डुमन लाल ध्रुव

हिन्दी :राष्ट्र की विविधताओं को जोड़ने वाली सेतु
हिन्दी केवल एक भाषा नहीं बल्कि भारत की आत्मा, संस्कृति, परंपरा और राष्ट्र की विविधताओं को जोड़ने वाली सेतु है। भाषा मनुष्य की अभिव्यक्ति का साधन है, विचारों का प्रवाह है, संस्कृति का वाहक है। हिन्दी ने भारत के विभिन्न प्रांतों, बोलियों और समुदायों को जोड़ने का कार्य किया है। 14 सितम्बर को मनाया जाने वाला हिन्दी दिवस इसी गौरव, स्वाभिमान और भाषा की शक्ति का उत्सव है। यह दिवस न केवल भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए प्रेरित करता है बल्कि भारतीय अस्मिता, ऐतिहासिक धरोहर और भाषाई एकता का प्रतीक भी है।
हिन्दी का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसका उद्गम संस्कृत से हुआ। संस्कृत से प्राकृत, फिर अपभ्रंश और फिर आधुनिक भारतीय भाषाओं में इसका विकास हुआ। उत्तर भारत में विविध बोलियां जैसे- अवधी, ब्रज, भोजपुरी, बघेली, राजस्थानी, हरियाणवी आदि के माध्यम से हिन्दी का स्वरूप विकसित हुआ। मध्यकाल में भक्ति आंदोलन के संतों – कबीर, सूरदास, तुलसीदास, मीरा आदि ने इसे धार्मिक, सांस्कृतिक और जनसंपर्क की भाषा बनाया।
औपनिवेशिक काल में अंग्रेजी शासन के दौरान हिन्दी ने प्रशासन, शिक्षा और साहित्य में अपना स्थान बनाए रखने के लिए संघर्ष किया। भारत की स्वतंत्रता संग्राम में भी हिन्दी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महात्मा गांधी ने इसे जनभाषा के रूप में स्वीकारते हुए ‘ हिंदुस्तानी ’ को जन-जागरण का माध्यम बताया। स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान ने हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 343 में स्पष्ट किया गया कि संघ की राजभाषा हिन्दी होगी और उसका लिपि देवनागरी होगी। इसके साथ-साथ अंग्रेजी का प्रयोग भी कुछ समय तक प्रशासन में जारी रखने का प्रावधान किया गया। हिन्दी के प्रचार और विकास के लिए अनेक संस्थाएं बनी जैसे – केंद्रीय हिंदी निदेशालय, हिन्दी अकादमी, साहित्य अकादमी आदि।
हिन्दी का उद्देश्य प्रशासनिक कार्यों तक सीमित नहीं रहा। इसे शिक्षा, विज्ञान, तकनीक, मीडिया, साहित्य, कला और समाज सेवा में उपयोग करने के प्रयास हुए। धीरे-धीरे यह भाषा न केवल भारत में, बल्कि विश्व के कई देशों में भी भारतीय समुदायों के बीच संप्रेषण का माध्यम बनी।
14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया जाएगा। इस ऐतिहासिक निर्णय की स्मृति में हर वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। यह दिन उन प्रयासों को सम्मानित करता है जिन्होंने हिन्दी को भारतीय जनमानस की भाषा बनाया। इस दिन सरकारी कार्यालयों, शिक्षण संस्थानों, साहित्यिक मंचों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिन्दी से जुड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। निबंध प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता, कविता पाठ, नाटक, वाद-विवाद आदि के माध्यम से विद्यार्थियों और नागरिकों में भाषा के प्रति प्रेम और जागरूकता बढ़ाई जाती है।
हिन्दी दिवस हमें यह याद दिलाता है कि भाषा केवल बोलचाल का माध्यम नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण की आधारशिला है। यह हमारी पहचान, संस्कृति और सामाजिक समरसता का प्रतीक है।
हिन्दी ने समाज में एकता और संवाद का पुल बनाया है। भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है। यहां विभिन्न धर्मों, जातियों, संस्कृतियों और भाषाओं के लोग रहते हैं। ऐसी विविधता में संवाद का सबसे सरल माध्यम हिन्दी बन गई। आज भी रेलवे स्टेशनों से लेकर बाजारों तक, गांवों से लेकर महानगरों तक हिन्दी का उपयोग सहजता से होता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में हिन्दी ही शिक्षा, प्रशासन और मीडिया का प्रमुख माध्यम बन रही है। समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन, डिजिटल प्लेटफार्म सभी में हिन्दी की उपस्थिति व्यापक है। सोशल मीडिया ने भी हिन्दी को एक नए युग में प्रवेश कराया है। आज लाखों लोग मोबाइल और इंटरनेट पर हिन्दी में संवाद कर रहे हैं।
हिन्दी साहित्य की परंपरा समृद्ध और बहुआयामी है। वेदों, पुराणों, संत साहित्य, भक्ति आंदोलन, रीतिकाल, आधुनिक काल और समकालीन लेखन तक इसकी यात्रा प्रेरणादायक रही है।
भक्ति काल में तुलसीदास की ‘ रामचरितमानस ’, सूरदास की पदावलियां, कबीर के दोहे समाज को आध्यात्मिक और नैतिक दिशा देती है।
रीतिकाल में श्रृंगार, नीति और सौंदर्य पर आधारित काव्य ने शिल्प और शैली का विकास किया। आधुनिक काल में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिन्दी पत्रकारिता और नाटक को नई पहचान दी। प्रेमचंद ने कथा – साहित्य को जनसरोकारों से जोड़ा। स्वतंत्रता संग्राम में मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी जैसे कवि राष्ट्रप्रेम की भावना को जागृत करते रहे।
समकालीन हिन्दी में सामाजिक परिवर्तन, नारी विमर्श, पर्यावरण, विज्ञान, डिजिटल युग और वैश्विक राजनीति जैसे विषयों पर व्यापक लेखन हो रहा है।
हिन्दी साहित्य का वैश्विक अनुवाद भी हो चुका है। आज अनेक विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है, और भारतीय संस्कृति को समझने के लिए दुनिया भर के छात्र हिन्दी सीख रहे हैं।
शिक्षा में भाषा का विशेष स्थान है। मातृभाषा में शिक्षा देने से विद्यार्थियों में सोचने और समझने की क्षमता विकसित होती है। हिन्दी ने प्राथमिक और उच्च शिक्षा में अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराई है। विज्ञान, गणित, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि विषयों में हिन्दी पुस्तकें बढ़ रही है।
केंद्र और राज्य सरकारें हिन्दी को पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर रही हैं। अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं में हिन्दी अनिवार्य या वैकल्पिक विषय के रूप में सम्मिलित है। डिजिटल शिक्षा प्लेटफार्मों ने हिन्दी को शिक्षा का लोकप्रिय माध्यम बना दिया है। बहुत से लोगों का यह भ्रम है कि विज्ञान और तकनीक केवल अंग्रेजी में ही संभव है। जबकि आज हिन्दी में वैज्ञानिक शब्दावली विकसित हो चुकी है। विज्ञान, कंप्यूटर, चिकित्सा, अभियंत्रण आदि में हिन्दी शब्दावली तैयार की गई है। तकनीकी शब्दों का अनुवाद, मानकीकरण और उपयोग निरंतर बढ़ रहा है।
हिन्दी में शोध पत्र, तकनीकी दस्तावेज, और व्यावसायिक रिपोर्ट भी तैयार हो रही है। यह भाषा विज्ञान और शोध को जनसामान्य तक पहुंचाने का प्रभावी माध्यम बन रही है।
भारत से बाहर भी बड़ी संख्या में लोग हिन्दी बोलते और समझते हैं। नेपाल, फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया सहित अनेक देशों में प्रवासी भारतीय समुदाय हिन्दी का उपयोग कर रहा है।
विदेशों में हिन्दी संस्थाएं, सांस्कृतिक मंच, भाषा पाठशालाएं और विश्वविद्यालय खुल चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी का सम्मान बढ़ा है। संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को शामिल करने की मांग भी समय-समय पर उठती रही है।
हिन्दी के सामने कई चुनौतियां भी हैं –
- अंग्रेजी का बढ़ता प्रभाव – रोजगार, शिक्षा और तकनीक में अंग्रेजी की प्रधानता ने हिन्दी की भूमिका को चुनौती दी है।
- भाषाई असमानता – भारत की अन्य भाषाओं के साथ संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। हिन्दी का प्रचार करते हुए अन्य भाषाओं का सम्मान भी जरूरी है।
- शब्दावली और मानकीकरण – वैज्ञानिक, तकनीकी और आधुनिक विषयों के लिए सहज शब्दावली का निर्माण अभी भी सतत प्रयास मांगता है।
- युवा पीढ़ी की उदासीनता – डिजिटल माध्यमों में अंग्रेजी का उपयोग अधिक होने से हिन्दी के प्रति आकर्षण कम हो सकता है।
- प्रोत्साहन – शिक्षा संस्थानों में हिन्दी आधारित गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए।
- अनुवाद और तकनीकी सामग्री – सरल और सटीक अनुवाद विकसित कर विज्ञान, कानून, तकनीक और प्रशासन में हिन्दी का उपयोग बढ़ाना चाहिए।
- डिजिटल प्लेटफार्म – हिन्दी ऐप्स, वेबसाइट, ई- लर्निंग और सोशल मीडिया को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- साहित्य और मीडिया – नाटक, फिल्म, टीवी, वेब सीरीज आदि में हिन्दी के विविध रूपों को प्रस्तुत कर युवा पीढ़ी को जोड़ा जा सकता है।
- बहुभाषिक दृष्टिकोण – हिन्दी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं का सम्मान कर बहुभाषी शिक्षा नीति लागू करनी चाहिए ।
हिन्दी दिवस पर देशभर में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं –
- विद्यालयों में निबंध, कविता, वाद-विवाद प्रतियोगिताएं
- विश्वविद्यालयों में सेमिनार, संगोष्ठी, शोध प्रस्तुतियां
- सरकारी कार्यालयों में कार्यशालाएं, भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम, सांस्कृतिक उत्सव, कवि सम्मेलन, नाटक, गीत, नृत्य आदि।
एक भाषा तभी जीवित रहती है जब वह समाज के प्रत्येक वर्ग की आवश्यकता पूरी करे। हिन्दी ने भारत को जोड़ने का कार्य किया है। यह प्रशासनिक भाषा होने के साथ-साथ सांस्कृतिक संवाद, राष्ट्रीय एकता और जनचेतना की वाहक है।
हिन्दी में देश की पीड़ा, आशा, संघर्ष, संस्कृति, विज्ञान, कला, राजनीति, शिक्षा और भविष्य की दिशा व्यक्त की जाती है। यह भाषा केवल अतीत की विरासत नहीं बल्कि भविष्य की आधारशिला है।
हिन्दी दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि भाषा केवल शब्दों का समूह नहीं बल्कि हमारी पहचान, इतिहास, संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतिनिधित्व करती है। हिन्दी ने भारत की विविधता को एक सूत्र में पिरोया है, राष्ट्र की आकांक्षाओं को स्वर दिया है, साहित्य और विज्ञान को नया आयाम दिया है और समाज में संवाद का पुल बनाया है।
आज आवश्यकता है कि हम हिन्दी को केवल औपचारिकता तक सीमित न रखें बल्कि इसे जीवन, शिक्षा, विज्ञान, तकनीक, प्रशासन और वैश्विक संवाद का प्रभावी माध्यम बनाएं। हिन्दी का विकास तभी संभव है जब हम इसे अपनाएं, सम्मान दें और इसकी अभिव्यक्ति को सरल, समृद्ध और आधुनिक बनाएं।
हिन्दी दिवस केवल उत्सव नहीं बल्कि एक संकल्प है हिन्दी को जीवित रखना, विकसित करना और विश्व स्तर पर उसका गौरव बढ़ाना। आइए, हम सब मिलकर हिन्दी को प्रेम, अध्ययन और व्यवहार में अपनाएं और इसकी मधुरता, सरलता तथा शक्ति से अपने समाज और राष्ट्र को समृद्ध बनायें।
– डुमन लाल ध्रुव
मुजगहन, धमतरी (छ.ग.)
पिन – 493773
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