तुलसी देवी तिवारी की कहानी- ‘दान-दहेज’

कहानी- ‘दान-दहेज’

– तुलसी देवी तिवारी

दान-दहेज तुलसी देवी तिवारी की मार्मिक कहानी है, जिसमें नए जमाने में बुजर्गो के अपमान चित्रित किया गया है ।

तुलसी देवी तिवारी की कहानी- 'दान-दहेज'
तुलसी देवी तिवारी की कहानी- ‘दान-दहेज’

दान-दहेज

अच्छा घर बार, धन दौलत, नौकरी चाकरी , छोटा परिवार, एक शब्द में कहे तो जैसा वह सोचा करती थी वैसा ही सब कुछ। राकेश इंजीनियर है, माता-पिता, सरकारी नौकरी वाले, बहन दोनों ससुराली, उसने अपने जानिब सब कुछ पता लगाया था । आज के युग में भी राकेश हर प्रकार के नशे से दूर था। माता-पिता से दूर न जाना पड़े  इस विचार से अपना काम प्रांरभ किया था। जरा मन पीछे हटा, एक साथ रहना याने हिमानी के ऊपर जिम्मेदारी का दबाव । रोक टोक! ,कौन सी बड़ी बाधा थी ?  शादी के साल भर बाद ही उसने इससे भी बड़ी बाधा को नहीं उखाड़ कर इतनी दूर फेक दिया था कि दुबारा कभी उसकी हवा तक न लगी। आकाश क्या कम मातृ भक्त था?  पिता के न रहने पर बस माँ बेटे ही तो रह गये थे परिवार के नाम पर। दोनों में एक दूसरे के प्राण बसते थे, लेकिन उसने पार किया न इतनी बड़ी बाधा। वैसे ही हिमानी भी साल के अंदर ही या तो अपने घर में अकेली अपने पति के साथ रहती या अपना घर बना लेते दोनों ।

                        पर ये क्या हो रहा है?  यहां से लड़की पसंद करके कुल-गोत्र, राशि-वर्ण, नाड़ी-योनि, पूछ-पूछा कर गये, कुंडली के छत्तीस गुण मिलते थे। हिमानी के मुरझाये चेहरे पर प्रसन्नता की चमक देखी थी उसने।

’’माँ, मेरे जाने पर घर कैसे चलेगा?’’ उसने उदास होकर पूछा था, सोचे भी क्यों नही? दस वर्ष से कमा कर घर चला रही है। शिवानी और भवानी पढाई पूरी करके चार पैसे कमाने के लिये हाथ पैर मार रही हैं। किसी प्रकार अपना खर्च निकाल ही लेती हैं। आधार स्तम्भ तो हिमानी ही है। आकाश को घर बैठे लगभग दस-ग्यारह वर्ष हो गये,  जो कुछ मिला उससे यह एक घर खरीद लिया था। थोड़ा बहुत पेंशन है चल रही है गाड़ी । तीनों बेटिया बेहद समझदार है। उन्हे अपनी आर्थिक स्थिति का अंदाजा भलीभांति है। मरे लड़के वाले माने तो घर बेचकर करनी होगी शादी । कैसी तो हो गई हिमानी, अठारह बीस की उम्र में जैसे फुल खिलते थे उसके चेहरे पर। ऑंखे हँसती रहती थीं जैसे। कोई मोहक सुगंध झरती रहती थी उसकी देह से, धीरे-धीरे बदल गई वह। अब तो सदा गंभीर रहती है। ऑफिस से आई, कमरे में घुसी। न अधिक बातचीत न कोई फरमाइश । जो कुछ मिला, खाई पी चली। बेचारी! अपनी उम्र में किसे नहीं लगता?  उसकी तो तीनो बेटियां तीस के पार हो चुकी थी। बेटे का मुंह देखने की चाह में तीन देवियां आ गईं। उसके बाद तो न जाने कैसे स्वयं ही पूर्ण विराम लगा था। वह तो अभी दो साल पहले तक प्रतिमाह अपने शरीर में कुछ अलग प्रकार का परिवर्तन खेाजा करती थी,  अब तो हो गया सब कुछ । सब मनसुबा बेकार निकला। फोन आ गया।-

                        ’’आपकी लड़की तो हमे पंसद है परंतु हम ऐसे घर से लड़की लाना नहीं चाहते  जिस घर में दादा-दादी न हो हमें माफ कीजिएगा। कटे पेड़ की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी थी वह, ऐसा पहली बार हुआ हो यह भी तो नहीं है। तीसरी बार है उसकी शादी का लगते-लगते टूट जाना।

                        अजीब बदलाव  आ रहा है लड़के वालो में ! पहले दान दहेज, सुदर पढी लिखी लड़की, बारातियो के स्वागत सत्कार की बात होती थी । अब घर में दादा-दादी! चाहे स्वंय अपने माँ-बाप के साथ न रहते हो। सब बहाना है अवश्य किसी दुश्मन ने शादी काट दी है।

                        हिमानी के दादा को तो वह नहीं ला सकती लेकिन दादी ! उसे ला सकती थी, पता नहीं अब वहां रहती है या नहीं। वह कहां आयेगी? जब इतने दिनों में कभी नहीं आई, न खोज खबर ली तो अब क्या रहेगी आकर? सुनकर उसे तो खुशी ही मिलेगी। बेटे को देख कर शायद पिघल जाये। कोशिश करनी होगी। लोगों की सोच नहीं बदली जा सकती। सोच ये कि जिस परिवार में सयानो का स्थान रहता है उस परिवार की लड़कियां अपनी ससुराल में भी बुजुर्गों, की सेवा करती हैं उनके संस्कार में होता है । हालाकि यह सिद्धांत पूर्ण रुपेण सच नहीं है, उसकी मां ने तो पगली सास की अंत तक सेवा की। क्या मजाल जो बाहर निकलने दे? चाहे वह कितना ही चीखे  चिल्लाये, घर गंदा करे  या गालिया दे, वह सब सहती थी लोग कहते पागल खाने भेज देा! पंरतु वह नहीं मानी, घर पर ही दवाई होती रही, बहुत कुछ ठीक भी हो गई थी दादी।

                        परंतु उसे तो न जाने क्यों आकाश और अपने बीच सास बरदास्त ही न हुई। पहले दूसरे दिन से ही जल में तैरती काई की तरह किनारे करना शुरु कर दिया था उसे।। पहले-पहले शर्मिन्दा सा आकाश बगले  झाँकता रहता, उसकी प्यारी पत्नि सारिका फूट-फूट कर रोती होती, मां गुस्से से  उबलती होती, वह किसे सम्हाले किसे छो़ड़े? फिर उसने डांट कर मॉ को चुप कराना और सारिका को सान्त्वना देना प्रारंभ किया था। उसकी दृष्टि में माँ का अत्याचार बढ़ता ही गया था। सारिका के ऑंसू झूठे नहीं हो सकते  थे न?

’’मॉं यहां लेटी क्या कर रही हो?’’  वह हिमानी की आवाज सुन कर चौक उठी। वह आ गई है अपने काम से । आज कल किसी कंपनी में काम कर रही है। आते ही एक बार माँ को अवश्य पूछती है।

’’मॉं क्या हुआ ?’’

वह उठी थी, बेटी को एक गिलास पानी देना उसका फर्ज बनता है। उसके मुंह से कुछ नही निकल सका।

’’क्या हुआ माँ बोलो न? लड़के वालों का फोन आया क्या?’’ वह माँ का चेहरा देख परेशान हो उठी थी।

‘’कहते है जिसके घर दादा-दादी न हों उस घर से लड़की नहीं लेंगे । बताओ भला जिसके घर दादा-दादी न हों उसकी लड़की क्या कुंआरी रहेगी?

’’ चिन्ता मत करो माँ ! जहाँ भाग्य होगा वहाँ शादी लगेगी ही।’’ उसने सयानो की तरह समझाया। ’’वैसे माँ ! हमारी तो दादी थी नऽ..ऽ.? उसका प्रश्न सारिका को हिला गया।

’’थी बेटी! हो सकता है अभी भी हो। उसके मन में कोई खोट न होता तो क्या घर छोड़ कर चली जाती? लगभग 28 साल हो गये घर से निकले, कभी बेटे की भी सुधि नहीं ली। वैसे यदि वो घर में होती तो और कोई रिश्ते वाले घर की ड्योढी़ न चढ़ते।’’ वह हिमानी के लिये चाय पानी ले आई थी। उसने देखा भी नहीं माँ की ओर। बहुत रोना धोना मचायी।

’’तुम्हारी गलती की सजा मुझे मिल रही है माँ ! तुम्हे बना के रखना था न अपनी सास से ? अब हम तीनों बहने कहो तो किसके घर बैठें जाकर? वह रोये जा रही थी।

’’शांत हो जा बेटी! जिन्होने तुझे  ठुकराया है वे बड़े  अभागे हैं । उनकी सोच की बलिहारी है। उन्हें बहू नहीं नौकरानी चाहिये जो जीवन भर उनका गू ढोती रहे। अच्छा हुआ जो उन्होने मना कर दिया, वर्ना जीवन भर का रोना हो जाता।’’ सारिका अब दूसरे ढंग से समझा रही थी हिमानी को।

                        और भी अच्छे-अच्छे रिश्ते आये किन्तु बात न बनी । नाना-नानी दादा-दादी की खोज-बीन में यह तो नहीं कहा जा सका कि लड़की की दादी अब इस संसार में नही है? सब कुछ सुनते आकाश चुप रहे। जब सारिका एकदम से झल्ला गई तब धीरे से कह दिया

 ’’उस दिन भी तुम्हारे ही मन की चली थी जब माँ रोती हुई 10 बजे रात को घर से निकली थी। मैं कुछ कर सका था क्या? तुम तो हाथ में मिट्टी तेल का डिब्बा लेकर खडी थी- यह घर से निकले या  इसी समय जल मरुंगी, फिर रहना जेल में माँ बेटे एक ही संग । हम तो लाचार हैं तुम्हारी योजनाओ के आगे। वह ओैर जल भुनकर राख हो गई थी। उसे पता ही न चला था कि उसका पति मन में उसके प्रति ऐसी भावना रखता है।

                        ’’बताओ पापा! बेटे हो कर कभी खोजे दादी को? माँ तो परकोठिया थी आप तो उनके बेटे थे? हिमानी ने कटघरे में ले लिया था उसे।

’’पता क्‍यों नही लगाया? इसी शहर के राजेन्द्र नगर में डॉक्‍टर बलदेव के यहाँ रहती है। वे लोग उसे बहुत मानते हैं. कभी कभी मिलता हूँ तो गले लगा कर पूरे टाइम रोती रहती है।’’

’’अच्छा तो इतना बड़ा धोखा किया तुमने मेरे साथ! कभी हवा नहीं लगने दी कि तुम उसके बारे में कुछ जानते हो, उसके सारे करम भूल गये? शर्म नही आती है उसका बेटा कहलाने में ? सारिका नागिन सी बल खा गई।

’’हॉ आती है शर्म उसका बेटा कहलाने में , मैं ऐसा बेटा हूँ जिसने अपनी माँ को घर से निकल कर परायो के घर आश्रय लेते देखा है, कुछ न कर सका मैं । जेल जाने से डरता था न और तुम्हारे हाथ में तो हमेशा ……………………?

आकाश ने जरा व्यंग से कहा .

’’पापा चलिये ! हम दादी को लेकर आयेंगे, बात शादी की नहीं है हमें अपनी दादी चाहिये ! माँ यदि नहीं मानती है तो हम तीनों भी घर छोड़ कर निकल जायेंगी। हिमानी की आवाज में दृढ़ता थी।

’’हम सब मर जायें तो भी नहीं झूकेगी।’’ सारिका ने हारे हुये स्वर मे कहा।

’’पापा हम कल चलेंगे दादी से मिलने ?’’ हिमानी ने अपना फैसला सुनाया जैसे।

 ‘’माँ सबसे पहले निकल कर ऑटो में बैंठ जाना नऽ..ऽ! वर्ना अब तुम्हारे अकेले होने की बारी आ गई  है। हिमानी का स्वर …….तल्ख….था।

’’राणो! तुम्हें मैंने बेटे से कम नहीं माना, भतार  पाने के लिये इस तरह उतावली हो जाओगी ये तो कभी सोचा  भी नही था मैंने?’’ सारिका ने अपने दोनो हाथों से अपना सिर दबाया।

                        रात भर उसे नींद नही आई, लड़कियां कुआरी नहीं बेवा जैसी दिखने लगी हैं, समय पर ही सब कुछ अच्छा लगता है। इनका बनाना है तो यह भी सही इसलिये जिन्दा है आज तक मेरे जी का कंटक। कहते भी है न वक्त पर गधे को भी बाप कहना पड़ता है।  चलूँ पैर पकड़कर मना लाऊँ, नहीं तो लड़कियां बेहाथ हो जायेंगी ,आ गई तो काम होते ही फिर वही रास्ता दिखा दूंगी। नहीं आयी तो ये जो ज्यादा चपड़-चपड़ कर रही हैं हमेशा के लिये चुप हो जायेंगी। आदमी हारता अपनी कोख से ही है। मैं ही मूर्ख थी जो जानते बूझते इन्हे संसार में ले आई इसीलिये तो लोग बहा देते है नाली में,  लगता जो कुछ लगता, आज ये दिन तो नहीं देखना पड़ता। वह पूरी रात सोचती रही।

जाते -जाते बड़ी उदार होकर  माफ करती गई थी, अब समझ में आया उसने बड़ी होशियारी से मुझे श्राप दिया था। तुमने मेरे साथ जो भी किया, अपनी समझ से ठीक ही किया। तुम मेरे अरमानो का फल हो मैं तुम्हे माफ करती हूँ! भगवान् करे तुम्हें ऐसे दिन कभी न देखने पड़ें। अब समझ में आया उसका तात्पर्य था तू बेटे की मॉं न बन सके, बेटा नहीं होगा तो बहू कहां से आयेगी, फिर घर से कौन निकालेगा?

                        उसी का श्राप फला है वर्ना तीन में एक भी लडका दे देते भगवान तो क्या ये लडकियां इतना चढ़ पाती? वह अकेले में रोती रही थी।

                        हिमानी शिवानी आज काम पर नहीं गई । हिमानी ने जल्दी से कुछ नाश्ता बनाया, आकाश और सारिका दवाई खाते है। ब्लडप्रेशर की, वह तो एकदम शांत थी। तैयार हुई जैसे-तैसे, क्या कोई शादी में जाना है जो तैयार होकर जाय?  खुदा ना खाश्ता यदि आ ही गई तो इस छोटे से घर में कहां रहेगी? नहीं-नहीं मैं भी तो सत्तर साल की होगी, पता नही कौन-कौन  सी बीमारी हो गई होगी, कहीं खांसी हुई तो पूरा घर थूक-थूक कर भर देगी। कैसे  बोलेगी उससे इतने दिनो बाद- आटो में बैठी वह सोच रही थी।

                        राजैन्द्र नगर 15 कि.मी दूर है, शिवाजी नगर से। जब वे डॉं. बलदेव के शानदार भवन के सामने पहुंचे तो देखा कि एक युवक एक वृद्धा को साथ लिए धीरे-धीरे टहल रहा रहा है। लान में।

                        दरवाजे पर आटो से पांच जन को उतरते देख वह गेट के पास आ गया था। सब एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे कि वृद्धा बोल पड़ी- आकाश मेरा बेटा! उसने आगे बढ़कर आकाश को गले लगा लिया। उसकी ऊँचाई बहुत कम हो गई थी कमर झुक गई थी, चेहरे पर झुर्रियों का सामा्रज्य था, सिर के बाल बगुले के पंख जैसे हो रहे थे। आकाश की कमर से लिपटी वह रोने लगी थी जार-जार।

’’मेरी तकदीर ही खोटी है  बेटा, तुझे रोज-रोज देख भी नहीं सकती, कितने दिनो बाद आया है इस बार । भूल ही गया था मुझे- अन्य लोगों की उपस्थिति की बात वह भूल गई थी ऐसा लग रहा था।

’’आइये न आप लोग अन्दर !’’, युवक ने उन्हे अंदर बुलाया।

तीनो युवतियां एक साथ वृद्धा से लिपट गईं।

’’दादी, दादी हम आप की पोतियां ! आप को लेने आई हैं-हिमानी ने उसके झुर्रियां भरे माथे को चूमते हुए कहा।

’’मेरी पोतियां? हे भगवान! कहीं मैं खुशी से मर न जाउं ? वृद्धा की स्थिति अजीब हो रही थी, एक बार हंसे एक बार रोये।

सभी आकर लान में पड़ी कुर्सियों पर बैठे, सारिका अब तक चुप थी।

’’दादी हमें तो कल ही आप का पता चला है और आज लेने आ गई, तैयार हो जाइये ।’’ हिमानी चंचल हो रही थी।

’’अपनी माँ से पूछा बेटी ? वृद्धा ने धीमी आवाज में कहा।

‘’माँ जी मुझे माफ कर दीजिए ! मैं अपनी गलती की सजा भुगत रही हूँ । शादी नहीं हो पा रही है इनकी। लोग पूछते हैं कि इनकी दादी कहां है? आप घर चलिये ।’’ सारिका ने  वृद्धा के पैर पकड़ लिये।

युवक ने उनके लिये जलपान का प्रबंध किया। आगे पीछे की बातें होती रहीं।

’’ये मेरा बेटा सोमू है, डा. सोमनाथ, बहुत बड़ा डाक्टर है, अपने पापा  से भी बड़ा! जब मैं इस घर में आई यह एक वर्ष का था, इनके मां पिता जी डाक्‍टर हैं  उन्हें रात हो या दिन जब मरीज आये अस्पताल जाना प़ड़ता था। डॉ. साहब ने इसे पालने के लिये मुझे अपने घर में शरण दे दी, उन दोनों को मेरे हाथ का भोजन बेहद पसंद है। यह तो आज भी मेरे बिना नहीं रह पाता, देखो घर के सब लोग गर्मी की छुट्टी मनाने शिमला गये हैं और यह घर पर ही रुका है। ड्यूटी भी देख रहा है और मुझे भी। वृद्धा अब संभल चुकी थी। डा. सोमनाथ सब कुछ सुन रहा था।

’’मां जी अब हमें इनकी नौकरी की आवश्यकता नहीं है। आपकी उम्र हो गई  है अब घर चलिये।’’ सारिका ने अधिकार पूर्वक कहा।

’’आंटी जी जरा सोच समझकर बात कीजिए! ये मेरी दादी हैं नौकरानी नही। ये कहीं नहीं जायेंगी, आप लोग इज्ज्त के साथ वापस चले जायें। डॅा. की आवाज तल्ख हो उठी।

’’दादी हमारी शादी नहीं  हो रही है आपके बिना , क्या हम पूरी जिंदगी कुंआरी रहे, हमारी क्या गलती है? फिर  मम्मी भी तो आप से माफी मांग रही है न ….?’’ हिमानी उनसे फिर लिपट गई।

’’आकाश बेटा! तू  मुझे लेने आयेगा मैं इसी दिन के इंतजार में जी रही थी, तुझे किसी भी रुप में मेरी आवश्यकता अनुभव हुई यही मेरे लिए बहुत है। मेरी प्यारी बहू मुझे बुलाने आई जीवन का अर्थ पूर्ण हो गया मेरे, उनका कंठ अवरुद्ध हो गया था ऑंखों से अश्रु धार बह रही थी।

’’दादी! सोचना भी मत जाने के बारे में, यदि गई तो मैं समझूंगा कि तुम्हें मुझसे प्यार प्यार नहीं, मेरी सेवा से तुम संतुष्ट नहीं।’’

’’तुमने सोच कैसे लिया कि मैं उस घर में वापस जाउंगी जहां से मुझे दुष्चरित्र ठहरा कर निकाल दिया गया था।’’ वह चिट्ठी़ तुम्हीं ने रखी थी न बहूरानी? 

 मेरे बेटे की नजरो में मुझे गिराने के लिये? मेरा दुर्भाग्य मेरे बेटे ने भी नहीं सोचा कि भरी जवानी में वैधव्य का अभिशाप ढोते …इसे किस दुःख से पाला? अधेड़ उम्र में मैं प्रेम की पींगे बढ़ा सकती थी?

’’ और किसी तरह इनके ऊपर कोई असर होता न देख मुझे यह सब कुछ करना पड़ा , मुझे माफ कर दीजिए मां जी। सारिका अपराधी की तरह निगाहें झुकाये हुए थी।

’’सुनो बहुरानी तुम्हारे पाप की सजा अपनी पोतियो को नहीं दूंगी, इसलिये जब लड़के वाले आयें तब मुझे फोन कर देना, ड्राइवर छोड़ देगा मुझे । जरा भी पता नहीं चलेगा कि तुनमे षड़यंत्र करके अपनी सास को घर से निकाल दिया है।, परंतु एक वादा करो बच्चियों!—

’’क्या दादी मां ’’-तीनो एक साथ बोली। तुम तीनो ससुराल जाकर अपनी मां का आचरण न दोहराओगी।


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