सुनिल शर्मा “नील” के 51 मनहरण घनाक्षरी

सुनिल शर्मा “नील” के 51 मनहरण घनाक्षरी

सुनिल शर्मा “नील”

सुनिल शर्मा "नील"के 51 मनहरण घनाक्षरी
सुनिल शर्मा “नील”के 51 मनहरण घनाक्षरी

(1)

अनीति अधर्म अनाचार के संहार हेतु
हर युग में हुँकार भरतें है राम जी |

आतताइयों को दहलातें है धनुष ले के
विप्र -धेनु -संत पीर हरतें है राम जी |

शोषितों व वंचितों को कंठ से लगाते प्रभो
भक्तों का बेड़ापार करते है राम जी |

धर्म की कराने जय, मेटने संताप भय
नाना रूप धरती पे धरतें है राम जी ||

(2)

देश है विशेष स्नेह इससे करे अशेष
वन्दे मातरम वाली,गीति होनी चाहिए |

माता भारती के स्नेह से करे गद्दारी कोई
उनसे न कोई कभी प्रीति होनी चाहिए |

आसुरी प्रवृत्तियों की वृत्तियों के नाश हेतु |
गांधी नही भगत की नीति होनी चाहिए |

कोई गाल झापड़ जो मारे तो उखाड़ो हाथ
शठे शाठयम वाली रीति होनी चाहिए ||

(3)

सहते रहें है छल,जाफर व कासिमो के
सदियों से भारत की ,है यही व्यथा रही |

प्रेम और मान दे दुलारतें रहें हैं जिन्हें
उनकी सदैव डसने की ही प्रथा रही |

भाई कह हृदय लगाके छुरी खाते रहें
भाईचारे वाली बात उनकी वृथा रही |

कमलेश रणजीत,गगन,अंकित,रिंकू
निर्दोषों के हत्याओं की सैकड़ों कथा रही ||

(4)

अपने ही भाइयों का ,रक्त जो बहा रहें थे
कैसे उन मूरखों, इनसान कह दूँ |

स्वयं के ही देश को जो,फूँकने को आतुर हो
कैसे ऐसे रावणों को ,हनुमान कह दूँ |

हल वाले हाथों से जो, लहराए तलवार
कैसे उन्हें धरती का ,भगवान कह दूँ |

निज स्वार्थ हेतु करें,तिरंगे का अपमान
कैसे ऐसे गद्दारों को,मैं किसान कह दूँ ||

(5)

मूली-कदली के जैसे हाल करूँ सृष्टि का
पर्वतों में गुरु ये सुमेरु फोड़ डालूँ मैं |

सूर्य और चन्द्र तारे जिनके अधीन सारे
करें वे इशारे तो इन्हें निचोड़ डालूँ मैं|

मही कह वीरहीन,कहिये न शौर्यहीन
राम जी आदेश दें पवन मोड़ डालूँ मैं

छत्रक के दंड जैसे,करूँ मैं कोदण्ड खंड
कच्चे घट जैसा ये,ब्रम्हांड तोड़ डालूं मैं |

(6)

जिन विपदाओं से पुरुष भी है हार जातें
उन कठिनाइयों का हल होती नारियाँ!

नारियाँ दया व प्रेम,ममता की होती खान
सृष्टि का आज और कल होती नारियाँ!

नारियाँ ही जन्म देती भगत-शेखर-शिवा
राष्ट्रों का सदा आत्मबल होती नारियाँ!

जिस घर भी ये जन्म लेती वो पवित्र होता
तार देने वाली गंगाजल होती नारियाँ!!

(7)

करना प्रसन्न आप चाहतें है राम जी को
मातपिता के चरण धाम मान लीजिए!

चाहतें पहुंचना जो बैकुंठ के द्वार तक
भक्ति और प्रेमवाला ,आप यान लीजिए!

जानने से पहले चरित्र राम जी का मित्र
बजरंगबली का चरित्र जान लीजिए!

राम जी मिलेंगे तुम्हे इतना सुनिश्चित है
पहले हनुमान जैसा होना ठान लीजिए!!

(8)

एक मामलें में मौन,दूसरे में बोलतें है
रोतें है वहाँ पे जहाँ दिखे इन्हें वोंट है!

दर्द हाथरस वाला दिखता इन्हें परंतु
करौली के न दिख रहें कोई इन्हें चोंट है!

दोहरेपन वाली जाने कैसी ये सियासत है
जिसमें स्वार्थ का ये कर रहें विस्फोट है!

आप न बताये पर देश ये समझता है
आपके चरित्र में नेताजी बड़ा खोट है!!

(9)

कौन लिखेगा शहीद,परिवार की कथाएँ
कौन विधवा की व्यथा,आंसुओं को गाएगा

सूने कोख क्रंदन को,बहना के बन्धन को
नौनिहालों के निर्दोष नैंन लिख पाएगा!

दोस्तों की याद वृद्ध पिता की फरियाद बोलो
कौन इस तमस को सूर्य बन खाएगा!

कवि तुम कर्ज भूल लिखने लगे सौंदर्य
कौन फिर फर्ज देशभक्त का निभाएगा !!

(10)

लाल-लाल कर आंखें,कहा हनुमान जी ने
आज इस जलधि को,पल में सूखा दूं मैं |

पीकर समूचा जल,पथ को बना दूं और
सेना को श्रीराम जी के,पार पहुंचा दूं मैं |

सेना भी जरूरी नही,राम जी करें आदेश
स्वयं के ही दम पर,लंका को उड़ा दूं मैं |

किंतु मेरे राम जी का,रोक देता प्रण मुझे
नही तो रावण मार,सीता माँ को ला दूं मैं ||

(11)

बेड़ियाँ को दासता की,भारती की देख-देख
रातों को न कई बार,सोतें थे भगतसिंह

देख के फिरंगियों के,आतताई कदमों को
ज्वालामुखी जैसे तप्त,होते थे भगतसिंह

प्रेयसी के लिए नही,सदा मातृभूमि हेतु
मन ही मन अक्सर,रोतें थे भगत सिंह

भाया नही खेल कोई,बचपन में भी उन्हें
खेतों में बंदूक -गोलें,बोंतें थे भगतसिंह!!

(12)

समय विकट आया बादल दुःखों का छाया
चहुँओर दिख रहे, मौत के निशान है |

मौत के निशान है जी, पथ हुए सुनसान
कोरोना के चोंट से हुए लहूलुहान है |

हुए लहूलुहान है, दिखे न कोई उपाय
इस महामारी का न कोई समाधान है |

कोई समाधान है जी मानव ने मानी हार
अब एकमात्र आस आप भगवान है ||

(13)

राम जी के होने का जो मांग रहे थे प्रमाण
सारे पापी आँखें फाड़-फाड़कर देख लें !

जिनके दिमाग में थी वर्षों से धूल जमी
गर्द सारे अपनें वे झाड़कर देख लें !

मंदिर के अवशेष कह रहे चीख-चीख
शंकाओं को सत्य से पछाड़कर देख लें!

कण कण में रमें है अवध में राम मेरे
पत्थरों को चाहे तो उखाड़कर देख लें !!

(14)

कुसुमो के संग संग,”काँटें”जो उगे है उन्हें
माली बन शीघ्र अब,छांटना जरूरी है !

स्वार्थवश देश को जो,बाँट रहे टुकड़ों में
टुकड़ों में उनको भी,बांटना जरूरी है !

प्यार गर बांटे तुम्हे,दुगुना लौटाना उन्हें
भटके जो से तो,डाँटना जरूरी है,

पर कोई भाई कह छुरा,घोपें पीठ में तो
ऐसे भाइयों के सर,काटना जरूरी है !!

(15)

पांडव ही साथ दे अधर्म का तो फिर कहो
धर्म हेतु शस्त्र यहाँ कौन जी उठाएगा!

युवा पीढ़ी मानेगी जो हनीसिंह को आदर्श
कौन फिर रंग दे बसंती दोहराएगा!

जाफर व जयचंद,वाले काम भाएँगे तो
शिवा बन दुश्मन को,कौन दहलायेगा!

सुरा सुंदरी व्यसन मैं भी लिखने लगा तो
सीमा के बेटों का शौर्य कौन यहाँ गायेगा!

(16)

खण्ड-खण्ड हो गए जो,भारती के रक्षाहेतु
भूलके भी उनकी निशानी नही भूलना

जिन परिवारों के बुझे चिराग राष्ट्र हेतु
कभी उन नयनों के पानी मत भूलना !

प्रेयसी के केश नही,देश हेतु जिए सदा
ऐसे रणवीरों की जवानी नही भूलना!

सबकुछ भूलजाना तुम मेरे मित्र पर
कभी पुलवामा की कहानी नही भूलना!!

(17)

माटी ही है कर्म मेरा,माटी ही है धर्म मेरा
माटी का ही गुणगान,हरक्षण गाऊँगा |

माटी आन बान शान,माटी मेरी पहचान
माटी मेरा स्वाभिमान,सबको बताऊंगा |

भगत शेखर शिवा ,बोस ,राणा, हमीद सा
मान इसे चंदन मैं,माथ पे लगाऊंगा |

इसके रक्षार्थ गर ,शीश भी कटाना पड़े
हँसते हुए मैं शीश,माटी को चढ़ाऊँगा ||

(18)

देशधर्म रक्षण में काम आए जो सदा ही
अक्षय-अटूट उन ढालों को नमन है |

दासता की बेड़ियां गलाने वाले पावक के
प्रखर-पवित्र महाज्वालों को नमन है |

भारत का मान विश्वभर में बढाने वाले
राष्ट्रवाद के प्रणेता भालों को नमन है |

जन्म दे जिन्हें स्वयं मातृभूमि धन्य हुई
ऐसे माता भारती के लालों को नमन है ||

(19)

पाक की पकड़ में बिताए दो दिवस किंतु
अधरों में रहा वंदेमातरम गान है |

हुई लथपथ काया राज न बताया पर
सारे भारतीयों का बना तू अभिमान है |

घने अंधियारों बीच तनिक न मंद हुई
ऐसा अभिनंदन प्रखर दिनमान है |

शत्रुमद चूर कर आया तो लगा कि जैसे
लंका को जलाकर आया वीर हनुमान है ||

(20)

भारती के वीरपुत्र,रण में बहाते लहू
भारती के दूध को,लजाया नही करते |

रणभू में बोलती है,शौर्य उनकी सदा ही
शत्रुओं को पीठ वे,दिखाया नही करतें |

जीतता पराक्रम या,वरते है काल को वे
भीरुता को भाल पे,सजाया नही करतें |

रोटियां भले ही खा लें,राणा घास के परन्तु
शत्रु के समक्ष सिर,झुकाया नही करतें ||

(21)

दिल्ली को डराने वाले,श्वानों को पकड़कर
शीघ्र इन पागलों को,उपचार दीजिए |

चढ़ा हुआ जिन्हें ज्वर,उपद्रव करने का
उनके सिरों से ये ज्वर उतार दीजिए |

सड़कों पे भीड़ से जो,दंगे करवा रहे है
ऐसे राजनेता को,जूते हजार दीजिए |

जामिया या हो बंगाल,जहाँ भी देशद्रोही दिखे
उनको पकड़ सीधे,गोली मार दीजिए ||

(22)

सीता मैया के सतित्व,हनुमान के कृतित्व
भरतभैया के दृढ़,प्रण को प्रणाम है |

राम जी के प्रियवर,वीरों में जो है प्रखर
शेषनाग रूप लक्षमण को प्रणाम है |

भाइयों में है कनिष्ठ,वीर व कर्तव्यनिष्ठ
धीर व गम्भीर शत्रुहन को प्रणाम है |

जिनके नाम लेखन से,पत्थर भी तैरते है
ऐसे श्रीराम जी के,चरन को प्रणाम है ||

(23)

अंधकार में न कहीं,गुम जाए तेरा पुत्र
उंगली पकड़के माँ,मुझको उबार दे |

जात-पात,ऊंच-नीच,के गिरा दीवार सारे
बैर भाव को मिटाके,दिलों में तू प्यार दे |

बनके कटार करे,देशद्रोही का सँहार
शब्द-शब्द में तू माँ प्रखर ऐसी धार दे |

सत्य को सदा ही लिखे,स्वार्थ में कभी न बिके
देशहित में तू मेरी लेखनी को वार दे ||

(24)

सीमाओं के शेर हम एक बार प्रण लेते
साँस थम जाने तक प्रण नही तोड़ते |

महाकाल के है भक्त काल से न घबराते
काल से भी लड़ जाते मुख नही मोड़ते |

परिवार से भी बड़ा फर्ज है हमारे लिए
स्वार्थ के कभी भी कोई रिश्तें नही जोड़तें |

प्राण छूंट जाए भले शत्रुओं से जूझने में
पर भूलकर ये तिरंगा नही छोड़ते ||

(25)

मात और पिता के महान भक्त कहलाये
नारी शिक्षा हेतु सदा,काम करते रहे |

ज्ञान व विनम्रता के ,आप बने पर्याय
ब्राम्हणों का हित आठो,याम करते रहें |

शास्त्र संग शस्त्र का था, मूलमंत्र दिया और
भारती को सदा ही ललाम करते रहें |

जब जब बढ़ा धरनी पे पाप पापियों का
वध पापियों का परशुराम करते रहे ||

(26)

धरम सनातन की,इस गंगधार में जो
नालियों का अपवित्र,नीर घोलते है जी |

भगवा बाना पहन,और कंठहार धर
खुद को यहाँ जो बाबा,पीर बोलते है जी |

दास-दास बोलते जो,स्वयं भगवान बन
“काम”के अधीन हो,अधीर डोलते है जी |

ऐसे दुःशासनों के मुंड,काटके संहार करो
आस्था के नाम पर जो,चीर खोलते है जी ||

(27)

मारते रहोगे गर गरभ में बेटियों को
नवरात में कन्याएँ, किनको जिमाओगे |

सुना होगा आँगन व सुनी होगी दुनिया भी
राखियों में राखी भला,किससे बंधाओगे |

झोंकते रहोगे बहु,आग मे दहेज के तो
वंश भला अपना जी,कैसे तुम बढ़ाओगे |

बेटियाँ न होगी गर,माँ कहाँ पाओगे बोलो
किसके गोदी में सोके,दुःख को भुलाओगे ||

(28)

बंद हुए दरवाजे ,वार्ता के सारे अब
पाक की जमीन पर भूचाल देखो आया है |

आँसू पे हमारे ताली,देते थे जो कल तक
उनके “रुदन” का ये, वक्त खास आया है |

फौज बना महाकाल,निकला संहार हेतु
तांडव ने आतंकियों,का दिल दहलाया है |

बिल मे छुपा हफीज,शरीफ भी चूहा बना
मोदी जी ने छाती 56 इंच का दिखाया है ||

(29)

हर आंख में है खून,हर गली लाल यहाँ
देश आज मेरा ये बेहाल नजर आता है |

स्वार्थ की पूर्ति को,हर सीमा लांघ रहा
संस्कारो से हर कोई कंगाल नजर आता है|

झूठ का है बोलबाला,सच का है मुँह काला
न्याय का यहाँ पे तो,अकाल नजर आता है|

नरक के शैतान भी दंग देख आदमी को
मुझसे भी बड़ा ये वेताल नजर आता है||

(30)

साधारण या विशेष,भाजपा या कांग्रेस
लग रहा देश का सम्पूर्ण क्लेश खो गया |

पिछले बरस अनुच्छेद टूटा आज ही था
आज का दिवस फिर से विशेष हो गया |

रामलला वनवास काटकर लौट रहे
हर्षित पुलकित परिवेश हो गया |

भगवा के रंग में रंगा है जमीं आसमान
राम राम राममय पूरा देश हो गया ||

(31)

उन्नति की शिखर पे चढ़ते रहिए किंतु
जमीं से कभी भी जुड़ा रिश्ता न तोड़ना |

तेरी नींद के लिए जो जागे सारी रात प्यारे
उन बागबानों से कभी न मुख मोड़ना |

स्वार्थ के लिए भूला दे जननी जनक दोनों
ऐसी कामिनी से तार प्यार के न जोड़ना |

उंगली पकड़के जिन्होंने चलना सिखाया
जिंदगी में उनका तू हाथ नही छोड़ना ||

(32)

माता भारती का चित्र,बना हुआ हो विचित्र
हमें कोई ऐसा कभी,चित्र नही चाहिए |

जिस इत्र को लगाके,हो जाए बीमार हम
हमको कभी भी ऐसा,इत्र नही चाहिए |

जिस सूत्र के प्रयोग से न मिले कोई हल
ऐसा हमें कभी कोई सूत्र नही चाहिए |

दोस्त कह दोस्त के ही,माँ को अपशब्द कहे
हमें ऐसे ट्रंप जैसा,मित्र नही चाहिए ||

(33)

हरपल रोना नही उचित सुनो हे मित्र
जीवन में आदमी को हँसना जरूरी है |

दुःख में ही पहचान,होती सदा अपनो की
विपदा में कभी-कभी फँसना जरूरी है |

स्वच्छता के नारों से न होगा स्वच्छ ये समाज
सफाई को कीचड़ में धँसना जरूरी है ||

बात जब निज प्राण को बचाने आये तब
बैरियों को नाग जैसे डँसना जरूरी है ||

(34)

हौसले बुलंद जब,पापियों के होने लगे
तब एक वार,जोरदार होना चाहिए |

कलियों की जिंदगी को,जो जलातें सड़को पे
जिंदगी में उनके भी,खार होना चाहिए |

न्यायपालिका से जब,घिस जाए चप्पलें तो
एनकाउंटर न्याय का,आधार होना चाहिए |

भारत की बेटियों की,एकमत मांग यही
चौकी में हरेक सज्जनवार होना चाहिए ||

(35)

जिस सूर्य के सम्मुख,जाना बड़ा दुष्कर है
ताप उस दिनकर का,तापने चला हूँ मैं |

शब्द जो मिला है मुझे,ज्ञान जो मिला है मुझे
शक्ति उस ज्ञान की ही,भांपने चला हूँ मैं|

हरि है अनंत और,हरिकथा है अनंत
लिख उनपे साहित्य,छापने चला हूँ मैं |

है अथाह सागर ये,जानता है”नील”किंन्तु
गुरुदेव की कृपा से ,नापने चला हूँ मैं ||

(36)

मार रहे कंश आज गर्भ में ही शिशुओं को
उनको बचाने फिर बनवारी आइए |

लूट रही चीर नारियों का नित सड़को पे
बेटियाँ बचाने फिर गिरधारी आइए |

कलुषित हुआ प्रेम कलयुगी वासना में
प्रेम सिखलाने फिर हे मुरारी आइए |

कौरवों के दल फिर हो रहे है एकजुट
धर्म को बचाने फिर चक्रधारी आइए ||

(37)

नारी शक्ति का प्रतीक शांत सौम्य मुखड़े पे
गज्जब का एक विश्वास पाया हमने |

विपदा में घिरा रहा कोई जो विदेश में तो
आपसे सदैव ही प्रयास पाया हमने |

बोलती थी आप तब वाणी की प्रखरता में
साक्षात शारदे का वास पाया हमने |

संसद में सिंहनी सी जब भी गरजती थी
दुर्गा का आप में आभास पाया हमने ||

(38)

सत्ता हो या हो विपक्ष भेडियें तो भेड़िये है
बलात्कारी भेड़ियो से देश को बचाइए |

रक्षकों के चोलों में जो भक्षक छुपे हुए है
उन पापाचारियों को सबक सिखाइए |

बेटियाँ बचाने बिल लाइयेगा तीन तलाक
पहले मर रही बेटियों को तो बचाइए |

कर रही गुहार बेटी उन्नाव की है आज
अपराधी उसके पहले सूली पे चढाईये ||

(39)

जीत मिले या कि हार दोनो ही करे स्वीकार
पार्टियों का ऐसा व्यवहार होना चाहिये !

संयम न खोए परिणाम सुनकर कोई
लोकतंत्र नही तार-तार होना चाहिए !

जिम्मेदारी मिली जिसे करे अंगीकार उसे
जनमत प्रेम से स्वीकार होना चाहिए !

न ही कोई हिंसा न द्वेष मेरे भारत में हो
प्रेम का सदा यहाँ प्रचार होना चाहिए !

(40)

माता भारती का शेर,साहसी बड़ा दिलेर
वीरता की परिभाषा ,जग को सीखा गया |

जीत गया चिड़िया को, बाज से लड़ाकरके
शत्रुओं को स्वाद वह ,धूल का चखा गया |

तनिक डरा नही वो ,शत्रु के धरा पर भी
शान से खड़ा हो ताव,मूँछों का दिखा गया |

युगों तक शौर्यगाथा,जिसकी पढ़ी जाएगी
स्वर्ण अक्षरों में नाम ,अपना लिखा गया ||

(41)

जिनके प्रताप से मिली है आपको ये सत्ता
उस रामनाम को न आप बिसराइए |

सवा सौ करोड़ लोग आशाओं से देख रहे
विनती है वादे को धरातल पे लाइए |

सबको आवास देने वाले हे प्रधान सुनो
प्रजा से किया था जो वो वचन निभाइये |

सदियों से बैठे हुए तिरपाल में है प्रभु
अयोध्या में भव्य “राममंदिर”बनाइए ||

(42)

मान सम्मान मिला जिसमें है ज्ञान मिला
ऐसी मातृभाषा को ,हृदय से लगाइये |

हिंदी में ही लिखिएगा हिंदी में ही बोलियेगा
हिंदी है तिलक सम माथ से लगाइए |

दूसरे की माँ का सदा ,करिए सम्मान किंतु
निज माता जी को आप,गौरव दिलाइए |

शब्द शब्द में विधान,संस्कृत सुता महान
हिंदी का सुगंध चुहुओर फैलाइये ||

(43)

जब कारगिल को था,शत्रुओं ने हथियाया
भारत ने ऑपरेशन,विजय चलाया था |

चोंटीयों पे लड़ रहे,पाकी घुसपैठियों को
भारतीय वीरता का,झलक दिखाया था |

गरजे थे मिग और,गरजा बोफोर्स संग
गर्जना से सेनाओं के,दुश्मन थर्राया था |

अपना भूभाग छीन,रणबांकुरों ने तब
टाइगर हिल पे तिरँगा फहराया था ||

(44)

है किसान अस्तव्यस्त,व्यवस्था से बड़े त्रस्त
अँखियों में आँसू लिए,पूछते सवाल है |

हाड़तोड़ श्रम कर,अन्न को उगाने वाले
क्यों विवश कौड़ियों में,बेंच रहे माल है |

तकादे को बार बार,द्वार आता साहूकार
कैसे वें चुकाएँ कर्ज,सोंचके बेहाल है|

मौत ही है बेहतर,जिल्लत के जीवन से
यही सोंच फाँसी झूल,चुन लेते काल है ||

(45)

माटी ही है धर्म मेरा,माटी ही है कर्म मेरा
माटी का ही यशगान,हरक्षण गाऊँगा|

माटी मेरी पहचान,माटी मेरा स्वाभिमान
माटी आनबानशान,सबको बताऊंगा|

भगत-शेखर-शिवा,बोस,राणा,हमीद सा
मान इसे चंदन मैं,माथ पे लगाऊंगा|

इसके रक्षार्थ गर,सर भी कटाना पड़े
हँसते हुए मैं शीश,माटी को चढ़ाऊँगा||

(46)

कब तक बहनें खोएंगी निज भाइयों को
कब तक बूढ़े कंधे अर्थियों को ढोएंगे |

कब तक पापा-पापा कहते हुए मासूम,
रात्रियों में सिसकियाँ संग लेके सोएंगे |

कब तक सिंदूर मिटेंगे मस्तकों से यहाँ
परिजन छातियों को पीट-पीट रोएंगे |

कब तक कोरी निंदा का ही मात्र होगा खेल
कब तक सीमाओ पे बेटे हम खोएंगे ||

(47)

सहतें रहें है छल,जाफर व कासिमो के
सदियों से भारत की ,है यही व्यथा रही |

प्रेम और मान दे दुलारतें रहें हैं जिन्हें
उनकी सदैव डसने की ही प्रथा रही |

भाई कह हृदय लगाके छुरी खाते रहें
भाईचारे वाली बात उनकी वृथा रही |

कमलेश रणजीत,गगन,अंकित,रिंकू
मासूमों के हत्याओं की सैकड़ों कथा रही ||

(48)

दुःख को भी सुख जैसे करें आप शिरोधार्य
आया है जो एकदिन लौटकर जाता है!

पावस में सूरज भी छुप जाता बादलों में
किन्तु उन्हें चीरकर बाद मुस्काता है!

अंधियारा लिखता उजाले की है पटकथा
चक्र यह दिनरात का हमें बताता है!

सहकें सहस्त्र कष्ट वन के न खोते धैर्य
तब राम,राम से “श्रीराम” बन पाता है !!

(49)

बेड़ियों को दासता की,भारती की देख-देख
रातों को न कई बार,सोतें थे भगतसिंह

देख के फिरंगियों के,आतताई कदमों को
ज्वालामुखी जैसे तप्त,होते थे भगतसिंह

प्रेयसी के लिए नही,मातृभूमि हेतु सदा
मन ही मन अक्सर,रोतें थे भगत सिंह

भाया नही खेल कोई,बचपन में भी उन्हें
खेतों में बंदूक -गोलें,बोंतें थे भगतसिंह!!

(50)

कालों के भी काल तुम नाम महाकाल तेरा
सत्य तुम्ही,शिव तुम्ही सुंदर कहाते हो !

अंग में भभूति और,सर्पों का श्रृंगार किए
हिय राम नाम लिए धुनि को रमाते हो !

पापियों के नाश हेतु रूप हनुमान लेते
सीता माँ की सुध लेते,लंका को जलाते हो!

संकट में होती सृष्टि तब विषपान कर
भोले मेरे “नीलकंठ”तुम बन जाते हो!!

(51)

हर गली घूम रहे,दुशासनों के है झुंड
बहु और बेटियों को,इनसे बचाइए !

चीर को बचाने नही,आएंगे गोविंद अब
आत्मरक्षा हेतु उन्हें,सबल बनाइए!

अबला नही है नारी,दुर्गा का रूप है वें
बालपन से उन्हें ये,घुट्टियाँ पिलाइए!

महँगे दिलाये सेल,उनको परन्तु आप
संग-संग एक उन्हें,शस्त्र भी दिलाइए!!

-कवि सुनिल शर्मा”नील”
थान खम्हरिया (छत्तीसगढ़)
7828927284

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