
मां…
वो नाम नहीं एक संसार है
जिसमें हर दर्द का इलाज है
हर आंसू की पनाह है
हर मुस्कान की वजह है ।
वो दुआ है
जो लबों पर आने से पहले
पूरी हो जाती है
क्योंकि मां की ममता
ईश्वर की सबसे पहली भाषा है ।
जब मैं गिरता हूं
तो पहले धरती नहीं
मां की गोद थाम लेती है
जब मैं रोता हूं
तो बारिश नहीं
मां की आंखें भीग जाती हैं ।
वो थकती नहीं
बस हमारे लिए
सांसें गिनती जाती है
हर सांस में हमारी सलामती का
मंत्र जपती जाती है ।
मां के हाथों की रोटियां
सूरज से भी गर्म होती हैं
उसकी थपकियों में
नींद नहीं, एक आशीर्वाद होता है ।
वो अपनी भूख भूलकर
हमें रोटी खिलाती है
और हम समझते हैं
कि प्रेम सस्ता है
पर प्रेम तो वही है
जो मां ने बिना मांगे दिया है ।
मां की आंखों में
समय ठहर जाता है
जब वो हमें देखती है
उसके चेहरे की हर झुर्री
हमारे बचपन की कहानी कहती है ।
वो अपने दर्द को
रोटी के साथ बेलती है
और परोस देती है
हमारी खुशी में घुलकर ।
मां को कविता नहीं चाहिए
वो खुद कविता है
जिसकी हर पंक्ति में
त्याग, ममता और धैर्य लिखा है ।
वो मंदिर नहीं जाती
पर जब हमारा माथा सहलाती है
तो लगता है,
पूजा पूरी हो गई ।
उसके बिना घर
सिर्फ दीवारों का मकान है
उसके बिना रसोई
सिर्फ बर्तन और धुआं है ।
उसकी आवाज़ में ही
घंटी की टुनटुनाहट है
उसकी हंसी में ही
घर का उजाला है ।
मां …
वो एक शब्द नहीं
अनंत का अनुभव है
जिसे ना समय मिटा सकता है
ना दूरी कम कर सकती है ।
हम चाहे जहां चले जाएं
वो हमारी परछाई बनी रहती है
उसका दिल
हमारे हर दर्द का नक्शा पहचान लेता है ।
कभी सोचो
वो क्यों कहती है बेटा खाले और सो जा …
क्योंकि उसके लिए
हमारी नींद ही उसका सुकून है
हमारी मुस्कान ही उसका भगवान है ।
मां …
वो दुआ है जो सांसों में बसती है
जो खुद जलकर
हमें उजाला देती है
जो थकती नहीं
बस हर पल हमारे लिए
जीती जाती है
सांसें गिनती जाती है ।
– डुमन लाल ध्रुव
मुजगहन, धमतरी (छ.ग.)
पिन – 493773



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