श्रीमद्भागवत भजन भीष्‍म स्‍तुति-रमेश चौहान

श्रीमद्भागवत भजन भीष्‍म स्‍तुति

-रमेश चौहान

श्रीमद्भागवत भजन भीष्‍म स्‍तुति-रमेश चौहान
श्रीमद्भागवत भजन भीष्‍म स्‍तुति-रमेश चौहान

श्रीमद्भागवत भजन भीष्‍म स्‍तुति

भीष्म स्तुति
(सार छंद)

भीष्म पितामह करी प्रार्थना, अपनी अंतिम बेला आये ।
रूप माधुरी श्री श्याम कृष्ण की, मेरे मन रम जाये ।।

कान्हा की चरणों में अर्पित, मेरी बुद्वि पिपासा ।
जिनकी महती दया दृष्टि से, शेष नहीं अभिलाषा ।
रूप शील अरु गुण महिमा, अंतस मेरा गाये ।
दयावंत श्री कृष्ण हस्त वह, मेरे मन रम जाये ।।1।।

जो आनन्दरूप नित्य बसे, रचना सृष्टि चलाते ।
प्रकृति रूप अंगीकार करे, निज लीला दिखलाते ।।
जिनकी काया श्याम मनोहर, तीनों लोक सुहाये ।
नित्य मनोहर छवि वह न्यारी, मेरे मन रम जाये ।।2।।

जिनके तन पीताम्बर सोहे, रवि आभा हो जैसे ।
मुख बिखरी घुँघराली अलकें, मन मोहे ना कैसे ।।
श्याम रूप तन त्रिभुवन सुन्दर, जग में रहता छाये ।
त्रिभुवन सुन्दर रूप मनोहर, मेरे मन रम जाये ।।3।।

युद्व समय का दृश्य मनोहर, नयन पटल पर अटके ।
कैसी अलकें थी धूल धूसरित, श्वेद बूँद मुख टपके ।
बीन्ध रहा था जब मैं उनको, तीखें बाण चलाये ।
रक्त सनी तन की छवि दुर्लभ, मेरे मन रम जाये ।।4।।

रम्य कवच मण्डित वह बाँका, सुन अर्जुन की बातें ।
कौरव पाण्डव सैन्य मध्य में, अपना रथ ले आते ।।
वहीं ठहर कर दृष्टि मात्र से, रिपु दल को बिलखाये ।
सैन्य मध्य में ठाढ़ भये जो, मेरे मन रम जाये ।।5।।

जब अर्जुन ने हम स्वजनों को, युद्ध क्षेत्र में देखा ।
पाप समझ वध हम लोगों का, अपना गाण्डिव फेका ।।
आत्म तत्व का कर विष्लेशण, जो तब गीता गाये ।
परम पुरूश वह गीता गायक, मेरे मन रम जाये ।।6।।

करी प्रतिज्ञा थी जब मैंने, उन्हें अस्त्र उठवाने ।
अपना प्रण वह छोड़ दिये तब, मान मुझे दिलवाने ।।
रथ से नीचे कूद दिये थे, ज्यों मृग गज पर धाये ।
कर रथ पहिया लिए श्याम छवि, मेरे मन रम जाये ।।7।।

बड़े वेग से दौड़ रहे जब, कांधे का पट त्यागे।
काँप उठी थी धरती भी तब, लीला मन अनुरागे ।।
बाण आततायी तब मेरे, रक्त से उसे नहलाये ।
रक्त सुशोभित श्याम देह वह, मेरे मन रम जाये ।।8।।

अर्जुन रोके रूके नहीं जो, मेरी ओर झपटता ।
तब भी उनकी प्रित थी मुझ पर, दीव्य भक्त वत्सलता ।।
किए अनुग्रह मुझ पर थे वह, अपना क्रोध दिखाये ।
वही भक्त वत्सल प्रभु मेरे, मेरे मन रम जाये ।।9।।

अर्जुन रथ की रक्षा में जो, सावधान थे रहते ।
बायें कर में अश्व रास ले, दायें चाबुक धरते ।।
मरे युद्व में जो यह छवि लख, सायुज्य मोक्ष पाये ।
पार्थ सारथी श्याम मनोहर, मेरे मन रम जाये ।।10।।

जिनकी लटकीली चाल-चलन, भावयुक्त चेष्टाएँ ।
जिसे देख कर मान्य गोपियाँ, लेती खूब बलाएँ ।।
श्याम रास के मध्य छुपे जब, ये सब अश्रु बहाये ।
प्रेम पयोधी श्याम रास वह, मेरे मन रम जाये ।।11।।

राजसूय यज्ञ युधिष्ठिर का, इन्द्रप्रस्थ में लागे ।
प्रथम पूज्य तब कृष्ण हुए थे, सब मुनियों के आगे ।।
ये सब मैं नयनों से देखा, नयन नीर छलकाये ।
दृश्य वही फिर एक बार तो, मेरे मन रम जाये ।।12।।

एक सूर्य ज्यों विविध रूप में, लोगों को दिखते हैं ।
एक अगोचर श्याम कृष्ण भी, प्रेम भाव बिकते हैं ।
हर प्राणी के हीय विराजे, नाना रूप बनाये ।
सकल चराचर में व्यापक जो, मेरे मन रम जाये ।।13।।

भीष्म पितामह करी प्रार्थना, अपनी अंतिम बेला आये ।
रूप माधुरी श्री श्याम कृष्ण की, मेरे मन रम जाये ।।

-रमेश चौहान

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