कवितायेँ- स्वप्न, पंछी और रोटी -प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

कवितायेँ- स्वप्न, पंछी और रोटी स्वप्न भी कुछ देर उलझा , फिर न जाने क्या हुआ…