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छत्तीसगढ़ का गोदना- डुमन लाल ध्रुव

छत्तीसगढ़ का गोदना- डुमन लाल ध्रुव



छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति अत्यंत समृद्ध जीवंत और विविध रूपों से परिपूर्ण है। यहां की मिट्टी, भाषा, लोकगीत, लोकनृत्य, वेशभूषा और आभूषण सभी में जनजीवन की सादगी और सौंदर्य झलकता है। इन्हीं में से एक विशिष्ट परंपरा है गोदना जो शरीर पर उकेरी जाने वाली एक लोक कला, श्रृंगार और धार्मिक पहचान का प्रतीक है। गोदना केवल देह सज्जा नहीं जीवन, आस्था, संस्कार और संस्कृति का ऐसा निशान है जो मृत्यु के बाद भी मिटता नहीं।
‘ गोदना ’ शब्द संस्कृत के

“ गुंडन ” शब्द से निकला है जिसका अर्थ है – गुदवाना या चुभाना। अर्थात् सुई या कांटे की मदद से शरीर पर रंग या स्याही डालकर किसी आकृति को स्थायी रूप से अंकित करना। प्राचीन काल में जब मनुष्य के पास आभूषण नहीं थे तब शरीर को सजाने और पहचान बनाने के लिए गोदना गुदवाने की परंपरा प्रारंभ हुई।

छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और आदिवासी समाज में गोदना केवल सजावट नहीं सामाजिक पहचान और धार्मिक विश्वास का प्रतीक रहा है। यहां कहा जाता है
“ गहना तो उतर जाए, पर गोदना जिनगी भर संग चलय।” अर्थात् गहना खो सकता है पर गोदना जीवनभर साथ रहता है।

गोदना की परंपरा और जनजातीय समाज –

छत्तीसगढ़ जनजातीय बहुल प्रदेश है। यहां के गोंड, बैगा, उरांव, खैरवार, पहाड़ी कोरवा, मुरिया, हल्बा, बिंझवार, कंवर, धनवार, भतरा, धुरवा और परधान जैसी जनजातियों में गोदना की परंपरा सदियों से जीवित है। इन समाजों में गोदना केवल स्त्रियों तक सीमित नहीं बल्कि कुछ समुदायों में पुरुष भी धार्मिक प्रतीक या जातीय चिन्ह के रूप में गोदना गुदवाते हैं। गोंड और बैगा समाज की महिलाएं बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक अपने शरीर के अलग – अलग हिस्सों पर गोदना गुदवाती हैं । यह उनकी सामाजिक स्थिति, वैवाहिक अवस्था और गोत्र का भी संकेत देता है।
गोदना को इन समाजों में सौभाग्य, संरक्षण और सौंदर्य का प्रतीक माना गया है। विवाह के बाद गोदना गुदवाना कई समुदायों में एक संस्कार के रूप में आवश्यक होता है। बिना गोदना वाली महिला को अधूरी और अशुभ माना जाता था।

गोदना के रूप और आकृतियां –

गोदना की आकृतियां केवल सजावट के लिए नहीं होती वे अपने साथ अर्थ, कथा और प्रतीक लेकर आती है।
छत्तीसगढ़ के गोदना डिजाइनों में प्रकृति, देवत्व और आस्था की झलक मिलती है।
सूरजफूल जीवन, ऊर्जा और उजाला
त्रिशूल शक्ति और भक्ति का प्रतीक
मोरपंख सौंदर्य, प्रेम और सौभाग्य
बेलबूटा श्रृंगार और नारीत्व
नंदी शिव भक्ति और संरक्षण
बिंदी या बिंदु सौभाग्य और पवित्रता

झुमका, पायल आभूषण का प्रतीक, नारी सौंदर्य

गोदना के ये चित्र न केवल सौंदर्य के लिए हैं । इनमें धार्मिक और आध्यात्मिक भावनाएं भी निहित हैं। महिलाएं सूर्य, चंद्रमा, देवी – देवता, बाघ, बेलपत्र, झुमका, मोर, बेल, बेलबूटा, और सांकल (श्रृंखला) जैसी आकृतियां बनवाती हैं।

गोदना की परंपरागत विधि – गोदना गुदवाने का कार्य अत्यंत सावधानी, धैर्य और कला कौशल से किया जाता था। इस कार्य को करने वाली स्त्रियों को “ गोदहारिन ” या “ गोदनीन ” कहा जाता है। ये महिलाएं इस कला की पारंपरिक विशेषज्ञ होती थी और पीढ़ी दर पीढ़ी यह कौशल हस्तांतरित होता था।
वे अपने साथ कुछ जरूरी सामग्री रखती थी जैसे –

बांस की पतली सुई या कांटा, गुदाई की स्याही (जो काजल, नीला, हर्रा, नीम या गोमूत्र के मिश्रण से बनाई जाती थी),कपड़ा, रुई, तेल और हल्दी।

गोदना बनाने से पहले त्वचा को गर्म पानी या तेल से साफ किया जाता था। फिर कोयले या काजल से आकृति की रूपरेखा बनाकर सुई से बारीक छेद किए जाते थे। इन छेदों में रंग भरा जाता था ताकि आकृति स्थायी हो जाए। गुदवाने के बाद उस स्थान पर हल्दी या सरसों का तेल लगाया जाता था ताकि संक्रमण न हो।
गोदहारिनें घूम – घूमकर गांवों में यह कार्य करती थी। उन्हें मेहनताना अनाज, कपड़ा या पैसा के रूप में दिया जाता था। यह न केवल आजीविका का साधन था बल्कि लोक कला का सम्मान भी था।

गोदना और स्वास्थ्य –

प्राचीन लोक मान्यताओं के अनुसार गोदना केवल सौंदर्य का माध्यम नहीं शरीर की रक्षा का उपाय भी था। लोक चिकित्सकों का मानना था कि शरीर के विशेष हिस्सों में गोदना गुदवाने से वात, कफ और अन्य रोगों से बचाव होता है। जैसे – घुटनों पर गोदना गुदवाने से घेंघा और जोड़ों का दर्द कम होता है। कंधे और पीठ पर गोदना बुरी आत्माओं से रक्षा करता है। माथे और ठोढ़ी पर गोदना सौभाग्य और सौंदर्य का प्रतीक होता है। इस प्रकार गोदना एक प्रकार की लोक चिकित्सा का रूप भी था।

गोदना का धार्मिक और सामाजिक महत्व – गोदना को छत्तीसगढ़ी समाज में आस्था और विश्वास का चिन्ह माना गया है। प्रचलित मान्यता है कि मरने के बाद गहने, वस्त्र या संपत्ति आत्मा के साथ नहीं जाती पर गोदना आत्मा के साथ स्वर्ग तक जाता है। यही कारण है कि ग्रामीण महिलाएं कहती हैं – “ गहना बिक जाथे, गोदना नई मिटे। ”

विवाहित स्त्रियों के लिए गोदना “ सौभाग्य ” का प्रतीक माना जाता था। कई समुदायों में माना जाता है कि यदि किसी स्त्री के शरीर पर गोदना नहीं है तो उसकी आत्मा को परलोक में पहचान नहीं मिलती। यह विश्वास गोदना को मरणोत्तर पहचान से भी जोड़ता है।

नारी जीवन में गोदना –

छत्तीसगढ़ में नारी जीवन के प्रत्येक चरण में गोदना का महत्व जुड़ा है ।
बाल्यावस्था में – हाथों या उंगलियों पर छोटे फूल या बिंदु गुदवाए जाते हैं।
किशोरावस्था में – विवाह की तैयारी के रूप में हाथ, पैर, गर्दन और बांह पर आकृतियां बनती है।
विवाहोपरांत – सौभाग्य और समृद्धि के प्रतीक गोदने गुदवाए जाते हैं।
मातृत्व के समय – झूला, पालना, ककड़ी फूल या बेलबूटा जैसे प्रतीक गुदवाए जाते हैं जो मातृत्व की खुशी दर्शाते हैं।
लोकगीतों में गोदना के इन संस्कारों की झलक मिलती है ।
गोदना गोदे हे सखी, आंखी भर आय पानी,
सुई चुभे मोर देह मा, लागे जइसे अगिनी।
यह गीत केवल पीड़ा नहीं नारी की सहनशीलता और गर्व की अनुभूति को भी दर्शाता है।

गोदना और लोकगीत –

गोदना छत्तीसगढ़ के लोकगीतों और लोकनाट्यों का भी अभिन्न हिस्सा रहा है।
महिलाएं गोदना गुदवाते समय आपसी सहयोग, हंसी – मजाक और सांत्वना के भाव से भरे गीत गाती थी। इन गीतों में पीड़ा भी है और आत्मगौरव भी।
नंदी बने मोर बांह मा, मोरपंख बने हथेली,
बेलबूटा कटि में सजे, लागे जइसे कंचन झेली।
इन गीतों से स्पष्ट है कि गोदना स्त्री के सौंदर्य, आस्था और आत्म अभिव्यक्ति का माध्यम रहा है।

आधुनिकता में गोदना का रूपांतरण –

आज के समय में गोदना का रूप टैटू के रूप में विकसित हो चुका है। पहले जहां यह धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक था वहीं अब यह फैशन, व्यक्तिगत अभिव्यक्ति और शैली का माध्यम बन गया है।

पहले की आकृतियों में देवी – देवता, प्रकृति और पारिवारिक प्रतीक होते थे जबकि अब अंग्रेजी नाम, कोट्स, डिजाइन या आधुनिक चिन्ह गुदवाने का चलन है। फिर भी, छत्तीसगढ़ के कई ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पारंपरिक गोदना की वही पवित्रता, वही लोकभाव और वही पहचान बनी हुई है। बुजुर्ग महिलाएं आज भी कहती हैं –
“ गोदना आत्मा के संग जाथे, गहना नइ। ”

सांस्कृतिक और सामाजिक विश्लेषण – गोदना को छत्तीसगढ़ की लोक चित्रकला की जीवित शैली कहा जा सकता है। यह न केवल सौंदर्यबोध, पहचान, आस्था और स्मृति का भी प्रतीक है। सामाजिक दृष्टि से यह जाति, गोत्र और वैवाहिक स्थिति का परिचायक रहा है।

सांस्कृतिक दृष्टि से यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आयी है और लोककला का जीवंत रूप है। धार्मिक दृष्टि से यह देवी – देवताओं की कृपा और आत्मा की पवित्रता का प्रतीक माना गया है।
गोदना को गहनों से ऊंचा स्थान दिया गया क्योंकि यह चोरी नहीं हो सकता न बिक सकता है न मिटाया जा सकता है।

– डुमन लाल ध्रुव

मुजगहन, धमतरी (छ.ग.)
पिन-493773
मोबाइल- 9424210208

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