त्रिभुवन पाण्ड़े को श्रद्धांजलि-
त्रिभुवन पाण्ड़े जी को आज (18/3/2021) उनके तेरहवी पर भावभिनि श्रद्धांजलि अर्पित करते हुये उन्हीं की चार कविताओं को श्रद्धासुमन के रूप अर्पित करते हैं । इससे पूर्व त्रिभुवन पाण्ड़ेजी का गिरिश पंकज रचित काव्यात्मक परिचय समर्पित है-
त्रिभुवन पाण्ड़े-गिरीश पंकज
गीत-व्यंग्य के जो थे नायक उनका त्रिभुवन नाम । जिसने रचे छंद कुछ सुंदर, दिया श्रेष्ठ पैगाम । व्यंग्य लिखा तो दुर्गुण भागे, ऐसी धूम मचाई । गीत लिखे तो छंद हँसा, थी भावों में गहराई । समालोचना करते रहना, जिनका सुंदर काम। गीत व्यंग्य के जो थे नायक, उनका त्रिभुवन नाम।। लेखक थे वे बड़े मगर, इंसान भी उससे ज्यादा। सबसे बड़े प्रेम से मिलते, निर्मल रहा इरादा । तथाकथित से दूर रहे वे, खास थे उनके आम।। गीत-व्यंग्य के जो थे नायक उनका त्रिभुवन नाम । जिसने रचे छंद कुछ सुंदर, दिया श्रेष्ठ पैगाम । @ गिरीश पंकज
त्रिभुवन पाण्ड़े की चार कविताऍं-
1. ग्राम गीत थे-नारायएालाल परमार-
ग्राम गीत थे-नारायएालाल परमार
जीवन के द्वंद में
लगते प्रगीत थे
गीतों में अनुगूंजित
पैरी के गॉंव
शब्दों की नदियों में
छंदों की नाव
जीवन में आस्था के
अभिनव प्रतीति थे
निकले थे लेकर
कॉंवर भर धूप
कंकर पछोरने
अक्षर का सूप
मायावी नगरी
ग्राम गीत थे
माथे पर चिंतन की
मुखरित रेखायें
सत्य की तलाश में
प्राणदीप्त कविताऍं
आस्था के अधरों पर
जीवन नवनीत थे
2. एक नदी हूँ मैं-
एक नदी हूँ मैं
जिसकी धारा कभी नथकती
एक नदी हूँ मैं
मंजिल दूर बहुत है मेरी
सागर तक जाना
प्यासे हैं जो लोग वहॉं तक
लहरे पहुँचाना
जीवन के पृष्ठों पर अंकित
एक सदी हूँ मैं
शिखरों पर आच्छादित बादल
मेरा उद्गम है
सपनों हरियाली बुनना
मेरा उपक्रम है
रचकर कभी न मिट पाये जो
ऐसी मेंहदी हूँ मैं
3. बहुत जतन से बुना कबीरा-
बहुत जतन से बुना कबीरा
बहुत जतन से बुना कबीरा
जब धागा उलझा
मगहर से काशी तक फैला
भ्रम का मायाजाल
मछली प्यासी निरख रही है
सूख रहे हैं ताल
टूटे हुए सत्य के पहिये
झूठ निपुण सुलझा
आसमान सा जीवन विस्तृत
लोग बहुत बौने
तम के आवर्तो में बंदी
सूर्यमुखी कोने
अंतहीन प्रश्नों की सूची
हर सवाल उलझा
4. तुम पत्र लिखों-
तुम पत्र लिखों
तुम पत्र लिखों
मैं पता लिखूंगा
लिखना सच-सच आसपास की
जैसी भी हो राम कहानी
मुस्कानों का विवरण लिखना
कितना हैं ऑंखों में पानी
तुम कथ्य लिखो
मैं कथ लिखूँगा
रात नींद कुछ मीठे सपने
अब भी हैं बाकी
सपनों के इस आयोजन में
सच कितना है, कितनी झॉंकी
तुम अश्रु लिखो
मैं व्यथा लिखूंगा
सौजन्य- श्री डुमन लाल ध्रुव
स्मृतियों में त्रिभुवन पांडेय