तीन नये गीत
-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
1.गर्द से घायल दुपहरी, आती सुलगती शाम घर।
आप जैसा ही कोई ख्वाब बन आता रहा ,
एक अरसे से न जाने ख्वाब क्या देता रहा।
आहटें देती सुनाई हर कदम हर मोड़ पर
गर्द से घायल दुपहरी , आती सुलगती शाम घर।
रात का क्या , वो अबूझी, रही सिमटी रात भर
और चौखट पार वैसे सिलसिला जारी रहा।
आप जैसा ही कोई गुनगुनाता तो रहा
ख्वाब था , या दिख न पाया, अजब सन्नाटा रहा।
2.मन अकेला ही उड़ा , मेघ झूमे रात भर
मन अकेला ही उड़ा , मेघ झूमे रात भर
दूर सूने बाग़ में बोला पपीहा रात भर।
मन भी करवट में रहा , शम्मा जलाया बुझ गयी ,
रात जागी रात भर , नयन बरसे रात भर।
थाप सी देती हवा , गुजरी बनाकर सिलसिला,
याद आयी रात भर , मेघ बरसे रात भर।
ईद ले होगी सुबह , इस बात का है सुकून ,
वो चाँद भी शायद दिखे , यही सोचा रात भर।
3.सब अबूझा रह गया।
आप की आँखों ने उस दिन , कुछ कहा कुछ रह गया ,
मैं समझ पाया नहीं , सब अबूझा रह गया।
वक्त कुछ यूँ ही ये बीता , हर एक लम्हा फैलकर ,
सोच खाली कर गया , वीरान बस्ती कर गया।
सुनसान सी उजड़ी पड़ी हैं अक्षरों की बस्तियां ,
उधर भी शायद कहीं पर कुछ कमी सी रह गयी।
रोज़ तन्हा चाँद मिलता है सिसकता सा वहां ,
वही सूनी पड़ी छत है , उस पार तुम दिखते नहीं।
कुछ अधूरा रह गया , शायद बताना रह गया ,
मैं समझ पाया नहीं , सब अबूझा रह गया।
कुछ अधूरा रह गया , शायद बताना रह गया ,
मैं समझ पाया नहीं , सब अबूझा रह गया।
—
Dr R. P. Singh Professor of English
Department of English and
Modern European Languages
University of Lucknow Director,
International Collaborations and ISA ,
University of Lucknow Vice Chairman, Delegacy,
University of Lucknow
Lucknow – 226007, U P, INDIA
Cell : +91 94151 59137
Email : rpsingh.lu@gmail.com
Marvellous verses by a prolific versatile genius. Amazing!!