बच्‍चों को आखिर क्‍यों पढ़ायें ? (Why teach children after all?)

बच्‍चों को आखिर क्‍यों पढ़ायें ? (Why teach children after all?)

बच्‍चों को आखिर क्‍यों पढ़ायें ? (Why teach children after all?)
बच्‍चों को आखिर क्‍यों पढ़ायें ? (Why teach children after all?)

विद्या का जब से शिक्षा के रूप में स्‍कूलीकरण हुआ है तब से आज तक एक प्रश्‍न समान्‍तर चल रहा है । बच्‍चों को आखिर क्‍यों पढ़ाये ? हालाकि इस प्रश्‍न का संदर्भ 19 वीं सदी में अलग था और 21वीं सदी में अलग । 19वीं सदी में जब साक्षरता का प्रतिशत दर 1 से 5 प्रतिशत रहा होगा तब लोगों को साक्षर करने का उद्यम  किया गया तो लोग पूछने लगे -बच्‍चों को आखिर क्‍यों पढ़ायें ? जवाब दिया गया यदि आपके बच्‍चें पढ़गे तो उनका विकास होगा आपके परिवार का विकास होगा अपकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगी । आपके बच्‍चे साहब, बाबू बनेगें आपका नाम होगा । इस सब्‍जबाग का धीरे-धीरे इतना प्रभाव हुआ 20वीं सदी के अंत तक में शिक्षा का व्‍यवसायीकरण हो गया और आज शिक्षा आवश्‍यकता से अधिक एक फैशन हो गया । यही कारण 90 प्रतिशत परिवार अपने परिवार के आय का एक बड़ा भाग बच्‍चों के शिक्षा में लगा रहे हैं ।  21वीं सदी के प्रारंभ में शिक्षा के दुष्‍परिणाम के रूप में परिवार का विघटन, संस्‍कृति का क्षरण,  नैतिकता में कमी ने उसी प्रश्‍न को एक नये संदर्भ खड़ा कर दिया है -बच्‍चों को आखिर क्‍यों पढ़ायें ?

शिक्षा की आवश्‍यकता (Requirement of Education)-

मानव शरीर के संचालन के लिये दो प्रकार की ऊर्जा की आवश्‍यकता होती एक वह ऊर्जा जो शरीर संचालन के लिये आवश्‍यक है और एक वह ऊर्जा जो मस्तिष्‍क के वैचारिक  संचालन के लिये आवश्‍यक है । शरीर संचालन के हम उदर पुष्टि कर ऊर्जा प्राप्‍त करते है और मस्तिष्‍क संचालन के लिये ज्ञान की आवश्‍यकता होती है । ज्ञान एक साक्षर भी प्राप्‍त करता और एक निरक्षर भी लेकिन दोनों के ज्ञान ग्राह्यता में अंतर होता है । मस्तिष्‍क के भूख को शांत करने के लिये शिक्षा आवश्‍यक है । लेकिन आज-कल लोग शिक्षा को मस्तिष्‍क पुष्टि करने के साधन से अधिक उदर पुष्टि के साधन मान बैठें हैं ।

शिक्षा का उदारीकरण (Liberalization of education)-

नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा (आरटीई) अधिनियम, 2009 के अनुसार शिक्षा को बच्‍चों के लिये मौलिक अधिकार के रूप में लागू किया गया है । इस अधिनियम के अनुसार सभी बच्‍चों के अनिवार्य और नि:शुल्‍क शिक्षा का प्रावधान किया गया जो स्‍वागत योग्‍य है । यह अधिनियम यद्यपि बच्‍चों में गुणवत्‍ता युक्‍त शिक्षा की बात करता है किन्‍तु इसी समय बच्‍चों के परीक्षा में जो उदारीकरण किया गया माध्‍यमिक स्‍तर तक के बच्‍चों की परीक्षा इस प्रकार हो कि बच्‍चें किसी कक्षा में फेल ही न हो यदि उनका स्‍तर कम हो तो उनको अवसर परीक्षा के रूप अवसर देकर उनके स्‍तर में वृद्धि‍ किया जाये किन्‍तु व्‍यवहारिक रूप से उदारीकरण का शिक्षा के गुणवत्‍ता पर विपरित प्रभाव देखा जा रहा है ।

शिक्षा में दक्षता एवं गुणवत्‍ता में कमी (Lack of efficiency and quality in education)-

देश के अनेक शिक्षाविद, मनोवैज्ञानिक और समाज सुधारक इस बात को अनुभव कर रहे हैं कि आज की शिक्षा में गुणवत्‍ता की कमी देखी जा रही है । पांचवी स्‍तर की प्राथमिक गुणवत्‍ता का अभाव 12वीं स्‍तक के बच्‍चों में देखी जा रही है । यहॉं उच्‍च शिक्षित बच्‍चों में भी दक्षता का अभाव देखा जा रहा है यही कारण है भारत सरकार को स्क्लि इंडिया स्किम चलाना पड़ा । इस दक्षता एवं गुणवत्‍ता में कमी का ही दुष्‍परिणाम के रूप बेरोजगारों का बड़ा फौज तैयार हो रहा है ।

बच्‍चों को क्‍यो पढ़ायें ? कुछ कड़वें प्रश्‍न – (Why teach children? Some bitter questions)

मनुष्‍य के लिये विद्या के महत्‍व प्रतिपादित करते हुये हमारे भारतीय चिंतन का कथन है-

विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् । 
पात्रत्वाध्दनमाप्नोति धनाध्दर्मं ततः सुखम् ।

अर्थात विद्या विनय अर्थात विनम्रता प्रदान करती है ,विनम्रता से मनुष्य योग्यता प्राप्त करता है,अपनी योग्यता के दम पर मनुष्य धन प्राप्त करता है और धन से धार्मिक कार्य समपन्न हो सकते है ,धार्मिक कार्य से असीम आनन्द की प्राप्ति होती है । क्‍या आज की शिक्षा से इन उदृेश्‍यों की पूति हो रही है ? यह एक यक्ष प्रश्‍न है ।  इसके साथ ही शिक्षा को लेकर कुछ प्रश्‍न हैं –

1. देश में  घुसखोरी का बीजोरोपण किसने किया ?

देश में घुसखोरी का बीजारोपण किसने किया ? केवल दो विकल्‍प पर विचार करे एक शिक्षित और एक अशिक्षित  तो कोई कह दे किसी अँगूठे छाप ने घुसखोरी का चलन शुरू किया है । कोई न कोई शिक्षित व्‍यक्ति ही इसके लिये जिम्‍मेदार है । जिनकी शिक्षा उसे इस बात से रोकता वही व्‍यक्ति  घुसखोरी का न केवल बीजारोपण किया बल्कि आज भी इसे पुष्पित और पल्‍लवित कर रहा है ।

2. VIP कल्‍चर किसने विकसित की ? –

किसी निजी या सरकारी काम के लिये लगे पंक्ति से हटकर किसने अपना विशेषाधिकार दिखाया ? क्‍या शिक्षित और धनी होने से देश के संवैधानिक लिक से हट कर काम करने का अधिकार मिल जाता है । किस निरक्षर ने लिक से हट कर काम किया ? इसके लिये भी ये यह तथाकथित अभिजात वर्ग ही जिम्‍मेदार है ।

3. संस्‍कृति का क्षरण किसने किया ?

जहाँ राज्‍य और केन्‍द्र सरकार देश के संस्‍कृतिक विरासत को सहेजने के लिये अलग से संस्‍कृति विकास का गठन करके इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं, वहीं शिक्षित व्‍यक्तियों का बड़ा धड़ा संस्‍कृति को ध्‍वस्‍त करने में लगे हुये हैं । जिन्‍हें संस्‍कार और अंधविश्‍वास में स्‍पष्‍ट अंतर पता नहीं है अंधविश्‍वास के नाम पर संस्‍कृति का भक्षण करने में लगे हैं ।

4. वृद्ध मॉं-बाप, सास-ससुर का तिरस्‍कार कौन कर रहा है ?

शिक्षित होने का अर्थ नैतिकवादी होने से भौतिकवादी होना कब से हो गया ? जो केवल अपने निहित भौतिक सुख के अपने परम्‍परागत, नैसर्गिक जिम्‍मेदारी से लोग भटकर अपने बूढ़े माॅ-बाप, सास-ससुर को त्‍याग कर अलग रहने की सोच को बढ़ावा दे रहे हैं । वृद्धाश्रमों में भीड़ किन वृद्ध मॉं-बापों की है शिक्षितों के या अशिक्षितों के ? किनके मॉं-बाप, सास-ससुर तिल-तिल मरने को मजबूर हैं शिक्षितों के या अशिक्षितों के ?

5.बच्‍चों को पढ़ाने से मॉं-बाप को क्‍या लाभ हो रहा है ?

 जिन बच्‍चों के शिक्षा के लिये जो मॉं-बाप अपने जीवन के आधे से अधिक कमाई लगा देते हैं, उन मॉं-बाप को आखिर क्‍या लाभ हो रहा है ? यदि बच्‍चा पढ़लिख कर कोई काम न कर पाये तो बेरोजगार बच्‍चों को पालन मॉं-बाप की जिम्‍मेदारी यदि बच्‍चा पढ़लिख कर कोई अच्‍छे जॉंब या नौकरी में सेटल हो जाये तो इन्‍हीं मॉं-बाप को मरने के लिये छोड़ कर केवल और केवल अपने बीबी-बच्‍चों में भूल जाता है । बच्‍चों का बुढ़ापा का लाठी कहा गया किन्‍तु ऐसे शिक्षित बच्‍चों से क्‍या लाभ जो अपने मॉं-बाप को एक गिलास पानी नहीं दे सकते ।

आखिर शिक्षा से क्‍या लाभ हो रहा है ?

मानव देह को तब तक जीवित कहते हैं जब तक उसमें प्राण हो प्राण विहिन देह को शव कहा जाता है, जिसे तत्‍काल नष्‍ट कर दिया जाता है । इसी प्रकार हर वस्‍तु, हर विचार का कोई न कोई प्राण तत्‍व होता है उस तत्‍व के बिना उस वस्‍तु को शव के समान नष्‍ट कर देना चाहिये । उस विचार को उसी क्षण त्‍याग देना चाहिये । जिस प्रकार यदि कोई सुंदरी सोने-चांदी, हीरे-मोती बहुमूल्‍य रत्‍नों से सुशोभित तो हो किन्‍तु उनके देह में लज्‍जा का एक भी वस्‍त्र न हो तो वह सुंदरता किस काम का ? भोजन दिखने में बहुत सुंदर हो किन्‍तु उसमें स्‍वाद का नाम ही न हो तो इससे क्‍या लाभ ? ठीक इसी प्रकार जिस शिक्षा में नैतिकता, मानवता का अस्तित्‍व न हो उससे क्‍या लाभ ? वर्तमान शिक्षा से लोग व्‍यक्तिगत भौतिक सुखों का उपभोग करते तो दिख रहे हैं किन्‍तु उनमें नैतिकता का नितांत अभाव दिख रहा है ।

बच्‍चों  को क्‍यों पढ़ायें ? इससे बड़ा प्रश्‍न है बच्‍चों को क्‍या पढ़ायें ?

बच्‍चों को क्‍यों पढ़ायें और क्‍या पढ़ाये इस प्रश्‍न उत्‍तर हमें हमारी भारतीय संस्‍कृति से प्राप्‍त है –

विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।  पात्रत्वाध्दनमाप्नोति धनाध्दर्मं ततः सुखम् ।। अर्थात विद्या विनय अर्थात विनम्रता प्रदान करती है ,विनम्रता से मनुष्य योग्यता प्राप्त करता है,अपनी योग्यता के दम पर मनुष्य धन प्राप्त करता है और धन से धार्मिक कार्य समपन्न हो सकते है ,धार्मिक कार्य से असीम आनन्द की प्राप्ति होती है । 

बच्‍चों को क्‍यों पढ़ायें इसका जवाब है कि वह अपनी योग्‍यता के बल धन अर्जन करे किन्‍तु यह धनार्जन केवल उसके व्‍यक्तिगत सुख के लिये न हो । क्‍या पढ़ायें इसका उत्‍तर जिस शिक्षा से विद़या प्राप्‍त हो, विद्या के सभी उद्देश्‍य प्राप्‍त हो । जिस शिक्षा से लोग विनम्र हों, मानवतावादी हों, संस्‍कारी हों, जिसमें नैतिकता कूट-कूट कर भरा हो । आज हर तरफ नैतिकपतन का शोर सुनाई पड़ रहा है । इसी नैतिक पतन के असंवैधानिक, अधार्मिक कार्य बाधारहित चल रहे हैं । शिक्षा का आत्‍मतत्‍व नैतिकता होनी चाहिये । इसलिये ऐसी शिक्षा की आवश्‍यकता है जो दुनिया के आपाधापी से टक्‍कर लेते हुये अपनी नैतिकता को अक्षुण बनाये रखे ।

-रमेश चौहान

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7 thoughts on “बच्‍चों को आखिर क्‍यों पढ़ायें ? (Why teach children after all?)

  1. धारदार चिंतन से परिपूर्ण, मन को उद्वेलित व प्रकाशित कर देने वाला लाजवाब लेख। हार्दिक बधाई आदरणीय चौहान जी को।

    1. अपना बहुमूल्य समय लगाकर इस आलेख को पढ़ने और इस पर प्रतिक्रिया देने के लिए आपका हार्दिक आभार

  2. धर्म संस्कृति नैतिकता मानवता जैसे बहुआयामी मूल्यों को रेखांकित करती शिक्षा पर केंद्रित आपका आलेख अच्छा लगा।
    देश में उत्तरोत्तर बढ़ती जनसंख्या के मद्देनजर उक्त प्रस्तुत मूल्यों को आत्मसात करते हुए वैज्ञानिक अनुसंधानिक कौशलयुक्त रोजगारपरक शिक्षा की महती आवश्यकता है।
    आपको बहुत बहुत बधाई

    1. बघेलजी, आपने आलेख में अपना समय दिया विषय-वस्‍तु पर चिंतन किया, मेरा प्रयास सफल हुआ । इसके लिये आपका हार्दिक आभार, हार्दिक अभिनंदन । आपके इस सुझाव से मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ कि- ‘शिक्षा कौशल युक्‍त रोजगारपरक हो किन्‍तु इसमें आत्‍मतत्‍व के रूप नैतिकता का होना आवश्‍यक है ।’

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