स्मृतियों में त्रिभुवन पांडेय:
‘तुम कथ्य लिखो मैं कथा लिखूंगा’
-डुमन लाल ध्रुव
स्मृतियों में त्रिभुवन पांडेय
सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार त्रिभुवन पांडे जी अब हमारे बीच नहीं रहे उनकी यादें हमेशा आती रहेंगी। साहित्य जगत में अपूरणीय क्षति हुई है जिनका भरपाई कर पाना संभव नहीं है। त्रिभुवन पांडे जी देश के नामचीनी व्यंग्य लेखकों में से एक हैं। उनका जन्म 21 नवम्बर 1938 को सोरिद नगर धमतरी में हुआ। 1972 में भगवान विष्णु की भारत यात्रा (व्यंग्य उपन्यास ) देश भर में चर्चित हुई और पांडे जी साहित्य जगत मेें स्थापित हो गये। बाबू छोटे लाल श्रीवास्तव महाविद्यालय में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे। पम्पापुर की कथा (व्यंग्य संग्रह), झूठ जैसा सच (लघु उपन्यास), पंछी मत हंसो (हास्य व्यंग्य एकांकी संग्रह), सुनो सूत्रधार (गीत संग्रह), महाकवि तुलसी (जीवनी), ब्यूटी पार्लर में भालू (व्यंग्य संग्रह), कागज की नांव (गीत संग्रह), गाओ वन पांखी(गीत संग्रह), व्यंग्य, नाटक, कविता, समीक्षा, रिपोतार्ज प्रकाशित, ‘‘मोर्चा फीचर’’, में सप्ताहिक व्यंग्य प्रकाशन, महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा द्वारा प्रकाशित ’’भारत की जनपदीय कविता के छत्तीसगढ़ खंड का संपादन’’ अब तक की प्रकाशित कृतियां हैं।
त्रिभुवन पांडे जी लगभग सभी विधाओं पर लेखन कार्य किये हैं। मित्रों की प्रकाशित कृतियों पर सर्वाधिक समीक्षा और भूमिका लिखे हैं। उनके साहित्यिक अवदानों को रेखांकित करते हुए छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य सम्मेलन रायपुर, स्मृति नारायण लाल परमार सम्मान साहित्य संगीत संस्कृतिक मंच मुजगहन, साहित्य भूषण अलंकरण निराला साहित्य मंडल चांपा (जांजगीर), गीत साधन सम्मान जिला हिन्दी साहित्य समिति दुर्ग एवं विभिन्न संस्थानों द्वारा सम्मानित हुए हैं।
आ गये शब्दों पर पहरे के दिन उनके ही नारे हों उनका ही ध्वज उनका इतिहास हो उनका पूर्वज उनकी ही आस्था पर ठहरे से दिन
त्रिभुवन पांडे द्वारा रचित गीत संग्रह ’’कागज की नाव’’ मेरी सझम में जो कुल एक सौ चैदह पृष्ठों में केन्द्रित है। त्रिभुवन पांडे जी, के गीतोें में जब कागज की नाव तैरने लगते हैं तब ऐसा लगता है कि गीत अपनी पहचान की जीवंतता की वकालत करते हैं और यह सत्य है कि गीत कभी नष्ट हुआ है और न उसके अस्तित्व पर कोई आंच आई। जब जीवन को वैराग्य और दक्षता से मुक्ति का कोई साधन उपलब्ध नहीं होता तो गीत ही इस दुश्तर काम को करते हैं। इसलिए गीत को हृदय में बसाये रखने वाले लोग इसे एक शाश्वत विधा के रूप में ग्रहण करते हैं। गुनगुनाहट का एक धर्म मनुष्य के साथ उनके जन्म के क्षणों से ही जुड़ा हुआ है।
गीत संगीत का रिश्ता सदियों पुराना है। अगर हम समीक्षा के द्वार पर दस्तक दे तो ज्ञात होता है कि गीत की रचना एक महत्वपूर्ण प्रयोजन से होती है। शायद इसीलिए वरिष्ठ गीतकार डाॅ. जीवन यदु खैरागढ़ से पूरे छत्तीसगढ़ की जमीन में गीत का विरवां सींचते-सींचते उसे वट वृक्ष जैसे बना चुके हैं। और स्वंय त्रिभुवन पांडे जी के गीत संग्रह के संदर्भ में लिखते हैं कि गीत मनुष्य जीवन की अनिवार्यता है। कोई उसके माधुर्य को गुनगुनाता है, तो कोई उसके रागात्मक भाव संसार में स्वयं की स्थितियों परिस्थितियों को पाता है। आप ऐसे आदमी की कल्पना नहीं कर सकते, जिसकी आत्मा को गीत की किसी पंक्ति ने स्पर्श ही न किया हो। त्रिभुवन पांडे के गीतों में अनुभूति और अनुभव का अनूठा सामंजस्य विद्यमान है और यह सामंजस्य ही पाठकों को गहराई तक डुबोता है। जैसे-स्वप्न देखकर कभी किसी की। आंखें नहीं थकी अनुभव अर्जित करने भर से। यात्रा नहीं रूकी।
बहरहाल, त्रिभुवन पांडे जी का समग्र साहित्यिक अवदान उनको एक प्रतिष्ठित मुकाम तक ले आया है। उनके गीतों में समय और मानवीय संवेदनाएं एक साथ चलती है। उनके गीतों में जो वैशिष्टय है उसकी बानगी वह स्वयं देते हैं किंतु अहम् से अलग रहकर –
तुम पत्र लिखो मैं पता लिखूंगा लिखना सच-सच आसपास की जैसी भी हो राम कहानी मुस्कानों का विवरण लिखना कितना है आंखों में पानी तुम कथ्य लिखो मैं कथा लिखूंगा।
त्रिभुवन पाण्डेय-एक परिचय
जन्म | 21 नवम्बर 1938 |
जन्म-स्थान | धमतरी |
पता | सोरिदनगर धमतरी, छत्तीसगढ़ 493773 |
कृतियां | 1.भगवान बिष्णु की भारत यात्रा (व्यंग्य उपन्यास) 2. पम्पापुर की कथा (व्यंग्य संग्रह) 3. झूठ जैसा (लघु उपन्यास) 4. पँछी मत हँसो (लघु उपन्यास) 5. सुनो सूूूूूूत्रधार (गीत संग्रह) 6. महाकवि तुलसी (जीवनी) 7. ब्यूटी पार्लर में भालू (व्यंग्य संग्रह) 8. कागज की नाव (गीत संग्रह) 9. गाओ वन पॉंखी (गीत संग्रह) 10. ”मोर्चा फिचर’ में सप्ताहिक व्यंग्य प्रकाशन 11.’भारत की जनपदीय कविता’ के छत्तीसगढ़ी खण्ड का संपादन |
सम्मान | छत्तीसगढ़ी हिन्दी साहित्य सम्मेलन 1988 2.’स्मृति नारायण लाल सम्मान’2005 3.साहित्य संगीत सांस्कृतिक मंच मुग्जहन साहित्य भूषण अलंकरण निराला साहित्य मंडल चांपा 2009 गीत साधक सम्मान , जिला हिन्दी साहित्य समीति दुर्ग |
06 मार्च 2021 ब्रम्हलीन त्रिभुवन पांडे जी की पावन स्मृति को श्रद्धा सुमन के साथ सादर नमन।
त्रिभुवन पाण्ड़े की चार कविताऍं
-डुमन लाल ध्रुव प्रचार-प्रसार अधिकारी जिला पंचायत-धमतरी मो. नं. 9424210208