विश्व हिन्दी दिवस-
आज 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस के अवसर प्रो.रवीन्द्र प्रताप सिंह, लखनऊ विश्वविद्यालय उ.प्र.द्वारा लिखति आलेख ‘आइये हिन्दी सोचते हैं’ हिन्दी भाषा लिखने-पढ़ने, बोलने-बतलाने से अधिक हिन्दी को जीने का आह्वान है –
‘आइये हिन्दी सोचते हैं !’
-प्रो.रवीन्द्र प्रताप सिंह
भारत की संस्कृति , वेश भूषा , खानपान , पत्थर , पहाड़ , नदियां , खेत मैदान , सांस्कृतिक स्थान , वातावरण और विशुद्ध भातीय परिप्रेक्ष्य में ढली राजभाषा हिन्दी , उत्कृष्ट वर्णों और शब्दों में पिरोये नित प्रतिदिन बनती संवरती भारतीय परम्पराओं , संस्थाओं और कार्यप्रणालियों के इतिहास की एक लम्बी श्रृंखला है।
प्राचीन भारतीय ग्रंथों से लेकर मध्यकाल तक सांस्कृतिक इतिहास और संस्कृति की समावेशी संरचना से उभरी परिमार्जित देवनागरी लिपि और हिन्दी का समीकरण वर्तमान समय में भारतीय ज्ञान दर्शन को जानने का उत्कृष्ट स्रोत है।
काशी , मथुरा और अन्य सांस्कृतिक स्थलों पर सूरज के उगने का आनंद और आम भारतीयों के भावों के उद्घोष , उत्साह और अभिव्यक्ति हमारी मातृभाषा की सुगमता को न केवल दर्शाते हैं , अपितु जनमानस में एक सांस्कृतिक चेतना उत्पन्न करते है। धूप और सुगंध के धुयें की स्वच्छंदता और सुगंध में ढले जन सामान्य के सामाजिक उत्सव ,गान , परिचर्चाएं हों , सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों में ध्वनित शब्दों की मिठास और शक्ति लिये , विश्व शांति और समृद्धि का संकेतात्मक गुणों से सुसज्जित एक ऐसी भाषा जो मानवीय मूल्यों को समुचित रूप से समायोजित करती है , हिन्दी कहलाती है।
हिन्दी की विशाल शैक्षिक संरचना , ज्ञान दर्शन की ढाल , लचीली समरसता और शब्दार्थों का मूलाधार , भावों के आदान प्रदान की क्रिया और उत्पत्ति के करक का बोध नैसर्गिक रूप से ही देखने को मिलता है , हिन्दी में। ह्रदय को छूने वाले मातृभाषा के शब्द , आम आदमी के विचारों को अभिव्यक्ति देती हिन्दी, विभिन्न स्तरों पर स्वतंत्रता की बागडोर सम्हालती हिन्दी , हमें हर जगह दिखती है। यह हर जगह मिलती है , चाहे उत्कृष्ट कार्यों कार्यों की प्रेरणा का माध्यम चुनने की बात रही , चाहे कवि को जब समुद्रों और जीवों में निवास कर रहे जीवों को जानने की इच्छा हुई हो , चाहे अँधेरे में दिया जलाने की इच्छा हुई ,या यूँ कहें सपनों में आई हर बात को काव्य और गद्य में ढालने की इच्छा हो , हिन्दी भाषा ने मानक बनाये हैं, पथ प्रदर्शित किया है।
कबीर दास , सूरदास , तुलसी दास से लेकर सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद , सूर्य कांत त्रिपाठी निराला , महादेवी वर्मा , रामधारी सिंह दिनकर होते हुये वर्तमान समसामयिक कवि हों, श्याम सुन्दर दास , सरदार पूर्ण सिंह , प्रताप नारायण मिश्र , रामचंद्र शुक्ल, महावीर प्रसाद द्विवेदी , हज़ारी प्रसाद द्विवेदी , जैसे निबंधकार , प्रेमचंद ,भगवती चरण वर्मा , अमृत लाल नागर और अन्य सभी विधाओं में मूर्धन्य रचनाकार , या भारतीय बॉलीवुड ,सभी ने विश्वपटल पर एक ऐसी छाप छोड़ी है , जिनके प्रतिमान ग्रहणीय हैं। प्राकृतिक सौंदर्य और भारतीय परंपरागत माहौल का संरक्षण , मानवता के विकास के मानक और विभिन्न तत्सम्बन्धी आयाम , भारतीय संस्कृति एवं परंपरा के पाठ , हिन्दी के प्रवाह में अविरल गतिमान हैं।
आज के परिप्रेक्ष्य की बात करें तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में हिन्दी की अभिव्यंजना का भाव और इसकी समसामयिक उपयोगिता और हिन्दी के प्रति युवाओं का लगाव देखना एक सुखद अनुभव है।
आवयश्कता है , मानसिक उपनिवेश को दूर भगाने की , हिन्दी का अन्य भाषाओं के साथ सम्बन्ध बनाने का और अपनी भाषा पर आत्मसम्मान का भाव लाने की ।
-प्रो. रवीन्द्र प्रताप सिंह (प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं ,और हिन्दी और अंग्रेजी के नाटककार ,कवि और लेखक । )