वसुंधरा पटेल “अक्षरा” की छ: घनाक्षरी छंद
वसुंधरा पटेल “अक्षरा”
मनहरण घनाक्षरी छंद
(1)
जय माँ हंसवाहिनी, हे माते वीणावादिनी
सरस्वती भगवती, शारदे माँ वर दे।
चरण शरण तेरी, माते जगदम्बे मेरी
नव सुर ताल नव, नव मधु स्वर दे।
जय पुस्तकधारिणी, कामरूपा कल्याणिनी
ज्ञान-सुधा तन मन,जीवन में भर दे।
अज्ञानी-अबोध हम, हर दे माँ सारे तम
जगमग जगमग,जग सारा कर दे।
(2)
नारियों का मान करो, नही अपमान करो
तेजमयी चंडिका के, बचो उस ताप से।
दाग लगा दामन में, खुशियों के आँगन में
दुखियारी पीड़िता के, बचो तुम श्राप से।
खुश रह पाये कैसे, शोक में जी पाये कैसे
होके बदनाम कोई, सोच लो जी आप से।
पापियों सम्हल जाओ, कृत्य नही दोहराओ
दूर सभी आप रहो, ऐसे घोर पाप से।
(3)
स्वयं जल राष्ट्र को जो, कर सके उजियार
राष्ट्र धर्म हेतु ऐसा, जोत मुझे कीजिए।
बना न सको जो सूर्य, किंचित भी दुख नहीं
तम को हराने को खद्योत मुझे कीजिए।
रक्त का ये कण कण, जीवन का हर क्षण
रोम- रोम देश हेतु, ओतप्रोत कीजिए।
शत्रुओं के झुंड के जो, काटती है रुंड मुंड
ऐसी माता भारती का, स्रोत मुझे कीजिए।
(4)
प्रेम से थी रंक मैं तो, होकर निशंक तूने
अंक जो लगाया मुझे, मैं पवित्र हो गई।
दासी थी दुखों की मैं तो, थी बड़ी उदास प्रिय
पके प्रेम का सुवास, जैसे इत्र हो गई।
मेह थे नयन मेरे, गेह थे ये अश्रुओं के
मिला स्नेह तेरा तो सुखों की मित्र हो गई।
सुबो-शाम आठो याम, जपती तेरा ही नाम
श्याम जी के राधिका का, मैं चरित्र हो गई।
(5)
आया जी बसंत देखो, खुशियां अनंत देखो
चहुँ ओर हरियाली, वन उपवन है।
देख गेहूँ बालियाँ जी, सेमल की लालियाँ जी
पीले-पीले सरसों ने, जीत लिया मन है।
कोयल है मतवाली, आम्र बौर की वो डाली
देख दृश्य मनोहारी , झूमता गगन है।
नव कोपलों के संग, नव पुष्प नव रंग
पी के मकरंद सभी ,खुश अलिगन है।
(6)
राम राम नाम जपे, दशरथ राम जपे
छूट छूट जाये प्राण, आज तो शरीर से।
मति मेरी मारी गई, हाय क्या मैं कर गई
जलती कैकयी आज,पश्चाताप पीर से।
भैया मेरे आप कहाँ, जाऊँ मैं भी आज वहाँ
भरत भी डूब रहे , अँखियों के नीर से।
सूना सूना लग रहा, नही वो अवध रहा
राम बिन जनता भी, व्याकुल अधीर से।
-वसुंधरा पटेल “अक्षरा”
11 मुक्तक -वसुंधरा पटेल “अक्षरा”
बहुत अच्छा लाजवाब ।