आलेख महोत्‍सव: 22.स्वतंत्रता का अमृत पान

-आलेख महोत्‍सव-

स्वतंत्रता का अमृत पान

आजादी के अमृत महोत्‍सव के अवसर पर ‘सुरता: साहित्‍य की धरोहर’, आलेख महोत्‍सव का आयोजन कर रही है, जिसके अंतर्गत यहां राष्‍ट्रप्रेम, राष्ट्रियहित, राष्‍ट्र की संस्‍कृति संबंधी 75 आलेख प्रकाशित किए जाएंगे । आयोजन के इस कड़ी में प्रस्‍तुत है-डॉ. अर्जुन दूबे द्वारा लिखित आलेख ”स्वतंत्रता का अमृत पान?”।

गतांक –आलेख महोत्‍सव: 21. आजादी के 75 वर्षो के बाद क्‍या खोया? क्‍या पाया?

swatntrata ka amrit pan
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स्वतंत्रता का अमृत पान

डॉ. अर्जुन दूबे

स्वतंत्रता क्या अमृत है? अमृत एक ऐसा पेय है जिसके पीने मात्र से ही अमरत्व मिल जाता है । ऐसा वर्णन हमारे ग्रंथो में मिलता है । अमृत पाने के लिए देव एवं असुर पहले सहयोग के साथ सम्मिलित रूप मैं समुद्र मंथन किये थे । अमृत मिलते ही परस्पर लडृने लगे । विष के आने पर किसी ने निवारण का प्रयास नहीं किया था बल्कि व्याकुलता में भागने लगे । यह तो देवो के देव महादेव की अनुकंपा थी कि उन्होंने विष पान कर अमृत पाने की आशा को मंथन के द्वारा जाग्रत किये रहे ।

अमृत केवल पेय पदार्थ ही नहीं है जिसके पान से अमरता का बोध होता है, अमृत तो हमारी स्वतंत्र मानसिक स्थिति है जो दुर्लभ होने के साथ-साथ विरले को नशीब हो पाती है । कारण हम स्वतत्रं मानसिक चश्में से निकल नहीं पातै है । प्राय:हम शोषण और आर्थिक गुलामी के भी शिकार हो जाते हैं, जिसका प्रतिरोध करने में या तो डरते हैं अथवा हिचकते हैं ।

हम एक ऐसी संस्कृति का शिकार बनते जा रहे हैं जिसमे यदि गलत कार्य को सभी करते हैं तो उसे सही मानने लगते हैं और यदि सही को कोई नहीं अनुसरण करता हे उसे आत्मसात नहीं करते हैं । पूर्वाग्रहों की बेडी़ से मुक्त होना भी स्वतंत्रता का एक रूप है ।

मानव बोलकर संवाद करने में आनंदित भी होता है और रोष में दूसरो के आनंदमय रहने से रोकता है, ऐसा सभी मानव नहीं करते हैं। दूसरे को बोलने नहीं देना बोलने की परतंत्रता की श्रेणी में आ जाता है । सामान्यता स्वार्थ के कारण एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के साथ भेदभाव करते हुए शोषण करता है, यही नहीं बोलने की आजादी भी छीनता रहता है, हां यदि बोलना ही है तो उसके पक्ष में बोले जो बोलने से मना किया है । पराधीन करने की मानसिकता लिए मनुष्य स्वयं तो स्वतंत्रता के साथ जीवन जीना चाहते है किंतु अन्य अथवा कमजोर को पराधीन बनाकर रखना चाहते हैं।

ग्रीस देश में ग्रीसवासी यह तर्क देते थे कि जब तक ग्रीक विजेता बनकर स्वामी बने रहते हैं, और बारबेरियन्स पराजित रहते हैं, दासता जायज है अन्यथा दासता तो प्रकृति के नियम के विरूद्ध है। यूरोप में फ्रांस देश की जोन आफ आर्क ने फ्रा़सिसियों को इंगलैंड के खिलाफ यह कहते हुए विद्रोह करने को प्रेरित किया था कि इंगलैंड के द्वारा फ्रांस की जमीन पर शासन करना गाड/ईश्वर की आवाज के खिलाफ है; गाड किसी भी देश को दूसरे देश अथवा इनके लोगों के ऊपर शासन करने की अनुमति नहीं देता है। जबरदस्ती शासन एवं शोषण के खिलाफ सदियों से संघर्ष चलता आया है.इस्लाम मे कर्बला के युद्ध का प्रसंग मिलता है, जिसमें अत्याचार के विरुद्ध लड़कर मुहम्मद साहेब के नवासे शहीद हो गये थे जिनके याद में मोहर्रम का पर्व पड़ता है ।

हमारे देश में राजतंत्रीय व्यवस्था में युद्ध करते हुए पराजित करके एक राजा दूसरे राजा के राज्प पर शासन करके आनंदित होता था किंतु यह भूल भी जाता था कि ऐसा गलत मनोवृत्ति है जो कालांतर मे बिष बमन ही करता है।

लोकतंत्र का मूल आधार स्वतंत्रता रूपी अमृत ही है । मौलिक अधिकारों में अभिव्यक्ति की आजादी लोक तंत्र की आत्मा मानी जाती है । तभी तो बर्ष 1975 में इमरजेंसी लगाकर अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिवंध लगने के कारण तत्कालीन सरकार को सत्ता से हाथ धोना पडा़ था ।

स्वतंत्रता को स्वच्छंदता के समतुल्य नहीं कर सकते हैं.पश्चिमी विचारक सी .ई. एम.जोड ने Rule of the Road में लिखा है कि आप एक सभ्य व्यक्ति होने के नाते यह सोचें कि आप की स्वतंत्रता दूसरे की स्वतंत्रता पर अतिक्मण तो नहीं करता ।स्वतंत्रता के साथ साथ जिम्मेदारियां भी होती हैं; आप स्वतंत्र है अपने कमरे में म्यूजिक सिस्टम को बजायें किंतु यह भी सोचे कि आप का पडो़सी भी म्यूजिक सिस्टम को बजाकर अमृत पान कर सके । आप स्वतंत्र हैं कि आप का बच्चा आप के मनमाफिक स्कूल में पढे किंतु आप यह स्वतंत्र नहीं है कि आप का बच्चा पढेगा ही नही; परिणामत: वह राज्य के उपर बहुत बडा बोझ साबित हो जायेगा ।

प्रकृति से हम उत्पन्न हैं, प्रकृति ने हमें सोचने समझने की शक्ति दी है, अच्छे बुरे के भेद की क्षमता दी है । हम जो भी कृत्य करते हैं उसके लिए हम स्वयं उत्तरदाई हैं । इस भाव के साथ हम आजादी का स्वाद लें और औरों को भी स्वाद लेने दें, इससे उत्तम आजादी का अमृत कहां मिलेगा!


With Regards Dr. Arjun Dubey Retired Professor of English, Madan Mohan Malviya University of Technology, Gorakhpur (U.P.) 273010 INDIA Ph. 9450886113

आलेख महोत्‍सव का हिस्‍सा बनें-

आप भी आजादी के इस अमृत महोत्‍सव के अवसर आयोजित ‘आलेख महोत्‍सव’ का हिस्‍सा बन सकते हैं । इसके लिए आप भी अपनी मौलिक रचना, मौलिक आलेख प्रेषित कर सकते हैं । इसके लिए आप राष्‍ट्रीय चिंतन के आलेख कम से कम 1000 शब्‍द में संदर्भ एवं स्रोत सहित स्‍वयं का छायाचित्र rkdevendra@gmail.com पर मेल कर सकते हैं ।

-संपादक
सुरता: साहित्‍य की धरोहर

अगला अंक-अक्षुण्ण रहे हमारी स्वतंत्रता

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