विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी
”विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी” डॉ. विनोद कुमार वर्मा द्वारा लिखित एक महत्वपूर्ण शोध ग्रंथ है। इस ग्रंथ के संदर्भ में डॉ विनय कुमार पाठक लिखते हैं कि -“डॉ विनोद कुमार वर्मा ने विमर्श के निकट पर छत्तीसगढ़ी के बहाने भाषा, लिपि और काव्य विमर्श का श्रम और मनोयोग पूर्वक लेखन तो किया ही है साथ ही छत्तीसगढ़ी भाषा के संरक्षण और संवर्धन में समाचार पत्रों पत्रिकाओं छत्तीसगढ़ी फिल्म आकाशवाणी की भूमिका की विस्तार से चर्चा भी की है ।”
पाठकजी आगे लिखते हैं कि-” इस ग्रंथ में व्हाट्सएप के माध्यम से विलुप्त हो रहे छत्तीसगढ़ी छंद विधान सिखाने वाले स्वर्गीय कोदूराम दलित के पुत्र अरुण कुमार निगम व छंद विधान सीखने वाले छत्तीसगढ़ी कवियों पर विस्तृत चर्चा कर छत्तीसगढ़ी काव्य साहित्य में छंदों की प्रासंगिकता को रेखांकित किया गया है। काव्य साहित्य में विमर्श की प्रासंगिकता सर्वविदित है डॉ. विनोद कुमार वर्मा ने इस ग्रंथ में काव्य साहित्य विमर्श को परिभाषित करते हुए उसे तीन भागों भाव विमर्श, तुलनात्मक विमर्श, व विचार विमर्श में विभक्त कर ना केवल उसकी मीमांसा की है बल्कि छत्तीसगढ़ी काव्य साहित्य में विमर्श के साथ प्रकाशित कृतियों व उसकी रचनाओं को समझते हुए एक अनुसंधानपरक कार्य भी किया है।”
इस कृति के संबंध में इनके कृति कार डॉ विनोद कुमार वर्मा स्वयं कहते हैं कि- “छत्तीसगढ़ी गद्य पद्य साहित्य और व्याकरण का जब मैंने अध्ययन मनन किया तब पाया की समस्या उतनी भी बड़ी नहीं है जितनी दिख रही है छत्तीसगढ़ी की अनेक मूर्धन्य विद्वान समस्या की जड़ तक पहले ही पहुंच चुके हैं आवश्यकता केवल उनके विचारों की संप्रेषण का है।”
यह ग्रंथ छत्तीसगढ़ी भाषा के संवर्धन संरक्षण के लिए अतिउपयोगी है। यह ग्रंथ छत्तीसगढ़ी भाषा के लेखक, कवियों के प्रेरणा देने वाली है, एक नई दिशा देने वाली है वहीं विद्यार्थी वर्ग के लिए छत्तीसगढ़ी को निकट से जानने का एक उपयुक्त साधन भी । यह कृति छत्तीसगढ़ राज्य लोक सेवा आयोग जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी अत्यंत उपयोगी है । इस कारण की कृति की समग्रता एवं प्रासंगिकता को ध्यान में रखते हुए संपर्ण कृति ही यहा प्रकाशित की जा रही है । आशा ही नहीं विश्वास है आप इसका अध्ययन कर लाभ उठायेंगे-
संपूर्ण ग्रंथ यहां पढ़े-
Vimash-Ke-Niksh-par-Chhattisgarhi-For-Sanjiv-Tiwari