
ग़ज़ल
जो जनहित में सृजन हो बस वही पुरनूर होता है
सृजक का लेख हो या गीत वह मशहूर होता है
हक़ीक़त में अगर तुम प्यार करते हो सुनों यारों
जो दिल में प्यार बस जाए न फिर वो दूर होता है
ग़ज़ल सुनते हैं अच्छे लोग इसमें गुण है कुछ ऐसा
ग़ज़ल के शेर में क्योंकि अदब भरपूर होता है
घमंडी को दिखा दो बस यही अंजाम है उसका
वो शीशा जुड़ नहीं सकता जो चकनाचूर होता है
अंधेरों को मिटा के जो उजाला कर दे वो रहबर
हर इक राही को ऐ ‘ शर्मा ‘ वही मंजूर होता है
माँ
माँ की ममता
दुलारती
अपने बेटे – बेटी को
मैले – कुचैले कपड़े
पहने तीनों
भरी दुपहरी
भूखे बेटे – बेटी
मिल जाता
दाताओं से
कुछ रुपये
भूखे न रह जाए
खरीदती
उस रुपये से
दोनों बेटे – बेटी के लिए
उनका भूख मिटाने के लिए
खिलाती
निहारती
बड़े प्रेम से
सहलाती
चौराहे के किनारे
स्वयं भूखे – प्यासे
पानी पी – पीकर
भरती अपना पेट
इससे प्रसन्न रहती
सोचती
मेरे बेटे – बेटी
न रह जाए भूखे
चल पड़ती
आगे
समस्या वही
प्रतिदिन की…।
साहित्य की थारी
पुस्तक के पृष्ठों में सजी कविता की फुलवारी है।
प्यारे शब्द फूलों जैसे पंक्ति पंक्ति क्यारी है।।
गीत, गीतिका, कवित्त, सवैया, मुक्तक, छंद, कविता।
दोहा, सोरठा, चौपाई, कुण्डलिया, काव्य सरिता।
अतुकांत, क्षणिकाओं की ये साध्य रचना प्यारी है।।
व्यथा, क्रांति, उल्लास, संवेदन, अनुसरण और अनुकरण।
परिवर्तन, इतिहास, विकास, लिंग, वचन और व्याकरण।
बंधी साधना की डोरी भाषा भावना न्यारी है।।
श्लेष, यमक, पुनुरुक्ति प्रकाश, शब्द, अर्थ, उभयालंकार।
छेका, लाटा वृत्यानुप्रास, प्रतिकात्मक, उपमालंकार।
अतिशयोक्ति से अलंकृत करना लेख, कविता जारी है।।
हास्य, वीर, अद्भुत, भय, रौद्र, शांत, वीभत्स, करुण में।
और मिलता श्रृंगार, वात्सल्य, वाचक, व्यंजक, लक्षण में।
मुख्य पृष्ठ से अंतिम तक पुस्तक साहित्य की थारी है।।
रायपुर महिमा
रायपुर की महिमा का गौरव इसका करुँ बखान।
छत्तीसगढ़ की राजधानी है ये सुनिए सुधि सुजान।।
महामाया, कंकाली, शीतला, मरही, माँ दंतेश्वरी।
हटकेश्वर, बूढ़ेश्वर बसे, सीताराम हैं दूधाधारी।
रक्षक हमारे देवी देवता रायपुर की पहचान।।
कनकपुर, हाटकपुर, कंचनपुर, रैपुर का नाम पड़ा।
रायपुरा, रइपुर, नवा रायपुर, रायपुर से जुड़ा।
नामकरण हुआ यहाँ का इतिहास में लिखित प्रमाण।।
रविशंकर, ठाकुर प्यारे, यति, अब्दुल रउफ, राधाबाई।
महंत लक्षमीनारायण, बली, परसराम, रोहणी बाई।
नारायण, हनुमान, क्रांति कुमार किए न्योछावर प्राण।।
कल्याण सिंह, कामता अग्रवाल, डूँगा जी, जाम बाई।
रामनारायण दीक्षित, नारायण अवस्थी, बिन्नी बाई।
दानी हुए रायपुर की भूमि पर एक से एक महान।।
मेहनत के हक़दार
मेहनत सबकुछ मेहनतकश की, मेहनत के हक़दार हैं हम।
सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के जैसे, ज़न्नत के हक़दार हैं हम।।
मेहनत वालों की दुनिया है, मेहनत से सब मिलता है।
सूरज उगता है हम से तो, सूरज हम से ढलता है।
जहाँ बहेगा खून पसीना, उसी जगह फल मिलता है।
इसी बाहुबल से उगता है, उन्नत के हक़दार हैं हम।।
जग विकास में हम हैं आगे, हमसे ही बल मिलता है।
हाथ से हाथ मिलाने से ही, सब को संबल मिलता है।
बाँट के खाते हैं सब हम तो, सुख का अनुभव मिलता है।
इसी हाथ की बरक़त है ये, बरक़त के हक़दार हैं हम।।
माँ-आदर्श-प्रेम-भक्ति
आगमन एक नवंबर का
नवनिर्मित छत्तीसगढ़ का
जिसमें सम्मिलित होने के लिए
मन में उल्लास रहा
मैं भी देख पाता
उत्सव छत्तीसगढ़ राज्य का
मध्यरात्रि की आतिशबाजी
सुबह की लालिमा लिए हुए
निहार रहा था सूरज
छत्तीसगढ़ का श्रृंगार
जन-जन का उत्साह
धरा रह गया मेरा उत्साह
वर्षों वर्षों से
धरना प्रदर्शनों से
करता रहा प्रदर्शित
मन की पीड़ा
जन-जन का दुख
लड़ता रहा
जुझता रहा
छत्तीसगढ़ राज्य के लिए
दुर्भाग्य था मेरा
दुखदाई काल था मेरा
इकत्तीस अक्टूबर सन् दो हजार
जन्मदात्री माँ
गुजर गई
दुनिया का
छोड़ गई सब कुछ
हवाले करके मेरे
घर-समाज-प्रदेश-देश
कैसा घर
कैसा समाज
कैसा प्रदेश
कैसा देश
यहाँ केवल लूट है
लूट सको तो लूट
कभी कहा था किसी ने
ईश्वर की आराधना के लिए
मुक्ति खातिर
अब कहाँ है
आदर्श राम का
प्रेम कृष्ण का
भक्ति शिव की
तलाश करें
चली गई तिजोरी में
आज यही आकलन हो रहा है
तौल लो लड्डुओं से
तौल लो नोटों से
आदर्श कहाँ
प्रेम कहाँ
केवल भक्ति
बगुला भक्ति
भ्रष्टाचारी में
जहाँ सब कुछ
उग आता है
बेशर्म की तरह
क्या तुम जी पाओगे
साहित्य लिख कर
पढ़ने सुनने में
अच्छा लगता है
छोड़ दो साहित्य लिखना
पेट नहीं भरेगा तुम्हारा
भरेगा तो भ्रष्टाचार
रिश्वत और दलाली
लूट और डकैती।
रामेश्वर शर्मा, रायपुर (छत्तीसगढ़)


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