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विवाह के लिये सही आयु: यदि बाल विवाह नहीं होना चाहिये तो अधेड़ विवाह भी नहीं होना चाहिये

विवाह के लिये सही आयु: यदि बाल विवाह नहीं होना चाहिये तो अधेड़ विवाह भी नहीं होना चाहिये
विवाह के लिये सही आयु
विवाह के लिये सही आयु

विवाह के लिये सही आयु-

सृष्टि स्वयं में संतुलित है । काल का क्रम नियत है । दिन के बाद रात, रात के बाद दिन और प्रत्येक अवधि का स्वयं का कालखण्ड। समय अविराम चलता रहता है । दिन को अर्थार्जन और रात्रि में विश्राम का प्राकृतिक निर्धारण है । जिस प्रकार फल खाने के लायक तभी रहता है जब वह अधपका न हो न ही वह अधिक पक कर गुलगुला हो । फल की यह नियत स्थिति नियत समय पर स्वमेव आता है, ठीक उसी प्रकार मानव देह की भी विवाह करने की स्थिति प्राकृतिक आती है । विवाह के लिये आवश्क है कि व्यक्ति तन और मन दोनों से परिपक्व हो । यह परिपक्वता एक निश्चित आयु में होता है । जिस आयु में न केवल मन में कामइच्छा प्रबल हो शारीरिक उत्तेजना अधिक हो अपितु शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक परिपक्वता भी अधिक हो यही अनुकूल समय है विवाह के लिये । इस समय के बाद भी विवाह न करना एक फैशन का रूप धारण करता जा रहा है । आज के बच्चे समय पर विवाह न करने लाख बहाना बना रहे हैं । यदि बाल विवाह नहीं होना चाहिये तो अधेड़ विवाह भी नहीं होना चाहिये । विवाह के लिये सही आयु का समेकित निर्धारण होना चाहिये ।

विवाह की न्यूनतम आयु का निर्धारण-

शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास के आधार पर विवाह के लिये सही आयु निर्धारण में विवाह की न्यूनतम आयु का निर्धारण किया गया है –

भारत में कानूनन विवाह की न्यूनतम आयु-

भारत में 1929 के शारदा कानून के तहत शादी की न्यूनतम उम्र लड़कों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 14 साल तय की गई थी । 1978 में संशोधन के बाद लड़कों के लिए ये सीमा 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल की गई । वर्ष 2006 में बाल विवाह रोकथाम कानून ने इन्हीं सीमाओं को अपनाते हुए अपराधिक अधिनियम बनाये गये जिसके अनुसार अब लड़को की शादी 21 वर्ष एवं लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम आयु में किये जाने पर इसके लिये दो साल की सजा और एक लाख जुर्माने का प्रावधान किया गया है । इसी आयु को विवाह के लिये अनुकूल आयु मान सकते हैं ।

यूनिसेफ के अनुसार विवाह के न्यूनतम आयु-

यूनिसेफ के मुताबिक 18 साल से कम उम्र में शादी मानवाधिकारों का उल्लंघन है। इससे लड़कियों की पढ़ाई छूटने, घरेलू हिंसा का शिकार होने और प्रसव के दौरान मृत्यु होने का खतरा बढ़ जाता है । यूनिसेफ (यूनाइटेड नेशन्स इंटरनेशनल चिल्ड्रन्स फंड) के मुताबिक विश्वभर में बाल विवाह के मामले लगातार घट रहे हैं, और पिछले एक दशक में सबसे तेजी से गिरावट दक्षिण एशिया में आई है ।

विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाने की तैयारी-

सरकार लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम सीमा 18 वर्ष को बढ़ाकर 21 करने पर विचार कर रही है । इसके लिये सांसद जया जेटली की अध्यक्षता में 10 सदस्यों के टास्क फोर्स का गठन किया गया है, जो इस पर अपने सुझाव जल्द ही नीति आयोग को देगा । इस सुझाव के अनुसार इस पर निर्णय लिया जायेगा ।

न्यूनतम उम्र बढ़ाने का प्रस्ताव सही नहीं-

लड़कियों के विवाह के न्यूनतम आयु को 18 से 21 वर्ष किये जाने के संबंध में कुछ संगठनों ने 12 से 22 वर्ष की लड़कियों के मध्य एक सर्वे करते हुये उनके विचार एकत्र किये । जिसके निष्कर्ष के रूप में पाया गया कि ज्यादातर लड़कियों का यह मानना है कि विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष किये जाने से लड़कियों को कोई विशेष लाभ नहीं होने वाला है । बहुत लड़कियों का मानना है कि अधिकांश लड़कियों को उच्च शिक्षा दिया नहीं जाता और वे काम नहीं करती इस स्थिति वो अपनी शादी को कैसी चुनौती दे सकती हैं । जहाँ समाज लड़की शादी 18 वर्ष तक तो प्रतिक्षा नहीं कर पाते, 21 वर्ष तक कैसे प्रतिक्षा कर सकेंगे ।

विवाह पर कोई कानूनी बंधन नहीं होना चाहिये-

उपरोक्‍त सर्वे के अनुसार अधिकांश लड़कियों का मानना है कि ‘लड़कियों के लिए स्कूल-कॉलेज जाना आसान बनाया जाना चाहिये, रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जाने चाहिये, जिससे लड़कियां मजबूत और सशक्त हो सकें । आखिर विवाह उनकी इच्छा से होनी चाहिए । विवाह का निर्णय किसी सरकारी नियम पर बंधा नहीं होना चाहिये । यदि कोई लड़की 18 साल की आयु में विवाह करना चाहे, तो वह वयस्क है और उस पर कोई कानूनी बंधन नहीं होने चाहिए ।

अल्‍प आयु में विवाह करना खतरनाक है या सेक्‍स क्रिया करना ?

पूरी दुनिया एक मत से बाल विवाह का विरोध करते हुए कहते हैंं कि बाल विवाह के समय लड़किया शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार नहीं रहती है, लड़के दायित्‍व उठाने में असफल होते हैं । बाल विवाह का जो नुकसान बताया जाता है वह अप्रत्‍यक्ष से कहता है अल्‍प आयु (विवाह के लिए निर्धारित आयु से कम आयु) में सेक्‍स क्रिया के लिए उचित नहीं होता । इसका अर्थ यह है यदि बाल विवाह नहीं होना चाहिए तो अल्‍प आयु में सेक्‍स क्रिया भी नहीं होनी चाहिए । सरकारों को इस पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए ।

कंडोम का निर्माण परिवार नियोजन कर जनसंख्‍या को नियंत्रित करने के लिए किया गया । इसलिए इसका उपयोग केवल और केवल विवाहितों के द्वारा ही होना चाहिए । किन्‍तु कंडोम विक्रेताओं के अनुसार कंडोम का उपयोग 75 प्रतिशत अविवाहित लोग ही कर रहे हैं । इससे सिद्ध होता है कि अविवाहित लोग विवाह पूर्व सेक्‍स क्रिया कर रहे हैं । तो क्‍या इससे बच्‍चों को शारीरिक और मानसिक क्षति नहीं होती ?

एक तरफ सरकार अविवाहितों को कंडोम उपलब्‍ध करा कर अनुचित सेक्‍स को बढ़ावा दे रही है और दूसरी ओर उचित सेक्‍स करने के लिए विवाह करने की आयु को प्रतिबंधित कर रही है । यदि विवाह के लिए न्‍यूनतम आयु की आवश्‍यकता है तो निश्चित रूप से सेक्‍स करने के लिए भी न्‍यूनतम आयु का निर्धारण होना चाहिए ।

विवाह के लिये अनुकूल आयु क्या होना चाहिये –

विवाह के लिये अनुकूल आयु या विवाह के लिये उपयुक्त आयु के संबंध में कुछ निर्णय करने के पूर्व हमें विभिन्न बातों पर चिंतन करना चाहिये:-

भारतीय कानून के अनुसार-

भारतीय कानून विवाह के संबंध में न्यूनतम आयु का निर्धारण तो करता है किन्तु अधिकतम आयु पर मौन है । वर्तमान कानून के अनुसार लड़कों का विवाह न्यूनतम 21 वर्ष और लड़कियों की शादी न्यूनतम 18 वर्ष पर किया जा सकता है ।

सनातन संस्कृति के अनुसार विवाह के लिये अनुकूल आयु-

सनातन संस्कृति में प्रमुख 16 संस्कारों में विवाह 13 संस्कार है। यदि व्यक्ति संन्यास नहीं लेता है तो उसे विवाह करना जरूरी है। विवाह करने से बाद ही पितृऋण चुकाया जा सकता है। सनातन आश्रम प्रणाली में विवाह की आय 25 वर्ष मानी गई है । इस आयु में स्वास्थ्य और कुपोषण की समस्या की समस्या नहीं होती। ब्रह्मचर्य आश्रम में अपनी पढ़ाई पूर्ण करने के बाद ही व्यक्ति विवाह कर सकता था। यह समय विवाह का उपयुक्त समय होता है, अर्थात् विद्याध्ययन के पश्चात विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना होता है।

विज्ञान के अनुसार विवाह के लिये अनुकूल आयु-

विज्ञान के अनुसार 20 से 25 वर्ष की आयु तक शरीर में आवश्यक शारीरिक एवं मानसिक शक्ति का पर्याप्त मात्रा में संचय हो जाता है । इस शक्ति के आधार पर ही व्यक्ति विवाह के शारीरिक, पारिवारिक एवं सामाजिक सभी छोटी-बड़ी दायित्वों को अच्छे से निभा पाने में सक्षम होता है।

नई पीढ़ी के नवयुवकों के विवाह के लिये अनुकूल आयु-

‘मुडेर-मुंडेर मतिर्भिन्ने’, जितनी मुँह, उतनी बातें । भला इस विषय पर भी एक मत कहाँ हो सकते हैं । कुछ लोग सोचते हैं कि समाज या फिर आपके माँ-बाप उनने शादी के लिए क्या आयु तय कर रखी है, इससे हमें कोई मतलब नहीं। जब तक हम शादी के लिये मानसिक रूप से तैयार नहीं होंगे शादी नहीं करेंगे । कुछ लोग सोचते हैं कि 32 से 35 साल के बीच शादी कर लेंगे। दरअसल 20 से 30 साल की उम्र में तो आदमी अपने करियर को सेट करने में ही व्यस्त रहता है, तब शादी के लिए सोच पाना मुश्किल होता है।

अधिकांश लोग मानते हैं कि देर से शादी करने में कभी-कभी आपको वह नहीं मिल पाता जो शायद आपने सोचा है। देर से विवाह करने पर कई बार अच्छे विकल्प मिल जाते हैं तो कई बार ठीक-ठाक विकल्प मिलना भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में सही समय में विवाह कर लेना चाहिये ।

विवाह के लिये अनुकूल आयु से अधिक आयु में विवाह करने से हानि-

शादी करना, न करना, बेशक हर किसी का व्यक्तिगत फैसला हो सकता है। भारत में यूँ तो 18 साल की लड़की और 21 साल के लड़के को कानूनी रूप से शादी करने का हक है, लेकिन आजकल हर कोई शादी से पहले अपनी जिंदगी को सेटल करना चाहता है । किन्तु आजकल कठीन प्रतियोगता के दौर में सेटल होना आसान नहीं है फिर करियर की महत्वाकांक्षा का कोई अंत नहीं है । ऐसे में क्या विवाह में अनावश्यक विलंब किया जाना चाहिये ? विवाह के लिये अनुकूल आयु का विचार नहीं करना चाहिये ?

परिवारिक हानि-

नई पीढ़ी चाहे कुछ भी सोचे हमारे देश में समय पर विवाह न होना अच्छा नहीं माना जाता । माँ-बाप भी चाहे कितने भी नई सोच के और व्यवहारिक हों, उन्हें आखिरकार रहना तो समाज में ही पड़ता है। ऐसे में सही समय पर बच्चों के विवाह के लिये तैयार न होना माँ-बाप के लिये सिरदर्द बना रहता है । इससे घर की शांति भंग होती है। साथ ही आपके माता-पिता की सेहत भी प्रभावित होती है। उन्हें चिंता रहती है कि बच्चों की शादी नहीं हो रही है। गाहे-बगाहे उन्हें लोगों की बातें सुनने को मिलती हैं। इस तरह शादी के लिए भावनात्मक रूप से काफी दबाव होता है। इस प्रकार इस विषय को लेकर परिवार में एक तनाव का माहौल बना रहता है ।

सांस्कृतिक मूल्यों की हानि-

जिस प्रकार शरीर में भूख-प्यास, नींद की जागृति होती उसी प्रकार मन में काम-वासना की भी जागृति होती है । इसे कोई झूठला नहीं सकता । चुंबक के विपरीत ध्रुवों के भांति यौवन अवस्था में विपरीत लिंगों के प्रति आकर्षण स्वभाविक होता है । ऐसे में इस इच्छा की पूर्ति किसी न किसी रूप में करने का प्रयास होने लगता है, इस प्रयास के चलते समाज का एक विकृत रूप भी यदा-कदा देखने को मिलता है ।

मनुष्यता की हानि-

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उनके हर आवश्‍यकता के लिये एक सामाजिक नियम और सामाजिक संगठन है । काम-इच्छा की पूर्ति के लिये विवाह आवश्‍यकता है । मनुष्‍य पशुओं की भांति स्वच्छंद रतिक्रिया नहीं कर सकता । मनुष्‍य भी यदि जहाँ मुँह लगे वहीं मुँह मारने लगे तो मनुष्य और पशु में क्या अंतर रह जायेगा ?

दायित्वबोध की हानि-

अधिकांश युवक-युवती विवाह के पूर्व अपने आप को पारिवारिक दायित्वों से स्वतंत्र समझते हैं । इस सोच के कारण उनमें पारिवारिक दायित्व का बोध नहीं होता । इससे परिवार का ताना-बाना छिन्न-भिन्न होने लगते हैं । घर में माँ-बाप के साथ सभी ज्येष्ठ-वृद्ध लोग तनाव और अवसाद में रहते हैं ।

सही विकल्प का न मिलना-

अधिक आयु में विवाह करने से व्यक्ति को अपने इच्छा के अनुरूप जोड़ी नहीं मिल पाता । अपने सपनों के राजकुमार और अपनी सपनों की रानी सपने में ही रह जाते हैं । अधिक आयु में विवाह करने पर वर-वधु के चयन में समझौता करना पड़ जाता है ।

विवाह पश्चात शारीरिक दुर्बलता-

अधिक आयु में विवाह करने का सबसे खतरनाक परिणाम देखने में यह आ रहा है कि लोग विवाह पश्चात शारीरिक संबंध में असंतृप्ता का अनुभव कर रहे हैं । यही एक मुख्य कारण है लोगों के बीच या तो अवसाद बढ़ रहे हैं या विवाह विच्छेद हो रहे हैं । बांझपन की समस्या में भी वृद्धि देखा जा रहा है ।

बच्चों के परिवरिश करने के लिये कम समय का मिलना-

अधिक आयु में विवाह करने से बच्चे भी अधिक आयु में होते हैं । जिस समय बच्चे शिशु या किशोर होते हैं माँ-बाप स्वयं को बूढ़े अनुभव करने लगते हैं । बच्चों के आर्थिक आवश्यकता तो पूरा करत सकते हैं किन्तु अन्य अवश्यकताओं की पूर्ति करने में कहीं न कहीं अपने आप को ठगा सा महसूस करते हैं ।

का वर्षा जब कृषि सुखाने-

सही समय पर सही काम करने की सद्प्रेरणा सभी देते हैं । समय के पहले और समय के बाद किये गये काम को चुका हुआ अथवा असफल माना जाता है । सही समय पर सही काम करने का अपना अलग महत्व होता है ।

‘का वर्षा जब कृषि सुखाने । समय चूकि पुनि का पछिताने ’’

इसका साधारण अर्थ है कृषि सूख जाने के पश्चात हुई वर्षा से क्या लाभ ? वर्षा की उपयोगिता तो तभी है जब कृषि सूखने के पूर्व वर्षा हो । लेकिन इसका विलोम इससे अधिक कटु सत्य है कि वर्षा समाप्त होने के बाद कृषि करने से क्या लाभ ? कृषि तो आपको वर्षा पर ही करनी होगी ! चाहे लाख कृत्रिम साधन हो किंतु कृषि तो वर्षा ऋतु में ही फलदायी है । इसलिये विवाह के लिये अनुकूल आयु पर विवाह कर लेना चाहिये ।

-रमेश चौहान


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