करने की आवश्यकता है, जो हमें आने वाले लेखों में मिलेगा।
प्रोफेसर अर्जुन दूबे, सेवा निवृत्त
मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,
गोरखपुर, उ. प्र. मोबाइल नंबर:9450886113