कहानी: मृत्यु की प्रतिक्षा सूची

कहानी: मृत्यु की प्रतिक्षा सूची

-रमेश चौहान

waiting list for death

छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर का मेकाहारा हॉस्पिटल निर्धन और मध्यम वर्गीय  परिवार के लिए जीवन रेखा है । यहां समूचे छत्तीसगढ़ के अतरिक्त उडिसा जैसे राज्यों के लोग भी इलाज कराने आते हैं। सुख-दुख, स्वास्थ्य में उतार -चढ़ाव जीवन का अनिवार्य क्रम है । मुझे अपने बेटे को लेकर मेकाहारा  जाना पड़ा, उसके जोड़ो में असहनीय दर्द था । आपातकालीन कक्ष में मेरे रोगी का निरीक्षण कर और औपचारिकता पूर्ण कर हमें जनरल वार्ड 9 में शिफ्ट कर दिया गया ।  36 बिस्तरीय यह वार्ड पूरी तरह मरीज और उनके परिजनों से भरा पड़ा था । 32 नम्बर के बेड पर मेरे मरीज का उपचार शुरू हुआ। तीन दिन  के उपचार के पश्चात मेरे बेटे ने राहत महसूस किया  इसी दिन शाम को हमारे बेड़ से लगे बेड नम्बर 33 पर एक वृद्ध जिनकी आयु लगभग 65 वर्ष रहा होगा को शिफ्ट किया गया।

कुछ घंटे पश्चात मैंने देखा  वह वृद्ध पुरुष असहाय अवस्था में था । उसके बगल में एक टिप टॉप दिखने वाली अधेड़ उम्र की महिला खड़ी थी,  ऊंचे हिल का सेंडल,  बदन से चिपका हुआ सलवार और कुर्ता, चेहरे पर मेकअप के चिन्ह  साफ दिख रहे थे । दिखने से वह तथाकथित आधुनिक सभ्य महिला  थी । वह बार-बार  बूढ़े व्यक्ति पर रह-रह कर चिल्ला रही थी हाथ सीधा करो-हाथ सीधा करो, दरअसल उनके हाथ के कोहनी के पास केनुला लगा हुआ था ड्रिप देने के लिए  ।  उसे आशंका  थी उसके हाथ मोड़ने से ड्रिप जाना बाधित हो सकता है । वह महिला  मरीज के हाथ को पकड़ कर स्वयं सीधा करने के बजाय उसे स्पर्श  करने से लगातार  बच रही थी ।  वह महिला एक हाथ में रुमाल से नाक ढक रही थी, दूसरे हाथ में एक छोटा हैंड बैग लगातार लटकाई हुई थी।  

बहुत देर तक मैं देखता सुनता रहा आखिरकार मुझसे नहीं रहा गया तो मैं उस महिला से मुखातिब होते हुए कहा मरीज पर यूं नहीं झल्लाना चाहिए । वह कुछ शांत हुई । मैने देखा का बूढ़ा बार- बार उठने का प्रयास कर रहा था और वह महिला उसे झिड़क देती । मैंने उस बूढ़े से पूछा क्यों बार-बार उठना चहते हो ।  उसने कुछ तुतलाते हुआ कहा पेशाब जाना है । महिला ने कहा डायपर लगा है यही पर मूत । 

यह आपके कौन लगते हैं? मैंने उनसे पूछा । 

उसने दबे आवाज में कहा पति है मेरे ।  

मुझे न जाने ऐसा लगा कि वह महिला उसे पति कहते हुए अपने आप में शर्मिंदा महसूस कर रही थी ।  यह जवाब मुझे  सोचने पर मजबूर कर रहा था यह कैसे पति-पत्नी का संबंध है । ताउम्र साथ जीने-मरने की कसमें खाने वालों में ऐसा यह अजीब प्राणी। 

मैंने कहा बुजुर्ग लोग डायपर में पेशाब करने में शरमाते हैं। चलो इसे टायलेट ले चलते हैं मैं आपकी मदद करूंगा।  ऐसा कह कर मैं उसे बिस्तर से खड़ा करने का प्रयास किया उसकी पत्नी ने कहा इसे लकवा है चल नहीं पायेंगे। मैंने कहा सहारा देने पर?  उसने कहा धीरे -धीरे चल लेंगे । मैंने कहा मैं इसे उठाता हूं आप इसके बाह सम्हाले रखना मैंने झट से उस बूढ़े व्यक्ति को बिस्तर से नीचे खड़ा कर दिया अब उनकी विवशता थी उसे सम्हालने के लिए उसके बाह पकड़े । अभी एक ही कदम वह चला होगा उस महिला ने पास में खड़े एक युवक से अपने पति को सम्हालने के लिए कहकर अपना हाथ अपने पति से अलग कर लिया मैंने अकेले उस बूढ़े को सम्हाले रखा न  उस युवक ने हाथ लगाया न वह महिला ने ।  मैं मुश्किल से दो-चार कदम चला पाया कि मुझे लगने लगा यह अकेले नहीं हो पायेगा मैंने जैसे-तैसे उस बूढ़े को उसके बेड में वापस पसार दिया ।  

अब तो पहले से अधिक विकट समस्या आ गई उस महिला के लिए । उस बूढ़े के बैड से अजीब दुर्गंध आ रहा था दरअसल उसका डायपर खराब हो चुका था । बूढ़ा मल-मूत्र त्याग चुका था । डायपर चेंज करना आवश्यक था बदबू से आसपास के बेड वालों को भी परेशानी हो रही थी । यह काम  उस महिला के वश से  बाहर लग रहा था । 

उसने मुझे सहयोगी प्रवृत्ति का मान कर मुझ से कहा कोई डायपर चेंज करने वाला खोज दीजिए न? जो खर्च लगेगा दूंगी । उन्होंने  बताया कि इसे दस्त हो रहा है, इसी कारण  यहां एडमिट कराया है। मैंने एक वार्ड ब्वाय से बात किया उसने बताया कि एक बंदा है  वह कर देगा लेकिन एक-दो घंटे तक कोई व्यवस्था नहीं हो पाया । मैंने  उससे कहा अपने बेटे को बुलवा लो मदद करेगा,  उसने कहा वह यह नहीं कर सकता । मैंने कहा मैं बेड के पास कार्टर स्ट्रेचर ला देता हूं, और आपके  पति को उठाने, डायपर चेंज करने  में मदद कर दूंगा, लेकिन चेंज तो आपको ही करना होगा। वह कुछ गंभीर होकर कहा चलो करते हैं। 

वार्ड के कार्नर में पड़े कार्टर स्ट्रेचर को मैं  सरकाते हूए उसके बेड तक लेकर आया । उसके बेड को कव्हर किया बूढ़े के चड्डे के नाड़े खींचकर नीचे किया वह महिला डायपर खोलने लगी, मैंने उसके भावभंगिमा के अध्ययन से पाया वह बड़ी मुश्किल से यह कर पा रही थी।  उसके आधे से ज्यादा काम को तो मैं ही पूरा किया जैसे तैसे उस बुजुर्ग का डायपर चेंज करने में हम सफल रहे। 

डायपर चेंज करने के बाद वह महिला  वार्ड से गायब हो गई पता नहीं कहां और क्यों? इस बीच वह बूढ़ा मरीज असहाय अवस्था में पड़ा रहा, वह बार-बार बिस्तर से उतरने का प्रयास करता, उसका बेड से नीचे पैर रखने का अर्थ था एक दुर्घटना को निमंत्रण देना । मैंने उसे तीन-चार बार गिरने से बचाया । मैं भी रातभर उसका देखरेख नहीं कर सकता था आखिर मुझे भी अपने मरीज को देखना था और सोना भी था । मैंने वार्ड ब्वाय से कहकर उसका हाथ बेड से बंधवा दिया ताकि वह बार-बार उठने का प्रयास न करें। फिर मेरे मरीज और उस बूढ़े मरीज के बेड के गेप पर चटाई डालकर मैं सोने लगा । 

इस जनरल वार्ड में यह चर्चा चल पड़ी थी यह कैसी महिला है, जो अपने पति को  इस बीमार अवस्था में छोड़कर चली गई है । गायब होने के लगभग दो घंटे के अंतराल वह महिला एक पुरुष के साथ प्रगट हुआ । मुझे नींद लगने ही वाली थी,  मैंने देखा 45-50 वर्षीय वह पुरुष, जो तथाकथित आधुनिक समाज के सभ्य, हाई एज्यकेटेड, धनी लग रहा था,  बूढ़े के हाथ को बंधा देखकर बहुत खुश हुआ, शायद उनके मन में बूढ़े की गिरने की आशंका रही हो या और कुछ कारण लेकिन वह खुश बहुत था। उसने कहाअच्छा किया इसके हाथ बंधवा दिया गया । मैंने उस महिला से सोते-सोते पूछा क्या यह आपका बेटा है? उसने प्रश्न को बीच में ही छोड़ते हुए उत्तर दिया नहीं जान पहचान का पड़ोसी है। मैंने ठीक है कहकर सोने लगा । वार्ड में दाखिल सभी मरीज के अटेंडर परिजन महिला-पुरुष दो बिस्तरों के खाली जगह में जमीन पर चटाई डालकर पसर रहे थे । ये दोनों, बूढ़े के बिस्तर के पास किंतु कुछ दूरी बना कर  अटेंडर स्टूल पर बैठे थे । मैंने सोते-सोते देखा जो महिला अपने पति को छूने से हिचकिचा रही थी, जो उससे दूरी बना रही थी, जो अपने पति से प्रेम से बोलना तो छोड़िए सीधे मुंह बात तक नहीं कर रही थी वहीं महिला उस पड़ोसी के चेयर से  अपना चेयर सटाते हुए बैठ बड़े ही लाड़ से गप्पे लड़ा रही थी।  मैंने नींद के आवेश में जाने से पहले देखा वह पड़ोसी  अटेंडरों के स्टूल चेयर इक्कठा  कर परस्पर सटा कर उस महिला के  सोने के लिए जुगाड़ से पलंग तैयार  कर दिया । वह महिला उसमें पसर गई, जुगाड़ कुछ कम था पैर पसारने को । उस महिला  के उस पड़ोसी ने उससे  कहा वह अपना पैर उनके गोदी में रखे, वह महिला बड़े आराम से अपने दोनों पैर उनके जांघो पर फैला ली फिर क्या हुआ मुझे नहीं पता क्योंकि मैं नींद में समा गया था ।

सुबह उठा अपने मरीज के देखरेख से फुर्सत होने पर पुन:  उस महिला और उसके पड़ोसी से मुखातिब हुआ। आपसी बातचीत होना स्वाभाविक था क्योंकि मेरे मरीज और उनके मरीज के बिस्तर एक दूसरे के अनुक्रम में थे । चर्चा के दौरान उस महिला ने बताया उसका पति कृषि विभाग के बड़े ओहदे से सेवानिवृत्त हुए हैं अब हम इनके पेंशन पर है।   उनके परिवार के संबंध में पूछने पर पता चला उनके एक बेटी और दो बेटे हैं। बेटी यहीं  रायपुर  में ब्याही है । कल अपने पापा को देखने आई थी, इस वजह से उनका आज तबियत खराब हो गया है । बड़ा बेटा और बहू दोनों भोपाल में सरकारी नौकरी में हैं छोटा बेटा MBA की परीक्षा दे रहा है।  

इस बीच डाक्टरों का दल मरीजों के निरिक्षण के लिए आ पहुंचा। उनके मरीज के निरीक्षण के पश्चात डाक्टरों ने पांच प्रकार   के जांच कराने का काम उन्हें सौंपा । जांच कराने के लिए मरीज को स्ट्रेचर  या व्हील चेयर की सहायता से एक कमरे से दूसरे कमरे ले जाना ही होता है और यह कार्य मरीज के परिजन अटेंडर ही करते हैं। केवल जो मरीज ऑक्सीजन  पर होते हैं, उन्हें ही  वार्ड ब्वाय अटेंड करते है । अब इस काम के लिए भी उस महिला को सहयोगी चाहिए जिसका मिलना असम्भव नहीं तो कठिन जरूर था । मैंने उस महिला से कहा उसे बंदे को पकड़ ले जो रात को आपको सहयोग किया था, उसने कहा वह पैसा बहुत मांगता है अभी तक दो बार डायबर चेंज करने और इसकी सफाई करने के लिए 800 रूपये दे चूंकी इससे तो प्रतिदिन 1000 रूपये पड़ेगा यह काफी महंगा है ।  इस बीच उस महिला और उसके पड़ोसी के बीच काना-फुसी हुई दोनों ने कुछ तय करने के बाद महिला ने डाक्टर से कहा मैं अकेली हूं यह सारा काम मैं नहीं कर सकती बड़ा बेटा भोपाल में रहते हैं, वह वहीं बुला रहे हैं। डाक्टर ने कहा मरीज का इलाज कराना जरूरी है आप क्या चाहती हैं?  छुट्टी! महिला ने कहा । डाक्टर ने महिला के रिस्क पर मरीज को छोड़ने राजी हो गए। 

इस बीच वह पड़ोसी मुझ से बातचीत करते हुए बताया कि इसका बड़ा बेटा और बहू दोनों भोपाल में नौकरी कर रहे हैं, वे तो नौकरी छोड़ कर आ नहीं सकते, बेटी को हास्पिटल सूट नहीं करता, छोटा बेटा MBA की परीक्षा दे रहा है, वह परीक्षा की तैयारी करे या अस्पताल में ड्यूटी, रही मेरी बात तो मैं ठहरा पड़ोसी और पेशे से वकील  मैं तो समय दे ही नहीं सकता और यह अकेली महिला  क्या कर लेगी? 

इस बीच उस महिला का छोटा बेटा जो MBA का परीक्षा  दे रहा था, वह भी प्रगट हुआ, दिखने में वह सीधा-साधा और सभ्य लग रहा था । मुझे उम्मीद बंधी शायद यह बेटा अपना फर्ज निभायेगा, लेकिन यह क्या वह लड़का अपने बाप  के अस्पताल से असामान्य छुट्टी लेने के कागजात पर हस्ताक्षर किए और चलते बने ।

मै दो दिन से अनुभव कर रहा था न महिला, न उसका पड़ोसी न ही उसका बेट किसी ने भी उस बूढ़े से न कोई बातचीत किया न कुछ पूछा ।  

मैं अपने अंदर चिंतन मनन कर रहा था, शायद यह बूढ़ा अपने कमाई का अधिकांश भाग अपने बच्चों के परिवरिश में खर्च किया होगा तभी तो बेटा सरकारी नौकरी पर हैं, बहू भी और छोटा बेटा MBA कर रहा हैख् यह भी तो पैसे का ही खेल है । उसकी पत्नी स्वीकार कर चुकी थी अब उनका खर्च भी इस बूढ़े के पेंशन पर ही चल रहा है । लोग कहते हैं जिसका खायें, उसका गायें लेकिन यहां तो दृश्य ऐसा था जिसका खायें उसे डरायें । मैं अपने विचारों के उधेड़-बुन में लगा था, उधर उस बूढ़े की छूट्टी हो गई । उसके परिजन उसे भोपाल इलाज कराने ले गए या मृत्यु की प्रतिक्षा सूची डालने यह तो राम जाने ।

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