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रामेश्वर शर्मा के कुछ छत्तीसगढ़ी गीत-कविता

रामेश्वर शर्मा के कुछ छत्तीसगढ़ी गीत-कविता

कइसे बदलही समाज

कहां पाबोन अपन राम राज।
इहां झपटे परेवा ला बाज।।

दाई ददा के अपन सुध ला हरायेन।
मन के मंजूरा म चढ़ चढ़ के आयेन।
अमरित म घोरेन बिख आज।।

भाई भाई ला नइ चिन्हत हे देखव।
बिलई सही मुसवा ला झपटत हे देखव।
लहू म बेचागे इज्जत लाज।।

दया मया छोड़ के ललचहा मन समाय।
परमारथ के बलदा सउगे कुकुरा खाय।
कइसे के बदलही समाज।।

दियना

दियना के बात
जाने दियना
कतका लाम बाती
जरथे मुड़ी ले छाती
वाह रे दियना तोर
चारो कोती अँजोर
फेर,
अपन तरी अँधियार
जिनगी पहावत
जरत रहिथस
जब ले तोर
जीव म जीव रहे।

फागुन के तिहार म डोकरा ल देख

कइसन दुलहा लागय।।

मुंहूं म दांत नइये बान्हे हावय पागा।
कनिहा झुकाये कहिथे मोर तिर आगा।
ये ह छतिया ल ताने अबड़ मुचमुचाय।। कइसन…

लुदुर-लुदुर करथे संगी डोकरा के पेट गा।
गाल चपटगे जइसे परिया परगे खेत गा।
ये ह मेछा अइठे आय कइसे ताव देखाय।। कइसन…

हाथ गोड़ हावय जइसे मेचका के नाना।
घेच ला हिलाय लेहे टेटका के बाना।
ये ह बेन्दरा कस पांव ठुमुक-ठुमुक चलाय।। कइसन…

दुलहा के भेख ला देखव कइसन लागय।
होरी के तिहार मा डोकरा हा मातय।
ये ह तरी ऊपर रंगे रंग म बोथाय।। कइसन…

गीत

कामधेनु गरुवा हा रहिथे गंवई गांव गौठान मा
तैतीस कोटी देवता इन मा लिखे हवय पुरान मा

दूध दही अमरित अइसन हे सब के जीव हा जुड़ाथे
उमिर के संग – संग बढ़थे ताकत जिनगी बने पहाथे
झन बिसराहव सेवा करिहव रखिहव अपन धियान मा

अंगना चऊक गोबर ले लीप के पावन घर ला बनाथे
खातू बना के डारव खेत मा ये उपजाऊ बनाथे
उन्नत बनथे खेत फसल तब जागथे खुशी किसान मा

गौमूत्र ले दवाई बनाथे आयुर्वेद हा बताथे
रोग होवय असाध कइसनो उन सब ला दूर भगाथे
सेवा करलव पूजा करलव संझा मा बिहान मा

मोर गंवई गांव

नदिया नरवा ढोड़गा बीच म मोर गंवई गांव हे।
बर पीपर आमा के संगी सरग अइसन छांव हे।।

डोंगरी पहार ले सुरुज किरन हा हमर गांव म आथे।
जंगल झाड़ी खेत के बाली झरर झरर झर झराथे।
अइसन सुग्घर बहे पुरवाही तिहां हमर गांव हे।।

खेत बारी के बेरा हमन नागर बइला ले जाथन।
लहू पसीना सीच कमा के हीरा मोती उपजाथन।
अबड़ कमइया हमन भइया छतीसगढ़िया नांव हे।।

राम मड़ईया कस कुरिया तेमा सुख दुख पहावय।
बासी खावन पसीया पीयन गुजर बसर दिन जावय।
होरी देवारी रोज मनावन ये जिनगी भरके ठांव हे।।

मंदिर देवाला चारो खुंट म तुलसी चौरा आंगन मा।
बद्री द्वारिका जगनाथ रामेश्वर अंतस पावन मा।
तीरथ धाम सबो ले बढ़िया दाई ददा के पांव हे।।

सवनाही

सरर-सरर फरर-फरर बहे पुरवाही।
सावन सवनाही त धरती हरियाही।।

बूँद गिरे भुइँया म सावन के झर झर।
बिजुरी के तड़ तड़ बादर के घड़ घड़।
आगे बादर ले मौसम बदल जाही।।

देखव अब चारो डहर मन हरियावे।
गावय मल्हार संग ददरिया सुनावे।
लइका सियान सब गाही गुनगुनाही।।

बइला के संगे संग खेत हर जोताही।
लछिमीन हा खेत मा बीजा बगराही।
जिहाँ देख तिहाँ बुता भर मन कमाही।।

तात तात भात नइ त बासी ल लाही।
अमरित कस जान के कमइया ह खाही।
किसनहा के ताकत अबड़ बाढ़ जाही।।

चिरई चिरगुन रुखवा म कलरव मचाथे।
चारो खुँट देख देख हिरदे जुड़ाथे।
धान हरियाही पिउराही कटाही।।

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