यायावर मन अकुलाया (द्वारिकाधीश की यात्रा)
भाग-5 अहिल्या बाई किला दर्शन
-तुलसी देवी तिवारी
अहिल्या बाई किला दर्शन
गतांक- भाग-5 ओंकारेश्वर दर्शन से आगे
अगले पड़ाव के लिए गमन-
अगले दिन (14. 10 .2016) ब्रह्म मुर्हुत में ही नींद खुल गई । मैंने सोचा आज सबको जगाने का अवसर मिला मुझे किंतु पता चला कि प्रभा दीदी नहा रही हैं । कोई बात नहीं दूसरा नंबर तो अपना ही रहेगा। नित्य क्रिया, स्नान ध्यान से निवृत होकर हम सभी सात बजे तक भक्त निवास के भोजनालय पहुँचे । वहाँ शर्मा जी और तिवारी जी सपत्निक पहले ही पहुँच कर नाश्ता शुरू कर चुके थे, हमने गरम-गरम उपमे का नाश्ता किया।
महेश्वर तीर्थ दर्शन-
अपने समय के अनुसार हम लोग रोडवेज की बस से मांडू के लिये चल पड़े । हम मालवा के पठार पर यात्रा कर रहे थे। सड़क की दोनो ओर हरियाली का साम्राज्य फैला हुआ था। भाँति-भाँति के पुष्प डालों पर इठला रहे थे। बस अपनी गति से चली जा रही थी। मैंने सामने वाली सीट की पीठ पर जो मेरे सामने थी अपनी बाहें एक दूसरे में फँसा कर रखा और उस पर अपना सिर टेक लिया। मुझे हल्की सी नींद आ गई। लगभग डेढ़ घंटे का सफर हम तय कर चुके थे और हमारी बस महेश्वर तीर्थ पर रुक गई थी। सभी साथियों को उतरते देख मैं भी देवकी दीदी के साथ उतर गई। हम लोग महेश्वर तीर्थ के दर्शन करने चल पड़े।
राजराजेश्वर मंदिर –
यह तहसील, जिला खरगौन में है वैसे तो हम लोग ज्यादातर स्वयं ही जानकारियाँ जुटाते हैं परंतु यहाँ महेन्द्र नाम का गाइड एकदम से पीछे ही पड़ गया। और आखिरकार वह हमारा गाइड बन गया। वह हमें राजराजेश्वर मंदिर ले गया। विस्तृत प्रांगण में मुख्य मंदिर के चारों ओर गणेश गरुड़, देवी माँ, और सूर्य भगवान् की प्रतिमाएं स्थापित हैं । राजराजेश्वर सहस्रबाहु की समाधी स्थल यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के बरामदे में ग्यारह दीपक शताब्दियों से जल रहे है। इन्हे न तो प्राकृतिक तूफान बुझा सके नही युद्ध आदि के मानवीय उत्पात । भक्त जन यहाँ शुद्ध धी चढ़ा कर अपनी मनोकामना पूर्ति का वरदान पाते है।
महेंश्वर महात्म्य
पेड़ पौधे, एवं लता पुष्पों की उपस्थिति के कारण वातावरण जीवंत हो उठा था, एक पेड़ के नीचे हमें बैठा कर महेन्द्र महेंश्वर महात्म्य सुनाने लगा-लेडिस एन्ड जेंटल मेंन ! महेश्वर का पौराणिक नाम महिष्मती है। यहाँ त्रेतायुग में महान् प्रतापी राजा सहस्रबाहु राज करते थे। दशानन रावण के मुकाबले ये हजार भुजा वाले थे। ( एक हजार भुजाओं की शक्ति थी। )किंतु दशानन की भाँति राज्य विस्तार के लोभी न थे अपने क्षेत्र में ही प्रजापालन में संलग्न रहते थे, एक समय की बात है राजराजेश्वर अपनी पाँच सौ रानियों के साथ जल क्रीड़ा कर रहे थे संभवतः उनके मन मुताबिक जल न रहा हो अतः उन्होंने नर्मदा के जल को बाँध दिया। संयोग वश लंकापति दशानन पुष्पक विमान से वहाँ से गुजर रहा था। रजत धवल सूखी बालुका राशि को देखकर उसे शिवार्चन की इच्छा हुई । विमान से उतर कर उसने समीप ही बह रही नर्मदा की धारा में स्नान किया। इसके बाद बालुका लिंग निर्मित करके विधिवत् पूजन प्रारंभ किया। उधर जल क्रीड़ा समाप्त होने पर सहस्रबाहु ने नर्मदा की धारा मुक्त कर दी जिसके कारण बालुका लिंग बह गया । रावण क्रोधित होकर सहस्रबाहु को युद्ध के लिए ललकारने लगा। सहस्रबाहु लड़ने की मनः स्थिति में नहीं था। उसने बड़ी सरलता से उसे कैद करके अपने कैदखाने में डाल दिया जहाँ बालक उसके दशों सिरों पर दीपक जलाकर खेला करते थे, समाचार पाकर रावण के दादा पुलस्त ऋषि ने आकर उसे मुक्त कराया। कुयोगवश राजराजेश्वर ने भार्गव जमदग्नि ऋषि का विरोध मोल ले लिया जिसके कारण उनके पुत्र भार्गव परशुराम के द्वारा उनका पराभव हुआ।’’ यह मंदिर रानी अहिल्या बाई के किले के एकदम पास ही है। हमारे साथी ध्यान से उसकी बातें सुन रहे थे।
अहिल्या घाट –
लेडिस एंड जेंटलमेन ! आप हमारी बातें ध्यान देकर सुने ! मैं बार-बार नही बताने सकता। उसका संकेत मेरी ओर ही था। क्योंकि मेरा ध्यान रानी अहिल्या बाई के उज्ज्वल चरित्र में रमा हुआ था।
आइये हम अहिल्या घाट चलते हैं – वह एक फुर्तिला युवक था, तेज कदमों से सीढ़ियाँ उतर कर माँ नर्मदा के घाट पर पहुँच गया। हम लोग अपनी अपनी शक्ति के हिसाब से उतरने लगे। सामने माँ नर्मदा की निर्मल धारा थी जिसे देख कर मन में अपने आप प्रसन्नता के स्फुल्लिंग नृत्य करने लगे। पक्का घाट और सुन्दर सीढ़ियाँ। जैसे-जैसे बरसात में जल बढ़ता होगा सीढ़ियाँ डूबती होंगी लेकिन नहाने वालों को सुविधा और सुरक्षा बराबर मिलती होगी। मैंनें मन ही मन सोचा।
तिलकेश्वर महादेव –
’’साहबान् ध्यान दीजिए ! ये जो मंदिर दिखाई दे रहा है न ऽ! इसे तिलभन्देश्वर या तिलकेश्वर महादेव कहते हैं बहूत पुराना मंदिर है, इस मंदिर में जो शिव लिंग है न ऽ!साल भर में तिल भर बढ़ जाता है।’’ उसने मंदिर में स्थापित ऊँचे से शिव लिंग की ओर इंगित किया। ( हमने श्रद्धा पूर्वक नमन किया। और भी बहुत सारे शिव लिंग छोटे-छोटे चबुतरों पर स्थापित दिखाई दे रहे थे, जल चढ़ाने की सुविधा के लिए भक्तों ने स्थापित कर दिये हैं। )
इसका जीर्णोद्धार एन.टी. पी. सी. खरगोन ने अभी हाल 2015 में करवाया है। मंदिर लगभग हजार वर्ष पुराना है। वह देखिये सहस्र धारा ! वहीं जहाँ माँ नर्मदा चट्टानी अवरोध का सामना करती कई धाराओं में विभक्त हेकर आगे बढ़ रहीं हैं, पौराणिक मान्यता है कि राजराजेश्वर सहस्रबाहु ने नर्मदा जी को अपने साथ विवाह का आमंत्रण भेजा। इंकार करने पर अपनी मुट्ठी में बंद कर लिया , नर्मदा जी उसकी अंगुलियें के रंध्रों से कई धाराओं में विभक्त होकर तेज गति से बह निकलीं । (कथा प्रतिकात्मक प्रतीत होती है। ऐसा हो सकता है कि बांध आदि बना कर नर्मदा जल का प्रयोग अपने ही राज्य के लिए करना चाहते हों जिसमें वे सफल न हुए हों )
हमने तट से ही उस स्थान के दर्शन किये क्योंकि वहाँ तक जाने के लिए नौका की आवश्यकता थी। जो उस समय वहाँ उपलब्ध नहीं थी। इसी समय हमें व्यवसायिक फोटो ग्राफर ने अपने लपेटे में ले लिया और हम सब ने सामूहिक फोटो खिंचवा लिया जिसे वह दस मिनट में हम तक पहुँचाने वाला था।
बाणेश्वर मंदिर –
’’लेडिस एंड जेंटलमेन ! आप लोगों को मांडू भी जाना हैै, समय बरबाद मत कीजिए।’’ महेन्द्र ने बड़ी चतुराई से हमें आकर्षित किया।
’’ वह देखिये ! नर्मदा के बीच मे, उस टापू पर जो एक पुराना सा मंदिर दिखाई दे रहा है न ऽ? वही जिसकी दीवारें तिकोनी हैं ताकि वह जल का प्रहार सहन कर सके। यह बाणेश्वर मंदिर है , मंदिर लगभग हजार वर्ष पुराना है। कहते हैं द्वापरयुग में बाणासुर नामक राक्षस ने भोले नाथ की घोर तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने उसे दर्शन दिया। कालान्तर में यहाँ बाणेश्वर मंदिर स्थापित हुआ।’’
अहिलेश्वर महादेव –
और ये हैं अहिलेश्वर महादेव ! इस मंदिर को रानी की याद में उनकी बहू ने बनवाया था। यह महेश्वर का सबसे बड़ा मंदिर है। इतना जटिल शिल्प और कहीं देखने को नहीं मिलेगा। हमने मंदिर में स्थित महादेव को सादर प्रणाम किया।
रानी अहिल्या बाई का किला-
’’ चलिए साहबान् अब हम रानी अहिल्या बाई के किले में चलते है। ’’ वह सीढ़ियाँ चढ़ने लगा था। और साथी तो आगे बढ़ गये मैं और देवकी दीदी पिछड़ गये। मैं चोटिल थी और दीदी घुटनें के दर्द से परेशान थीं वे तो हाथ पैरों की सहायता से किसी तरह चढ़ रहीं थीं और मैं दर्द को सहते हुए दर्द देने वाले को याद करते आगे बढ़ रही थी। किले के सामने ही अहिल्या बाई का दहन स्थल है वे सन् 13.8.1795 मे शिवलोक वासी हो गईं थी। हमने दूर से ही नमन किया।
किले की नक्काशीदार दीवारों का दीदार करते हम आगे बढ़े । दीवारों पर हाथियों की जीवंत प्रतिमूर्ति उकेरी गई है। मंदिरो की नक्काशी बहुत उच्चकोटि की है।
गाइड हम सब के आगे- आगे चल रहा था, उसकी आवाज बहुत तेज नहीं थी। मैं सबसे पीछे चल रही थी, प्रभा दीदी का ध्यान जरा हटा था मेरी ओर से। गाइड के जो वाक्य मेरी पकड़ से छूट जाते थे उन्हें अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर जमाना पड़ा समझने के लिए ।
वह बता रहा था- लेडिस एन्ड जेंटल मेन !
किले की दीवारों पर बने चित्र माहेश्वरी साड़ियों पर बनाये जाते हैं, ये देश विदेश में प्रसिद्ध हैं । मध्यप्रदेश सरकार ने तो महेश्वर को पवित्र नगरी का दर्जा दे दिया है। 11 दिसम्बर सन् 1767 में मल्हार राव की मृत्यु के बाद जब रानी अहिल्याबाई का राजतिलक हुआ तो राज्य की हालत बहुत खराब थी। चारों तरफ शत्रु घात लगाय बैठे थे। रानी ने प्राकृतिक रूप से सुरक्षित देख कर महेश्वर को मालवा की राजधानी बनाया। एक ओर विन्ध्य दूसरी ओर सतपुड़ा की पर्वत श्रेणियों से संरक्षित, विपुल नीरा नर्मदा माँ द्वारा पोषित माहेश्वर तीर्थ जिस पर भगवान् भोले शंकर की विशेष कृपा रही है, इसे राजधानी के लिए उपयुक्त समझा। सन् 1601 में अकबर द्वारा डाली गई नींव पर ही अहिल्याबाई ने किले का निर्माण करवाया। इसके शिल्प में मुगल, राजपुताना एवं मराठा शैली का प्रयोग किया गया।
’’ये राजवाड़ा है कद्रदान् ! रानी के उपयोग की बहुत सारी वस्तुएं देख लीजिए। यहीं से रानी अपने राज्य का संचालन करती थीं। राजदरबार में हाथ में शिव लिंग लिए हुए रानी की यह भव्य प्रतिमा बैठी अवस्था में स्थापित है। रानी ने अपना वैधव्य शास्त्रोक्त विधि से व्यतीत किया। वे हमेशा बिना किनारी वाली सफेद साड़ी धारण करतीं थीं और खपरैल की छत वाले एक छोटे से घर में निवास करतीं थीं । सादा भोजन करतीं थीं, उनकी न्यायप्रियता के कारण प्रजा उन्हें माँ कहती थी। स्त्रियों का अपमान करने वाला हाथी के पैरों तले कुचला जाता था। फिर चाहे वह रानी का कोई परिजन ही क्यों न हो। ऐसे चित्र अहिल्या फोर्ट की बाहरी दीवारों पर बने हुए हैं ।
रानी अहिल्या बाई की संक्षिप्त जीवनी-
वैसे देखें तो अपने समय के हिसाब से रानी का जीवन भी आम भारतीय महिलाओं की तरह दुःख की कहानी है। उनका जन्म 31मई सन् 1725 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के गाँव चौंढ़ी जामखेडा में हुआ था। बारह वर्ष की उम्र में उनका विवाह सुबेदार मल्हार राव के पुत्र खांडे राव होल्कर से हुआ। वे सामंती दुर्गुणों से ग्रस्त एवं पत्नि को भोग्या मात्र समझने वाले राजपुरूष थे। रानी ने परंपरागत भारतीय स्त्री की भाँति सहिष्णुता का परिचय दिया। पुत्र मालेराव और पुत्री मुक्ता बाई के ज’न्म से उनके नारीत्व ने पूर्णता प्राप्त की। उनतीस वर्ष की होते न होते वैधव्य ने आ घेरा । रानी ने सती वेष धारणकर ससुर को प्रणाम किया और पतिलोक जाने की आज्ञा मांगी। सुबेदार मल्हार राव ने आँखों में आँसू भर कर कहा-’’मेरा पुत्र तो चला गया अब तू कहाँ जा रही है बेटी इस बूढ़े बाप को छोड़ कर ? बड़े बलिदानों के बाद मालवा पेशवा शाही और बादशाही से मुक्त हुआ है, वारिस न रहने पर हिन्दू राज्य की रक्षा कौन करेगा ? अभी तुझे देश धर्म के लिए जीना होगा । तू मेरी बहू नहीं बेटा है।’’ अपने ससुर की आज्ञा और बच्चों की ममता के वशीभूत होकर रानी ने सती होने का विचार त्याग दिया और मल्हार राव के राज-काज में हाथ बँटाने लगीं। जिस पुत्र के लिए उन्होंने संसार में रहने का फैसला किया था वह भी मझधार में छोड़ कर संसार से विदा हो गया। आगे के समय में दोहित्र नत्थू और दामाद यशवंत राव फड़से का भी देहान्त हो गया। पु़त्री मुक्ताबाई सती हो गईं, इतने दुःख सह कर भी यदि रानी जीवित रही तो वह मात्र प्रजा के हित एवं हिन्दू धर्म के संवधर्वन के लिए।
रानी द्वारा देश के जीर्ण-शीर्ण मंदिरों का जीर्णोद्धार-
एक छोटे से राज्य मालवा की रानी होने पर भी रानी ने देश के जीर्ण-शीर्ण मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया। स्वर्ण कलश चढ़वाये। कुएं, बावड़ियाँ, नदियों के घाट आदि बनवाये । देश के चारों दिशाओं में स्थित चारों धामों यथा-उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण मेंं रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथपुरी, और पश्चिम में द्वारिकापुरी जैसे उन्नतीस स्थानों के मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया। ये मंदिर हिन्दू जनमन की आस्था के केन्द्र हैं, जो आतताइयों द्वारा-तोड़ -फोड़े़े जाते रहे, रानी ने इन्हें भलिभाँति पुर्ननिर्मार्णत कर स्वर्ण कलश चढ़ाकर इन्हें महिमा मंडित किया। इनके साथ ही काशी विश्वनाथ, गया में विष्णुपद, केदारनाथ महाराष्ट्र के कपिलेश्वर मंदिर सहित देश भर के प्रमुख मंदिरों का काया कल्प किया। संस्कृत की शिक्षा के लिए आचार्यों की नियुक्ति की। मालवा के राजस्व का नब्बे प्रतिशत धार्मिक कायों में और दस प्रतिशत अन्य सार्वजनिक हित के कार्यों में खर्च किया जाता था। तुको जी राव होल्कर जो मल्हार राव के समय से सत्ता के निकट रहते आये थे और जो उम्र में बड़े होते हुए भी रानी को माँ कहते थे। इन्हे ही रानी ने राज-काज के लिए तैयार किया और चौथ वसूलने की जिम्मेदारी इन्हें सौंंप दी। वैसे तो रानी स्वयं एक कुशल योद्धा थीं, कई युद्धों में हाथी पर सवार होकर अपनी सेना का संचालन किया, किंतु अधिकतर सेना का संगठन और रखरखाव तुको जी के ही अधीन था। रानी उन्हें पुत्र की भाँति मानतीं थीं। यहाँ तक की तुको जी के पुत्र मल्हार राव को राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थीं किंतु वह उनके लिए अंत तक कष्टकारक ही बना रहा। एक बार छः महीने की भारत यात्रा पर जाते समय रानी ने ग्राम उबदी के पास स्थित अकावल्या के पाटीदार को राज्य की व्यवस्था का दायित्व सौंपा । उसके कार्य से रानी इतनी प्रसन्न हुई कि आधा राज देना चाहा परंतु उन्होंने अपने समाज के लोगों को महेश्वर में कफन सहित जलाने की सुलियत भर मांगी। ऐसे-ऐसे उदार लोग थे उस जमाने में साहबान्।’’ गाइड चंद लम्हों के लिए खामोश हुआ ।
लेडिस एन्ड जेंटल मेन -’’ इस किले का बहुत बड़ा भाग उनकी पुत्र वधू कृष्णा बाई होल्कर ने अपनी सास की याद को अक्षुण बनाये रखने के लिए बनवाया था।
काशी विश्वनाथ मंदिर –
आइये ! अब हम काशी विश्वनाथ मंदिर चलते हैं’’- अब हम सफेद रंग के एक विशाल शिवाले के सामने पहुँच गये थे। हमने मंदिर के अन्दर प्रवेश करके उस भव्य शिवलिंग के दर्शन किये जो महारानी अहिल्या बाई द्वारा स्थापित और सेवित है। हमने श्रद्धा पूर्वक विश्वदेव को प्रणाम किया। उसकी साज-सज्जा और निर्माण शिल्प ने हमारी बोलती बंद कर दी । पत्थरों पर इतना बारीक काम कैसे हो सका आश्चर्य !
कालेश्वर मंदिर-
’’हाँ तो साहबान् यह मंदिर चार शताब्दी पूर्व का बना है । इसकी मजबूती देखिये ! इसकी कला देखिये ! रानी माँ प्रतिदिन यहाँ शिव आराधना करती थीं। और वह जो बड़ा सा मंदिर आप नदी के उस पार देख रहे है वह कालेश्वर मंदिर है, उस मंदिर में भगवान् भोलेनाथ संहारक रूप में विराज रहे हैं, कभी समय लेकर आइये तब एक -एक स्थान दिखा दूंगा । उसने अंगूली के संकेत से एक भव्य मंदिर दिखलाया।
अगले पड़ाव की ओर –
’’ भैया ! यहाँ कहीं आदि शंकराचार्य ने विश्राम किया था , वह नहीं दिखलाया?’’मैंने पूछ लिया।
’’ आप लोगों ने जिस नगर द्वार से महेश्वर में प्रवेश किया है वहीं पर वह स्थान है वहीं मंडन मिश्र की पत्नी का आदि शंकराचार्य से शास्त्रार्थ हुआ था, वह मालवा का प्रवेश द्वार है। रानी ने वहाँ मंदिर, बावड़ी बनवाया और सैनिकों के रुकने का स्थान भी बनाया। ’’
’’ ओह यह तो बड़ी क्षति हुई ।’’ मैंने अफसोस जाहिर किया।
’’ हम लोग फिर से राजराजेश्वर मंदिर के प्रांगण में थे
’’ क्या किले को अन्दर से देख सकते हैं?’’ मीना तिवारी ने गाइड से पूछा।
’’ बहन जी , होल्कर वंश के अंतिम वारिस राजकुमार रिर्चड होल्कर ने सन् 2000 में इस किले को अतिथि निवास बना दिया। अब यह एक शानदार होटल है। इसलिए अंदर नहीं जा सकते।’’ अब दत्तात्रेय मंदिर रह गया है वह नया बना है, एक मुखी दत्तात्रेय का मंदिर बहुत सुन्दर है आप लोग चलना चाहे तो चलें!’’
समय को देखते हुए हमने उसके प्रस्ताव को आगे के लिए स्थगित कर दिया। महारानी अहिल्या बाई की अष्टधातु की विशाल प्रतिमा जो विधायक श्री अनिल गोटे द्वारा बनवा कर नदी तट पर किले के पास स्थापित की गई थी और दो बार गिर जाने के कारण अब किला प्रांगण में सुरक्षित ढंग से स्थापित की गई है उसके दर्शन किये और सब लोग बस में यथा स्थान आकर बैठ गये। हमारी बस हमारे अगले पड़ाव की ओर चल पड़ी।
-तुलसी देवी तिवारी
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