
छत्तीसगढ़ की धरती ने अनेक साहित्यकारों को जन्म दिया जिन्होंने अपनी लेखनी से जनमानस को न सिर्फ स्वर दिया बल्कि उनके संघर्षों को भी साहित्य के पन्नों पर अमर कर दिया। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण नाम है भगवती लाल सेन।
भगवती लाल सेन का जन्म- 23 मई 1930 को धमतरी जिले के ग्राम देमार में हुआ। औपचारिक शिक्षा सीमित रही लेकिन अनुभव और जीवन के संघर्षों ने उन्हें एक गहन दृष्टि और संवेदनशील मन प्रदान किया। उन्होंने कहा भी था कि “शालेय शिक्षा कम है, पर जीवन ही सबसे बड़ा विद्यालय है।” उनका व्यक्तित्व सरल, सहज और साफदिल था। वे नेक इंसान होने के साथ-साथ मजदूरों और श्रमिकों के जीवन के संघर्षों को समझते और उनके हक के लिए लड़ने की प्रवृत्ति रखते थे।
भगवती लाल सेन के व्यक्तित्व को विभिन्न संदर्भों में देखा जा सकता है ।
- साफदिल और नेक इंसान – हर किसी से सहज आत्मीयता से मिलने वाले।
- मजदूरों के साथी – श्रमिकों के लिए जूझने का स्वभाव, न्याय की लड़ाई को अपनी जिम्मेदारी मानना।
- जीवन की तल्खियों से टकराने का हौसला – तमाम कठिनाइयों के बावजूद कभी हार न मानने का दृष्टिकोण।
- मुस्कान उनका हथियार – हर पीड़ा और संघर्ष के बीच उनकी मुस्कान लोगों को प्रेरित करती थी।
- सच्चे आलोचक – दोस्तों के लिए भरोसेमंद, लेकिन अन्याय बरतने वालों के लिए कठोर और स्पष्ट आलोचक।
यही कारण है कि वे अपने साथियों, पाठकों और समाज के बीच अविस्मरणीय व्यक्तित्व के रूप में याद किए जाते हैं।
भगवती लाल सेन का लेखन उनकी जीवन दृष्टि का साक्षी है। उनकी कविताएं मात्र साहित्यिक प्रयोग नहीं बल्कि जीवन के संघर्ष और जन-मन की संवेदनाओं का प्रतिबिंब है।
नदिया मरे प्यास, सुबह (काव्य संग्रह), देख रे आंखी, सुन रे कान (काव्य संग्रह) इन काव्य संग्रहों में आम आदमी की पीड़ा, समाज के अन्याय और भविष्य के प्रति आशावाद की झलक मिलती है। उनकी कविताएं जीवन के कठिन यथार्थ को सीधे-सीधे शब्दों में प्रस्तुत करती है। उनकी काव्य की विशेषताएं है- संघर्ष और श्रम की कविता – मजदूर और श्रमिक वर्ग का जीवन उनकी कविता का केंद्र है।
आशा और हौसले का स्वर – निराशा में भी उम्मीद की सुबह तलाशना उनकी विशेषता रही।
साधारण भाषा, गहरी संवेदना, जटिल शब्दावली के बजाय सरल भाषा में गहन विचार व्यक्त किए।
आलोचनात्मक दृष्टि – समाज की विसंगतियों और अन्यायपूर्ण व्यवस्थाओं पर उन्होंने तीखा प्रहार किया।
भगवती लाल सेन का जीवन लंबा नहीं रहा। मात्र 51 वर्ष की आयु में 8 अगस्त 1981 को रायपुर में उनका निधन हुआ । परंतु इतने कम समय में भी वे छत्तीसगढ़ी हिन्दी साहित्य में अपनी अमिट छाप छोड़ गए।
उनकी रचनाएं आज भी मजदूर वर्ग की चेतना को जगाती है और यह बताती है कि साहित्य केवल सुंदर शब्दों का खेल नहीं बल्कि जनजीवन का आईना है।
भगवती लाल सेन केवल कवि ही नहीं थे बल्कि जन-आवाज के सच्चे प्रतिनिधि थे। उनकी कविताएं और उनका जीवन दोनों ही संघर्ष, न्याय और उम्मीद की कहानी कहते हैं। उनकी मुस्कान, उनकी साफगोई और उनकी रचनाएं आज भी हमें याद दिलाती है कि – साहित्य का असली मूल्य वही है जहां वह समाज के सबसे वंचित और पीड़ित वर्ग को स्वर देता है। इस दृष्टि से भगवती लाल सेन न केवल छत्तीसगढ़ के साहित्यिक परिदृश्य में बल्कि भारतीय जनकाव्य परंपरा में भी एक प्रेरक व्यक्तित्व और संवेदनशील कवि के रूप में सदैव स्मरणीय रहेंगे।





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