Sliding Message
Surta – 2018 से हिंदी और छत्तीसगढ़ी काव्य की अटूट धारा।

पर्यावरण संरक्षण आधारित नाटक (बाल साहित्‍य)- ‘जंगल में गीत’-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

पर्यावरण संरक्षण आधारित नाटक (बाल साहित्‍य)- ‘जंगल में गीत’-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

पर्यावरण संरक्षण पर आधारित नाटक (बाल साहित्‍य)

‘जंगल में गीत’-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

पर्यावरण संरक्षण आधारित नाटक

पर्यावरण संरक्षण आधारित लघु नाटक (बाल साहित्‍य)- 'जंगल में गीत'-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह
पर्यावरण संरक्षण आधारित लघु नाटक (बाल साहित्‍य)- ‘जंगल में गीत’-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह

पात्र परिचय-

  • गीतू : भालू
  • ग़ज़लू : बन्दर
  • प्रेटो   : हिरन
  • टिक टिक : कौआ

दृश्य : एक

स्थान : जंगल

समय : दोपहर बाद

(जंगल का एक भाग। गीतू भालू धीमी धीमी चाल से चलता हुआ एक पेड़ के तने से सात कर बैठ जाता है। चलते चलते वह कुछ गुनगुना रहा है )

गीतू:

  (गुनगुनाते हुए ) 
 कहीं –पसर- जायें-
  यहीं !
 घूप है तेज़ ,
 रखो- कुछ- रचें -यहीं ! 

(पीछे से हो- हो की आवाज़ , गीतू ठिठक कर सुनता है फिर अचानक मुस्कराता हुआ )

वाह वाह , क्या अच्छी बात

सैंटा क्लॉज़ भी यहीं कहीं।

लेकिन, यहाँ तो धूप निकली हुयी है , धूप  में  सैंटा कहाँ ! सैंटा क्लॉज़ कहाँ , भ्रम है कोई !  (स्वयं से )   गीतू भ्रम है तुम्हारा !

(पीछे से फिर  हो हो की आवाज़ , गीतू गंभीरता से सुनता है इस बार  )

गीतू:

लग रहा है आ गये सैंटा सीधे अंटार्कटिका से , सीधे यहीं हमारे जंगल… अरे ये क्या (अचानक दो सेब लुढ़कते हुए उसके पास आ जाते हैं ) अब तो पक्की बात सैंटा क्लॉज़ हैं कहीं पास !

(तभी कूदती हुयी एक हिरन पास आ जाती है। उसका नाम प्रेटो  है  काफी खुश लग रही है वह! )

प्रेटो :

सैंटा नहीं हिरन हूँ मैं।। क्या भालू सर आप भी क्या सोच लेते हैं।  हमेशा गीत संगीत में ही खोये रहते हैं। 

 वैसे भालू सर सैंटा हमें भी बहुत अच्छे लगते हैं , देखो कितनी ठण्ड पड़ती है दिसम्बर में , और क्रिसमस के समय वो कितनी दूर दूर तक , पूरी दुनिया में बच्चों को गिफ्ट पंहुचा कर आते हैं । 

गीतू :

वैसे तुम बोलती बहुत हो प्रेटो ! हाँ बोलती ठीक ही हो! (हँसताहै ) तुमको मालूम है ,  मैंने  भी उसके बारे में गीत संगीत रचें हैं। … अरे सैंटा के बारे में।

प्रेटो :

अच्छा गीतू सर ! सुनाईये न प्लीज ! बड़ा अच्छा लगेगा !

गीतू :

क्यों नहीं , क्यों नहीं ! (आवाज़ देते हुये) ग़ज़लू … ग़ज़लू …. कहाँ  …है भी ग़ज़लू !

प्रेटो :

ये ग़ज़लू कौन हैं ?

गीतू :

मेरा शिष्य…. मेरा शिष्य है  ग़ज़लू !

(कूदते छलांग लगाते  संगीतकार ग़ज़लू आ जाते हैं।  ग़ज़लू बन्दर  हैं। )

ग़ज़लू :

गीतू सर , कहाँ थे ,बड़ी देर से ढूंढ रहे थे हम आपको ! आप तो यहीं छिपे बैठे थे। (हा हा हा )…

गीतू :

अरे कुछ संगीत बना रहा था ग़ज़लू ,कहाँ जायेंगे , यहीं तो रहेंगे ! परेशान हो जाते हो ! ( प्रेटो से ) प्रेटो ये देखो , ये रहा मेरा शिष्य ग़ज़लू , वैसे ये उस्तादों का उस्ताद है ! आज कल ये विशेष धुन में बांसुरी बजाने की कला विकसित कर रहे हैं !

प्रेटो :

ग़ज़लू सर नमस्ते ! बड़ा अच्छा लगा आपसे मिलकर।  अरे हम भी बांसुरी बजाते हैं, हाँ हम अभी सीख रहे हैं , और आपलोग बड़े- बड़े उस्ताद !

गीतू :

उस्ताद तो आप निकलीं , हमें पता ही नहीं था ! तो इसमें देर क्या ! बज जाये जंगल में बांसुरी !

ग़ज़लू :

हाँ- हाँ क्यों नहीं !

प्रेटो :

आपने तो मेरे मुँह की बात छीन ली।

गीतू :

नहीं -नहीं , हम लोग छीनते नहीं हैं भाई !

प्रेटो :

धन्यवाद आप लोगों को ,आप जैसे संगीतकारों से मिलकर इतनी ख़ुशी मिल रही है!

गीतू :

हम लोग ऐसे ही होते हैं !

(सब हँस पड़ते हैं ।)

प्रेटो :

चलिए जंगल गान गाते हैं पहले , फिर बांसुरी बजायेंगे !

ग़ज़लू :

बहुत जरूरी है जंगल गान !

(सब मिलकर गाते हैं ।)

 जंगल गान जंगल गान ,
 हम जीवो का जंगल गान। 
 जंगल अपना बड़ा महान ,
 धरती अपनी बड़ी महान, 
 जल है अपना , हवा हमारी 
 देखो कितनी बहती प्यारी !
 हम सब से  इसकी हरियाली ,
 यह  हम सब की फुलवारी!
 जंगल पिता हमारा ,सबका ,
 जंगल अपनी माता, 
 जंगल गान , जंगल गान ! 

(गाने के बोल तेज़ होते जाते हैं। )

(पर्दा गिरता है)

प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह– लेखक से एक परिचय

डॉ रवीन्द्र  प्रताप सिंह लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। हिन्दी और अंग्रेजी  बाल साहित्य में वे चर्चित  और सक्रिय हैं । फ़्ली मार्किट एंड अदर प्लेज़ (2014), इकोलॉग (2014) , व्हेन ब्रांचो फ्लाईज़ (2014), शेक्सपियर की सात रातें (2015) , अंतर्द्वंद (2016), चौदह फरवरी (2019) , चैन कहाँ अब नैन हमारे (2018) उनके प्रसिद्ध नाटक हैं , बंजारन द म्यूज (2008) , क्लाउड  मून एंड अ लिटल गर्ल (2017) ,पथिक और प्रवाह (2016) , नीली आँखों वाली लड़की (2017), एडवेंचर्स ऑफ़ फनी एंड बना (2018),द वर्ल्ड ऑव मावी(2020), टू वायलेट फ्लावर्स(2020) उनके काव्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।  उनके लेखन एवं शिक्षण हेतु उन्हें स्वामी विवेकानंद यूथ अवार्ड लाइफ टाइम  अचीवमेंट , शिक्षक श्री सम्मान ,मोहन राकेश पुरस्कार, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार  एस एम सिन्हा स्मृति अवार्ड जैसे सोलह    पुरस्कार प्राप्त हैं ।

One response to “पर्यावरण संरक्षण आधारित नाटक (बाल साहित्‍य)- ‘जंगल में गीत’-प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अगर आपको ”सुरता:साहित्य की धरोहर” का काम पसंद आ रहा है तो हमें सपोर्ट करें,
आपका सहयोग हमारी रचनात्मकता को नया आयाम देगा।

☕ Support via BMC 📲 UPI से सपोर्ट

AMURT CRAFT

AmurtCraft, we celebrate the beauty of diverse art forms. Explore our exquisite range of embroidery and cloth art, where traditional techniques meet contemporary designs. Discover the intricate details of our engraving art and the precision of our laser cutting art, each showcasing a blend of skill and imagination.