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रमेश चौहान के छत्‍तीसगढ़ी कहानी :- चार बेटा राम के कौड़ी के न काम के

रमेश चौहान के छत्‍तीसगढ़ी कहानी :- चार बेटा राम के कौड़ी के न काम के

चार बेटा राम के कौड़ी के न काम के (छत्‍तीसगढ़ी कहानी)-

चार बेटा राम के कोड़ी के ना काम के , छत्‍तीसगढ़ी कहानी हमर देश राज म परिवार के महत्‍ता कम होय ल, लइका मन के दाई-ददा ले अलग रहे के दर्द ल बयॉ करत अपन अपन संस्‍कार अउ संस्‍कृति के संरक्षण के गोहार करत हे ।

चार बेटा राम के कौड़ी के न काम के

छत्‍तीसगढ़ी कहानी :- चार बेटा राम के कौड़ी के न काम के
छत्‍तीसगढ़ी कहानी :- चार बेटा राम के कौड़ी के न काम के

छोइहा नरवा के दूनों कोती दू ठन पारा नरवरगढ़ के ।  बुड़ती म जुन्ना पारा अउ उत्ती मा नवा पारा ।  जुन्नापारा मा गाँव के जुन्ना बासिंदा मन के डेरा अउ नवापारा मा पर गाँव ले आये नवा मनखे मन के कुरिया । गाँव के दुनो कोती मंदिर देवालय के शंख-घंटा के सुघ्घर ध्वनि संझा बिहनिया मन ला सुकुन देवय । गांव के चारो कोती हरीयर-हरीयर रूख राई, भरे-भरे तरीया अउ लहलावत धनहा-डोली, जिहां गावत ददरिया निंदत धान संगी अउ जहुरिया । जम्मो प्राणी अपन-अपन काम मा मगन, लइका मन बाटी-भवरा, गिल्ली डंडा, चर्रा-कबड्डी, नोनी मन फुग्गड़ी खेलय । अइसे लगय जइसे सरग हा इहें उतर गेय हे ।

इही गांव मा तोप नाम के एक किसान रहय, जेखर दशरथ कस चार झन छोरा हीरा, हरूवा, झड़ी अऊ झडुवा । तोप हा ददा दाई के दस पंद्रा इकड़ खेत मा तनमन ले खेती करय अउ अपन लइका बच्चा के भरण-पोसण करय। अपन जमाना मा तोप हा अंग्रेज मन के स्कूल ले चौथी पास रहय । ओ जमाना के चौथी पढे मन ला मास्टरी, पटवारी, बाबू के नौकरी बिना मांगे मिल जय । घर बइठे नौकरी के आर्डर । आज कस मारा-मारी नई रहय । फेर ओखर ददा हा ओला नौकरी मा नई भेजीस कहे लगीस-‘‘उत्तम खेती, मध्यम व्यपार अउ नीच नौकरी, छाती तान कमा बाबू अउ लात दे के सुत‘‘ । तैं मोर एके झन बेटा तोर बर अतका खेती-खार पूरय के बाचय ।  ओ बखत के आदमी मन संस्कारी रहय, अपन दाई-ददा के बात ला नइ पेले सकय । आजकाल के लइका मन कस मुँडपेल्ली काम नइ करे पात रहिन । अपन ददा के बात मान अपन गांव मा अपन खेती अउ परिवार मा मगन तोप रमे रहिगे । अपन ददा के संस्कार ला हीरा, हरूवा, झड़ी अउ झडुवा मा पेड़ के जर मा पानी रिकोये कस रिकोय लगिस । बेरा जात नई लगय देखते-देखत लइका मन पढ़ लिख के तइयार होगे । तोप अपन चारो लइका ला शिक्षा, संस्कार के संगे संग काम करे के कूबत घला पैदा करिस । एही कारण ओखर चारो लइका शहर मा बने-बने नौकरी-चाकरी करे लगिन । चारो लइका के बर बिहाव करके तोप गंगा नहा लिहीस । 

चारो बेटा-बहू शहर मा अउ डोकरा-डोकरी गांव मा । घर कुरिया भांय-भांय करय । तोप गांव बस्ती मा घूमे फिरे ला निकल जय, त ठोकरी कुवंरिया निच्चट अकेल्ला घर कुरिया के भिथिया ला देखय फेर अँगना ला देखय । देखय- हीरा ठुमुक-ठुमुक दउड़त हे, पांव के घुंघरूं वाले साटी छन-छन बोलत हे, अपन हा दुनो हाथ लमाय ओ बेटा मोर हीरा कहत पाछू कोती उल्टा पाँव आवत हे । ऐही बखत फोन के घंटी बाजे लगिस । कुवंरिया झकना के फोन ला उठाइस –

‘दाई पा लगी‘ का करत हस ओ ददा कहां हे ? दूसर कोती ले हीरेच ह बोलत रहय । कुवंरिया के आँखी डहर ले आँसू छलके लगिस – ‘खुश रह बेटा खुश रह रे‘ अउ का हाल चाल बाबू ।
ओम का करत हे गा ?
स्कूल गे हे दाई ।
अब का पढ़त हे ओम हा ?
क्लास फोर
अच्छा अच्छा, अउ बहू गीता कहां हे गा ?
ऐ…………….दे बात अधूरा रहय के फोन हर कटगे । दाई के अंतस हा भुखायेच रहिगे । का करबे फोन उठाय भर ला आथे फोन लगाय लय तो आवय नहीं । चुरमुरा के रहिगे बिचारी कुवंरिया हर ।

ओती बर गीता हा हीरा के हाथ ले फोन झटकत कहत हे -‘आई डोंट लाइक टाकिंग विथ युवर मदर‘ आपके मम्मी फिर गांव आने को कहेगी मुझे वहां जाना पसंद नहीं । ओम वहां जाकर गंदा-गंदा गाली गालोच देना सीख जाता है, गंदे स्थान पर खेलता है । 

‘‘ ओही गांव के हीरा ह तोर हीरा होय हे गोइ‘‘-मन मा हीरा बुदबुदावत कहे लगिस-‘‘तो क्या हम अपने मम्मी-पापा को यूँ ही छोड दे अकेले‘
‘‘वहां सब कुछ तो है ना जमीन जयदाद, ऊपर से तू हर महिना पैसा भेजते हो और क्या चाहिये उन्हे‘‘ गीता हर झुंझलावत कहिस । दुनो झन मा अइसने तकरार आय दिन होत रहय । फेर हीरा एको घा अपन दाई ददा मेर जायके हिम्मत नइ कर पाइस । हां हर महिना जउन बनतिस रूपया पइसा जरूर भेज दय ।

हरूवा हर एक ठन बड़ेक जन कंपनी के मनेजर साहब बनगे रहय । ओखर गोसाइन घला एकठन कम्प्यूटर कंपनी मा इंजिनियर रहय । सुत उठ के आफिस अउ आफिस ले आके बिस्तर ऊंखर दिन अइसने निकलत रहय काम बुता छोड़ अपने बर सोचे के फुरर्सत नइ रहय त दाई ददा ला का सुरता करतिन ।

झड़ी सरकारी आफिस के बाबू रात दिन टेबिल के बुता अउ ओखर खालहे ले कमई । लालच बुरी बलाई अउ-अउ के फेर मा घर डहर के चिंता हरागे । रात दिन कूद-कूद के कमई अउ डौकी लइका संग गुलछर्रा उठई ओखर जिंदगी होगे रहय ।

झडुवा एक ठन कंपनी के सेल्स मेन रहय । ये शहर ले ओ शहर समान के आर्डर ले के बुता करय । ओखर मन तो गांव जाय के होवय फेर वाह रे बुता छुटटीच नई मिलय अइसे फतके रहय अपन काम मा ।

कुवंरिया फोन ला धरे के धरे अवाक खडे रहय सोचत- का अच्छा दिन रहिस ओ दिन हा- लइका मन सुघ्घर खेलय पढ़य अउ लड़य दाई-दाई गोहरावत रहंय बुता तक नइ करन देत रहिन -‘दाई-दाई मझला भइया मोला मारथे संग मा नइ खेलावन कहिके, महूँ खेल हूँ दाई‘ छोटे लइका झडुवा हा अपन दाई ला गोहरावत रहय । ‘लइकामन के सुरता करत ‘अरे बेटा झड़ी आतो ऐती‘ कुंवरिया हा मुँह ले बोल डरिस । ओतके बेरा तोप हा घूम फिर के दुवारी मा घुसरत रहय । कुवंरिया के भाखा सुन के ओखर मुँह मा चमक आगे के झड़ी शहर ले आय हे कहिके । ऐती-ओती देखिस झड़ी कहां हे ? लइका मन कहां हे ? चारो-कोती देखीस नई पाइस कोनो ला । तोप समझगे कुवंरिया हा लइका मन के सुरता मा सुर्रत हे कहिके । तोप हा मन मा ठानिस के दू चार दिन बर कुवंरिया ला शहर लइका मन ला देखा के ला हूँ कहिके । ओ हर कुवंरिया ले कहिस -‘ऐजी सुनत हस काली हीरा मन मेर जाबो रोटी-पिठा बना ले । कुवंरिया के उखड़त सांस मा फेर सांस आगे सिरतुन हीरा के ददा । का कहे जी फेर एक बार कहि तो । ह-हो हीरा मेर शहर जाबो रोटी-पिठा बना डर । 

कुवंरिया कुलकत ठेठरी-खुरमी बरे लगिस । घीव के मोवन डार के कुसली घला सेकीस । सोवत ले ओ हर लइकामन बर तइयारी करीस । लइकामन मेर जाये के साध मा निंद घला नइ आवत रहय । खुशी मा कुलकत मुंदधरहा ले उठ के नहा धो के तइयार होगे । गांव के पहिली गाड़ी मा दूनो झन शहर बर निकल गे । दिन भर के रददा मा मुंदधियार के शहर पहुँचिन । घर पहुँचिन त ओतके बेर हीरा मन डायनिंग टेबल मा खाय बर बइठे रहँय । हीरा दाई-ददा ला देख बड़ खुश होगे उठ के सुघ्घर दाई-ददा के पाँव छू के पैयलगी करीस । गीता घला लाजे काने दूनो झन के पांव छुईस । कुवंरिया झटटे ओम ला गोदी मा लेके चूमे लागीस । लइका ला पाय-पाय हीरा के मुँहे-मुँह ल देखय अउ लइका ला दुलारय । खाय-पिये के बाद कुवंरिया हीरा संग बतियाय लगिस कब आधा रात होगे गम नइ पाइन । बिहनिया ले नहा धो के ओम स्कूल त हीरा अपन आफिस चल दिहीस । गीता घला आज काल के नारी घर मा फोकट थोरे बइठे रहितिस उहू हा प्रायवेट स्कूल मा बढ़ाय बर चल दिहीस । तोप घला सम्हर ओढ़ के शहर घूमे बर निकल गे । कुवंरिया अक्केला के अक्केला । एकाक घंटा मा तोप घुम फिर के आईस । कुवंरिया, तोप ला लोटा मा पानी देत कहिथे –
कहां गे रहेवजी
कहां जाबे भइगे सड़क कोती भीड़-भाड़ देख के आगेंव ।
बने करेव जल्दी आके अकेल्ला मन बने नइ लगय । लइकामन ला देख के बने लगीस जी । फेर सोचथंव-का जमाना आगेजी सब अपने मा मगन काम-काम अउ काम । घर मा जम्मो जिनीस हवय नइये काही त मनखे । अइसे गोठ-बात करत संझा होगे जम्मो प्राणी अपन-अपन काम ले घर आईन खाइन-पिइन अउ सुतगे । ऐही रकम दुनो ऊंहा हफ्ता भर रहिके गांव आगे ।

गांव आये दुये चार हफ्ता होय रहय के कुंवरिया बीमार परगे अउ दुये चार दिन मा अतका कमजोर होगे गे खटिया ले उठे बइठे नइ सकीस । तोप फोन करके जम्मो लइका ला घर आये बर कहिस । चारो लइका अपन-अपन बुता ले छुट्टी ले के घर आईन । लईका मन ला देख के डोकरी कुंवरिया के मन हा हरियागे । चारो बेटा-बहू ले घर भरे-भरे लगय । अंगना मा नान्हे-नान्हे लइका मन के खेल ले फेर एक बार कुवंरिया के मन अउ अंगना भर गे दुयेच दिन मा । ओखर सख अब खटिया ले उठे के होगे । 

चारो बेटा-बहू दू दिन के छुट्टी ले के आये रहिन । काम के चिंता मा ओमन दाई ला बने होवत देख अपन- अपन काम म चल देइन । फेर डोकरा-डोकरी अक्केल्ला के अकेल्ला कुछे दिन मा डोकरी फेर पर गे । लइकामन के सुरता मा सुरर-सुरर के ऐ दरी अइसे परीस के उठे नइ सकिस । गांव के मन डोकरी के अंतिम दरसन करे बर आय रहय ते मन गोठियात रहंय – डोकरी के जीव लइका मन बर लग गे । आखरी बेरा मा कोनो संग नइ दे पाइन का करबे -चार बेटा राम के कौड़ी के ना काम के ।

-रमेशकुमार सिंह चौहान


येहू कहानी ल पढ़ सकत हव-‘मुर्रा के लाडू’https://www.surta.in/murra-ke-ladu/

18 responses to “रमेश चौहान के छत्‍तीसगढ़ी कहानी :- चार बेटा राम के कौड़ी के न काम के”

  1. मनोज कुमार श्रीवास्तव Avatar
    मनोज कुमार श्रीवास्तव
    1. Pritam singh Avatar
      Pritam singh
      1. Name *आशुतोष साहू Avatar
        1. नारायण निर्मलकर Avatar
          नारायण निर्मलकर
      2. Ramesh kumar Chauhan Avatar
    2. आशुतोष साहू Avatar
      आशुतोष साहू
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      चोवा राम ‘बादल’
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    5. श्रीकांत शर्मा Avatar
      श्रीकांत शर्मा
  2. Shlesh Chandrakar Avatar
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  3. Duman lal dhruw Avatar
    Duman lal dhruw
  4. डॉ. अशोक आकाश बालोद Avatar
    डॉ. अशोक आकाश बालोद
    1. Ramesh kumar Chauhan Avatar
  5. विवेक तिवारी Avatar
    विवेक तिवारी
  6. तुलसी देवी तिवारी Avatar
    तुलसी देवी तिवारी

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