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छत्तीसगढ़ी कहानी:हमर मौसी-डॉ राजेश मानस

छत्तीसगढ़ी कहानी:हमर  मौसी-डॉ राजेश मानस

कहिथं के बिपत ह कोनो ल बता के नी आय। कब काकर उपर कइसे बिपत आ जाही तेला कोनो नी जाने। मनखे ल ऐकर ले जुझे बर परथे। जब ऐकर ले जुझबे तमे जिनगी ह बने चल पाही, अउ बिपत ले सीख घलो मिलथे बस आदमी ल सीखे बर तियार रहना चाही।

हमर मौसी के गांव भर म मितानी हे। मितानी के सेती गांव भर के मनखे मन संग ओकर रिस्तेदारी तको हवय। कोनो कुरा ससुर, कोनो ममा ससुर, कोनो कका ससुर, कोनो जेठानी, कोनो देरानी, कोनो काकी सास, कोनो बुढ़ी सास, ए परकार ले सबो नता गोता हवय। अब नता मनाई के नांव ले के हमर मौसी बिचारी मुड़ म लुगरा ढांकेच रहय। कउनो कोती जाय बर होय तव रद्दा भर ओकर नता मनाई म आधा दिन ह पहा जात रहय। मौसा बिचारा मौसी ले अलग सुभाव के रहय। ओला कोनो ले कोनो परकार के कोई लेना देना नइ रहय। अपन काम ले काम, बिहिनिया ले उठके अपन बुता मा चल देवय अउ अबड़े रात के आवय। कोनो दिन कहूँ घर म रही जातीस त मौसी के ओकर सो खाप नइ माढ्य।

मौसी रहय घर- घर के बईठईया अउ मौसा ल ऐ बात पसंद नइ रहय। ओहा घर मा रहितीस ता सुबेरे ले खाय पीये बर मांगय, बिचारी मौसी ओकर रहे मा फंदा जावय। जहाँ थोरको मौसा ऐती कहूँ डहर निकरतीस मौसी तुरते दरवाजा फईका लगाके कोनो घर बुले निकल जावय। जब देखते ता मौसी के घर मा तारा बेड़ी लगेच रहय।

एक रात के बात आय, मौसा काम ले आके रात के सुते रिहीस, कोन जनी का जीव ए ओकर गोड़ के अंगरी ला चाब दिहीस। बिहिनिया बेरा उठीस त ओकर गोड़ हा फूलगे रहय। तुरते सरकारी अस्पताल गईस अउ दवा लानके खाईस घलो, फेर ओकर ओ दिन ले ओ गोड़ नइ बने होईस। काम- बुता छुटगे, घर म खाय बर दाना नइ रहय, उप्पर ले ऐ बीमारी, कोनो कुछ कहंय, कोनो कुछु। अब मौसा के जी बिपतियागे, आखिर म थक के कुष्ठरोग के अस्पताल घलोक मा जाके भरती होगे। उहाँ के डाक्टर मन सुरू मा दवाई बुटी देईन फेर नई माढ़े मा ओकर गोड़ के दू ठीक अंगरी ला काट दिहीन, तब ले ओकर गोड़ हा खपचलहा होगे। आज ले कहूँ जादा रेंग देही ता फूल जाथे अउ फोरा घलो उपक जाथे।

मौसी के जिनगी के रद्दा ऐही दिन ले बदलगे। ओकर सोंच हा बदलगे, अउ ओकर जीये के तरीका घलो ह बदलगे। मौसी ह ठींहा बुता के काम नइ जानत रहय। हमन कहेन का करबे मौसी समय तो आय, ठीक हो जाही, तंय घरे मा रही अउ घरे के बुता कर अउ खा। घर ले बाहिर बुता मत कमा, तंय ऊँचकूल के बहू-बेटी आस, तोला बाहिर जाना हा कठिन होही। फेर सगा समाज तको देखे बर परही, कईसे करबे। बिचारी कतेक दिन देखतीस महिना दू महिना बात मान के रहिगे फेर अब नइ सकाईस ता आखिर मा ठींहा- पथरा मा जाय लगिस। ओहा ए बुता कमू नइ करे रिहीस, सिहर जावय, फेर का करय लइकन मन के नांव लेके कमाय बर जाय लगीस। ऐ बुता के करते करत आँहा अईसे गुन पा गे के ओकर जिनगी के रद्दा बदलगे। जान पहिचान मा जउन घर मा कोनो छेवारी परतीस मौसी उहाँ बुता करे बर पहुँच जाय। छेवारी के जतन करय, लईका के जतन करय अउ उकर जंतन करे के पाछ अपन घर जावय। मया म घर के मनखेमन मौसी के मदद मा कोनो खय बर दे देवंय, त कोनो कपड़ा लत्ता, कुछु कांही, रूपिया पईसा अईसे। सुरु सुरु म मौसी लजा जावय फेर घर गरीबी के नांव लेके ले लेवय, धीरे धीरे आदत परे कस होगे। अब मौसी के दिन अइसने चले लगीस। मौसा धीरे-धीरे ठीक होगे, अपन बुता काम मा फेर जाय लगीस।

मौसी सुरु सुरू म बुता मा दंदर जाय त थक के आवय अउ कहय बाबू मोला आज चक्कर आत हे, त कमू कहय बाबू मोर आँखी किंजरत हे. मंय हा ओला सूजी पानी लगाके दवाई गोली दे दंव, मौसी ठीक हो जावय तव फेर कोनो घर मरनी काम मा जाय रहय, उहाँ ले आतीस भरसंझा के होवत ले नइ त दूसर दिन बिहिनिया के होते होत कोनो घर बिहाव मा चल देहे रहय। अब घर, परिवार, गाँव, आन गाँव सबो कोती के मनखे मन संग मौसी के चिन्ह पहिचान होगे। कोनो घर कुछु होवय जचकी, मरनी, छट्ठी, बिहाव, सगाई, कोनो बीमार परे हवय तव, कोनो के आपरेशन करवाय बर हे तव, कोनो ल अस्पताल मा भरती करवाना है तव सब मौसी ला सुरता करे लगीन।

अब बीगर मौसी के कोनो के बुता नइ होवय। अब धीरे धीरे मौसी थकत- थकत थक गे। अब मौसी के उमर बुता करे लाईक नइ रहिगे फेर तभो ले मौसी कोनो घर के काम होवय, कुछु काम रहय हबर जाथे, ओकर घर के काम ला करथे अउ जब ओकर काम बुता ले फुरसुत होथे त घर आके अपन गोड़ हाथ ला अपने मींजत बईठे हाय हाय करत रहिथे । कभू- कभू तो बुखार मा घलो हफरत रहिथे तभो ले कोनो बुलाय बर आथे त अपन बुखार ला भूला जाथे अउ ओकरे संग दउरत चल देथे। अब ओला मना करबे त कहिथे मंय हा नइ जावंव त मोर गोड़ हाथ मा पीरा उमच जाथे, मंय उंकर बुता करथंव त अपन पीरा ला भूला जाथंव, फेर मोर नइ जाये ले ओकर बुता का माढ़े रही, कोनो तो करबे करही। अब तो मंय भगवान सो ऐही बिनती करत रहिथंव के मोला अईसने बुता करते करत दुनिया ले ले जाही। अउ उठके चल देथे मौसी बुलायबर आय रथे तेकरे संगेसंग ओकर घर डहर।

हमर मौसी के चार झींन लईका तीन बेटी अउ एक बेटा हवय। सबो ला पढ़ाय बर कोसीस करीस, फेर कोनो आठवी ले उप्पर नइ पढ़ सकीन। बड़े बेटी ल दूजहा बर बिहा दिहीस, बने सुग्घर घर दुआर, खात-कमात, खेती- बारी वाले मन घर। अउ मंझली नोनी घलो बने घर मा गय हे, बने कमात- खात हावय। ए किसम ले दूनो बेटी के बिहाव इही सेवा जतन के परसादे सबसो मदद मांग मांग के कर डारिस। अब एक बेटी हावय ओकरो भगवान भरोसा हो जाही, फेर बेटा अभी छोटे हवय।

फेर मौसी कहिथे मोला का फिकर हे सबो कोनो मिलके करिहव, मंय तुंहर सेवा करत हंव तुमन उंकर करिहव। जइसे तइसे अतका जिनगी पहागे अब बाँचे जिनगी घलो पहा जाही अब अउ का चाही, ऐ लईकामन मोर भर थोरी ए अब तो मोला सबके फिकर रहिथे, सबो मोर लईका आय, ऐकरे सेती सबो के पीरा हा मोर पीरा आय।

डॉ राजेश मानस

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