व्यक्तित्व एवं कृतित्व: श्रीमती शिरोमणि माथुर
साहित्य के शिरोमणि की अनमोल कृति-अर्पण
-डॉ. अशोक आकाश

श्रीमती शिरोमणि माथुर
जीवन में दृढ़ इच्छाशक्ति संघर्ष और जिजीविषा की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो व्यक्ति अपनी जिंदगी में जितना संघर्षशील होता है, वह उतना ही सफल और ऐश्वर्यवान होता है | कर्मठ व्यक्ति को ही जीवन में स्वर्णिम लक्ष्य की प्राप्ति होती है | जो जिस राह में चलता है, उसकी उसी राह में पहचान हो जाती है | बहुत ही कम लोग होते हैं जो अलग-अलग क्षेत्रों में सफलता के परचम फहरा पाते हैं | एक साथ दो नाव में सवारी करके कभी किसी को नदी के दूसरे तट की प्राप्ति नहीं हो सकी है, लेकिन हमारे बालोद जिले की लौहनगरी दल्ली राजहरा की सुरम्य वादी में निवासरत शिरोमणी माथुर इसकी अपवाद है | राजनीति समाज सेवा और साहित्य के क्षेत्र में इनकी अंचल में विशिष्ट पहचान है | एक तरफ कांग्रेस पार्टी की विचारधारा से उनका गहरा नाता है, तो दूसरी तरफ साहित्य सृजन के साथ समाज के दीन दुःखियों की सेवा में इन्हें आत्मिक सुकून मिलता है | समाज में, जीवन में नित्य दिवस घटित हो रहे घटनाक्रम से विचलित मन की विह्वलता जब लिपिबद्ध होती है तब जन जागरण के क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात होता है | मैं यहां श्रीमती शिरोमणि माथुर द्वारा लिखित कृति अर्पण एवं उनके जीवन पथ पर बात कहने जा रहा हूं | साहित्यिक कृति अर्पण के माध्यम से उन्होंने अपने मन की मुखरित पीड़ा पुत्र आलोक माथुर की यादों को समर्पित किया है |
परिजन से बिछोह
मानवीय संवेदना की धरातल में परिजन से विछोह की पीड़ा से बढ़कर कोई दर्द नहीं उस पर पति और पुत्र से असामयिक बिछड़न की पीड़ा तो अंतहीन दुख के सागर की तरह होता है, जिसमें व्यक्ति जितना भी तैरता रहे तट का कोई ओर छोर ही नहीं दिखता | परिजन से बिछोह की पीड़ा का मरहम अगर कहीं है तो वह साहित्य में है, आध्यात्म में है, भगवान की शरण में पूर्ण समर्पण में है, अपने लोगों के बीच दर्द बांटने में है |
काव्यकृति-अर्पण
श्रीमती माथुर जी अर्पण के माध्यम से अपने मन में उठ रही वैचारिक तरंगों को पृथक-पृथक रूपों में अभिव्यक्त किया है प्रथम खंड पति श्री माथुर जी पुत्र आलोक माथुर एवं प्रिय भाई के प्रति अनुराग को समर्पित है तो द्वितीय खंड परमपिता परमेश्वर को समर्पित है जीवन के स्वर्णिम यात्रा के सुखद क्षणों की सुखानुभूति से परिपूर्ण जीवन में परिजनों से विछोह और उसके साथ गुजरी स्वर्णिम यादें काव्य पंक्तियों में सलीके से सहेजी गई है | धर्म अध्यात्म संस्कृति राजनीति देश प्रेम पर इनकी बेबाक लेखनी का कमाल अर्पण ग्रंथ पढ़कर सहज ही समझा जा सकता है | जीवन चक्र में व्यक्ति किस तरह ठोकरें खाकर परिपक्व होता है यह संज्ञान हमें अर्पण सद्साहित्य के सूक्ष्मपाठन और विवेचन से प्राप्त होता है | एक तरफ इंसान सुख के सागर में हिलोरे लेता है तो वहीं कुछ ही पल में मौत की झंझावात भी झेलनी पड़ती है | श्रीमती शिरोमणि माथुर जीवन की निर्मम झंझावातों से निखरकर परिपक्व साहित्य सृजन से समाज को दिशा देती काव्य सरिता प्रवाहित कर रही है |
जन्म-
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पिता श्री राम दास गुप्ता और मां श्रीमती शांति देवी के पवित्र प्रांगण में ग्राम कादिरगंज जिला एटा उत्तर प्रदेश में 1 जुलाई 1945 को जन्मे शिरोमणि माथुर जी को धर्म राजनीति समाज सेवा और देशभक्ति की उदात्त शिक्षा विरासत में मिली है | पिता भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के शिखर पुरुष रहे तो मां धर्म परायण समाजसेवी आदर्श गृहणी रहीं | हम सभी के जीवन में माता-पिता के जीवन वृत्त का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है | इनकी जिंदगी में भी सहृदय माता-पिता के आदर्श जीवन पथ का प्रभाव स्पष्ट दिखता है | इनके पिता गांधीजी की विचारधारा से प्रेरित थे | जीवन में सादा जीवन उच्च विचार का मंत्र धारण किए विलासिता से कोसों दूर गरीब मजदूर असहाय जनों की सहायता को हमेशा उद्यत रहते | हाथ से बनी मोटी खादी के वस्त्र इन्हें अतिशय प्रिय था ताकि इससे गरीब जुलाहों को रोजगार मिल सके | त्याग की प्रतिमूर्ति इनके पिता का ह्रदय अत्यंत कोमल,वाणी मधुर विचार सदैव सकारात्मक रहता | इन्हे अपने पिता से स्वच्छता समाज सेवा राजनीति एवं श्रमदान की प्रेरणा मिली |
शिक्ष-
शिक्षा प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा ग्राम कादिर गंज में प्राप्त करने के पश्चात उच्च शिक्षा हेतु इन्हें बरेली जाना पड़ा | इनकी मां शांति देवी नाम के अनुरूप शांत सरल शिक्षित जागरूक और बालिका शिक्षा की हिमायती थी | वह चाहती थी कि उनकी यह बच्ची खूब पढ़े लेकिन उस समय आवागमन एवं अन्य संसाधनों के अभाव के कारण आगरा विश्वविद्यालय से स्वाध्याय छात्रा के रूप में कला स्नातक एवं राजनीति विज्ञान में एम. ए. की उपाधि प्राप्त की |
विवाह-
वैवाहिक जीवन 9 मई 1965 को पेशे से इंजीनियर श्री राम माथुर ग्राम राठ जिला हमीरपुर उत्तर प्रदेश से इनकी हिंदू रीति रिवाज के साथ वैवाहिक संस्कार संपन्न हुआ तत्पश्चात लोक निर्माण विभाग में शासकीय सेवा में पदस्थ होने के कारण इन्हें कार्यस्थल के रूप में ग्राम बिटाल के ठेठ छत्तीसगढ़िया परिवेश में 1965 से 1970 तक का पांच महत्वपूर्ण व्यतीत किए |
कर्मस्थली-
उत्तर प्रदेश की संस्कृति का छत्तीसगढ़ ग्रामीण परिवेश में समावेश हुआ जहां किसानों गरीब मजदूरों की पीड़ा से अवगत को मातृ पितृ संस्कार अनुरूप समाज सेवा की ओर उद्यत हुए | समाज के हर तबके में खुशहाली की चाहत लिए 1977 में दल्ली राजहरा में गृह निर्माण कर समाज सेवा के क्षेत्र में कदम रखा,गरीब मजदूरों की बस्ती में निवासरत बच्चों महिलाओं के उत्थान हेतु इनका कार्य याद किये जाते है | महिला मंडल के माध्यम से सिलाई, प्रशिक्षण केंद्र, बालवाड़ी संचालन, घुमंतू बच्चों की पढ़ाई के साथ महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की मुहिम का संचालन में इनका कार्य विशेष उल्लेखनीय है | कालोनी की स्वच्छता,नशामुक्ति एवं मजदूर बस्ती की निरंतर सफाई के साथ जन जागरूकता के क्षेत्र में कार्य याद किए जाते हैं | नशा मुक्त सभ्य समाज निर्माण में जूझकर किये गये इनके कार्य अंचल में चर्चा के केन्द्रबिन्दु रहे | बालिका शिक्षा नारी सशक्तिकरण क्षेत्र में आपने महिला मंडल के माध्यम से विशिष्ट कार्य किया |
राजनीतिक यात्रा-
1978 डौंडी जनपद पंचायत सदस्य निर्वाचित होकर जन सेवा के क्षेत्र में पदार्पण किया | राजनीतिक पार्टी कॉग्रेस से जुड़ कर जन सेवा करते झोपड़पट्टी में रहने वाले गरीब मजदूरों की जीवन शैली देखकर मन करुणा से भर जाता | सुअर और श्रमिकों को एक साथ रहते देख मन द्रवित हो उठता | इनके लिए सड़क पानी विद्युत के लिए लगातार संघर्ष करते सफलता की सीढ़ी पर अग्रसर होते रहे | तत्कालीन केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री अरविंद नेताम एवं तत्कालीन मध्यप्रदेश शासन में मंत्री रहे झुमकलाल भेंड़िया के सहयोग से जनसेवा में सफलता का मार्ग प्रशस्त हुआ | कांग्रेस पार्टी के संगठन एवं विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर दायित्व निर्वहन के साथ छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के साथ कार्य करने का शुभ अवसर मिला | मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष पद पर संगठन की सेवा कर रहे हैं |
साहित्यिक यात्रा-
साहित्य के प्रति रुझान आपकी मां धर्मपरायण प्रबुद्ध शिक्षक की बिटिया थी उन्हें श्री रामचरितमानस कंठस्थ थी | वो रामचरित मानस की बहुत सुंदर व्याख्या करती थी, घर में धार्मिक संस्कार होने के कारण नित्य प्रति रामचरितमानस पाठ का अवसर मिलता था इससे धर्म साहित्य के प्रति बाल्यावस्था में ही मन लगने लगा था | जब कक्षा आठवीं पढ़ रही थी टूटी फूटी शैली में कविता लिख कर मॉ को दिखाती थी, तब वह बहुत अच्छा कह कर आपका उत्साहवर्धन करती रहती थी | इससे कविता लेखन के प्रति आपकी रुचि बढ़ती गयी | शादी के बाद भी खाली समय में साहित्य लेखन अच्छा लगता था | हस्ताक्षर साहित्य समिति दल्ली राजहरा के साथियों के साथ जुड़कर साहित्यिक आत्मबल की प्राप्ति हुई | होनहार ज्येष्ठ सुपुत्र आलोक माथुर के असामयिक निधन से आपका मन वेदना के विशाल सागर में डूबता जा रहा था | घर के प्रत्येक कोनों में सदस्यों के मन में हाहाकार मचा हुआ था | आक्रांत मन के विदीर्ण तट में पुत्र शोक की उदात्त लहरों से जख्मी मन हिचकोलें खा रही थी | तब चित्कार करते जीवन के नितांत सूने पथ में ब्रम्हाकुमारी प्रजापिता और साहित्य रुपी अमृत धारा के पुण्य प्रवाह का सहारा मिला | नित्य एकांत में मन की भावुक लिपिबद्धता से साहित्य प्रसून अर्पण का नवसृजन हो चुका था | अक्षर-अक्षर जुड़कर ब्रह्म वाक्य बन साहित्य वाटिका को काव्यमय सुमन से सुशोभित कर रहे थे और एक समय आया जब जनमानस के बीच में बेहद गमगीन करुणामय वातावरण में इसका विमोचन हुआ | छत्तीसगढ़ अंचल की दिग्गज साहित्यिक हस्तियों की उपस्थिति में शिरोमणी माथुर जी की यह विशिष्ट साहित्यिक कृति अर्पण आम जन के बीच आज भी चर्चा के केन्द्र बिंदु है |
लेखक
-अशोक आकाश
ग्राम कोहंगाटोला
तह जिला बालोद छ ग
9755889199