व्‍यक्तित्‍व एंव कृतित्‍व के आइने में श्री रामेश्‍वर वैष्‍णव-डुमन लाल ध्रुव

व्‍यक्तित्‍व एंव कृतित्‍व के आइने में श्री रामेश्‍वर वैष्‍णव

व्‍यक्तित्‍व एंव कृतित्‍व के आइने में श्री रामेश्‍वर वैष्‍णव-डुमन लाल ध्रुव
व्‍यक्तित्‍व एंव कृतित्‍व के आइने में श्री रामेश्‍वर वैष्‍णव-डुमन लाल ध्रुव

व्‍यक्तित्‍व एंव कृतित्‍व के आइने में श्री रामेश्‍वर वैष्‍णव

बाप के पद विद्वान बनाथे- डुमन लाल ध्रुव

हिन्दी-छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रखर कवि, गीतकार एवं प्रयोगधर्मी व्यंग्य लेखक श्री रामेश्वर वैष्णव जी के जीवन चरित से पता चलता है कि अपने साहित्य में भाव, भाषा और छंद- शिल्प के नए-नए प्रयोग किए हैं साथ ही हिंदी और छत्तीसगढ़ी साहित्य में कुछ नवीनता लाने के विचार से स्वयं काव्य सृजन आरंभ किया।

श्री रामेश्वर वैष्णव जी का जन्म 1 फरवरी 1946 खरसिया (रायगढ़) में हुआ । छत्तीसगढ़ी गीत, पत्थर की बस्तियां (गजल संग्रह), अस्पताल बीमार है, नोनी बेंदरी, जंगल में मंत्री, खुशी की नदी, शहर का शेर, छत्तीसगढ़ महतारी महिमा, बाल्टी भर आंसू, गिरगिट के रिश्तेदार प्रमुख कृतियां हैं। जब उनकी पहली प्रसिद्ध कविता मासिक पत्रिका सीने गाईड में ’’तुम अगर वोट देने का वादा करो, मैं यूं ही मंत्रीमंडल बनाता चलूं’’ सन 1966 मैं प्रकाशित हुई थी तब उनकी आयु मात्र 21 वर्ष की थी। सन 1967 से अब तक देश भर की पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई और फिल्म ’’नैना’’ में अभिनय एवं कवि सम्मेलनों में बेहद लोकप्रिय हुए। सन.1986 से 1993 तक समाचार पत्र नवभारत में हास्य व्यंग्य की कालम ’’उत्ता-धुर्रा’’ लिखकर छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्ध किया। श्री रामेश्वर वैष्णव जी छत्तीसगढ़ी के घोर प्रयोगवादी कवि रहे हैं। इन्होंने छत्तीसगढ़ी में भांगड़ा गीत, गजल, कव्वाली, ब्रेक डांस, रेप सांग और तो और माहिरा लिखा है याने छत्तीसगढ़ी में प्रायोगिक की जितनी सीमाएं हैं उन्होंने अपनी रचनाधर्मिता में किया है । शास्त्रीय राग में भी गीत रामायण का अनुवाद किया है। उन्होंने श्री अनिल मिश्र पारस की कविताओं का संकलन, वैष्णव दीपिका (सामाजिक पत्रिका), एवं छत्तीसगढ़ की गजलें (छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण गजलकारों की गजल पर केंद्रित कृति) संपादन किया है।

श्री रामेश्वर वैष्णव जी हिंदी-छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन के मंच पर चमकने दमकने वाला कवि हैं जो न केवल अपनी गीत रचना के लिए, बल्कि फिल्मी स्टाइल की धुनों को भी छत्तीसगढ़ी गीतों में पिरोने की कला जानने वाले कवि हैं । कई मंचों में गजल के माध्यम से हिंदी कवियों की सामर्थ्य को ऊंचे स्वर में सिद्ध कर दिया। यही नहीं उन्होंने इस दंभ का भी जवाब दे दिया कि गजल हिंदी में भी कही जा सकती है और उतने ही प्रभाव के साथ कही जा सकती है । कवि सम्मेलन मंच में श्री रामेश्वर वैष्णव जी छत्तीसगढ़ी भांगड़ा के लिए जग जाहिर हैं —

ये चटनी बासी खाले बेटा
जादा झन इतराबे
अउ जादा इतराबे त सिद्धा
कोलिहा देवरी जाबे
एक के तंय कुकुर पोस ले
एक के तंय छेरी पोस ले
एक के तंय कोलिहा पोस ले

श्री रामेश्वर वैष्णव जी कवि सम्मेलन के मंचों में लगभग 54 वर्षों एवं 60 वर्षों से साहित्य साधना कर रहे हैं। प्रारंभ से ही उनकी भाषिक संरचना में एक नयापन था। वह आधुनिक बोध के अत्यंत प्रतिभाशाली गीतकार कवि हैं। गहराई से देखें तो उनकी भाषा में विषय और चिंतन के अनुसार अनेक प्रयोग मिलते हैं।

दुनिया में सबसे न्यारा, छत्तीसगढ़ हमारा,
है जान से भी प्यारा , छत्तीसगढ़ हमारा,
हरियालियों में लिपटे हैं अंतहीन जंगल,
हर ओर गूंजते हैं नित लोक गीत मंगल,
पर्वत की चोटियों पर मंदिर हैं आस्था के,
नदियों के किनारों पर मेले सुखद व्यथा के ,
अद्भुत अजस्र धारा, छत्तीसगढ़ हमारा…

जैसे गीतों में अपने भीतर झांककर प्रमाणिक अनुभूति का उन्होंने सफल चित्रण किया है । इधर उन्होंने इतिहास बोध पर बहुत से गीत लिखे हैं । बाहर के घटनाक्रम की गीतात्मक अभिव्यक्ति आज के गीत की प्रवृत्ति बन गई है । रामेश्वर वैष्णव जी की विशिष्ट रचनात्मकता तो अंतरावलोकन और अंतरानुभूति के गायन में है। वास्तव में संवेगों की घरघराहट और मूल्यबोध पर पड़ते दबाओं की निजी अनुभूति ही ’’नासूर’’ जैसे पंक्तियों का प्राण तत्व है। वर्तमान परिस्थितियों के प्रभाव में मानवीय त्रासदी को अभिव्यक्त करती है-

झांझ मृदंग सिसकियां भरते
अधर मौन, चुप हुए तमूरे.
मेरे गांव नहीं संभव अब
हों तेरे सब सपने पूरे .
यौवन भटक रहा पगलाया ,
पैरी भी चुपचाप रो रही .
’’सुआ – ददरिया’’ गूंजे कैसे
यहां जागृति स्वयं सो रही.
पैरों में भर गई विवशता
’’करमा नाच’’ थका हारा है.
’’पंडवानी’’ के होंठ सिले हैं
’’साल्हो’’ केवल बंजारा है .
पेट पालने को किसान अब,
आसामी मजदूर बन गए,
छत्तीसगढ़ तेरे खरौंच भी
जाने क्यों नासूर बन गए.

श्री रामेश्वर वैष्णव जी की काव्य में आज की लोक चेतना, सांस्कृतिक रागात्मकता और नई भाव की अर्थमयता का अद्भुत समन्वय है।

गीतों से आप्लावित कण कण
हर व्यक्ति जहां का कलाकार
खुद लोक कला हर नारी है
जो समरसता का उदाहरण.
सद्भाव , सुरभि फुलवारी है.
संस्कृतियों का अद्भुत संगम
मेलों ठेलों का कुंभ रुप.
हर तरफ प्रकृति की हरियाली.

सन् 1995 से यशस्वी कवि स्वर्गीय श्री नारायण लाल परमार जी की जन्मदिन को यादगार बनाने के लिए साहित्य संगीत सांस्कृतिक मंच मुजगहन, धमतरी के कार्यक्रम में मेरे आग्रह पर श्री रामेश्वर वैष्णव जी मुजगहन आते थे । कार्यक्रम में हिंदी छत्तीसगढ़ी की गीत जी भर सुनाते थे । हजारों का जनसैलाब रामेश्वर वैष्णव जी को सुनने के लिए बैठते थे । रामेश्वर वैष्णव जी की खासियत यह है कि वह सदैव सहज और अलंकृत शैली का प्रयोग करते हैं। उनके गीत जमीन और जीवन के अधिक निकट है। जो शब्द अपनी स्वाभाविकता के साथ आ जाते हैं वे निरू संकोच उनका प्रयोग कर लेते हैं । रामेश्वर वैष्णव जी की छत्तीसगढ़ी गीतों ने उन्हें काफी शोहरत दी । छत्तीसगढ़ी में जितने भी गीत लिखे जीवन में खरी उतरी है । क्योंकि छत्तीसगढ़ी गीतों में जीवन की कहानी को दोहराते हुए एकनिष्ठ प्रेम के प्रति अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करते हुए अपनी माटी के प्रति त्याग और बलिदान को इस गीत में पिरोया है।

अब मोला जान दे संगवारी
आधा रात पहागे मोला घर मां देही गारी
गांव भर के सब मइन्से सुतगिन
देख चिरई चिरगुन सुतगिन
पुरवाई ओंघावत हावय,
ठाढ़े रूखराई मन सुतगे
नदिया सुतगे, नरवा सुतगे
छानी सुतगे, परवा सुतगे
दिन-दिन भरके थके मांदे
कोठा में सब गरूवा सुतगे
सोवथे रात ये अंधियारी, अब मोला जान दे संगवारी।

श्री रामेश्वर वैष्णव लोक जीवन के यथार्थ, उसके अनुभव , उसकी भाषा, उसमें जीवंत छंद और कविता के विभिन्न रूप अर्थात पूरी लोक संस्कृति से अपनी काव्यानुभूति की संस्कृति निर्मित करते हैं। इसलिए साधारण जन को भी उनकी कविताएं सहज तथा आत्मीय लगती है, उसके मन को छूती है और उसकी चेतना को जगाती तथा प्रेरित करती है। रामेश्वर वैष्णव जी की गीत केवल आंखों के लिए ही नहीं है, वह कानों के लिए भी है। तात्पर्य यह है कि वह केवल पढ़ने की वस्तु ही नहीं है। सुनने के लिए भी है। इसीलिए श्री रामेश्वर वैष्णव जी की गीतों के पाठकों का दायरा जितना बड़ा है उससे कहीं अधिक व्यापक है श्रोता – समुदाय । वैष्णव जी जब गीत लिखते हैं तब उनके सामने गीतों के पाठक और श्रोता मूर्त रूप में होते हैं, केवल विदग्ध पाठक और चुने हुए श्रोता नहीं, साधारण पाठक और श्रोता के रूप में गांव की अनपढ़ जनता भी। उनके गीत अपनी पहुंच के लिए उम्र की कोई सीमा स्वीकार नहीं करती, वह बच्चों, जवानों और बूढ़ों तक पहुंचती है। छत्तीसगढ़ी फिल्म ’’झन भूलो मां बाप ला’’ में श्री रामेश्वर वैष्णव जी द्वारा मां-बाप की महान पीड़ा करुणा की खोज और पहचान की है। मां-बाप का विलाप वस्तुतः रामेश्वर वैष्णव जी की हृदय की अभिव्यक्ति है ।

नौ महीना ले कोख मा रखथे
कतको जोखिम सहिथे जी
नवा जनम पाथे तब ओला
दाई कोनो कहिथे जी
बाप के पद विद्वान बनाथे
कईसनो अंगूठा छाप ला
सुख मा दुख मा कभु कहूं तुम
झन भूलो मां बाप ला .

-डुमन लाल ध्रुव
प्रचार-प्रसार अधिकारी
जिला पंचायत-धमतरी
मो. नं. 9424210208

इसे भी देखें-मर्मस्पर्शी गीतों के सृजनकर्ता रामेश्वर वैष्णव

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