श्रीमती तुलसी तिवारी की कहानी
वसूली
तुलसी तिवारी की कहानी-वसूली
वह रोज स्कूल के अन्दर आकर ऑफिस में बैठ जाता था।
“तुम लोग इतनी तन्ख्वाह पाते हो , बच्चों को ठीक से पढ़ाते नहीं। इनको कुछ नहीं आता। आगे शिकायत करूंगा । सब जगह महिना बंधा-बंधा है, पंचायत का ।
तुम लोग भी कुछ करो नहीं तो सरपंच से तुम्हारे रजिस्टर पर दस्तखत नहीं करवाऊंगा।’’ और भी तरह-तरह की बातें।’’ कक्षा में लड़ते-भिड़ते बच्चों को छोड़ कर सुनते सब कुछ जो वह कहता।
ज्ञानदास नाम था उसका सरपंच धजाराम का दायाँ हाथ। लेन-देन की सारी सेटिंग वही करता था। घर में अवैध दारू बेचने वाला धजाराम पदस्थ सरपंच को अविश्वास प्रस्ताव पारित करवाकर हराने के बाद बहुमत से सरपंच बना था। दारू से नहला दिया था पंचों को, मुर्गी की दुकाने खाली करवा दी थी। बस अब उगाही चल रही थी।
शिक्षक भी अपने नाम को एक ही थे , सब कुछ सुना लेकिन फूटी कौड़ी भी नहीं दी।
’’ ये दे पट्टा देवत हन सस्ता म, तूंहँ मन ले लेवा लेह त!’’ एक दिन उसने कृपालू होकर कहा था।
’’ बाहर से आते हो ,इसीलिए देर से चहुँचते हो, यहाँ रहोगे तो डंडा मार कर समय पर स्कूल लायेंगे।’’
’’ हम लोगों को मिलेगा भइया?’’ पूजा और आरती मैडम एक साथ बोल पड़ीं।
’’ हाँ! काहे नहीं मिलेगा हम देंगे तो? उसके लिए पुख्ता उपाय करना होगा। पहले यहाँ का राशन कार्ड बनवाओ! वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाओ, फिर हम पट्टा देंगे मेन रोड पर , कोई हटा नहीं सकता ऐसा पक्का पट्टा बना देंगे। वह दोनों शिक्षिकाओं के दिल में उतरा जा रहा था।
उसकी कानी आँख और चेचक के दागों से भरा चेहरा सारी दुनिया में सबसे सुन्दर दिखाई दे रहा था।
’’ कितना लगेगा?’’ आरती मैडम की आँखें में चालाकी चमक उठी थी।
’’ तीन डिसमिल पचास हजार, पहले तैयारी कर लो फिर बात करेंगे ।’’वह अपने शब्दों से उनके कानों में शहद घोल रहा था।
’’ हमारे पास शहर में घर है भइया, धोखा तो नहीं होगा नऽ ?’’ पूजा मैडम ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर इठलाते हुए अपनी शंका जाहिर की।
अरे दीदी कुछ नहीं होगा! कौन जाँच करने कें लिए फुरसत में है ?’’
’’दौड़ो! फार्म भरो! कार्ड बनवाओ, वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाओ, पैसा निकालो यहाँ-वहाँ से, अपने साथ मायके का भी कल्यान करो, दाँत निपोरे-निपोरे लगता होठ अब फैले ही रह जायेंगे। दोनों ने दो-दो प्लॉट के लिए एक-एक लाख जमा किये।
पीले रंग का, मोटे-मोटे काले-काले अक्षरों में लिखा गया पट्टा देख कर दोनो ने जैसे जीवन धन पाया। ’’ ईंट लाओ, सिमेंट लाओ, मजदूर खोजो, सीट लाओ, दरवाजा लाओ, छपाई करो लिपाई करो, दोनों गरमी की छुट्टी भर बवंडर की भाँति पूरे शहर में मंडराती रहीं । किसी ने घर के लिए कुभाषा का प्रयोग क्या कर दिया कि इस जमीन पर बने घर पहले भी तोड़े जा चुके हैं, दोनों ऐसी व्याकुल हुईं कि पाँच-पाँच हजार रूपये पटवारी को भी दे आईं किसी प्रकार की गड़बड़ रोकने के लिए।
जुलाई में जब स्कूल खुला तब इनकी मेहनत का फल देख कर एक शिक्षक के मुँह से हठात् निकल गया ’ वीर भोग्या वसुंधरा’।
रेशमी कपड़े भेंट किये थे उन्होंने अपने ज्ञान भईया को, एहसान से दबे-दबे।
’’ घर को किराये पर देकर कुछ कमाने के बारे में सोच ही रहीं थी कि एक दिन स्कूल जाते समय उन्होंने जो देखा उसे देख कर उनके दिमाग में एक्सीवेटर का कान फोड़ू शोर हलचल मचाने लगा। आँखों के आगे अंधेरा छा गया। मैदान में ईंट सीमेंट, लकड़ी फाट दरवाजे खिड़कियाँ सब टूटे-फूटे एक दूसरे के ऊपर नीचे गिरे-पड़े अपने नाम को रो रहे थे। बहुत सारे लोग उन्हें ढो कर अपने घर ले जा रहे थे।
’’ ए… ऽ……. हमारा सामान है ऽ.!, कैसे लिए जा रहे हो? वे गाड़ी से उतर कर गिरती-पड़तीं पटवारी के यहाँ पहुँचीं पहले दो दिन तो उससे भेंट ही नहीं हुई।ज ब मिला तो इनका रोना-धोना देख कर उसक मुँह से निकल पड़़ा – ‘’ क्या करें मैडम ओ जो काना चेचक दाग वाला है नऽ, एक दम से पीछे पड़ गया ’’ हटाओ इनको जल्दी पचास हजार तन्ख्वाह पांतीं हैं गाँव की जमीन पर दादागीरी से कब्जा कर ली हैं, मैं नहीं गया तो कलेक्टर साहब के पास चला गया। तभी तो नगरनिगम वाले रातो रात ढहाने पहुँच गये।’’ उसने अपना पल्ला झाड़ लिया। ज्ञानदास का काम जोरो पर चलने लगा था ’’ ए ही हो तो रातों-रात गाँव की जमीन मुक्त कराये ‘नये पट्टे बिक रहे थे धड़ाधड़, स्कूल की इमारत अधुरी रह गई थी एलॉट नहीं आ रहा था। सड़क बनायं थे वह बह गई, वे क्या करें आज-कल पानी का भी तो कोई भरोसा नहीं रहता। वह निद्वंद्व है ।
-श्रीमती तुलसी तिवारी