“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमंते तत्र देवता”, अर्थात जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का वास होता है। यह मनुस्मृति का वह शाश्वत सत्य है जो भारतीय संस्कृति में नारी के महत्व को स्पष्ट करता है। सनातन परंपरा में नारी न केवल सम्माननीय है, बल्कि वह शक्ति, ज्ञान और समृद्धि का भी प्रतीक है। चाहे देवी सरस्वती हों, लक्ष्मी हों, या पार्वती—समस्त त्रिदेव भी उनकी वंदना करते हैं।
नारी को प्रथम स्थान: हमारी परंपरा का गौरव
हमारे देवी-देवताओं के नाम लें तो अधिकांश में पहले नारी का ही उल्लेख होता है—लक्ष्मी-नारायण, वाणी-विनायक, राधा-कृष्ण, सीता-राम। यह केवल उच्चारण की परंपरा नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि सनातन संस्कृति में नारी को प्राथमिकता दी जाती है।
वसंत पंचमी पर पूरे भारत में देवी सरस्वती की पूजा होती है, जो ज्ञान और विद्या की देवी हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसे देवता भी उनकी वंदना करते हैं। यह स्पष्ट करता है कि ज्ञान की अधिष्ठात्री नारी ही है। यही कारण है कि सनातन में नारी को शक्ति और श्रद्धा के रूप में देखा जाता है, न कि केवल सौंदर्य के प्रतीक के रूप में।
पश्चिमी दृष्टिकोण और नारी का चित्रण
यदि हम पश्चिमी साहित्य पर दृष्टि डालें तो वहाँ नारी को भिन्न रूप में दर्शाया गया है। वहाँ अक्सर उसे पुरुष प्रधान समाज में सौंदर्य और आकर्षण का केंद्र माना गया, जबकि भारतीय परंपरा में नारी को सम्मान, शक्ति और चेतना का स्रोत माना गया है।
- बाइबिल में एडम और ईव की कथा में स्त्री को कमजोरी का कारण बताया गया है। ईव की सुंदरता के कारण एडम ने परमेश्वर की अवज्ञा की, और इस तरह संपूर्ण मानव जाति दंड की भागी बनी।
- शेक्सपीयर के नाटक Antony and Cleopatra में क्लियोपैट्रा की वासनामयी सुंदरता को प्रधानता दी गई, जिसके कारण कई पुरुषों का पतन हुआ। यहाँ नारी को केवल आकर्षण का केंद्र दिखाया गया।
- कालिदास की मालविकाग्निमित्र में भी नारी सौंदर्य का वर्णन मिलता है, परंतु यहाँ उसकी निश्छलता और प्रेम की प्रधानता होती है, न कि वासनात्मक आकर्षण की।
नारी शक्ति का संदेश
जहाँ पुरुष ने नारी को भोग की वस्तु समझा, वहाँ विनाश हुआ। वहीं जहाँ नारी को सम्मान और शक्ति के रूप में देखा गया, वहाँ संस्कृति विकसित हुई। सनातन धर्म में स्त्री जननी, शिक्षिका, देवी और शक्ति के रूप में पूजनीय है। यही कारण है कि आज भी भारतीय संस्कृति में नारी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।
जय सनातन! 🙏
– प्रोफेसर अर्जुन दूबे, सेवा निवृत्त