‘छत्तीसगढ़ी म भागवत कथा’ एक महाकाव्य के रूप म लिखे जात हे ऐला धीरे-धीरे कई भाग म प्रकाशित करे जाही । एला श्रीमद्भागवत अउ सुखसागर आधार ग्रंथ ले के छत्तीसगढ़ी म छंदबद्ध प्रस्तुत करे जाही । भाव अउ कला पक्ष म अपन ध्यान देत सुधार बर अपन सुझाव जरुर देहूं । आज प्रस्तुत हे ऐखर पांचवा भाग । ए भाग म पहिली स्कंध के पांचवा अध्याय म व्यास जी के असंतोष दूर होवब के कथा दे जात हे-
।। श्री गणेशाय नमः ।।
।।श्री परमात्मने नमः।।
पहिली स्कंध
अध्याय-5.
अश्वत्थामा का मान मर्दन अउ परिक्षित के गर्भ मा रक्षा
(ताण्ड़व छंद)
कहय सूत शौनक सुन । भगवत पुराण के गुण
सुने भर मा मिल जात । प्रभु के सब भक्ति पात
सुनत भागवत पुराण । मन होय गंग समान
डर-भय कुछ ना बाचय । जग मा कोनो जांचय
कटय सब माया फाँस । मिलय प्रभु भक्ति उजास
ऋषि शौनकमन पूछँय । मन प्रभु मूरत गूथँय
प्रथम बार ये पुराण । पढ़े हे कोन सुजान
अउ आघू कोन धरिस । जग येला कोन भरिस
सुनत सूत होय मगन । कहय सुनव धरके मन
कई कई बार व्यास । खुद करे हे अभ्यास
अपने बेटा ला तब । सउपिस पुनित ज्ञान सब
शुक ले परिछित पाइस । जब काल ह उउड़ाइस
सुनव कथा शौनक मन । पहिली परिक्षित जनम
कुरूक्षेत्र एक स्थान । जिहां युद्ध चलय तान
युधिष्ठिर पाण्डु सुत । अउ दुर्योधन के कुत
लड़ई के आखिर डहर । दिखिस अड़बड़ कहर
जिहां भीम दुर्योधन । लड़त रहय दूनोंझन
गदा भीम हाथ धरय । अउ ओखर जांघ भरय
गदा परते ओ गिरय । उठ के ना फेर भिड़य
गुरू द्रोण सुत जब सुनय । अपने मन बहुत गुनय
बदला कइसे लेवँव । कइसे गुस्सा खेवँव
तब अश्वत्थामा हर । पहुॅचय पाण्डवमन घर
शिविर जाके ओ देखय । अउ मने मन मा लेखय
सुते रहँय भाई सब । उखर मुड़ी काटय तब
मुड़ी हाथ धर ओ बीर । गये दुर्योधन तीर
मुड़ी देख दुर्योधन । गलती लेवय बोधन
मुड़ी पाण्डव के छोड़ । लइकामन के धरे चोर
दुखी दुर्योधन होय । पर मुँह भाखा न बोय
जब जानय ओती बर । तब अश्वत्थामा बर
बहुत गुस्सा सब करय । बचय मत ओ हर मरय
सखा कृष्ण संग धरय । डगर पग अर्जुन भरय
गुरू द्रोण सुत जब लखय । बचाय बर प्राण भगय
अपन मरन अब जानत। धनुष-बाण ला तानत
ब्रम्ह अस्त्र संधानय । जउन कुछु ल ना मानय
ब्रम्ह अस्त्र के न काट । जब छूटय अपन बाट
जब अर्जुन हा देखय । अपन सखा ले पूछय
कहव हे जग नियंता । कहव हे जग भणंता
उपाय का मैं करँव । अपन गांडिव का भरँव
ब्रम्ह अस्त्र के उपाय । ब्रम्ह अस्त्रे हा आय
प्रभु आदेश पार्थ धर । ब्रम्ह अस्त्र गांडिव भर
जब छोड़य आघु डहर । दिखे लगिस बड़ कहर
जब दुनों हा टकराय । लगय सृष्टि हा सिराय
चिरई चिरगुन काँपय। मनखे देवता हाँपय
नदिया सागर छलकय । अड़बड़ आगी फलगय
प्रभु देखत ये विनाश । कहय अर्जुन ले खास
दुनों अस्त्र वापिस धर । कहर सृष्टि के तैं हर
सुनत अर्जुन प्रभु गोठ । करय काम बने पोठ
दुनों अस्त्र शांत करय । गुरू सुत ला हाथ धरय
पकड़ बांधय हाथ मुख । करय द्रोपदी सम्मुख
दया द्रोपदी ह करय । गुरू सुत के पीर हरय
सखा कहय अर्जुन सुन । अइसे उपाय तैं गुन
मरे बिना घला मरय । गुरू सुत के पाप टरय
सुनत कटार सम्हालय । मुड़ ले मणी निकालय
तब अश्वत्थामा हर । रहिगे लाश बरोबर
अपने अपन मा चुरत । अपने अपन ला घुरत
बदला लेके सोचय । ब्रम्ह अस्त्र ला खोचय
बचय मत येखर वंश । अइसे देहँव ग दंश
अभिमन्यु पत्नि हर जब । रहय पेट मा तो तब
अस्त्र गर्भ बर छोड़य । अपन क्रोध ला फोरय
करय उत्तरा ह पुकार । प्रभुवर तहीं सम्हार
भगत वत्सल भगवान । धरके तब अंर्तध्यान
खुदे गर्भ मा समाय । उतरा के गर्भ बचाय
जउन गर्भ प्रभु बचाय । तउन परिक्षित ह आय
अइसन दयालु हे प्रभु । चरण तेखर परन हमु
-रमेश चौहान