
वीरेन्द्र कुमार पटेल की 3 कवितायें virendra-kumar-patel-ki-3-kavitayen-
1.मिट्टी तुझे अर्पण
जीवन मुझे तुमसे ही मिला,
मिटाता चलूं सारे शिकवे गिला,
चाहे हो यह भोर-शाम मिला,
सुखद जीवन का ठोर मिला,
करता हूं मैं तुझको ये अर्पण ।
पाया है तुझसे मैंने ये नाम,
करता हूं मैं तुम को सलाम,
जीवन जब तक रहे,
सदा ही करता रहूं प्राण निछावर,
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी,
यही दिन रात में यह जपूं ,
सदा करूं मैं समर्पण,
और करूं रक्त समर में
मिट्टी तुझे अर्पण।।
बनूं धीर- धैर्य और गुणवान,
बढ़ाओ में तुम्हारा सम्मान,
बनूं मैं सदा गौरव, अभिमान,
मार्ग तुम मेरा प्रशस्त करो।।।
किसान बन उपजाया मैंने अन्न,
मजदूर बन किया मैंने निर्माण,
शिक्षक बन किया ज्ञान का प्रकाश में,
और मनुष्य को मानवता सिखाया,
इस तरह जीवन समर्पित करता रहूं मैं,
और दू त्याग, बलिदान सदा,
मिट्टी तुझे अर्पण।
2.महावृक्ष को टूटते देखा
इस महाशून्य काल में,
फसते जंजाल में,
मां के वरदान में,
पिता के ज्ञान में,
मैंने टूटते देखा महावृक्ष को।
जिसके नीचे मिलती है,
जीवन का समस्त सार है,
कई शताब्दी के अनुभव है,
महावृक्ष के बिन
पल भर में मिटते हैं,
क्षण में सारे बंधन,
यूं ही महावृक्ष नीचे मिटते हैं,
सारे पीड़ा, दुःख,
क्योंकि मैंने देखा है,
महावृक्ष को टूटते देखा है।।
कायाकल्प बदल कितना भी मनुष्य,
फिर भी बसेरा बनाए रखने का,
एक ही यथास्थान को,
पाया सदा मैं,
महावृक्ष के नीचे सुख,
की सदा बहता है प्रेम की,
धारा उसके नीचे,
रास्ते कठिन हो फिर भी तय हो जाए,
सभी मार्ग प्रशस्त हो जाते हैं,
महावृक्ष के किनारे,
ना जाने क्यों मैंने मरते देखा है,
महावृक्ष को समाज के आगे ।।
3.शहीद
एक नहीं दो नहीं बहुत सारे,
लोगों की करुण स्वर का,
पुकार है यह,
बहता है खून की धारा,
न जाने कितने मार्मिक कहानी,
मैंने सुने हैं,
किसी के बेटे, भाई, पिता, मित्र को,
खोया होगा,
देश की खातिर जान निछावर,
कर डाले।
एक नहीं दो नहीं बहुत सारे बच्चों की
आंसू है यह,
एक नहीं दो नहीं बहुत सारे मां की
करुण पुकार है यह,
एक नहीं दो नहीं बहुत सारे बहन की,
राखियों के बंधन प्यार है यह,
एक नहीं दो नहीं बहुत सारे दोस्तो का,
अश्रु की धारा है यह।
जीवन जीने की इच्छा शक्ति है पिता का,
वह मेरे देश का वीर जवान, देशभक्त, हैं ओ।
वीरेन्द्र कुमार पटेल ‘पीनाक’