कवि सुनिल शर्मा “नील “के 11 मुक्तक
सुनिल शर्मा ”नील” ओज के एक ख्यातीनाम कवि हैं, जो ओज के लिये छत्तीसगढ़ के बाहर भी अपना परिचय बनाने में सफल रहे हैं । कविसम्मेलनों के माध्यम से आप ने देश के कई भागों में अपनी प्रस्तुतु दी है । प्रस्तुत है सुनिल शर्मा “नील “के 11 मुक्तक-
1. मानव-
तनिक सम्मान पाकर क्यों यहाँ है फूलता मानव |
नही कुछ भी मगर अभिमान में क्यों झूलतामानव |
नही रुकना किसी को एक दिन जाना सभी कोहै ,
अमर कोई नही इस बात को क्यों भूलता मानव |
2.बिटिया की बिदाई-
बड़ा ही है कठिन अपना कलेजा हाथ पर धरना |
बड़ा ही है कठिन जीते हुए भी दर्द से मरना |
जिसे बेटी नही पीड़ा पिता की वह न समझेगा,
बड़ा ही है कठिन बिटिया दुलारी को विदा करना ||
3.तौल कर बोलें-
कभी प्रेमी जनों के मध्य में बिष घोलना मत तुम |
बिना समझे किसी को राज अपने खोलना मत तुम |
इसी से शांति होती है इसी से युद्ध होता है,
बिना तोलें कभी भी शब्द अपनें बोलना मत तुम ||
4.देशद्रोहियों को पहचानों-
कृषक बंधुओं तुमको हक है शासन से सब मांग कहो |
अन्न उगाने वाले हो तुम अन्यायों को नही सहो |
तुम पावन हो गंगा जैसे नालो के संग नही बहो ,
देशद्रोहियों को पहचानों संग में उनके नही रहो ||
5.देशद्रोह स्वीकार नहीं-
रखो माँग शांति से अपनी करते हम इनकार नहीं |
कोई नही ऐसा जिनको कि आप सभी से प्यार नहीं |
पर खालिस्तानी नारे जब धरनाओं में गूँजेंगे ,
ऐसे देशद्रोह के नारे हरगिज हमको स्वीकार नहीं ||
6.पीर तो मत दो-
कलम जो हाथ ना पकड़ा सको शमशीर तो मत दो |
हँसा सकते नही हमको अगर तुम नीर तो मत दो |
नही करना किसानों की मदद तो गालियाँ ना दो,
दवा जब दे नहीं सकते हमें तुम पीर तो मत दो ||
7.बनकर दीया जलते ही रहना तुम-
बिछें हो शूल लाखों पथ में पर चलते ही रहना तुम |
ढलें सूरज मगर उसकी तरह हरगिज न ढलना तुम |
तेरे लड़ते ही रहने से तेरी पहचान है प्यारें,
सदा तूफान में बनकर दीया जलते ही रहना तुम||
8.खून से जो खेलकर होली-
लगाया भारती के भाल पर है रक्त की रोली|
रखा सीमा सुरक्षित वक्ष पर खाता रहा गोली |
जलाना एक दीपक नाम से ना भूलना उसके,
हमें दे दी दिवाली खून से जो खेलकर होली||
9.माँ पिता के पाँव-
दुःखों की ताप मिट जाए सदा वह छाँव देतें है !
मिटा अपनी दुवाओं से मेरे सब घाव देतें है !
कभी तीरथ गया और न कभी गंगा नहाया है,
मुझे सब धाम के फल माँ पिता के पाँव देतें है!!
10.अकड़ वाले तरु तूफान के आगे न टिकते है-
बिना मूरत बनें पत्थर नही कीमत में बिकते है !
सदा झुकतें है जो सम्मान में इतिहास लिखतें है!
नवाकर तृण सदा सिर को बचें रहतें है विप्लव में,
अकड़ वाले तरु तूफान के आगे न टिकते है !!
11.वतन पहचान है मेरा-
नही सजनी व साजन के कभी मैं गीत लिखता हूँ|
नही लैला व मजनू के कभी मैं प्रीत लिखता हूँ|
वतन ही आन है मेरा ,वतन पहचान है मेरा,
वतन को मैं सदा अपने हृदय का मीत लिखता हूँ||
-कवि सुनिल शर्मा ‘नील’
आपके सभी मुक्तक बेहद शानदार शिक्षा प्रद व अदभुत पंक्तियाँ आदरणीय,,,,बहुत बहुत बधाइयां आपको।