वेलेंटाइन डे पर विशेष आलेख-प्‍यार और संबंध में पहले कौन ?

वेलेंटाइन डे-प्‍यार और संबंध में पहले कौन ?

वेलेंटाइन डे पर विशेष आलेख

-रमेश चौहान

वेलेंटाइन डे पर विशेष आलेख-प्‍यार और संबंध में पहले कौन ?
वेलेंटाइन डे पर विशेष आलेख-प्‍यार और संबंध में पहले कौन ?

वेलेंटाइन डे पर विशेष आलेख

प्‍यार और संबंध में पहले कौन ? वेलेंटाइन डे मनाने का प्रचलन भारत में 21 वीं सदी के प्रारंभ हुआ किन्‍तु 5 वर्षो में यह युवक-युवतियों के लिये विशेष दिवस के रूप में पसंद किया जाने लगा । विशेषकर किशोर-किशोरियॉं इस दिन के ललायित दिखते हैं । समाज का एक बड़ा तबका इस दिवस को नकारते हैं । इस दिवस को प्रेम दिवस के रूप मनाया जाता है । इस दिवस को विशेषकर किशोर-किशोरियां, युवक-युवतियां मनाते हैं, इससे एक अहम प्रश्‍न खड़ा होता क्‍या प्रौढ़ या परिपक्‍व व्‍यक्ति प्‍यार नहीं करते ? क्‍या केवल किशोर-किशोरी, युवक-युवती ही प्रेम करते हैं ? इसी विषय पर चिंतन करते हैं ।

प्‍यार क्‍या है ?

यथार्थ में प्‍यार एक सात्विक, नि:स्‍वार्थ और समर्पण की भावना है, जो किसी भी से हो सकता है । इसमें लिंग भेद एवं जाति भेद का स्‍थान बिल्‍कुल नहीं होता ।

प्‍यार का वैवहारिक स्‍वरूप-

आज जिसे प्‍यार कहा जा रहा है उसमें 99 प्रतिशत विपरित लिंगों की प्रति आकर्षण मात्र है । इसी आकर्षण को फिल्‍म इंडस्ट्रिज, सोशल आदि मीडिया महिमा मंडित करते आ रहे हैं । इस प्‍यार को विपरित लिंगों की प्रति आकर्षण मात्र कहने के पीछे एक ठोस तर्क है कि यह प्‍यार केवल किशोरावस्‍था अथवा युवास्‍था में ही होता है । आपस में प्रेम कर रहे प्रेमी युगल युवास्‍थ निकल जाने पर उसी प्रेम का प्रदर्शन नहीं कर पाते ।

विभिन्‍न संबंधों में प्‍यार-

प्‍यार केवल विपरित लिंगों के प्रति नहीं होता अपितु समाज के परिवार के विभिन्‍न संबंधों के मध्‍य होता और प्रगाढ़ होता है । पति-पत्‍नी के आपसी प्रेम से कहीं अधिक अपने बच्‍चों के प्रति प्रेम देखा जाता है । मॉं का प्‍यार ममता के रूप में पूज्‍य है, एक बाप का पुत्र के प्रति प्रेम पुत्र मोह के रूप में जग विख्‍यात है ।

प्‍यार और संबंध में पहले कौन ?

लाख टके का प्रश्न है कि प्‍यार और संबंध में पहले कौन ? संबंध पहले जन्म लिया या प्यार ? इसे एक दूसरे प्रश्‍न के माध्‍यम से समझने का प्रयास करते हैं । नवजात शिशु को कोई प्यार करता है इसलिये उसे पुत्र-पुत्री के रूप में स्वीकार करता है अथवा पुत्र-पुत्री मान कर उससे प्यार करता है ? मतलब कोई मॉं-बाप नवजात बच्‍चे के जन्‍म लेने पर यह सोचता है कि पहले मैं इससे प्‍यार करूँ फिर इससे अपनी संतान के रूप में संबंध स्‍थापित करूँ ? या मॉं-बाप अपने कोख से जन्‍म लिये बच्‍चे को पहले अपनी संतान के रूप में स्‍वीकार करते हैं फिर उससे प्‍यार करते हैं ?

यदि पहले तर्क ‘कोई मॉं-बाप नवजात बच्‍चे के जन्‍म लेने पर यह सोचता है कि पहले मैं इससे प्‍यार करूँ फिर इससे अपनी संतान के रूप में संबंध स्‍थापित करूँ।’ को सही माना जाये तो कोई भी व्यक्ति  किसी भी बच्चे को प्यार कर अपने संतान के रूप में स्वीकार कर सकता है अथवा स्वयं के संतान उत्पन्न होने पर कुछ दिन सोचेंगे कि इससे प्यार करे या ना करे कुछ दिनों पश्चात उस नवजात से प्रेम नही हो पाया तो उसे अपना संतान मानने से इंकार कर देंगे ।

दूसरे तर्क ‘मॉं-बाप अपने कोख से जन्‍म लिये बच्‍चे को पहले अपनी संतान के रूप में स्‍वीकार करते हैं फिर उससे प्‍यार करते हैं ।’ को सही माना जाये तो संतान उत्पन्न होने पर मेरा संतान है यह संबंध स्थापित कर उससे प्रेम स्वमेव हो जाता है इसी प्रकार किसी भी व्यक्ति से संबंध स्थापित करने के पश्‍चात उससे प्रेम कर सकते हैं ।

प्यार किया नहीं जाता प्यार हो जाता है-

‘प्यार किया नही जाता प्यार हो जाता है’ इस फिल्‍मी पंक्ति भला कौन परिचित नहीं है ? इस पंक्ति को यदा कदा हर  युवक कभी न कभी उपयोग किया ही होगा किन्तु इस पर गंभीर चिंतन शायद ही कोई किया हो । पहले भाग ‘प्यार किया नही जाता‘ का अभिप्राय अनायास ही बिना उद्यम के प्यार हो जाता है । अब यदि ‘प्यार‘ के उद्गम पर चिंतन किया जाये तो स्वभाविक प्रश्‍न उठता है सर्वप्रथम आपको प्यार का एहसास कब और क्यों हुआ ?  जवाब आप कुछ भी सोच सकते है किन्तु सत्य यह है कि आपको सबसे पहले प्यार अपने मां से हुआ जब आपकी क्षुधा शांत हुई । क्षुधा प्रदर्शित करने के लिये आपको रोने का उद्यम करना पड़ा ।

दूसरे भाग ‘प्यार हो जाता है‘ का अभिप्राय मन में अपनापन मान लेने से उनके प्रति एक मोह जागृत होता है, इसे कहते है ‘प्यार हो जाता है‘ । जैसे माता-पिता अपने शिशु को जब अपना संतान मान लेते हैं तो उनके प्रति अगाध प्रेम उत्पन्न हो जाता है । किन्तु यदि किसी कारण वश यदि किसी पिता को यह ज्ञात ना हो कि वह शिशु उसी का संतान है तो उसे कदाचित वह प्यार उस शिशु से ना हो । जब कोई्र व्यक्ति किसी वस्तु अथवा किसी व्यक्ति को अपना मान लेता है तो वह उसके प्रति आशक्‍त हो जाता है यही आशि‍क्ति वह प्यार है । आशि‍क्ति, मोह व प्यार में कुछ अंतर होते हुये भी ये तीनो अंतर्निहित हैं ।

प्यार अपनेपन के भाव में अवलंबित है-

प्यार अपनेपन के भाव में अवलंबित है, अपनापन कब होता है ?  जब हम किसी सजीव-निर्जिव, वस्तु-व्यक्ति के सतत संपर्क में रहते है तो धीरे-धीरे उसके प्रति आकर्षण उसी प्रकार उत्पन्न होता है, जैसे चुंबक के संपर्क में रहने पर लौह पदार्थ में चुम्कत्व उत्पन्न हो जाता है। इसी का परिणाम है कि हम अपने परिवार, अपने घर अपनी वस्तु अपने पालतू जानवर, अपने पड़ोसी, अपने गांव, अपने देश से प्यार करने लगते हैं । प्यार का पैरामीटर अपनापन है । प्यार उसी से होता है जिसके प्रति अपनापन होता है । अपनापन का विकास जिस क्रम होता है उसी क्रम में प्रेम उत्पन्न हो जाता है । अपनेपन में ‘प्यार किया नही जाता प्यार हो जाता है ।’

-रमेश चौहान

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