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व्यंग्य:कायेको झगड़ा भैया,करो सबसे प्रीत रे-विनोद नायक

व्यंग्य:कायेको झगड़ा भैया,करो सबसे प्रीत रे-विनोद नायक

॥ कायेको झगड़ा भैया,करो सबसे प्रीत रे ॥

झगड़ा हो तो उसकी जड़ भी हो वरना बिना जड़ के झगड़े ऐसे होते जैसे बिना मतलब के कुत्ते के मुँह में डण्डी चलाना। जब डण्डी चलाअोगे तो कुत्ता भोंकेगा ही। भोंकेगा अौर हो सकता है काट भी ले। अौर जब काट लेगा तो इलाज भी भारी पड़ेगा । जबकि कुत्ता रातभर आपके दरवाजे पर मुस्तैदी से रखवाली कर रहा था। हमारा तो यही कहना है कि बिना वजह डण्डी चलाना ही क्यों? और डण्डी चला दी तो वहाँ खड़े क्यों रहना?

लेकिन कुछ लोग आपको भडकायेंगे कि यह कुत्ता कोई काम का नही। बस खा कर पड़ा रहता है। इसे क्यों पाल रखा है? इसके लिए कुछ कानून बनाओ। इसे बाँधकर रखो। इसे सुबह शाम गिनकर रोटी दो। इसे ज्यादा छूट देने की जरूरत नही। इससे इसका स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा अौर क्रियाशील भी रहेगा।आपने कानून बना डाला। मतलब कुत्ते के मुँह में डण्डी चला ही दी।

भाई साहब घर – परिवार ,मोहल्ले समाज में ऐसे कानूनों से ही तनाव बढ़ रहा है। तुम देर तक क्यों सोते रहे? तुमने बिजली बिल जमा क्यों नही किया ? तुमने गिफ्ट लेना कैसे भूल गये ? तुम्हें बात करने का तमीज़ नही है। तुम्हें बड़ों की इज्ज़त करना नही आती। तुम्हें खाना खाना तक नही आता। दिनभर मोबाईल में मालूम नही क्या करते हो ?कपड़े तो ढंग के पहन लो। उसकी तरफ ही क्यों देखते रहते हो ? मेरी साड़ी अच्छी नही लगी। मेरे बाल उस से सुंदर नही हैं क्या। मैं ही क्यों करुँ? मेरे मायके के बारे में अाप कुछ मत कहो। मेरा मुँह मत खुलबाओ जैसे वाक्यों से झगड़ा शुरू हो जाता है तो फिर थमने का नाम नही लेता। चार दिन खाना खाना छोड़ देते हैं। बच्चे हैरान परेशान हो जाते हैं। बड़े बुजुर्गों के हाथ में कुछ रहता ही नही जो कुछ बीच में बोल सकें क्योंकि बोले तो वैसा ही होगा जैसे दो साँडों की लड़ाई में बागुड़ का टूटना।

मोहल्ले की गली में कचरा कैसे डाला ? कुत्ते को छी-छी कहीं अौर क्यों नही करा लेते ? ये कचरा भी गाडी़ में क्यों नही डाल दिया ?तुम्हारे बच्चों को मना करो यहाँ नही खेलें। शर्मा जी के घर की खिड़की का काँच टूट गया। तुम्हारी गाड़ी यहाँ मत लगाया करो। लडकों को यहाँ खड़े रहने की क्या जुरूरत है। उसकी लड़की कैसे कपडे़ पहनती है? उसकी बहू क्यों नही आ रही ? उसकी सास कम नही है। उसका ससुर बाहर ज्यादा क्यों घूमता है? उसने मोबाईल में मुझसे कहा। वो तो फलां जाति का है। वो उस राज्य का है। वो तो बहुत झगड़ालू है। उस से बात करने आवश्यकता नही है आदि बिना मतलब के वाक्यों से शुरुआत होती है झगड़े की अौर अंत का कोई ठिकाना नही होता । लेकिन झगड़े की वजह हो या कुछ फायदा हो तो हम तो यहीं कहेंगे की खूब झगड़ा करो । खूब मारपीट करो या फिर जेल, अदालत जाओ ये छोटी मोटी बातों पर कायेको झगड़ा भैया। सबसे प्रीत क्यों नही करते ?

विनोद नायक
77- B , श्री हनुमानजी मंदिर ,पानी टंकी के पास ,
खरबी रोड़ , शक्तिमातानगर , नागपुर -440024
महाराष्ट्र ,

8605651583

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